एक बेटी एक बार फिर बर्बरता का शिकार बनी और मौत के आगोश में सो गई। उत्तरप्रदेश का हाथरस जिला आज सिर झुकाए खड़ा है और एक रेप पीड़िता का परिवार इंसाफ की गुहार लगा रहा है। महिलाओं के प्रति हर रोज इस तरह की हिंसा कोई नई बात नहीं है। और अब तो यह अब आम बात हो गई है। लोगों ने यह मान लिया है कि महिलायें हमारे समाज का एक ऐसा वर्ग है जिसपे पुरुषों का जन्मसिद्ध अधिकार है। यही कारण है कि आज महिलायें हमारे समाज में लगातार दबाई जा रही हैं और हिंसा का शिकार हो रही हैं।
निर्भया सामूहिक बलात्कार केस में जिस तरह से सरकार ने कार्यवाही की उससे एक उम्मीद जरूर जगी थी कि महिलाओं के खिलाफ अपराध अब कम हो जायेंगे। लेकिन, एक समाज और एक सिस्टम के रूप में हर मोर्चे पर हम नकारे और नाकाम साबित हुए हैं। आज फिर से सरकार पर सवाल उठने लगे हैं। हाथरस में जो हुआ वह कोई मामूली घटना नहीं है और जिस तरह से सरकार का रवैया है उससे तो यही लग रहा है कि सरकार को कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
योगी सरकार के आने के बाद से ही जो यूपी पुलिस लगातार अपने नाम से उत्तर प्रदेश के अपराधियों की नाक में नकेल कसने का दावा करती रही, वही आज कठघरे में है। हाथरस की निर्भया के लिए पूरा देश इंसाफ मांग रहा है और दूसरी तरफ यूपी पुलिस अपने बयानों का जाल बुन रही है। हाथरस की निर्भया मौन हो गई लेकिन उसकी चीख पूरे देश से सवाल पूछ रही है कि देश की बेटियां आखिर कब महफूज हो सकेंगी?
लेकिन, यह मामला आसान नहीं। सबसे पहला और ताजा विवाद खड़ा हुआ है पीड़ित के अंतिम संस्कार पर। पुलिस की मौजूदगी में गांव वालों के गुस्से के बीच रात करीब ढाई बजे पीड़ित का अंतिम संस्कार कर दिया गया लेकिन घरवालों का आरोप है कि ये अंतिम संस्कार उनकी अनुमति के बगैर हुआ है।
आपको याद होगा विकास दुबे के एनकाउन्टर में सरकार को एक पल की भी देरी नहीं हुई, इसी उत्तरप्रदेश में अब एक इतना बड़ा जघन्य अपराध हो गया लेकिन, सरकार खामोश है। हालांकि, यूपी के मुख्यमंत्री ने ट्वीट करके इस मामले की कड़ी निंदा करते हुए एक जांच कमिटी बनाकर औपचारिकता निभा दी है लेकिन, जिस मुस्तैदी के लिए वो जाने जाते हैं उसका अभाव साफ-साफ दिखा। एक दलित लड़की के साथ कथित रूप से पहले गैंग रेप और उसके बाद जिस तरह से उसके जीभ काटने और रीढ़ की हड्डी तोड़ देने की दिल दहला देने वाली ख़बर के बाद पीड़िता का अस्पताल में संघर्ष करते हुए मौत की जो बात सामने आई है वो एक शर्मनाक और घिनौना कुकृत्य है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। जाति के नाम पर और हॉनर किलिंग के नाम पर महिलायें हमेशा इस पितृसत्तात्मक समाज में सताई जा रही है। हमारी मीडिया भी अब टीआरपी की रेस में इस तरह से उलझी है कि महिला अपराध के मुद्दे को भूलकर अनर्गल एजेंडा पत्रकारिता में जुटी रहती है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। यह तस्वीर बदलनी चाहिए। हाल के वर्षों में यह ट्रेंड साफ दिखा है कि सोशल मीडिया के दबाव के बाद ही इस तरह की खबरे मुख्य धारा की मीडिया में जगह बना पाती हैं।
बहरहाल, अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया गया है और इन सबके बीच फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमे की बात भी सामने आने लगी है। भविष्य में क्या होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन, यह एक स्थापित सत्य है कि महिलाओं के प्रति हिंसा करना आज एक फैशन सा बन गया है। जिसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। हाथरस गैंग रेप केस एक ऐसी घटना है जो न सिर्फ सरकार से महिला सुरक्षा के बार में सवाल करती है बल्कि समाज के तमाम पुरुषों से भी अपनी जाति धर्म और महिलाओं के अस्तित्व के बारे में सवाल करती है।
(डॉ. संतोष भारती, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, अंग्रेज़ी विभाग, दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय)