स्वयंभू संत आसाराम बापू या राम रहीम जैसों के शिष्यों या भक्तों से आज भी पूछिए तो जवाब मिलेगा कि बापू के साथ गहरी साजिश हुई है….। ये ब्रेन वाश का कमाल है। ब्रेनवाश और फर्स्ट इंप्रेशन ऐसी कलाएं हैं जिसमें जो जीत गया वह समझिए लंबी पारी या कभी खत्म न हो पाने वाली पारी खेल गया। बिला शक मोदी इसमें माहिर हैं। मौजूदा कोरोना वक्त का सच यह है कि मोदी को राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विलेन के रूप में देखा जा रहा है। अमरीका, आस्ट्रेलिया जैसे देशों के अखबार और जर्नल्स ने ही नहीं, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. दहिया तक ने मोदी को Superspreder की पदवी दे डाली। लेकिन कहीं कोई चूं -चपड़ नहीं हुई। किसी ने क्या खूब कहा कि इन सब चीजों की मियाद होती है। एक दिन, दो दिन वगैरह वगैरह । उसके बाद सब कुछ भूलते जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। ये सब मुखर रूप से 2014 के बाद से शुरू हुआ कि जब हर चीज को या हर बहस को कांग्रेस पर लाकर भ्रम की स्थितियां उत्पन्न करने के प्रयासों में सफलता मिली। आज मौजूदा स्थितियां कुछ ऐसी हैं कि चारों ओर भ्रम ही भ्रम और धुंधला ही धुंधला सा राजनीतिक वातावरण बना दिया गया है। ब्रेनवाश जिनका हो चुका है वे हर पांच साल बाद जागते हैं और ‘अपने’ मोदी को जिता कर आ जाते हैं। उन्हें कोई खबर नहीं कि देश दुनिया में क्या क्या खबरें छपी रही हैं। अर्थव्यवस्था किस चिड़िया का नाम है। उनके लिए मोदी जी देश और समाज के उद्धारक के रूप में अवतरित हैं और जो कुछ भी उनके खिलाफ चल रहा है यह कांग्रेस और वामपंथियों की गहरी साजिश है, जिससे हमें मोदी जी को बचाना है। और यह काम केवल वोट के द्वारा ही हो सकता है। यह है ब्रेनवाश की ताकत।
यह तो जनता की बात है। इसके अलावा पूरा तंत्र विकसित किया गया है। दरअसल 2002 के बाद मोदी जितने आहत हुए और जितने घाव उन्होंने दिमाग पर झेले, उन सबका निचोड़ यह था लोकतंत्र के नाम पर ‘राजशाही’ ही एकमात्र विकल्प है। पढ़े लिखों की जमात की उपेक्षा, धुरंधर पत्रकारों से किनारा करके ही देश पर जादू चलाया जा सकता है। इसमें भरपूर साथ मिला अंबानी अडानी का। तो समूचा मेनस्ट्रीम मीडिया, आरएसएस के स्वयंसेवक, पार्टी का आईटी सेल के जरिए ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप को कब्जाना आसान हो गया। बाकी रह गयी वे संस्थाएं जो गृह मंत्रालय के अधीन आती थीं। इसके अलावा स्वतंत्र चुनाव आयोग और अदालतें सो लालच जैसे ‘गुणधर्म’ ने उसे भी पूरा कर दिया। कहीं किसी इमरजेंसी की बात नहीं पर सर्वत्र इमरजेंसी के हालात। डर और दहशत का माहौल।
अब दो बातों पर गौर कीजिए। जब अटल बिहारी वाजपेयी मोदी जी को अहमदाबाद में राजधर्म सिखा रहे थे तब किस बेहयाई से अपने ऊपर उठती उंगली से तिलमिला कर मोदी ने बीच में दखल दिया था, कह कर कि ‘हम भी तो वही कर रहे हैं, साहब’। मोदी उसी दिन समझ चुके थे कि ‘बैलेंस’ करके चलना पड़ेगा। लेकिन जो फितरत में होता है, होता तो वही है। दबंगई एक तरफ है और राजकाज चलाना दूसरी तरफ। और राजकाज चलाना या गुड गवर्नेंस देना फिर भी न आता हो तो नतीजे कैसे निकलते हैं। बानगी देखिए – अचानक नोटबंदी, जीएसटी की फूहड़ धूमधाम, बेतरतीब लाकडाउन। इनसे होने वाली असजताएं और मूर्खतापूर्ण कदमों से असमय होने वाली जनता के जान माल की हानि। पर जिनका ब्रेनवाश है वे पीड़ा से भी आनंदित हैं। उनकी नजर में बेशक अदृश्य शक्तियां इन सबके लिए जिम्मेदार होंगी पर मोदी जी तो बिल्कुल नहीं हैं। यह होती है ‘अंधभक्ति’ की ताकत।
अब फिर मोदी जी की परीक्षा का समय है। आज बेशक दुनिया उन्हें कोरोना का Superspreder मानती हो।लेकिन देखना है कि इसकी मियाद कितने दिन की है। मोदी की धुंधली होती छवि को लीपने पोतने का खेल शुरू हो गया है। हफ्ते भर पहले ‘एबीपी’ न्यूज ने ‘सी वोटर’ का सर्वे अचानक दिखाना शुरू किया था। वह कई बार चलाया गया। इसमें मोदी जी को एक सफल और दूसरों को बहुत पीछे पछाड़ते हुआ योद्धा दिखाया गया। अंबानी अधिकृत तमाम गोदी मीडिया के चैनल अपने इसी काम में लगा दिये गये हैं। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी भी मुस्तैद है और आईटी सेल भी। तो क्या 2024 तक आते आते छवि एकदम पाक साफ कर दी जाएगी। बंगाल चुनाव में अगर बीजेपी की कम सीटें भी आयीं तो उसे भी इस तरह जीत बताया जाएगा कि वातावरण फिर धूमिल सा लगे। और अगर जीत गये तब तो बल्ले बल्ले। इस सबके आलोक में चैनल और वेबसाइट्स पर आने वाली तमाम सूचनाओं और बहसों का क्या अर्थ रह जाता है। फिर चाहे वह संतोष भारतीय के विडियो हों, वायर के हों, सत्य हिंदी के हों, न्यूज क्लिक के हों। ये सब चर्चाएं बड़ी बौनी और सिमटी सिमटी सी लगती हैं। अब तो दरकार है किसी चुनौती की। ऐसी चुनौती जिससे भक्तों तक में कंपन हो। किसी महात्मा की चुनौती !!