उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में भयहरणनाथ धाम के पास स्थित बकुलाही नदी की 18 किलोमीटर लंबी लुप्तप्राय हो चुकी प्राचीन धारा को जिंदा कर लिया गया है. अब वह फिर से पुनर्नवा होकर सजल वेग से प्रवाहित हो रही है. करीब दो दर्जन से अधिक गांवों के लाखों लोगों की वर्षों की अतृप्त प्यास बुझ रही है. नदी पर जगह-जगह समाज के सहयोग से फिर से बांस की चहली बन रही है और लोग उससे इस पार से उस पार और उस पार से इस पार आ-जा रहे हैं. बकुलाही के पुनरुद्धार से पूरे नदी क्षेत्र में उत्सव जैसा माहौल है. जगह-जगह लोग एकत्र होकर नदी का नजारा देख रहे हैं, अवरोध हटा रहे हैं और खुशी जाहिर कर रहे हैं.
प्रतापगढ जनपद के दक्षिणांचल के करीब 50 गांवों में आज केवल एक ही मुद्दा है, बकुलाही के पुनरुद्धार का. बकुलाही के समक्ष सारे मुद्दे गौण हैं. बकुलाही पुनरुद्धार की पहल की गई तो यह बात कल्पना से भी परे थी कि दो-ढाई दशकों से पानी के लिए तरसती लाखों की आबादी इस तरह उद्वेलित होगी कि बकुलाही को सदानीरा बनाने का अभियान जन आन्दोलन का रूप ले लेगा. उल्लेखनीय है कि आज से तकरीबन 30 वर्ष पहले बकुलाही नदी की प्राकृतिक धारा से छेड़छाड़ की गई थी. यह छेड़छाड़ नैसर्गिक नहीं बल्कि राजनीतिक थी. बकुलाही नदी की धारा को 25 वर्ष पहले कुछ निहित स्वार्थों की खातिर बीच से ‘लूप कटिंग’ कर तकरीबन 18 किलोमीटर छोटा कर दिया गया था. 18 किलोमीटर लम्बी बकुलाही नदी की मूलधारा का अपहरण कर लिया गया था.
18 किलोमीटर के दायरे में जलधारा के तट पर बसे 50 गांवों से उनकी नदी उनसे छीन ली गई थी. तब से लगातार पूरे तोरई, पूरे वैष्णव, जदवापुर, सरायदेवराय डीहकटरा, छतौना, मनेहू, हिंदूपुर, बाबूपुर, सरायमेदीराय, बरईपुर, मिश्रपुर, सिउरा, हैसी, बुकनापुर, पनई का पूरा, शोभीपुर, जमुआ, वैरीसाल का पुरवा, रामनगर, भटपुरवा, ढेमा और गौरा समेत दर्जनों गांवों की खुशियां छिन गई थीं. जल स्तर धीरे-धीरे पातालमुखी हो गया. सिंचाई के लिए फसलें तरसने लगीं.
वन क्षेत्र उजाड़ होने लगे. प्रवासी पक्षियों ने पलटकर देखना बंद कर दिया. तकरीबन चार दर्जन गांवों की लगभग दो-ढाई लाख आबादी के बीच अपनी नदी बकुलाही को फिर से पाने की ललक और पानी की प्यास बढ़ती गई. जब इसके पुनरुद्धार का प्रयास शुरू हुआ तो लाखों प्यासे लोगों को मानो संजीवनी मिल गई. फिर तो कदम से कदम जुड़ते गए. हाथ से हाथ मिलते गए. पहले जन जागा, फिर जनसमूह जाग गया. फिर जनसैलाब उमड़ने लगा. भूजल दिवस निकट था. बकुलाही-पुत्रों ने संकल्प उठाया और उसे यथार्थ कर दिखाया. बकुलाही पंचायत का निर्णय मील का पत्थर साबित हुआ. लोगों ने भूजल सप्ताह के पूर्व ही नदी का नजारा बदल डाला.
श्रमदान को आन्दोलन से जोड़कर बकुलाही नदी पर कच्चा बांध बनाया गया और नदी की धारा को उसके प्राकृतिक मार्ग पर जाने के लिए घुमाया गया. 18 किलोमीटर लम्बे नदी के पुराने मार्ग में जितने भी अवरोध आए उसे हटाते हुए 25 वर्षों बाद बकुलाही मैया अपने बेटों के साथ चल पड़ी. परिणामतः बकुलाही में हुआ जल संचयन जनपद का ही नहीं बल्कि पूरे राज्य का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण बन गया. लोगों ने जिस जगह कच्चा बांध बनाकर यह अनूठा प्रयोग किया वह शासन की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त है. अब उसी स्थान पर पक्का चेक डैम बनाकर 18 किलोमीटर लम्बा जल संचयन कर 50 गांवों के लाखों लोगों को पानी देकर उनकी प्यास बुझाई जा सकती है, उनकी हरियाली लौटाई जा सकती है.
बकुलाही की इस 18 किलोमीटर की मूलधारा के बीच सुरसा राक्षस अवरोधक की तरह मुंह फाड़े खड़ी है. यह राक्षस है गेल इंडिया की पाइप लाइन. नदी के बीच से गुजरने वाली पाइप लाइन बिछाने के मानक अलग होते हैं. लेकिन गेल इंडिया की पाइप लाइन बिछाने के पूर्व ही बकुलाही की धारा का अपहरण हो चुका था. जिसका नतीजा हुआ कि गेल इंडिया ने बिना पानी की नदी देख कर सारे कायदे-कानून ताक पर रख दिए और नदी में पाइप लाइन बिछाने का मानक पूरा नहीं कर, वैसे ही पाइप लाइन डाल दिया.
बकुलाही के पुनरुद्धार के बाद अब गेल इंडिया की नींद टूटी है, लेकिन अब वह अपनी गलतियां कैसे सुधारे, इसे लेकर ही संशय है. ऐसे में इलाके के लोग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं कि मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से इतने बड़े जन-अभियान को स्थायित्व मिल सके. पक्का चेक डैम बनाकर बकुलाही की दोनों धाराओं को बहाल रखने का प्रशासन का निर्देश भी ठंडे बस्ते में ही पड़ा है.
बहरहाल, अभी फिलहाल बकुलाही नदी की 18 किलोमीटर की प्राचीन धारा के पुनरुद्धार का सामाजिक कार्य पूरा हो चुका है. जन सहयोग से पिछले छह वर्षों के अथक प्रयास से नदी को अतिक्रमण मुक्त किया जा चुका है. आवश्यकतानुसार खुदाई का कार्य हुआ है. कुछ कार्य मनरेगा से भी हुआ है. प्राचीन धारा में जल धारा को डायवर्ट करने के लिए जन सहयोग से सौ मीटर लम्बा और 15 फिट ऊंचा मिटटी का बांध बनाया गया है. इसमें एक साल लगा.
अभी श्रमदान कर बांध पर सौ ट्रॉली मिट्टी फिर से डाली गई है. अब बरसात होगी तब पूरे प्रवाह के साथ एक बार फिर नदी अपने पुरानी मौज में बहने लगेगी. इसका लाभ यहां की प्रकृति के सभी जीव जन्तुओं को मिलेगा. प्राचीन धारा में पानी डायवर्ट होने से नदी का बहाव मन्द होगा और नदी सदानीरा बनी रहेगी और बरसाती नदी के कलंक से भी उसे मुक्ति मिलेगी.
पिछले लंबे अर्से से बकुलाही के पुनरुद्धार का काम हो रहा था. इलाके के लोगों ने भी इस पहल में खूब साथ दिया. गौरा में नदी मार्ग में बाधक पाइपों को जनसहयोग से हटवाया गया. सरायदेवराय व बाबूपुर में स्थानीय कार्यकर्ताओं और प्रधानों के साथ रणनीति बनाई गई. छतौना के ग्राम प्रधान मनोज कुमार और पूरेतोरई के प्रधान रामपूजन ने भी इस जन-अभियान में पूरा साथ दिया. प्रतापगढ़ के जिलाधिकारी विद्या भूषण ने लोगों का भरपूर साथ दिया और इस समेकित प्रयास का परिणाम है कि बकुलाही की मुख्य धारा में बिना किसी बांध के यहां के लोग पर्याप्त अमूल्य जल प्राप्त कर रहे हैं.
अभियान के सदस्यों का कहना है कि सब लोग मिल कर सालभर इस नदी को हर प्रयास से जीवित रखेंगे, जैसे-जैसे नदी घटती जाएगी, मुख्य धारा को प्राचीन धारा में मोड़ दिया जाएगा. इससे अब क्षेत्र में पानी की कोई समस्या नहीं रहेगी. इस जन-अभियान में ग्रामीण अभियंत्रण के अवर अभियंता संजय सिंह, ग्राम प्रधान पूरेतोरई रामपूजन पटेल, छतौना प्रधान मनोज कुमार, बाबूपुर प्रधान शंकर लाल, सरायदेवराय प्रधान मोती लाल, गौरा प्रधान कमलाकांत, ग्राम विकास अधिकारी नरेंद्र दुबे, सच्चिदानंद पांडेय वगैरह के सहयोग उल्लेखनीय हैं.
भयहरणनाथ धाम परिसर व धाम के पीछे स्थित प्राचीन शिवगंगा तालाब पर संयुक्त मजिस्ट्रेट संजय कुमार खत्री के निर्देश पर खंड विकास अधिकारी सावित्री देवी के नेतृत्व में ग्राम पंचायत पूरेतोरई द्वारा सघन रूप से वृक्षारोपण भी किया गया. इसमें लोगों का सक्रिय सहयोग रहा. यहां कुल 80 वृक्षों का रोपण किया गया, जिसमें जामुन, कंजी, गूलर, शीशम आदि शामिल हैं. पौधों की देखरेख की जिम्मेदारी स्थानीय सच्चिदानंद पांडेय ने संभाली है. पूरे अभियान के दौरान धाम परिसर में मानस मर्मज्ञ पं. कमलेश नारायण त्रिपाठी द्वारा मानस कथा की संगीतमय प्रस्तुति होती रही. इस आयोजन में भयहरणनाथ धाम क्षेत्रीय विकास संस्थान के उपाध्यक्ष राजनारायण मिश्र व देवी प्रसाद मिश्र ने प्रमुख भूमिका निभाई.
वेदों में जिक्र है इस नदी का
बकुलाही नदी अति प्राचीन वेद वर्णित नदी है. इस नदी का प्राचीन नाम ‘बालकुनी’ था, किन्तु बाद में परिवर्तित होकर ‘बकुलाही’ हो गया. बकुलाही शब्द लोक भाषा अवधी का शब्द है. जनश्रुति के अनुसार बगुले की तरह टेढ़ी-मेढ़ी होने के कारण भी इसे बकुलाही कहा जाता है. बकुलाही नदी का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के भरतपुर झील से हुआ. वहां से चलती हुई यह नदी बेंती झील, मांझी झील और कालाकांकर झील से जलग्रहण करते हुए बड़ी नदी का स्वरूप प्राप्त करती है.
प्रतापगढ़ मुख्यालय के दक्षिण में स्थित मान्धाता ब्लॉक को हरा-भरा करते हुए यह नदी आगे जाकर खजुरनी गांव के पास गोमती नदी की सहायक सई नदी में मिल जाती है. बकुलाही नदी का संक्षिप्त वर्णन वेद पुराण तथा कई धर्मग्रंथों में है. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित वाल्मीकि रामायण में बकुलाही नदी का उल्लेख किया गया है.
वाल्मीकि रामायण में बकुलाही नदी का जिक्र इस प्रकार है कि जब भगवान राम के वन से वापस आने की प्रतीक्षा में व्याकुल भरत के पास हनुमान जी राम का संदेश लेकर पहुंचते हैं. हनुमान जी से भरत जी पूछते हैं कि मार्ग में उन्होंने क्या-क्या देखा. इस पर हनुमान जी का उत्तर होता है, सो अपश्यत राम तीर्थम् च नदी बालकुनी तथा बरूठी / गोमती चैव भीमशालम् वनम् तथा बकुलाही नदी का वर्णन श्रीभयहरणनाथ चालीसा (पंक्ति क्रमांक-2%) में भी है, बालकुनी इक सरिता पावन / उत्तरमुखी पुनीत सुहावन
लोग चाहें तो क्या नहीं हो सकता!
बकुलाही नदी पुनरुद्धार अभियान में जब लोगों का हुजूम काम में लगा था, बांध पर मिटि्टयां डाली जा रही थीं, जेसीबी मशीनें नदी को साफ करने में लगी थीं, प्रशासन जनता के साथ धरातल पर सहयोग कर रहा था तो राज और समाज एक दूसरे के साथ अन्योन्याश्रित हो गया था. इस साझा संस्कृति ने भविष्य के कई रचनात्मक कार्यों की तरफ संकेत दिया है. राज ने मनरेगा समेत कई प्रशासनिक सहयोग की शक्ति झोंक दी तो समाज ने अपनी सामुदायिक शक्ति परवान चढ़ा दी. नतीजा बकुलाही की निर्मल बहती जलधारा और लोगों की खुशियों से भरी किलकारियों के रूप में सामने है. ऐसा ही कहीं और भी तो हो सकता है!