votershipप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने से पहले वादा किया था कि वह सत्ता में आते ही विदेशों से काला धन लाएंगे और देश के सभी नागरिकों के खाते में 1500000(15 लाख) रुपए जमा कराएंगे. सत्ता में आते ही उन्होंने जीरो बैलेंस पर देश के नागरिकों से खाता खोलने को कहा. करोड़ों की संख्या में जनधन के नाम से लोगों ने खाता खोला भी, इस उम्मीद में कि शायद उनके खाते में पैसा आएगा, लेकिन 3 साल तक पैसा नहीं आया. उत्तर प्रदेश के गत चुनाव अप्रैल 2017 से पहले नरेंद्र मोदी जी ने फिर एक बार जनता को भरोसा दिलाया कि वे 15 लाख तो जमा नहीं करेंगे, लेकिन देश के गरीबों के खाते में 15 सौ रुपए हर महीने पेंशन जमा कराएंगे. इस पैसे को उन्होंने यूरोप की एक शब्दावली दी, जिसको कहा जाता है ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’  यूबीआई.

उत्तर प्रदेश चुनाव जीत लेने के बाद उन्होंने मुकरते हुए यह कहा, ‘देश की जनता को पैसा नहीं चाहिए, क्योंकि जनता को देश से प्रेम है.’  लेकिन मेनस्ट्रीम की मीडिया द्वारा लोगों को सही जानकारी नहीं पहुंचाये जाने के कारण देश में बहुत लोग नहीं जानते हैं कि नरेंद्र मोदी की बेसिक इनकम की कल्पना इन पंक्तियों के लेखक की एक योजना, वोटरशिप योजना से पैदा हुई है. अन्यथा गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए वे जनधन जैसी कोई योजना अपने प्रदेश में लागू करते. इन पंक्तियों के लेखक 1998 से लगातार यह आवाज उठाते रहे हैं विदेश में मशीनों के परिश्रम से जो पैदावार हो रही है और उस पैदावार के बदले जो नोट छप रहे हैं, उसमें वोटरों को हिस्सा दिया जाए. वेतन और पेंशन के माध्यम से देश में सरकार चलाने वाले लोगों को खजाने में हिस्सा मिलता है, तो वोट देकर सरकार बनाने वालों को भी खजाने में हिस्सा दिया जाए. देश के प्राकृतिक संसाधनों- पानी, धूप, कोयला, लोहा, बालू, अभ्रक, सोना, चांदी, हीरा… आदि-आदि चीजों के बदले सरकार नोट छापती है. इस तरह से प्राकृतिक संसाधनों और प्राकृतिक उत्पादों के बदले छपे हुए नोट में देश के वोटरों को हिस्सा दिया जाए.

अन्ना आंदोलन से रची साज़िश

यह बात 137 सांसदों ने लोकसभा में और राज्यसभा में सन 2005-2008 के बीच उठाया. सैकड़ों अन्य सांसद इस प्रस्ताव के समर्थन में थे, जिसमें से कई आजकल मोदी सरकार में मंत्री हैं और कई कुछ प्रदेशों के मुख्यमंत्री हैं. वोटरशिप के प्रस्ताव पर राज्यसभा में स्टैंडिंग कमेटी कायम हुई और 2 दिसंबर 2011 को वोटरशिप का प्रस्ताव संसद की एक्सपर्ट कमेटी ने मंजूर कर लिया. उस समय यह मांग की गई थी कि देश की औसत आमदनी की आधी रकम वोटरों को दी जाए. यह रकम उस समय 3500 बनती थी, लेकिन अब यह रकम बढ़कर 5896 रुपए हो गई है. वोटरशिप योजना को अमल में लाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने चुपके-चुपके मन बनाया, इसीलिए उसने लोगों का बैंक खाता खोलने के लिए आधार कार्ड योजना चलाई. सब्सिडी नगद देने की योजना चलाई, जिसके तहत गैस सिलेंडर रखने वालों को आज उनके

खाते में पैसा मिल रहा है. किसानों को ़फर्टिलाइज़र के बदले सीधे जमीन के अनुपात में नकद देने की भी आवश्यकता है. सरकार इसपर भी काम कर रही है. लेकिन कांग्रेस चुपके-चुपके जो काम कर रही थी, उसे देश के धनवान लोग समझ गए और उन्हें मालूम हो गया कि देश के वोटरों का जो पैसा उनके पास पहुंचा है, कांग्रेस उसे वसूल कर वोटरों के पास पहुंचा देगी, इसलिए कांग्रेस को सत्ता से हटाना जरूरी हो गया. अन्ना आंदोलन इसी साजिश के तहत रचा गया था, जिसमें सैकड़ों टीवी चैनल पैसा देकर लगाए गए.

जब नरेंद्र मोदी सत्ता संभाले, तो यह लोभ उनके मन में भी रहा कि जिस तरह कांग्रेस ने देश में वोटरशिप योजना लागू करने का मन बनाया था, उसी तरह वो भी वोटरशिप योजना को लागू करें. उन्होंने इसके लिए लोगों को बैंक खाता खोलने को कहा, जिसको जनधन योजना कहा गया और उन्होंने 15 सौ रुपए लोगों के बैंक खाते में बिना कुछ काम किए और बिना किसी परीक्षा के देने की घोषणा की. लेकिन यह श्रेय कहीं वोटरशिप योजना के जनक यानि इन पंक्तियों के लेखक (भरत गांधी) को ना मिल जाए और उनके समर्थक सांसदों को यह श्रेय मिल जाए,  इसलिए उन्होंने इसके लिए यूरोप से आयातित एक नया नाम रखा, जिस को कहा गया  ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ यूबीआई.

आज देश के लोगों के लिए यह जानना जरूरी हो गया है कि वोटरशिप सही है या नरेंद्र मोदी जी की ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ सही है. इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन देश के नागरिकों के सामने रखा जाना चाकिश. वास्तव में यूनिवर्सल बेसिक इनकम कल्याणकारी राज्य और समाजवादियों द्वारा जनता पर की गई दया है और उनको भीख स्वरूप एक डॉलर रोज देने का प्रस्ताव है. लेकिन वोटरशिप सरकार द्वारा जनता पर की गई दया नहीं है, यह लोकतंत्र के सिद्धांतों से पैदा हुआ विचार है. यह जनता का अधिकार है, जिसमें वह सरकार बनाने की फीस ले सकता है, मशीनों की मेहनत में हिस्सा ले सकता है और प्राकृतिक संसाधनों में नकद हिस्सा ले सकता है.

वोटर्स को मिलना चाहिए समृद्धि में हिस्सा

यूनिवर्सल बेसिक इनकम इन तीन बातों में से केवल एक बात की वकालत करती है कि ‘प्राकृतिक संसाधनों में सबका हिस्सा है.’ यूनिवर्सल बेसिक इनकम यह नहीं बताती है कि एक लोकतांत्रिक राज्य में वोटर राज्य रूपी कंपनी का मूल स्वामी और शेयर होल्डर होता है, इसलिए कंपनी के लाभ में जिस तरह शेयर होल्डरों को हिस्सा मिलता है, उसी तरह एक लोकतांत्रिक राज्य के स्वामियों को यानि वोटरों को देश की समृद्धि में हिस्सा मिलना चाहिए. यदि देश की अमीरी बढ़े, तो हर एक वोटर की अमीरी बढ़नी चाहिए और देश की अमीरी घटे तो हर एक वोटर की अमीरी घटनी चाहिए. वोटरशिप देश के विकास से वोटरों का रिश्ता जोड़ता है, लेकिन यूनिवर्सल बेसिक इनकम ऐसा नहीं करता. वह केवल इतना करता है कि नागरिकों को खाने-पीने व जीने के लिए न्यूनतम जितने पैसे की जरूरत है, वह उनके खाते में बिना काम के और बिना परीक्षा के भेजा जाए.

वोटरशिप भी यही चाहता है कि बिना काम के और बिना परिश्रम के वोटरों के खाते में वोटरशिप की रकम लगभग 5896 रुपए भेजी जाए. क्योंकि यह प्राकृतिक संपत्तियों का किराया है, यह मशीनों द्वारा पैदा किए गए धन दौलत में वोटरों का हिस्सा है और यह सरकार बनाने की फीस और सरकार रूपी बिल्डिंग का इस बिल्डिंग के मालिक को मिलने वाला किराया है. जितना तार्किक वोटरशिप है, उतना तार्किक और उतना लोकतांत्रिक यूनिवर्सल बेसिक इनकम नहीं है. यूनिवर्सल बेसिक इनकम नागरिकों के स्वाभिमान को बढ़ाता नहीं है, लेकिन वोटरशिप नागरिकों के स्वाभिमान को भी बढ़ाता है. नागरिकों में यह एहसास कराता है कि यह देश उनका अपना है और उनकी अपनी सरकार का लाभांश उनको मिल रहा है.

यह देश के प्रति बहुत अंतरतम अटैचमेंट पैदा करता है, जो बेसिक इनकम नहीं करता. बेसिक इनकम की रकम भी इतनी छोटी है कि उससे इंसान जिंदा तो रह सकता है लेकिन इतनी रकम से वह कुछ कर नहीं सकता. बेसिक इनकम की समस्या यह भी है कि यह सब को नहीं मिलेगी. इसलिए बेसिक इनकम कार्यक्रम के पात्रता और अपात्रता करने का अधिकार प्रशासन को होगा और प्रशासन बेसिक इनकम का प्रमाण पत्र केवल उसी को देगा जिससे रिश्वत पाएगा. इस प्रकार जरूरतमंद आदमी रिश्वत देने में नाकाम हो जाएगा और बेसिक इनकम की रकम उन लोगों के खाते में चली जाएगी जिनको वह मिलनी नहीं चाहिए. वोटरशिप वास्तव में यूनिवर्सल है, वास्तव में बेसिक है और वास्तव में इनकम है, क्योंकि यह हर वोटर को दी जानी है.

इसमें अमीर गरीब का भेदभाव नहीं करना है. इसमें प्रशासन के रिश्वत लेने की गुंजाइश समाप्त हो जाती है और जरूरतमंद तक यह रकम पहुंच सकती है. वोटरशिप योजना लागू करने में कोई भ्रष्टाचार नहीं हो सकता लेकिन यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना लागू करने में भ्रष्टाचार रोका नहीं जा सकता. ब्राजील सरकार ने यह गलती की है. उसने डेमोग्रेंट के नाम से वोटरशिप योजना को 2003 में लागू किया, लेकिन आज इस योजना में भारी भ्रष्टाचार है. इसीलिए मैंने (लेखक) संसद में जो प्रस्ताव रखा था, उसमें कहा गया था कि आयकर देने वालों को इस योजना से भले अलग रखा जाए, बाकी अन्य किसी को अलग नहीं रखा जाना चाहिए.

वोटरशिप से मिटेगी आर्थिक असमानता

अगर वोटरशिप योजना लागू हो जाए, तो देश का हर बच्चा पढ़ेगा, हर लड़की पढ़ेगी, चाहे वह अमीर की हो चाहे गरीब की. जब लड़कियां उच्च शिक्षा लेंगी तो शादी के बाद अधिक बच्चा पैदा करने के लिए तैयार नहीं होंगी. इससे जनसंख्या विस्फोट रुक जाएगा. आज जो बेरोजगार लोग कोई काम नहीं कर रहे हैं, उनका हाथ बंद हो गया है और दिमाग भी बुझता जा रहा है, वोटरशिप मिलते ही उनके दिमाग सक्रिय हो जाएंगे और हाथ का काम भले ही ना मिले लेकिन दिमाग काम करने लगेगा और आज के करोड़ों बेरोजगार लोग उत्पादन करने लगेंगे. बुजुर्गों को जब पैसा मिलेगा तो उनका हर बच्चा चाहेगा कि उनके मां-बाप उनके अपने घर में रहें. गरिमा और इज्जत के साथ जीने वाले लोग गरिमा और इज्जत के साथ ही अपनी अंतिम सांस लेंगे. वोटरशिप मिलेगी तो आर्थिक विषमता पर नियंत्रण भी लग जाएगा. अब खरबपतियों के पास इतना पैसा नहीं बचेगा कि वह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद विधायक की मंडी चलाएं. उनकी खरीद-बिक्री करें और किसी सरकार को गिराने का और कठपुतली प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनाने का ठेका ले पाएं.

लोकतंत्र वास्तव में जनता का तंत्र बन जाएगा. इस प्रस्ताव के सैकड़ों फायदे हैं, जिनको देखकर संविधान विशेषज्ञ डॉक्टर सुभाष कश्यप और अर्थशास्त्र के जाने माने जानकार डॉक्टर भरत झुनझुनवाला ने राज्य सभा सचिवालय में वोटरशिप के पक्ष में अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया और वित्त मंत्रालय के आईएएस अधिकारियों का विरोध नाकाम कर दिया. परिणामस्वरूप वोटरशिप का प्रस्ताव राज्य सभा सचिवालय में 2 दिसंबर 2011 को मंजूर हो गया, लेकिन 12 साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने वोटरशिप के लिए कोई कानून नहीं बनाया. न तो कांग्रेस ने बनाया, न ही मोदी सरकार ने. वास्तव में 2019 का चुनाव वोटरशिप के मुद्दे पर लड़ा जाना चाहिए और सभी पार्टियों को अपना मत खुलकर व्यक्त करना चाहिए कि वह देश के नागरिकों को वोटरशिप का अधिकार देंगे या यूनिवर्सल बेसिक इनकम का झुनझुना?

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