भारत में हर तरफ़ आईएसआईएस से ख़तरे का शोर है और उससे निपटने की तैयारियों की चर्चा है, लेकिन इसी की ओट में देश भर में सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) फिर तेजी से पसर रहा है. इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा. मध्य प्रदेश स्थित खंडवा जेल से सिमी के कुछ आतंकी फरार होते हैं और उत्तर प्रदेश के बिजनौर में पनाह लेते हैं. जिस घर में वे अड्डा बनाकर ख़तरनाक बम बनाने की तैयारियां करते हैं, उसी घर में बम फट जाता है और तब खुफिया एजेंसियों को समझ में आता है कि माजरा तो कुछ और चल रहा है. बिजनौर से लेकर पश्चिम बंगाल के बर्दवान तक आतंकियों की गिरफ्तारी और ख़तरनाक बमों एवं घातक आरडीएक्स की बरामदगी का सिलसिला शुरू हो जाता है. कहीं भारत में सिमी ही आईएसआईएस का बदला हुआ रूप तो नहीं लेने जा रहा है? यह सवाल सुरक्षा एजेंसियों को मथ रहा है. देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर विचार-मंथन करने वाले थिंक-टैंक को भी यह समझ में आ रहा है कि भारत को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी आंतरिक सुरक्षा की रणनीति में आमूलचूल परिवर्तन करने की ज़रूरत है. सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि देश की अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा, दोनों मसले एक-दूसरे से गुथ गए हैं और अभी ही वह समय है, जब अमेरिका और इजराइल जैसी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था देश में लागू हो.
इधर भारतवर्ष में सिमी नए सिरे से सक्रिय हो रहा है और तेजी से अपने सदस्य बना रहा है, तो सीमा के पार उसके मददगार आईएसआई और अन्य आतंकवादी गुट अपनी धार मजबूत करने में लगे हैं. जमात-ए-इस्लामी हिंद के सहयोग से पाकिस्तान के पंजाब में अलकायदा अपना नेटवर्क मजबूत करने में लगा है. जमात-ए-तलाबा के रूप में जमात-ए-इस्लामी हिंद की पंजाब के
स्कूलों- कॉलेजों में गहरी पैठ है. यह संगठन अफगानिस्तान में तालिबान के लिए भर्तियां कर रहा था. अमेरिकी सेना द्वारा कैद किए गए 9,000 तालिबानियों में से 6,000 पाकिस्तान के पंजाबी पाए गए थे. अलकायदा, तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लिए भर्तियां कर रहे हैं. जमात-उल-दावा का कुख्यात नेता हाफिज सईद जमात-ए-इस्लामी हिंद को उभारने में मदद कर रहा है. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) की पूछताछ में यासीन भटकल ने बताया था कि अलकायदा से साठगांठ कर इंडियन मुजाहिदीन और सिमी देश में अपनी जड़ें मजबूत कर रहे हैं. अब तो सिमी के मददगारों में आईएसआईएस का नाम भी प्रमुखता से जुड़ गया है.
सिमी और उसके सहयोगी इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठनों का ताकतवर होते जाना देश के लिए भीषण ख़तरे का संकेत है. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल में इंडियन मुजाहिदीन के सर्वोच्च कमांडरों व सक्रिय सदस्यों की लगातार हो रही गिरफ्तारी इन राज्यों में इनके फैलाव और आतंकियों के सुरक्षित पनाहगाह बनने की सनद देती है. सिमी की मजबूत पकड़ वाले उत्तर प्रदेश के ज़िलों जैसे मेरठ, अलीगढ़, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, कानपुर, आजमगढ़ एवं गोरखपुर में बड़े पैमाने पर इंडियन मुजाहिदीन और सिमी के स्लीपर सेल की सक्रियता की ख़बरें आती रही हैं. इन तथ्यों के आधिकारिक तौर पर उजागर होने के बावजूद देश की सुरक्षा व्यवस्था का दायित्व संभालने वाले तंत्र पर कोई फ़़र्क नहीं पड़ रहा है. बिजनौर में सिमी के अड्डे पर हुए धमाकों के पहले ही खुफिया एजेंसियों ने यह सतर्कता संदेश दे दिया था कि मध्य प्रदेश से भागे हुए आतंकियों ने ली उत्तर प्रदेश में शरण ले रखी है. प्रदेश के सभी ज़िलों के पुलिस अफसरों को इस बारे में सचेत रहने की ताकीद की गई थी.
सिमी को केंद्र सरकार ने सितंबर 2001 में ही प्रतिबंधित कर दिया था. फिर अगस्त 2008 में एक विशेष न्यायाधिकरण ने सिमी से प्रतिबंध हटा लिया, लेकिन फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6 अगस्त, 2008 को पाबंदी बहाल कर दी गई. तबसे सिमी पर पाबंदी तो जारी है, लेकिन इसके बावजूद यह संगठन उत्तर प्रदेश से लेकर केरल तक कथित सेकुलरवादी राजनीतिक दलों की कृपा से इस कदर और इतने छद्म नामों से फैल गया है कि आज इसकी पहचान भी मुश्किल हो गई है.
एक अक्टूबर, 2013 को मध्य प्रदेश के खंडवा स्थित जेल से भाग निकले सिमी के सात आतंकियों अबू फैजल, असलम अय्यूब, एजाजुद्दीन, जाकिर, अमजद, महबूब उर्फ गुड्डू एवं शेख मुजीब के उत्तर प्रदेश में छिपे होने की सूचना दी गई थी. शेख मुजीब के भदोही में छिपे होने का अंदेशा था, क्योंकि वह पहले भी भदोही जाकर कई दिनों तक रुक चुका था. मुजीब भदोही जाने से पहले लखनऊ के अमीनाबाद स्थित चिकमंडी में वर्ष 2007 में रुका था. यहां वह सिमी के एक अन्य सदस्य शहबाज के पास आया था. शहबाज का इसी इलाके में साइबर कैफे था. वह राजस्थान विस्फोट कांड के सिलसिले में पहले गिरफ्तार किया जा चुका है. वह भी भदोही का रहने वाला था और अमीनाबाद में अपनी ससुराल में रह रहा था. बिजनौर स्थित अड्डे पर खंडवा जेल से भागे हुए आतंकियों के होने की पुष्टि सीसीटीवी फुटेज, विस्फोटक बनाने के उनके तौर-तरीकों और उनकी शिनाख्त के आधार पर की गई. ये सब बिजनौर के जाटान मोहल्ले में विधवा लीलो देवी के घर में नाम बदल कर किराएदार के रूप में रह रहे थे. धमाके के बाद मा़ैके से 9 एमएम की पिस्टल, लैपटॉप, छोटा गैस सिलेंडर, मोबाइल, सिम कार्ड, बम बनाने की सामग्री और तीन आईडी बरामद किए गए थे. धमाके के बाद तीन आतंकी अपने घायल साथी महबूब को स्थानीय डॉक्टर शमीम के पास ले गए थे, लेकिन बिना इलाज के उसे लेकर चले गए. डॉक्टर ने पुलिस को बताया था कि जख्मी आतंकी 70 फ़ीसद से अधिक जला हुआ था.
इस घटना के बाद बिजनौर के ही भाटान मोहल्ले में भी सिमी के अन्य फरार आतंकियों के छिपे होने की पुष्टि हुई. वहां एक दर्जी के मकान से बड़ी तादाद में बम बनाने का सामान और विस्फोटक बरामद हुआ. छानबीन के क्रम में एनआईए ने सिमी के आतंकियों को ट्रेनिंग देने वाले अब्दुल सत्तार को दिल्ली से गिरफ्तार किया, जिसके ख़िलाफ़ इंटरपोल ने भी नोटिस जारी कर रखी थी. एनआईए और एटीएस की पड़ताल में इन आतंकियों के नेपाल कनेक्शन का भी पता चला और जानकारी मिली कि मध्य प्रदेश से भागने के बाद इनमें से कुछ लोग रांची और कुछ मिर्जापुर पहुंचे थे. इनमें से कुछ ने लोकसभा चुनाव के दौरान मिर्जापुर से कानपुर आकर नरेंद्र मोदी के रैली स्थल की रेकी भी की थी. मोदी पर ख़तरे के मद्देनज़र सुरक्षा एजेंसियों के बढ़ते दबाव के चलते ये नेपाल भाग गए थे. सिमी की सक्रियता की आधिकारिक पुष्टि के बावजूद समानांतर प्रशासनिक तैयारियां बहुत फिसड्डी हैं.
सिमी को केंद्र सरकार ने सितंबर 2001 में ही प्रतिबंधित कर दिया था. फिर अगस्त 2008 में एक विशेष न्यायाधिकरण ने सिमी से प्रतिबंध हटा लिया, लेकिन फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6 अगस्त, 2008 को पाबंदी बहाल कर दी गई. तबसे सिमी पर पाबंदी तो जारी है, लेकिन इसके बावजूद यह संगठन उत्तर प्रदेश से लेकर केरल तक कथित सेकुलरवादी राजनीतिक दलों की कृपा से इस कदर और इतने छद्म नामों से फैल गया है कि आज इसकी पहचान भी मुश्किल हो गई है. उत्तर प्रदेश में सिमी की मजबूती के लिए सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की नीतियां भी ज़िम्मेदार हैं. जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने सिमी को निर्दोष बताते हुए प्रतिबंध हटाने की केंद्र से सिफारिश की थी. राज्य सरकार ने सिमी के अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही पर चल रहे समस्त अभियोग भी वापस लेने का निर्णय लिया था. सिमी का गठन 25 अप्रैल, 1977 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था. इसका संस्थापक अध्यक्ष मोहम्मद अहमदुल्ला सिद्दीकी था.
इंटेलिजेंस ब्यूरो ने केंद्र को सूचना दे रखी है कि भारत में आतंकवादी गतिविधियां चलाने के लिए अनेक विदेशी आतंकी संगठनों ने सिमी को माध्यम बना रखा है. ब्यूरो ने देश के कई
महत्वपूर्ण धमाकों में सिमी का सीधा हाथ होना स्वीकार किया और कहा कि सिमी के रिश्ते बांग्लादेशी संगठनों, जमात-ए-इस्लामी, इस्लामी छात्र शिविर समेत कई संस्थाओं से हैं. कट्टरपंथी संगठन हरकत-उल-जिहाद-उल इस्लामी (हूजी) से भी सिमी के गहरे संबंध हैं. 28 जुलाई, 2005 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर के निकट श्रमजीवी एक्सप्रेस और 7 मार्च, 2006 को वाराणसी स्टेशन एवं संकट मोचन मंदिर में हुए विस्फोटों के संदर्भ में सिमी के साथ-साथ हूजी की भूमिका सामने आई थी. वाराणसी विस्फोट का मुख्य आरोपी वलीउल्लाह इलाहाबाद के फूलपुर इलाके में एक मदरसे का इमाम था. वह सिमी का एरिया कमांडर था. सिमी के तार केवल उत्तर प्रदेश और उत्तरी राज्यों से ही नहीं जुड़े हैं, बल्कि सुदूर दक्षिण में भी उसकी जबरदस्त पकड़ है. केरल जैसे धुर दक्षिणी राज्य से सिमी के जुड़ाव के पुख्ता प्रमाण मिल चुके हैं. सिमी केरल में छद्म रूपों में सक्रिय है और राज्य में एक दर्जन से अधिक संगठन ऐसे हैं, जिनके पीछे सिमी की केंद्रीय भूमिका है. एनडीएफ, इस्लामिक यूथ सेंटर, करुणा फाउंडेशन, सॉलिडेरिटी स्टूडेंट्स मूवमेंट के अध्यक्ष सिमी की विभिन्न इकाइयों का पूर्व में नेतृत्व करते रहे हैं. सिमी धन संग्रह के लिए अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी सहायता लेता है, जिनमें वर्ल्ड असेंबली ऑफ मुस्लिम यूथ प्रमुख है. खुफिया एजेंसियों ने जानकारी दी है कि मजहबी अध्ययन केंद्र, ग्रामीण विकास, व्यक्तित्व विकास आदि छद्म कार्यक्रमों द्वारा भी सिमी अपनी गतिविधियां जारी रखे हुए है. उत्तर प्रदेश एवं अन्य राज्यों में उसने मुस्लिम युवकों के लिए काउंसलिंग और मार्गदर्शन कार्यक्रम भी चला रखे हैं. वहां युवकों को क्या मार्गदर्शन मिलता होगा, यह आसानी से सोचा जा सकता है.
खुफिया सूत्रों ने यह भी खुलासा किया है कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद, मालेगांव, जलगांव एवं थाणे के अनेक मुस्लिम बहुल इलाकों में सिमी की जबर्दस्त पकड़ है. कोल्हापुर, जलगांव, नासिक, थाणे, शोलापुर, गढ़चिरोली, नांदेड़, औरंगाबाद, मालेगांव एवं पुणे के अनेक मदरसों के सिमी का केंद्र होने की ओर खुफिया एजेंसी ने इशारा किया है. राजस्थान के जोधपुर, पाली, बाड़मेर एवं जैसलमेर में सिमी के सक्रिय होने की खुफिया सूचनाएं चिंता पैदा करती हैं. पाकिस्तान से सटे सीमावर्ती गांवों में दूसरे राज्यों से आने वाली तब्लीगी जमातों की गतिविधियां काफी बढ़ गई हैं. भारत सरकार का आधिकारिक तौर पर मानना है कि सिमी आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ा एक इस्लामिक आतंकवादी संगठन है, जो हर तरह से भारतीय तालिबान का ही प्रारूप है.
लोकसभा चुनाव के पहले पटना में हुई नरेंद्र मोदी की रैली में बम धमाके को अंजाम देने वाला संगठन सिमी ही था. सिमी के सदस्यों ने कई दिन पहले से पटना में डेरा डाल रखा था. धमाके को झारखंड के सिमी मॉड्यूल के मुखिया हैदर की देखरेख में अंजाम दिया गया था. आतंकी तहसीन अख्तर उर्फ मोनू ने दिल्ली पुलिस के समक्ष इसका खुलासा किया. उसकी हैदर से मुलाकात दरभंगा में हुई थी. उस दौरान यासीन भटकल भी दरभंगा के उर्दू बाज़ार में बतौर यूनानी डॉक्टर रह रहा था. यासीन भटकल के कहने पर उसने कई युवकों को सिमी से जोड़ा था. सिमी को सक्रिय करने के लिए हैदर अक्सर दरभंगा, मधुबनी, पटना, रांची एवं जमशेदपुर आता-जाता था. बिजनौर में सिमी के आतंकी अपना अड्डा बनाए हुए हैं, इसका स्थानीय पुलिस को कोई भान नहीं था. बिजनौर धमाके के बाद खुलासा होना शुरू हुआ. तब यह भी पता चला कि सिमी के आतंकियों ने बिजनौर के कई युवकों को कर्नाटक के गुलबर्गा ट्रेनिंग कैंप में प्रशिक्षण दिया था. खंडवा जेल से फरार होने के बाद सिमी के आतंकियों ने कर्नाटक के गुलबर्गा में कैंप लगाया था, जहां देश के विभिन्न हिस्सों से आए युवकों को आतंकी प्रशिक्षण दिया गया था. इसमें बिजनौर के भी दस से अधिक युवक शामिल हुए थे. इस कैंप में प्रशिक्षण ख़त्म होने के बाद ही आतंकियों ने बिजनौर में शरण ली थी. इन्हें बिजनौर में आकर रहने की सलाह भी स्थानीय युवकों ने दी थी और हरसंभव मदद पहुंचाई थी.
एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगी खुफिया एजेंसियां
देश पर चारों तरफ़ से बढ़ रहे आतंकी ख़तरे के बीच अपनी ही खुफिया एजेंसियों के बीच शत्रुता और वैमनस्य पैदा करने की कोशिशें पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में खूब चलीं. गंदी राजनीति के लिए सुरक्षा तंत्र और खुफिया तंत्र को काफी नुक़सान पहुंचाया जा चुका है. घोषित आतंकी इशरत जहां मुठभेड़ मामले में इंटेलिजेंस ब्यूरो की विश्वसनीयता पर सीबीआई ने ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया. सीबीआई की साख पर संकट तो पहले से है. दूसरी तरफ़ आतंकियों और दुश्मन देश के कमांडरों के बीच होने वाली बातचीत को मॉनिटर करने वाली भारतीय सेना की बेहद प्रभावशाली शाखा टेक्निकल सपोर्ट डिवीजन को ही ख़त्म कर दिया गया. इससे यही साबित हुआ कि भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनज़र अपने संस्थानों को और मजबूत करने के बजाय देश के कुछ खास नेता उन्हें सुनियोजित तरीके से कमजोर कर रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने अपने अल्प-शासनकाल में रॉ की विशेष ऑपरेशन डेस्क को बंद कर दिया था, जिसके चलते भारत की खुफिया क्षमता में भारी गिरावट आई थी. इसी तरह पिछली मनमोहन सरकार ने आईबी और मिलिट्री इंटेलिजेंस को अपाहिज बनाने की कोशिश की. जबकि भारत में अमेरिका की तर्ज पर लाइंस ऑफ अमेरिकन होम लैंड सिक्यूरिटी जैसे चाक-चौबंद तंत्र की तुरंत आवश्यकता है. नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) पर भी भारतीय नेता ग्रहण लगाए बैठे हैं. खुफिया विशेषज्ञ बताते हैं कि रक्षा मंत्रालय के टेक्निकल सपोर्ट डिवीजन और रॉ की स्पेशल ऑपरेशन डेस्क को सक्रिय किया जाना चाहिए. सीआईए और मोसाद के साथ परस्पर सक्रिय सहयोग बढ़ाने पर सुरक्षा विशेषज्ञ जोर देते हैं और कहते हैं कि इससे प्रत्यक्ष या परोक्ष आतंकी नेतृत्व को साझा स्तर पर ख़त्म किया जा सकता है.
फरारी की फाइल बंद करने की तैयारी
उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियों के कारण पुलिस ने आतंकियों के आगे घुटने टेक दिए हैं. कुछ अर्सा पहले सिविल कोर्ट से फरार हुए कुख्यात आतंकियों को तलाशने का काम भी टालमटोल पर टिका रहा. अब तो लखनऊ पुलिस उस फाइल को ही बंद करने की फिराक में है. पाकिस्तान के सिंध निवासी खूंखार आतंकी सईद उर्फ अबू, रिजवान उर्फ भानू उर्फ फहद उर्फ निसार, अहमद पुत्र अनवर और मकसूद अहमद उर्फ अशफाक उर्फ अबू उस्मान उर्फ सलमान खान उर्फ अबू मुजाहिद पुत्र मोहम्मद इब्राहिम को 27 फरवरी, 2007 को लखनऊ जेल से सिविल कोर्ट में हाजिर कराना था. आतंकियों को हाजिर कराने के लिए पुलिस फोर्स उन्हें लेकर कोर्ट पहुंची. दोनों आतंकियों ने बाथरूम जाने की इच्छा जाहिर की और पुलिस ने दोनों की इच्छा का एक साथ सम्मान किया. थोड़ी ही देर में दोनों आतंकी बाथरूम से अंधाधुंध फायरिंग करते बाहर निकले और पुलिस वाले डरकर भाग खड़े हुए. दोनों आतंकवादी आराम से चलते बने. तबसे आज तक उनका पता नहीं चला.