केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह भाजपा से पूर्वी चंपारण से सांसद हैं. उन्होंने पांचवीं बार मोतिहारी (पू.चम्पारण) संसदीय क्षेत्र में भाजपा का झंडा बुलंद करने का एक कीर्तिमान स्थापित कर रखा है. इन चुनावों में जदयू उनका निकट का कभी प्रतिद्वन्द्वी भी नहीं रहा है. दल में इनकी हैसियत को देखते हुए इनके सीट को हिलाना मुश्किल हो सकता है. फिर भी पूर्व विधायक महेश्र्वर सिंह का कहना है कि अगर इस सीट से जदयू लड़े तो उसकी जीत पक्की रहेगी. चम्पारण युवा जदयू के अध्यक्ष विवेक कुमार सिंह उर्फ बब्लू सिंह का कहना है कि बाल्मीकिनगर संसदीय सीट की भूमि सोशल इंजीनियरिंग के प्रयोग की सफल भूमि रही है.

mpsबिहार में भाजपा सांसदों के क्षेत्र में कार्यों व लोेकप्रियता का आंतरिक मूल्यांकन तथा गठबंधन में सीटों की राजनीति ने चम्पारण के भाजपा सांसदों के होश उड़ा दिए हैं. इस समय चम्पारण की तीनों लोेकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है. यहां के वाल्मीकिनगर, प.चम्पारण व मोतिहारी सीट से अच्छे अंतर से भाजपा के सतीश चंद्र दुबे, डॉ. संजय जायसवाल व केन्द्रीय मंत्री राधामोहन सिंह ने जीत दर्ज की थी. लेकिन पिछले चार सालों में गंगा में काफी पानी बह गया है. केंद्रीय नेतृत्व ने जो आंतरिक सर्वे कराया है, उसमें चंपारण के भी एक सीट को निशाने पर रखा गया है. इधर नीतीश कुमार का लगाव चम्पारण की धरती से जगजाहिर है. अभी तक लगभग हर बड़े अभियान या योजनाओं के लिए गांधी की इस कर्मभूमि को ही उन्होंने तवज्जो दी है.

पिछलेे चुनाव में जदयू के एक भी प्रत्याशी यहां से संसद नहीं पहुंच सके. लेकिन इस बार तीनों सीटों में से कम से कम एक पर अपना उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारने के लिए तरकश में तीर तान रहे हैं. अब यह तीर भाजपा के किस सांसद को भेदेगी, यह भविष्य के गर्त में है. लेकिन इतना तो तय है कि पिछले लोक सभा चुनाव में बिहार में मात्र दो सीट पर विजयी रहा जदयू इस बार विधान सभा में अपनी संख्या के अनुसार मांग रखेगी. वह लोेजपा व रालोेसपा की तुलना में अधिक सीट के लिए दावा पेश करेगी. इस क्रम में चम्पारण में सीट लेेना उसकी पहली प्राथमिकता होगी.

केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह भाजपा से पूर्वी चंपारण से सांसद हैं. उन्होंने पांचवीं बार मोतिहारी (पू.चम्पारण) संसदीय क्षेत्र में भाजपा का झंडा बुलंद करने का एक कीर्तिमान स्थापित कर रखा है. इन चुनावों में जदयू उनका निकट का कभी प्रतिद्वन्द्वी भी नहीं रहा है. दल में इनकी हैसियत को देखते हुए इनके सीट को हिलाना मुश्किल हो सकता है. फिर भी पूर्व विधायक महेश्र्वर सिंह का कहना है कि अगर इस सीट से जदयू लड़े तो उसकी जीत पक्की रहेगी. चम्पारण युवा जदयू के अध्यक्ष विवेक कुमार सिंह उर्फ बब्लू सिंह का कहना है कि बाल्मीकिनगर संसदीय सीट की भूमि सोशल इंजीनियरिंग के प्रयोग की सफल भूमि रही है.

नीतीश कुमार जनता दल में थे तो उनके नजदीकी महेन्द्र बैठा 1989 व 1991 में यहां से विजयी हुए थे. उस समय यह सीट बगहा संसदीय सीट से जाना जाता था, जो सुरक्षित था. जनता दल में टूट के बाद, महेन्द्र बैठा समता पार्टी में शामिल हो गए और 1996 व 98 में यहां से फिर सांसद बने. 1999 में भी वे जदयू के टिकट पर ही जीत कर पांचवीं बार यहां से संसद में पहुंच कर रिकार्ड स्थापित किए थे. उनके बाद, 2004 और 2009 में भी क्रमश: जदयू के कैलाश बैठा व बैजनाथ प्रसाद महतो विजयी रहे.

हालांंकि 2014 में भाजपा के सतीश चन्द्र दुबे कई दिग्गजों की दावेदारी को दरकिनार करते हुए टिकट लेने में कामयाबी रहे. फिर अपने दल और बाहर के राजनीतिक विरोधियों को धूल चटाते हुए इस क्षेत्र को भगवा रंग दे दिया. जदयू जिला किसान सेल के अध्यक्ष शत्रुध्न प्रसाद कुशवाहा का दावा है कि बाल्मीकिनगर सीट पर जदयू केवल एक बार पराजित हुआ है. इस हार से सबक लेेते हुए हमारे कार्यकर्ताओं ने यहां संगठन के नेटवर्क को इस कदर मजबूत कर दिया है कि दलीय उम्मीदवार की जीत का  रास्ता आसान हो गया है.

पश्चिम चंपारण संसदीय सीट पर डॉ. संजय जायसवाल 2009 में अपने पिता के राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी बने. दलगत व अन्य झंझावतों के बीच वे भाजपा के टिकट पर विजयी हो पहली बार संसद में बैठे. इसके पूर्व, उनके पिता डॉक्टर मदन प्रसाद जायसवाल ने क्रमश 1996, 98 और 99 के चुनाव में हैट्रिक लगा इस क्षेत्र में भाजपा के संगठन को एक नयी उंचाई दी थी. परंतु 2004 के चुनाव में राजद के दबंग प्रत्याशी रघुनाथ झा माई समीकरण को साधते हुए भाजपा के सवर्ण वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल हुए. हालांंकि अगलेे चुनाव में इस क्षेत्र से वे पलायन कर बाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र चलेे गए, जहां वे बुरी तरह पराजित हुए.

2009 के बाद 2014 में संजय जायसवाल ने  जदयू के प्रकाश झा को पराजित कर भाजपा का परचम लहराया. इस चुनाव में मोदी लहर एक बड़ा फैक्टर रहा. इधर डॉक्टर संजय जायसवाल भाजपा के संगठन में भी अपनी पैठ बनाने में सफल हुए. प्रदेश उपाध्यक्ष की कुर्सी उन्हें मिली. परंतु कई मुद्दे, खासकर छावनी ओवर ब्रिज का निर्माण केवल कागजों पर सिमटा रह जाना, उनके आगे के राजनीतिक सफर में एक बड़ा ब्रेकर है. इधर भाजपा में ही इनके दुश्मनों की कोई कमी नहीं है, जो उनको टिकट से भी वंचित करने तक का षड्यंत्र रच रहे हैं.

वैसे पश्चिम चम्पारण भाजपा के जिला संगठन से लेकर जन प्रतिनिधियों के बीच खिंचातानी जगजाहिर है. एक ही योजना का क्रेडिट लेने के लिए सोशल मीडिया में भाजपा के प्रतिनिधियों को लड़ते देखा गया है. संगठन में उथल-पुथल को शांत करने के लिए कई अवसरों पर पटना से आए नेताओं को यहां आकर प्रतिनिधियों को नसीहत भी देनी पड़ी है. ऐसे में आगामी संसदीय चुनाव भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं दे रहा है. अभी से भीतराघात की राजनीति चल रही है.

पश्चिम चंपारण सीट से पूर्व विधायक राजन तिवारी भी राजद की तरफ से दावेदारी के साथ अपने जनसंपर्क अभियान को गति दे रहे हैं. इनके मंच पर राजद संगठन के जिले के शीर्ष नेता भी शिरकत कर रहें हैं. पिछले बेतिया विधान सभा चुनाव में जिस तरह साइलेंट मोड में सवर्ण तबके के एक विशेष जाति के वोटों की शिफ्टिंग कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी के पक्ष में हुआ, वह भी संजय जाससवाल के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.

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