yogi-adityanathप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आश्वासन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरा किया. मोदी ने चुनावी सभा में उत्तर प्रदेश के छोटे किसानों के लिए यह वादा किया था कि यूपी में भाजपा की सरकार बनी तो पहली ही कैबिनेट बैठक में उनका ऋण माफ कर दिया जाएगा. किसानों से किया गया यह वादा भाजपा के संकल्प पत्र में भी शामिल था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रिमंडल (कैबिनेट) की औपचारिक बैठक बुलाने में थोड़ी देर जरूर की, लेकिन कैबिनेट की पहली ही बैठक में प्रदेश के दो करोड़ से अधिक लघु और सीमांत किसानों का एक लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने का महत्वपूर्ण और दूरगामी निर्णय ले लिया गया. मोदी ने केवल छोटे किसानों का ऋण माफ करने की बात कही थी.

मुख्यमंत्री योगी ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए प्रदेश के सभी किसानों के हित में किसानों की रबी पैदावार का 80 फीसदी उत्पाद सरकार द्वारा खरीदने का फैसला ले लिया. प्रदेश के किसानों को बिचौलियों से मुक्त करने के लिए योगी ने 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का फैसला किया है. रबी के बाद खरीफ (धान) फसल की खरीद को लेकर भी सरकार की यही नीति रहेगी. आलू को लेकर भी सरकार ऐसा ही निर्णय लेने जा रही है. किसानों को आलू की उचित कीमत दिलाने के इरादे से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और वन एवं पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चौहान की तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय कमेटी गठित की गई है, जो प्रदेश के आलू उत्पादक किसानों को राहत देने के उपायों पर विचार करने के लिए जमीनी अध्ययन करेगी और सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश करेगी.

कर्ज माफी के संदर्भ में योगी सरकार ने किसानों का कुल मिलाकर 36 हजार 359 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया है. इस निर्णय के तहत किसानों द्वारा किसी भी बैंक से लिया गया फसली ऋण माफ कर दिया गया है. इस फैसले से प्रदेश के राजकोष पर 36 हजार 359 करोड़ रुपए का भार आएगा. पिछले कुछ वर्षों में सूखा, फिर ओलावृष्टि और बाढ़ के कारण प्रदेश के किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. तबाही के कारण कई किसानों ने आत्महत्या तक कर ली. प्रदेश में लगभग दो करोड़ 30 लाख किसान हैं, जिनमें 92.5 प्रतिशत यानि, 2.15 करोड़ लघु एवं सीमांत किसान हैं. प्रारम्भिक गणना के अनुसार प्रदेश में ऐसे कुल 86.68 लाख लघु व सीमांत किसान हैं, जिन्होंने बैंकों से फसली ऋण लिया हुआ है. यह कर्ज माफी उन्हीं लघु और सीमांत किसानों के हित के लिए है.

इसके साथ ही योगी कैबिनेट ने उन सात लाख किसानों का भी कर्ज माफ किया, जो बर्बादी और मुफलिसी के कारण ऋण का भुगतान नहीं कर सके थे और उनकी ऋण-राशि बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) में शुमार हो गई थी. इस वजह से उन किसानों को और ऋण मिलना बंद हो गया था. ऐसे किसानों को भी राहत देते हुए सरकार ने उनके कर्ज के 5,630 करोड़ रुपए माफ कर दिए. एक हेक्टेयर यानि, ढाई एकड़ तक के सभी किसान सीमांत किसान की श्रेणी में औरदो हेक्टेयर यानि, पांच एकड़ तक के सभी किसान लघु किसान की श्रेणी में आएंगे. योजना का लाभ प्रदेश के सभी लघु व सीमांत कृषकों को मिलेगा.

योगी मंत्रिमंडल ने 2017-18 के लिए रबी खरीद मूल्य समर्थन योजना के तहत गेहूं क्रय नीति को मंजूरी दी है. किसानों को मूल्य समर्थन योजना के जरिए अधिकतम लाभ दिलाने के लिए शासनादेश जारी कर 01 अप्रैल 2017 से प्रदेशभर में गेहूं की खरीद शुरू कर दी गई. गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1625 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है. वर्ष 2017-18 के लिए राज्य सरकार ने 40 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का न्यूनतम लक्ष्य रखा था, लेकिन किसानों को मूल्य समर्थन योजना का अधिकाधिक लाभ मिले इसके लिए न्यूनतम खरीद लक्ष्य को बढ़ाकर 80 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया. नौ क्रय संस्थाओं द्वारा गेहूं खरीदा जा रहा है और इसके लिए प्रदेश के विभिन्न जिलों में पांच हजार क्रय केंद्र खोले गए हैं. गेहूं खरीद में आने वाली दिक्कतों को दूर करने का बीड़ा खुद मुख्यमंत्री ने अपने हाथों में लिया है. मुख्यमंत्री ने गेहूं खरीद के मामले में किसानों की किसी भी परेशानी को दर्ज करने और उसका त्वरित निपटारा करने के लिए खाद्य एवं रसद आयुक्त के कार्यालय में कंट्रोल रूम की स्थापना की है.

किसानों की कर्ज-माफी के ऐतिहासिक फैसले पर समाजवादी पार्टी ने संतोष जताने के बजाय निंदा प्रस्ताव ही जारी कर दिया. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव योगी सरकार के फैसले को किसानों के साथ धोखा बताने से कतई नहीं झिझके. अखिलेश ने ट्वीट कर कहा कि मोदी का वादा पूरे कर्ज-माफी का था. कर्ज माफी की एक लाख की सीमा से करोड़ों किसान ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. यह गरीब किसानों के साथ धोखा है. अखिलेश की टिप्पणी पर एक और उछाल मारते हुए सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भाजपा मंत्रिमंडल की पहली बैठक घोर निराशाजनक साबित हुई है. चौधरी कहते हैं कि भाजपा तो सिर्फ झूठ की खेती करने में माहिर है, उसका किसानों से कोई लेना देना नही है.

चौधरी यूपी के किसानों की बात करते-करते कश्मीर पर और फिर पाकिस्तान पर भी आ गए और बोल पड़े कि कश्मीर में स्थिति बिगड़ती गई है और पड़ोसी देशों से भी रिश्तों में बिगाड़ आया है. योगी सरकार में ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा कि विरोधी दल प्रदेश सरकार के किसानों के कल्याण के इतने बड़े फैसले को पचा नहीं पा रहा है, क्योंकि उन्होंने तो किसानों के हित में कभी भी कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया और आज किसानों को अपने से विमुख होता देख कर बौखला गए हैं. सपा की प्रतिक्रिया के विपरीत उसके गठबंध के साथी कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने नपा-तुला वक्तव्य दिया और कहा कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा किसानों का कर्ज माफ करना सही दिशा में उठाया गया कदम है. राहुल ने कहा कि हमें किसानों के साथ राजनीति नहीं करनी चाहिए.

बूचड़खानों और छेड़खानी के बाद अब शराब पर निशाना

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शराब बिक्री केंद्रों के बारे में कोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन शुरू करा दिया है. कार्रवाई के तहत शिक्षण संस्थाओं, धार्मिक स्थलों और आबादी वाले इलाकों में शराब की बिक्री की इजाजत निर्धारित मानक के आधार पर ही दी जाएगी. मानक पर खरा नहीं उतरने वाले शराब बिक्री केंद्र बंद कर दिए जाएंगे. योगी के मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेशभर में शराब बिक्री के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया और इसमें महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. ऐसा ही निर्णय अवैध पशु वधशालाओं (बूचड़खानों) को लेकर भी किया गया. प्रदेश के सभी जिलों में पशु वधशालाओं का निरीक्षण कर अवैध रूप से संचालित पशु वधशालाओं को तत्काल प्रभाव से बंद किया जा रहा है. निर्धारित मानकों का उल्लंघन करने वाले यांत्रिक पशु वधशालाओं पर भी प्रतिबंध लगाया जा रहा है. प्रदेश में अभी तक कुल 26 अवैध पशु वधशालाएं बंद की गई हैं.

छेड़खानी रोकने के लिए प्रदेश के सभी जिलों में एंटी रोमियो स्न्वॉड के गठन और संचालन के प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. यह स्न्वॉड ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेगा, जो रास्ते में लड़कियों और महिलाओं को छेड़ते हैं या उन्हें परेशान करते हैं. सामाजिक मर्यादा के दायरे में रहते हुए, जो जोड़े सार्वजनिक स्थलों पर मिलेंगे उनके खिलाफ स्न्वॉड कोई कार्रवाई नहीं करेगा. स्कूल, कॉलेज, बाजार, मॉल, पार्क, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर आपत्तिजनक हरकत करने वाले तत्वों पर निगरानी रखने के लिए सादे वस्त्रों में महिला पुलिस कर्मियों को भी तैनात किया गया है. एंटी रोमियो स्न्वॉड क्षेत्राधिकारी (सर्किल अफसर) के पर्यवेक्षण में काम कर रहा है और जिले के अन्य वरिष्ठ अधिकारी उसके कामकाज पर निगरानी रखते हैं.

अवैध खनन पर अंकुश लगाने की तैयारी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में अवैध खनन रोकने के लिए कारगर नीति बनाने के इरादे से मंत्री समूह का गठन किया है. मंत्री समूह की अध्यक्षता उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य करेंगे. समूह में संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना और वन एवं पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चौहान भी शामिल हैं. समूह को हफ्तेभर के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपनी है, जिस पर सरकार आवश्यक फैसला लेगी.

गोमती रिवर फ्रंट मामले की जांच शुरू

राजधानी लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में हुए घपले-घोटाले की न्यायिक जांच का आदेश दिया गया है. रिटायर्ड जज आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति मामले की पूरी जांच करेगी. जांच समिति 45 दिनों के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को पेश कर देगी. जांच समिति में आईआईटी बीएचयू के रिवराइन इंजीनियरिंग संकाय के पूर्व प्रोफेसर यूके चौधरी और आईआईएम लखनऊ के वित्त संकाय के प्रोफेसर एके गर्ग भी शामिल किए गए हैं. उल्लेखनीय है कि गोमती नदी चैनेलाइजेशन परियोजना के लिए 656 करोड़ रुपए की धनराशि दी गई थी, जिसे बाद में बढ़ा कर 1,513 करोड़ रुपए कर दिया गया था. अखिलेश सरकार द्वारा इस राशि का 95 प्रतिशत हिस्सा काम पूरा हुए बगैर ही भुगतान कर दिया गया था. जबकि परियोजना का 60 प्रतिशत काम भी पूरा नहीं हुआ.

आगरा-एक्सप्रेस हाई-वे की भी होगी जांच

योगी आदित्यनाथ ने गोमती रिवर फ्रंट परियोजना के साथ-साथ आगरा एक्सप्रेस हाई-वे के निर्माण की भी जांच कराने का फैसला किया है. इस बारे में प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी यह साफ कर चुके हैं कि अखिलेश सरकार के आगरा-एक्सप्रेस हाई-वे के बनने में तय समय-सीमा और खर्च की गई धनराशि के भारी असंतुलन की गहराई से जांच की आवश्यकता है. केशव मौर्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री भी हैं. उनका कहना है कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस हाई-वे के साथ-साथ समाजवादी सरकार के कई अन्य रोड प्रोजेक्ट्स की भी जांच कराए जाने की आवश्यकता है. आगरा एक्सप्रेस हाई-वे शुरुआत से ही विवादों में है.

जिस छह लेन हाइ-वे को केंद्र सरकार का राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) 17 से 18 करोड़ प्रति किलोमीटर की लागत से तैयार करता है, उसे उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग 30 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से बनवाया. निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के मुख्य कर्ता-धर्ता आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल रहे हैं. पहले इस प्रोजेक्ट को पीपीपी मॉडल के जरिए बनवाया जाना था, जिसकी अनुमानित लागत 5000 करोड़ रुपए आंकी गई थी. पीपीपी मोड के तहत काम के लिए 24 मई 2013 को प्री-बिड कॉन्फ्रेंस में 15 कंपनियों ने हिस्सा लिया था.

इनमें जीवीके, जीएमआर, एस्सेल इंफ्रा, विंसी कन्सेसंस, जेपी इंफ्रा, एसआरईआई इंफ्रास्ट्रक्चर, सुप्रीम, पीएनसी इंफ्राटेक, सोमा, गैमन इंडिया, ल्यूटन वेल्सपन, आईएल एंड एफएस, यूनिक्वेस्ट इंफ्रा, ट्रांसट्रॉय और पुंज लायड शामिल थीं. लेकिन कारगर नहीं हो पाईं. सरकार की मंशा भी यही थी. फौरन ही सरकार ने इस प्रोजेक्ट को जनता के पैसे से नगद अनुबंध पर पूरा करने का निर्णय लिया, जो राज्य की वित्तीय स्थिति को देखते हुए उचित नहीं था. दरअसल, हाई-वे के इस ड्रीम प्रोजेक्ट से अरबों रुपए का वारा-न्यारा करने का सपना था.

जिस परियोजना की लागत पांच हजार करोड़ रुपए आंकी गई थी, वह दिसम्बर 2013 में ही बढ़कर 8,944 करोड़ रुपए हो गई थी. अब यह लागत 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक ही हो चुकी है. 302 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे की शुरुआती लंबाई 270 किलोमीटर तय थी, जिसके जरिए यमुना एक्सप्रेस-वे को लिंक किया जाना था, लेकिन मुख्यमंत्री ने अपने गांव सैफई को इससे जोड़ने के लिए इसकी लंबाई 32 किलोमीटर और बढ़ा दी.

कैग की रिपोर्ट के अनुसार 2012 में बने छह लेन के यमुना एक्सप्रेस-वे की प्रति किलोमीटर लागत, जमीन अधिग्रहण का खर्च मिला कर 27.20 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर थी. फिर आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस हाई-वे की प्रति किलोमीटर लागत 50 करोड़ से ऊपर कैसे पहुंच गई? ऐसे कई गहरे सवाल सामने हैं. हाई-वे बनाने के लिए कंपनियों के चयन पर भी गहरे संदेह से भरे सवाल खड़े हैं.

हाई-वे परियोजना से 30 हजार से ज्यादा किसान और 232 राजस्व गांव प्रभावित हुए. हजारों किसानों को अपनी जमीनों से हाथ धोना पड़ा. किसी ने स्वेच्छा से जमीन दी, तो किसी से जबरन जमीन ले ली गई. इस योजना के लिए 3,368.60 हेक्टेेयर भूमि अधिग्रहीत की गई. मुख्यमंत्री के गृह जनपद इटावा के ही किसानों ने मुआवजे में भेदभाव को लेकर हड़ताल और धरना प्रदर्शन किया था. उनका आरोप था कि मुआवजा देने में सरकार ने भेदभाव किया है. सैफई में 1.20 करोड़ से 1.25 करोड़ रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा दिया गया, जबकि इटावा के ही ताखा तहसील के किसानों को महज 15 से 20 लाख रुपए प्रति हेक्टेेयर की दर से मुआवजा दिया गया.

किसानों को मुआवजा देने के लिए सरकार की तरफ से पांच हजार करोड़ रुपए की व्यरवस्था की गई थी. किसानों का आरोप है कि उनसे निर्धारित जमीन से ज्यादा जमीन छीन ली गई. उन्नाव के बांगरमऊ गांव जगतापुर के किसानों ने बैनामे से अधिक जमीन लिए जाने का आरोप लगाया. जगतापुर के आदित्य कुमार, शीलू कटियार, शिवम कटियार, सरोज कटियार, सर्वेश पटेल, अनिल कटियार, रामपाल शर्मा, अमरेश पटेल समेत दर्जनों किसानों की बैनामा से ज्यादा भूमि जब्त कर ली गई. इस तरह के और कई उदाहरण सामने आए हैं.

धीरे-धीरे स्पष्ट हो गया है कि हाई-वे प्रोजेक्ट कुछ सियासतदानों, कुछ नौकरशाहों, कुछ पूंजीपतियों और कुछ दलालों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया था. सत्ता पक्ष के नेताओं, दबंग दलालों और नौकरशाहों ने पहले ही ले-आउट देख कर प्रस्तावित हाई-वे के नजदीक की जमीनों को किसानों से सस्ते दर पर खरीद लिया था. फिर कलेक्टर से मनमाफिक सर्किल रेट बढ़वाकर इन जमीनों को चार गुना रेट पर सरकार को दे दिया गया.

लखनऊ, उन्नाव, कन्नौज, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, इटावा, मैनपुरी जैसे कई जिलों में हजारों रजिस्ट्रियां हुईं, जिनमें अधिकांश बेनामी हैं. कुछ बड़े बिल्डरों ने भी हाथ धोए, ताकि हाई-वे बनने के बाद वे जमीन का व्यवसायिक इस्तेमाल कर सकें. ग्रोथ सेंटर, मंडी, वेयर हाउस, लॉजिस्टिक सेंटर और आवासीय योजनाओं के लिए भी सत्ता-प्रिय बिल्डर से आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के आसपास की जमीन खरीदवा कर रख ली गई.

साबित करेंगे योगी, ‘काम नहीं कारनामा बोलता है’

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह साबित करने में लगे हैं कि सपा सरकार के कार्यकाल का ‘काम नहीं कारनामा बोलता है’. योगी ने गोमती रिवर फ्रंट मामले की न्यायिक जांच का आदेश देकर और लखनऊ आगरा एक्सप्रेस हाई-वे निर्माण की जांच कराने की बात कह कर प्रदेश के लोगों को यह साफ-साफ संदेश दिया है. 27 मार्च को मुख्यमंत्री ने खुद गोमती किनारे मौके पर जाकर इस परियोजना की असलियत देखी थी. निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अन्य ड्रीम प्रोजेक्ट मसलन, जनेश्वर मिश्र पार्क, चक गंजरिया साइबर सिटी, जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (जेपीएनआईसी) और हुसैनाबाद हेरिटेज जोन का निर्माण भी जांच के दायरे में आने वाला है. 376 एकड़ में फैले जनेश्वर मिश्र पार्क का प्रोजेक्ट चार सौ करोड़ रुपए का था.

वित्तलेखा मैनुअल-2014 के अनुसार 25 लाख रुपए से अधिक के काम के लिए ई-टेंडर होना चाहिए. लेकिन जनेश्वर मिश्र पार्क का निर्माण मैनुअल टेंडर के जरिए कराया गया. इसी तरह चक गंजरिया के मनोरम हरियाली से भरे 807 एकड़ के फार्म को तहस-नहस कर उस पर हाईटेक टाउनशिप बनाने का सपा सरकार का निर्णय भी संदेह से परे नहीं है. इस प्रोजेक्ट का लगभग 60 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. यह प्रोजेक्ट 1,548 करोड़ रुपए का है. प्रदेश सरकार के आदेश के बाद भी लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) द्वारा मेट्रो को 150 एकड़ भूमि नहीं दिए जाने का मामला भी जांच के दायरे में है. एलडीए ने लेआउट बदल कर मेट्रो की जमीन पर बिल्डरों के लिए प्लॉट निकाल कर बेच डाले.

आलीशान ताज होटल के बगल में जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर बनाने की योजना शुरुआती दौर में 189 करोड़ रुपए की थी, लेकिन यह अब तक निर्माणाधीन है. जेपीएनआईसी की 17वीं मंजिल पर हेलीकॉप्टर उतरने की भी सुविधा रहेगी. हेलीपैड बन रहा है. सपा नेताओं ने अपनी सुविधा के लिए यह खर्चीला इंतजाम किया था. ऊपर ही हेलीपैड के बगल में स्वीमिंग पूल का निर्माण भी कराया जा रहा है. लखनऊ के कपूरथला इलाके में सहारा कंपनी ने अपने भवन में हेलीपैड का निर्माण कराया था, लेकिन दो बार की लैंडिंग के बाद नागरिक उड्डयन ने सुरक्षा वजहों से इस पर पाबंदी लगा दी थी.

सपा सरकार ने निर्धारित सुरक्षा मानकों की अनदेखी करते हुए जेपीएनआईसी बिल्डिंग की 17वीं मंजिल पर हेलीपैड बनवाना शुरू कर दिया. इसी तरह अखिलेश सरकार ने 2013 में हुसैनाबाद हेरिटेज प्रोजेक्ट बनाया था. इस योजना के शुरुआती दौर में 68 करोड़ रुपए की लागत से पांच काम कराए जाने थे, काम तो हुआ नहीं, लेकिन प्रोजेक्ट की लागत बढ़ाकर 205 करोड़ रुपए कर दी गई. अखिलेश सरकार पंजीरी घोटाले में भी बुरी तरह फंस रही है. सात सौ करोड़ रुपए का पंजीरी घोटाला कई नेताओं और नौकरशाहों को अपनी जद में लेगा.

वर्ष 2016-17 में बिना टेंडर के ही 10 खास फर्मों से हर महीने 58 करोड़ रुपए की पंजीरी की सप्लाई ली गई थी. 14 अप्रैल 2016 को पुराने टेंडर की अवधि समाप्त हो गई. इसके बाद उन्हीं फर्मों को तीन-तीन महीने का ठेका दे दिया गया. आचार संहिता लागू होने के बाद भी चुनाव आयोग को अंधेरे में रखकर उन्हीं 10 फर्मों के नाम फिर से टेंडर दे दिए गए. इस पर न्याय विभाग ने अपनी आपत्ति भी दर्ज की, लेकिन उसे दरकिनार कर दिया गया. अखिलेश सरकार के कार्यकाल में खनन मंत्री गायत्री प्रजापति की अगुवाई में हुआ खनन घोटाला और महाभ्रष्ट इंजीनियर यादव को संरक्षण देने का मामला तो जांच के दायरे में पहले से है.

गन्ना बकाये के भुगतान पर सीएम का निर्देश बेअसर

उत्तर प्रदेश में सत्ता संभालते ही योगी आदित्यनाथ ने निजी चीनी मिलों को किसानों का गन्ना बकाया चुकाने का सख्त निर्देश दिया. लेकिन चीनी मिलों पर इस निर्देश का कोई असर नहीं पड़ा. अब हालात यह है कि चालू पेराई सत्र 2016-17 के लिए यह बकाया बढ़कर 4,269 करोड़ रुपए हो गया है. पिछले पेराई सत्र 2015-16 के लिए चीनी मिलों पर 184 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बकाया था. मुख्यमंत्री ने 23 मार्च को ही प्रदेश के मुख्य सचिव, गन्ना आयुक्त और संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों को यह निर्देश दिया था कि चीनी मिलें एक महीने के अंदर किसानों के गन्ना बकाये का भुगतान कर दें, अन्यथा उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

लेकिन इस चेतावनी का कोई खास असर नहीं दिखा. 23 मार्च 2017 को चीनी मिलों पर करीब 4,160 करोड़ रुपए का बकाया था, जो अब बढ़कर 4,260 करोड़ रुपए हो गया है. मौजूदा पेराई सत्र अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक चलने की संभावना है. परिचालन करने वाली 116 मिलों में से 38 मिलें अपना पेराई काम पूरा कर चुकी हैं.

किसानों का बकाया भुगतान करने में आनाकानी करने वाली चीनी मिलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की शुरुआत बहुत धीमी गति से हुई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में बजाज हिंदुस्तान की एक चीनी मिल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है. चीनी मिल के खिलाफ इसेंशियल कमोडिटीज एक्ट की धारा 3/7 के तहत मामला दर्ज किया गया है.

मुजफ्फरनगर जिले के गन्ना आयुक्त का कहना है कि बजाज की चीनी मिल ने किसानों का बकाया चुकाने के बजाय मिल की अन्य जरूरतों और रखरखाव पर खर्च किया. उल्लेखनीय है कि चालू पेराई सत्र में कुल गन्ना बकाया 23,000 करोड़ रुपए पर पहुंच गया और पेराई सत्र के अंत तक इसके बढ़कर 26,000 करोड़ रुपए हो जाने का अनुमान है, जबकि पिछले 2015-16 के सत्र के लिए यह 18,000 करोड़ रुपए था.

बड़े इत्मिनान से नौकरशाही को फेटेंगे योगी

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में काम भी करने लगे. पहले और अब का सकारात्मक परिवर्तन लोगों को दिखने भी लगा. लेकिन शीर्ष सत्ता गलियारे के नौकरशाह वही हैं, जो समाजवादी पार्टी की सरकार में थे.

नौकरशाहों को रंग बदलने में कितनी महारत हासिल है, इससे रंग बदलने वाले जीवों को भी सीख लेनी चाहिए. कुछ नौकरशाह तो मायावती के साथ भी सत्ता का भोग लगाते रहे, अखिलेश आए तो उनके साथ भी अंतरंगता से हो लिए और अब योगी के साथ भी घुल रहे हैं. चलन यही रहा है कि नए मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी पर काबिज होते ही सबसे पहले अपने इर्द-गिर्द के अधिकारियों को बदलते हैं.

लेकिन योगी आदित्यनाथ बड़ी तसल्ली से ठंडा कर खाने की तैयारी में हैं. प्रदेश के मुख्य सचिव राहुल भटनागर यथावत बने हुए हैं. पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद अपनी जगह कायम हैं. अपर मुख्य सचिव सदाकांत बने हुए हैं और सूचना विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल भी बरकरार हैं.

इसी तरह गृह विभाग के प्रमुख सचिव देवाशीष पंडा समेत प्रमुख सचिव चंचल तिवारी, प्रमुख सचिव संजीव सरन, प्रमुख सचिव आराधना शुक्ला जैसे कई अफसर पहले की ही तरह योगी सरकार में भी काम कर रहे हैं. पुलिस महानिदेशक काम कर रहे हैं और कानून व्यवस्था के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) दलजीत चौधरी भी अपने पद पर यथावत बने हुए हैं.

प्रदेश की शीर्ष नौकरशाही इस बात की प्रतीक्षा में है कि उन्हें कब किधर भेजा जाता है. प्रशासन और पुलिस दोनों विभाग के अधिकारी पूरी तरह अपनी सक्रियता दिखा कर योगी सरकार के साथ ‘एडजस्ट’ हो जाने की कोशिश में लगे हैं. योगी सरकार के आने के बाद मुख्यमंत्री के पंचम तल वाले अधिकारी जरूर बदले गए, लेकिन बाकी वैसे ही हैं. योगी आदित्यनाथ पंचम तल पर अपने सिपहसालार अफसरों की तैनाती अभी नहीं कर पाए हैं. केवल एक ही अधिकारी पंचम तल पर योगी की सहमति से बने हुए हैं, वे हैं रिग्जियान सैम्फिल.

इस स्थिति में नौकरशाही में चर्चाएं भी खूब हैं. कभी अवनीश अवस्थी के मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव बनने की चर्चा उड़ती है, तो कभी देवेश चतुर्वेदी के प्रमुख सचिव बनने की चर्चा होने लगती है. कभी सदाकांत मुख्य सचिव बनने की चर्चा में शामिल हो जाते हैं, तो कभी केंद्र से किसी वरिष्ठ अफसर के इस पद पर भेजे जाने की चर्चा होती है.

कभी महाभ्रष्ट यादव सिंह प्रकरण से जुड़े नौकरशाह रमा रमण के नपने की खबर तेजी पकड़ती है, तो कभी विवादों के बावजूद सत्ता गलियारे में बने रहने वाले नौकरशाह नवनीत सहगल को ठिकाना लगाने चर्चा गर्म रहती है. पर, इतना तय है कि प्रदेश के आला नौकरशाहों की सांसें हर पल अटकी हैं कि कब क्या हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र के पिछले दिनों लखनऊ आगमन को भी यूपी की शीर्ष नौकरशाही के फेरबदल से ही जोड़कर देखा गया. हालांकि इसका कोई सिरा हाथ नहीं आया.

जावीद अहमद डीजीपी पद पर बने रहें इसके लिए वे प्रयास में लगे हैं. इसी तरह मुख्य सचिव पद पर बने रहने के लिए राहुल भटनागर भी कोशिश में लगे हुए हैं. चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश के मुख्य सचिव राहुल भटनागर और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) जावीद अहमद को हटाने की चुनाव आयोग से मांग की थी. लेकिन सत्ता पाने के बाद यह मांग ठंडी पड़ गई. भाजपा के साथ अपने समीकरण प्रगाढ़ करने में पूर्व मुख्य सचिव दीपक सिंघल और वरिष्ठ आईएएस संजय अग्रवाल भी लगे हुए हैं.

संजय अग्रवाल के भाई अनिल अग्रवाल गुजरात काडर में आईपीएस अफसर हैं, तो वे भी अपने भाई के लिए गुजरात-लाइन ठीक कर रहे हैं. सदाकांत और अनूप चंद पांडेय की भी सक्रियता देखी जा रही है. प्रतिनियुक्ति पर गए कई अफसर भी अब वापस लौटने की जुगाड़ में हैं. बसपा और सपा सरकार में कई अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे. 1981 बैच के राजीव कुमार (प्रथम), 1982 बैच के जेएस दीपक, नीरज गुप्ता, प्रभाष झा, 1984 बैच के दुर्गा शंकर मिश्रा, 1986 बैच के प्रभात कुमार षारंगी, 1987 बैच के अरुण सिंघल, जीवेश नन्दन, 1988 बैच के आलोक कुमार (प्रथम), 1989 बैच के शशि प्रकाश गोयल समेत कई अधिकारियों की यूपी वापसी की चर्चा नौकरशाही गलियारे में तेज है.

अखिलेश सरकार में मुख्यमंत्री के खास नौकरशाहों में आमोद कुमार, पार्थसारथी सेन शर्मा, पंधारी यादव, अमित गुप्ता, जीएस नवीन कुमार, अरविंद सिंह देव, अरविंद कुमार, राजीव कुमार (द्वितीय), रमारमण, प्रांजल यादव, कामरान रिजवी और संजय अग्रवाल वगैरह शामिल रहे हैं. इनमें से भी कई अधिकारी योगी की ‘गुड-बुक’ में आने के लिए बेचैन हैं. बसपा और सपा के कार्यकाल में सत्ता का फल आपस में बांटने वाले नौकरशाह बाकायदा पहचाने जाते हैं.

मायावती की सरकार में उनकी जाति के फतेह बहादुर के साथ-साथ नवनीत सहगल, अनिल सागर, कुमार कमलेश, दिनेश चंद्र, एसएम बोबड़े, सुधीर गर्ग, नेतराम और डीएस मिश्रा जैसे अधिकारियों की तूती बोलती थी. उन्हीं अधिकारियों में से कुछ की अखिलेश सरकार में भी तूती बोलती रही. अब वे योगी सरकार में भी अपनी तूती फिट करने की कोशिश में लगे हुए हैं.

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