वर्तमान देश की स्तिथी पर रह – रहकर डॉ. राम मनोहर लोहिया की छोटी सी पुस्तिका हिंदू बनाम हिंदू बरबस याद आ रही है !
क्योंकि गत तीस सालों से भी अधिक समय से, संघ परिवार धर्म के नाम पर भारतीय राजनीति को केंद्रीय मुद्दा बनाकर ! रोजमर्रे के सभी सवालों को हाशिये पर डालने में कामयाब हो रहा है !
कल ही मुंबई में राजठाकरे की रेली, सिर्फ कौनसा दरगाह बन रहा ? उसके ऐवज में मंदिर बनाने की घोषणा के उपर हुई देखकर ! मुझे राज ठाकरे को कहना है ! “कि महाराष्ट्र के किसानों ने शेकडो किलोमीटर की पैदल यात्रा मुंबई तक करने की कृती को एक हप्ताह भर भी नहीं हो रहा है ! और अपने ही राज्य के किसानों की समस्याओं को लेकर, राज ठाकरे या उनके समर्थकों ने उन्हें समर्थन देने की खबर नहीं है !
लेकिन भावनाओं को भड़काने वाले मुद्दों को लेकर ! जबसे जनता पार्टी की टूट हुई ! (1980) उसके बाद गत चालिस साल से भी अधिक समय से ! तथाकथित हिंदूत्ववादी दलों की संपूर्ण राजनीतिक गतिविधियाँ को गौर से देखा जाए ! तो सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की रणनीति चल रही है ! और आस्चर्य की बात, उन्हें इसमें कामयाबी भी मील रही है ! वर्तमान केंद्र सरकारने दो-दो बार सत्ता में आने का और क्या कारण है ?


इसी परिप्रेक्ष्य में आज डॉ. राम मनोहर लोहिया की चालिस पन्नों की पुस्तिका “हिंदु बनाम हिंदु” उनके 56 वे पुण्यस्मरण दिवस पर, बरबस याद आ रही है ! डॉ. राम मनोहर लोहिया का 23 मार्च 1910 को जन्म हुआ ! लेकिन इसी दिन जब डॉक्टर लोहिया इक्कीस साल के थे ! 23 मार्च 1931 के दिन, लाहौर के किले में बंद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू, तिनो शहिदो को फांसी की सजा देने के कारण उन्होंने आगे अपने जन्मदिन को कभी भी नहीं मनाया !


समय की विडम्बना देखिए कि जिस जेल में हमारे तिनो शहिदो को फांसि दि गई थी ! उसी जेल में तेरह साल बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण को भारत छोडो आंदोलन के दौरान अंग्रेजो ने 1944 के मई माह में, बंद किया था ! वैसे तो भगत सिंह और सुखदेव और राजगुरु को जाकर आज 92 साल हो रहे हैं ! इसलिये हमारे जैसे लोगों को डॉ. राम मनोहर लोहिया के जन्मदिन पर एक तरफ खुशी तो होती है ! लेकिन उसी दिन हमारे तीनों शहिदो की शहादत के कारण दुख भी होता है ! इस तरह 23 मार्च हमारे लिए एक मिश्रित भावनाओं का दिवस भी है ! एक तरफ तिनो शहिदो की शहादत को याद करते हुए डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती पर कोई और कर्मकांड करने की जगह उन्होंने महात्मा गाँधी तथा डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी के विचारों को लेकर भारत की बहुआयामी संस्कृति को देखते हुए अपने खुद के अनुभवों के आधार पर सत्याग्रह तथा समता प्रस्थापित करने के लिए जो कुछ वैचारिक और कृतिशीलता का ‘सिविलनाफरमानी’ नामका योगदान दिया है ! उसके अनुसार आज के सवालों को लेकर काम करना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी !


वर्तमान समय में, भारत के सत्ताधारी दल और उसके मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दिक्कत है ! कि भारत की आजादी के आंदोलन में उनके सामिल न होने के कारण ! उनके पास बताने के लिए कुछ भी जानकारी नहीं होने के कारण ! डाॅ. राम मनोहर लोहिया से लेकर सभी स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाने वाले, नेताओं के नाम से सत्ताधारी दल के नेता तोड़-मरोड़कर, जानकारी पेश करने के प्रयास कर रहे हैं ! इसलिए हमारे देश के युवाओं को डॉ. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण , डॉ. बाबा साहब अंबेडकर, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना आझाद, सरहद गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, रवींद्रनाथ टागोर और महात्मा गाँधी जी के बारे मे, मुख्यतः उनके विचारों के बारे मे सच्चे परिचय देने की बहुत आवश्यकता है !

 


लोहिया के भारत के स्वाधीनता संग्राम से लेकर गोवा, उर्वसिअम, खरसवां झारखंड के आदिवासियों की समस्या को लेकर किया गया सत्याग्रह को इस साल 60 साल पुरे हो रहे हैं ! और महात्मा गाँधी जी के सत्याग्रह का सिविल नाफरमानी नामकरण करके आजादी के बाद भारत में डॉ. राम मनोहर लोहियाजी ने ,झारखंड से लेकर भारत के उत्तर पूर्व के विभिन्न मुद्दों पर आंदोलन करने की कोशिश आज के शून्य काल में विशेष तौर पर याद आ रहे हैं !


डॉ. राम मनोहर लोहिया को इस दुनिया से विदा होकर (12 अक्तुबर 1967 ) आज छप्पन साल होने जा रहे हैं ! शायद आज जिनकी उम्र पचपन या साठ साल की हो रही है ! ऐसे कितने लोगों को ? डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम और काम और हिंदू – बनाम – हिंदू, अगडे – पिछडो का सिद्धांत, जेल – वोट और फावडे जैसे त्रिसूत्री, नर – नारी समता,सौंदर्यबौध,सिविलनाफरमानी ! ,सावित्रि-द्रोपदी, चित्रकुट के रामायण मेला वशिष्ठ या वाल्मीकि जैसे भारतीय संस्कृति में के भले ही काल्पनिक पात्र होंगे ! लेकिन आधुनिक संदर्भ में सानेगुरुजी के बाद समाजवादी आंदोलन में दुसरे नेता है डॉ. राममनोहर लोहिया जिन्होंने हमारे पूर्वजों के बारे में आधुनिक संदर्भ में समझाने की कोशिश की है !


भारतीय राजनीति में महात्मा ज्योतिबा फुले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और रामास्वामी पेरियार के बाद कोई और नाम भारत की जाती व्यवस्था, तथा विभिन्न प्रकार की विशेषता के बारे में बौध्दिक और कृतिशील योगदान देने वाले डॉक्टर लोहिया ही थे ! सौ मे पावे पिछडा साठ, जोतेगा उसकी जमीन से लेकर, दामबांधो, भाषा निती, नर – नारी समता जैसे आंदोलन स्वतंत्रता के बाद करने की कोशिश की है !
डॉ. राम मनोहर लोहिया अपने जर्मनी से पढाई के समय के गोवेनिज मित्र डॉ. जुलियस मेनेजेस के आग्रह के कारण 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के कारण विभिन्न जेलों की यंत्रणाओ से 1946 को मुक्त होने के बाद ! डॉ. जुलियस मेनेजेस साहब ने, स्वास्थ्य लाभ के लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया को अपने घर गोवा आसोला मे बुलाया था ! और मेनेजेस और अन्य स्थानीय लोगों से जब पोर्तुगिज शासकों की अन्याय और अत्याचारों की कहानियों को सुनने के बाद, डॉ. राम मनोहर लोहिया जी भले स्वास्थ्य लाभ के लिए आये थे ! लेकिन लोहिया जिस मट्टी के बने थे ! भला वह इस तरह के अन्याय-अत्याचार की बातों को सुनने के बाद ,चुपचाप स्वास्थ्य लाभ कर सकते थे ? उल्टा उनका स्वास्थ्य इस तरह के माहौल में और भी ज्यादा बिगडेगा ! और तबतक उनके दिल को राहत नहीं मिलेगी जबतक कि वह उस सवाल को लेकर कोई पहल नहीं करते ! मेरी मराठी भाषी सबसे पसंदीदा कविता डॉ. राममनोहर लोहिया के चरीत्र को देखते हुए शतप्रतिशत लागू होती है ! “अन्याय घडो शेजारी कि दुनियेच्या बाजारी धावून तेथे ही जाऊ स्वातंत्र्य मंत्र हा गाऊं” ( मतलब अन्याय मेरे पडोस में हो, या विश्व के किसी और हिस्से में, मै दौड़कर वहां जाऊँगा, और स्वातंत्र्य मंत्र गाऊंगा ! )


तबतक उनकी तबियत ठीक नहीं हो सकती ! इसलिए गोवा मे गये थे स्वास्थ्य लाभ के लिए ! लेकिन गोवा को पोर्तुगिज शासकों से मुक्ति का बिगुल बजा दिया ! और उस कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया और बाद में गोवा से बाहर निकाला दिया !
लेकिन एक तरफ संपूर्ण भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1946 को स्वतंत्रता आंदोलन परवान पर चढा हुआ था ! और गोवा में डॉ. राम मनोहर लोहिया के जाने के बाद गोवा में भी आंदोलन की शुरुआत होती है ! और 1961 मे भारत की स्वतंत्रता के बाद चौदह साल बाद गोवा आजाद होता है ! यह मेरे लिए एक अनबुझी पहेली है !
लेकिन मुझे अपने मुक्त चिंतनके हिसाबसे, भारत की सबसे पहले वर्णाश्रम-व्यवस्था और उसीकी पैदाइश जाति व्यवस्था मे, शूद्रों को शस्त्र धारण करने के लिए मनाही, और उनके साथ अमानवीय व्यवहार करने के कारण भारतके देशी शासको के प्रति उदासीनता का भाव बहुजन समाज में होने की संभावना ज्यादा लगती हैं !
जिस कारण हजारों सालों से विभिन्न विदेशि आक्रमको ने समय-समय पर भारत के उपर आकर राज किया है ! और वह भी एक नहीं अनेक प्रकार के आक्रमण होते रहे ! उसीका हिस्सा 1512 में पोर्तुगीज आये ! और उन्होंने लगभग पाँच सौ साल से भी ज्यादा समय राज्य किया ! यह तो सिर्फ पांच लाख जनसंख्या के गोवा के गुलामी की बात है ! उर्वरित भारत पर सत्रहवीं शताब्दी में आयें अंग्रेजों ने भी ! अपने मुठ्ठी भर, गोरे सैनिकों के साथ डेढ़ सौ से भी ज्यादा सालों तक, राज किया !
उसके पहले के मुघल, इराणी, शक, हूण, कुषाण के आक्रमण होते रहे ! और वह भी राज कर के लुट करते रहे ! यही हजारो सालों की भारत गुलामी की स्थिति मे रहने की मुख्य वजह, लगभग तीन चौथाई आबादी को उच-निच की घृणास्पद प्रथाओं के कारण, मनुस्मृति के अनुसार आज तुम्हारे हिस्से में जो भी जीवन आया है ! वह तुम्हारा पूर्व जन्म के पाप का फल है ! इसलिए इस जन्म में तुम अपने इसका प्रायश्चित के लिये इसे लेकर जिओ तो अगले जन्म में अच्छा जन्म मिलेगा ! जिसे “कर्म विपाक का सिध्दांत” बोला जाता है !
और हमारे देश के ज्यादातर लोग इस वैचारिक – मानसिकता की गुलामी को हजारों वर्ष से सहते हुए ! अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जीए जा रहे हैं ! जिसके उपर दो सौ साल पहले प्रथम बार ! महात्मा ज्योतिबा फुले ने प्रहार किया ! और बाद में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, रामास्वामी पेरियार और डॉ. राममनोहर लोहिया ने ! लोगों को गुस्सा करो जैसे मंत्र दिया ! ज्योकि शेकडो की संख्या में, तथाकथित साधू – सन्यासी गुस्से पर काबू करने के प्रवचन देते रहते हैं ! लेकिन भारत के सार्वजनिक जीवन में एकमात्र राजनीतिक नेता दिखाई देता है ! जिसने लोगों को गुस्सा करो जैसे मंत्र देकर उन्हें हिलाने की कोशिश की है !
राजनीतिक आजादी को आज पचहत्तर साल हो रहे ! लेकिन सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान को तरसते तीन चौथाई आबादी को जबतक सही मायनों में मौका नहीं मिलता ! तबतक पचहत्तर साल आजादी का जश्न बेमानी है ! उल्टा उनके उपर तथाकथित राष्ट्र-द्रोही कानून जो अंग्रेजी हुकूमत ने 1857 के आजादी के पहली लडाई के बाद लागू करने की शुरुआत की है ! और आज पचहत्तर साल हो रहे ! लेकिन तथाकथित देशी सरकार भी उसी काले कानूनों के तहत ! हमारे देश के पाँच लाख के आसपास लोगों को भारत की विभिन्न जेलों में बंद कर के ! और उसमें से सत्तर प्रतिशत लोगों पर बगैर आरोप के बावजूद जेलों में बंद है !
डॉ. राम मनोहर लोहिया जी की ‘हिंदू बनाम हिंदू’ नामकी पुस्तिका में वह लिखे हैं कि ,भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लडाई हिंदू धर्म मे उदारवादी और कट्टरता की पिछले पाँच हजार सालों से भी ज्यादा समय से चल रही है ! और जिसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता है ! इस बात की कोई कोशिश भी नहीं की गयी जो होनी चाहिये थी ! इस लडाई को नजर में रखकर हिंदुस्थान के इतिहास को देखा जाए,उसे बुना जाए,लेकिन देश में कुछ होता है,इसका बहुत बडा हिस्सा इसी के कारण होता है !
मै डॉ. राम मनोहर लोहिया के शुरू के आकलन को स्वीकार करता हूँ ! पर कोई भी कोशिश नहीं की गयी इस बात से असहमत हूँ ! क्योंकि ढाई हजार साल पहले के वर्तमान बिहार जो कभी विहारों के कारण बिहार बोला जा रहा ! उसी बिहार में चालीस पचास साल के फासले से महाविर और सिद्धार्थ गौतम के प्रयास क्या थे ? दोनों ने हिंदू धर्म मे उदारवादी लडाई मुख्यतः जाँत पात की प्रथा यानी उचनिच ! संपूर्ण हिंदू धर्म को नकारते हुए ! पर्यायवाची धर्म स्थापित कर के ! हिंदू धर्म की नींव पर ही हमला किया है ! और उन्हें कुछ हदतक कामयाब होने का इतिहास मौजूद है ! फिर उनके खिलाफ हिंदू धर्म के कट्टरता वादियोने क्या किया है ? और किस तरह से भारत की भुमि पर से खदेड़ कर (कश्मीरी पंडित कल्हण की राज तरंगिणी ग्रंथ में विस्तार से लिखा है ! )
आज भी वह धर्म दुनिया के अन्य धर्मों में तीसरे स्थान पर कायम है ! मै उनके तफसील मे जाउँगा तो वह एक स्वतंत्र लेख का विषय है ! और मैं अवश्य उसपर भी कभी अवश्य लिखूंगा !


तो सिद्धार्थ और महावीर के बाद गोरखनाथ और मंछिद्रनाथने स्थापित किया गया नाथ संप्रदाय ! और गोरखनाथ के नाथ संप्रदाय के प्रयास ! उसीके आसपास ग्यारहवीं शताब्दी में कर्नाटक के खुद ब्राम्हण होने के बावजूद ! बसवण्णाने लिंगायत पंथ की स्थापना की है ! और कट्टरता के खिलाफ ! आजसे एक हजार साल से भी ज्यादा समय कर्नाटक,महाराष्ट्र कुछ हदतक आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में इस पंथ का प्रसार करने की कोशिश की है ! और कट्टरता के खिलाफ अपने उदारवादी आंदोलन को फैलाने मे कामयाब रहे !


उसी तरह महाराष्ट्र में ग्यारहवीं शताब्दी मे संत ज्ञानेश्वर ! सोलवी शताब्दी में संत तुकाराम ! उनके बिचमेही एकनाथ,नामदेव,जनाबाई गोरा कुंभार,और संतों के लगातार कीए गए प्रयासों को ! जिसे भक्ति आंदोलन भी कहा जाता है !
उत्तर भारत में कबीर,रैदास,नानक और सबसे बड़ी बात सूफी संतों की, भुमिका मुस्लिम कट्टरता को कम करने के लिए विशेष योगदान रहा है ! और इसकारण हिंदू-मुस्लिम सभीको उनके तत्वज्ञान के अनुयायी बने ! एक तरह से हिंदू-मुस्लिम के बीचो-बीच पुल का काम किया है ! और आज दोनों समुदायों के बीच आपसी सौहार्द प्रस्थापित करने के लिए विशेष योगदान रहा है !
लेकिन इन सब प्रयासों के बाद आज गोरखनाथ पिठ क्या कर रहा है ? वैसे ही कर्नाटक के लिंगायत पंथ की क्या स्थिति है ? वहीं बात महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदायकी और आसाम के शंकरदेव – माधवदेव तथा बंगाल के चैतन्य महाप्रभु तथा महानुभाव पंथ और आर्य समाज सभी किसी समय में भारत के सामाजिक परिवर्तन का सूत्रपात करने के लिए विशेष रूप से स्थापित पंथ – संप्रदाय खुद सांप्रदायिकता के वाहक बनने के पीछे क्या कारण है ?


मतलब कट्टरता के खिलाफ उदारवादी आंदोलन इतिहास के क्रम में लगातार जारी है ! और कब किसका पलडा भारी रहा ! इस तफसील मे जाउँगा तो वह एक स्वतंत्र लेख का विषय है ! और मैं अवश्य उसपर भी कभी अवश्य लिखूंगा ! क्योंकि यह मेरे लाइफ मिशन का पार्ट है ! जो मैंने आजसे 34 साल पहले ही ! भागलपुर दंगा के बाद शुरू किया है ! और शायद अंत तक वही रहेगा!
डॉ. राम मनोहर लोहिया के आकलन के अनुसार, कट्टरता और उदारता की लडाई इतिहास क्रम में लगातार जारी है ! और मेरे आकलन के अनुसार डॉ राममनोहर लोहिया के मृत्यु के बाद, आज लगभग चालिस साल से अधिक समय से कट्टरता का पलडा भारी चल रहा है ! और उसीके चलते रोजमर्रा के सवाल उदाहरण के लिए महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, किसानों की समस्याओं जैसे महत्वपूर्ण सवाल दोयम दर्जे के होकर “सवाल आस्था का है ! कानून का नही !” जैसे भावनाओं को भड़काने वाले मुद्दों को लेकर राजनीति हावी हो रही है !
ढाई-तीन हजार साल से भी ज्यादा समय से ,कट्टरता और उदारता की लडाई लगातार जारी है ! और आज गत सौ साल से मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप की संपूर्ण राजनीति सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के उपर ही जारी है ! और अंग्रेजों ने बखूबी ‘बाटो और राज करो’ कि निति के कारण जरूर हवा दी है ! लेकिन उसके लिए हिंदू और मुसलमानों के कट्टरता वादियोने बहुत ही संगीन भुमिका निभाई है ! और उसमें कौन कम और कौन ज्यादा यह कहना मुश्किल है !


क्योंकि अलिगढ स्कूल के स्थापना के बाद, 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, अंग्रेजों को पुचकारने की निति ! और उसीके देखा देखी मे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ! फिर 1906 मे प्रिंस आगाखान और ढाका के नवाब और अन्य मुस्लिम जमिनदारोकी मिलकर ‘मुस्लिम लिग’ की स्थापना ! और उसीकी प्रतिक्रिया मे 1915 मे हिंदुओं के राजा-महाराजा और जमिनदारोकी पहल से हिंदू महासभा की स्थापना ! और वह कम लगीतो दस साल बाद 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना ! उसी तर्ज पर मौलाना मौदुदी ने जमाते इस्लामी हिंद ! यानी मुस्लिम लिग के रहते हुये ! अपनी अलग संघ के तर्जपर ! आर एस एस के स्थापना के पंद्रह साल बाद ! 1941 में जमाते इस्लामी हिंद यानी मुस्लिम आर एस एस के स्थापना के ! और इसके अलावा आर एस एस के स्थापना के एक साल बाद तबलीगी जमात ! यह सब आजादी के पहले !
और इसी सांप्रदायिक राजनीति को अंग्रेजों ने बखूबी, ‘बाटो और राज’ करने के लिए ! विशेष रूप से इस्तेमाल करने का नतीजा है ! कि भारत का बटवारा ! और उस बटवारे से मसला हल होने की जगह? पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान और भारत दोनों को देखने से, पता चलता है ! कि दोनों जगहों के वर्तमान सत्ताधारी दल ! अगर मुल्क का बटवारा नहीं हुआ होता तो ! नरेंद्र मोदी को संघ की प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी सम्हालने के काम करने पड रहे होते ! डॉ. राममनोहर लोहिया ने “धर्म दिर्घकालिक राजनीति है और राजनीति अल्पकालिक धर्म है ” जैसी व्याख्या की है ! जो आज की तारीख में हूबहू सिध्द होते हुए दिखाई दे रही है !

Muzaffarpur: Prime Minister Narendra Modi addresses during a BJP rally in Bihar’s Muzaffarpur on April 30, 2019. (Photo: IANS)

नरेंद्र मोदीजी 2001 मतलब इक्कीसवीं शताब्दी के शुरू होने के पहले एक मामूलीसे संघ के स्वयंसेवक से आगे उनकी कोई भी पहचान नहीं थी ! लेकिन अक्तुबर 2001 के प्रथम सप्ताह में वह तात्कालिक परिस्थितियों में मुख्यमंत्री बनाये जाते हैं ! और सव्वासौ दिनों के भीतर एक रेल की घटना घटीत होती है ! और उसके बाद नरेंद्र मोदीजी गुजरात दंगों से हिंदूहृदयसम्राट और चौवालिस इंची बनियन पहनने वाले की छाती बारा इंच बढकर छप्पन इंची होकर ! पंद्रह साल के भीतर वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के देश के प्रधानमंत्री तक पहुंचने का सफर डॉ. राम मनोहर लोहिया की “धर्म दिर्घकालिक राजनीति” के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है ! “राजनीति दिर्घकालिक धर्म बनकर बैठ कर रह गया है !”
सबसे पहली बात, संघ को इतनी हैसियत प्राप्त होने का कोई कारण ही नहीं था ! कि मुसलमानों का डर दिखाकर ही 98 साल का सफर तय किया है ! और उसकी राजनीतिक ईकाई जिसे 1977 के पहले जनसंघ और 1980 के बाद भारतीय जनता पार्टी का आज का राजनीतिक मुकाम ! सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के ध्रुवीकरण की राजनीति के कारण ! भारत की सत्ताधारी पार्टी बनने के लिए !
विशेष रूप से हिटलर के जैसा यहुदी द्वेष और भारत में मुसलमानों का डर, दिखाकर ही चालिस सालों मे भारत की सबसे बड़ी पार्टी बनने के लिए ! विशेष रूप से उग्र हिंदू धर्म को ! भागलपुर से लेकर गुजरात तक ! सुनियोजित ढंग से दंगों की ! और तथाकथित आतंकवादी हमले सचमुच किसने किये ? यह आज भी अनबुझी पहेली है ! क्योंकि महात्मा गाँधी के हत्या अगर कर सकते हैं ! तो कुछ भी कर सकते हैं ? पुलवामा, संसद पर हमला, अक्षरधाम, और सुरत, अहमदाबाद, वडोदरा आमके जैसे पेडों पर लटके हुए बमों को देखते हुए ! और एक दर्जन से अधिक लोग ! सिर्फ नरेंद्र मोदीजी को मारने के लिए आए ! जिसमें बीस साल की इसरत जहाँ तक ! और गिता जौहरी जांच के बाद कहतीं है “कि वह एंकाऊटर फर्जी था !”


और जस्टिस मादान ने 70 के दशक में, भिवंडी और जलगाव दंगों पर, अपने रिपोर्ट मे यह बात साफ तौर पर लिखा है ! कि दंगा कौन किया ? यह बात दीगर है ! लेकिन दंगा की भुमिका बनाने का काम बदस्तूर संघ अपने शाखाओके द्वारा , तथाकथित बौद्धिक और अन्य प्रशिक्षणो के माध्यम से दंगा की भुमिका बनाने का काम करते हैं !
और यह बात मैंने खुद 1 जून 2006 नागपुर संघ की महल स्थित पुरानी इमारत के उपर हमला करने वाले तथाकथित फिदायीन, नांदेड 6 अप्रैल 2006,उसके बाद, मालेगाँव विस्फोट के दोनों घटनाओं की खुद जाँच करने के कारण ! भारत में जितने भी आतंकवादी घटनाएं हुईं हैं ! सभी को एक साथ क्लब कर के उन सभी की निस्पक्षता से जांच करने से पता चल जाएगा कि असली गुनाहगार कौन है ?


फिरवह,संसद,अक्षरधाम,पुलवामा,में बटला हाउस,और समझौता एक्सप्रेस से लेकर,एक जून 2006 को नागपुर संघ मुख्यालय के तथाकथित फिदाईन हमला! और 26/11 का मुंबई का हेमंत करकरे और अशोक कामटे,साळसकर जैसे पुलिसके जांबाज अफसरो की हत्या,हैद्राबाद के लुंबीनी पार्क, मक्का मस्जिद,तेनकाशी,मोडासा,सुरत अजमेर शरीफ वाराणसी से लेकर जितने भी ! आतंकवादी घटनाओके बारेमे ! मैंने पचासों बार निस्पक्ष जाँच करने की माँग की है !


और इनमे से एक मालेगाँव विस्फोट के मामले में हेमंत करकरे जी ने थोड़ी कामयाबी प्राप्त की थी ! तो उनको ही जान गवानी पडी ! और उसमे की आरोपी औरत प्रज्ञा सिंह ठाकुर आज भारत के सबसे बड़े सभागार में संसद सदस्यों के रूप में बैठी है ! तो आतंकवाद या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का सब से अधिक राजनीतिक लाभ कौन सी ताकतों को हो रहा है ? तो फिर सांप्रदायिकता फैलाने वाले लोगों में कौन से लोग गुनाहगारोंमे शुमार होता है ?
तो भारत की अखंडता और एकता के लिए ! विशेष रूप से इस तरह की राजनीति का सूत्रपात गत चालिस साल से भी ज्यादा समय से चल रहा है ! और आनन-फानन में दुसरे ही क्षण अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जेलों में ठुसा गया है ! और इस तरह के हजारों युवक अल्पसंख्यक समुदाय के जेलोमे सालोसे सड रहे हैं ! और यह समाज आज भारत में दुनिया का दो नंबर की जनसंख्या का है ! जो 30-35 करोड की आबादी है ! और इसी समाज को दंगों से लेकर तथाकथित आतंकवादी घटनाओके गुनाहगार ठहरा कर कौनसे, भारत के एकता और अखंडता की स्तिथि कायम हो सकती है ? अगर भारत की एक चौथाई आबादी असुरक्षित मानसिकता में डाल कर किस देश की समाजस्वास्थ ठीक रहेगा ? और एकता-अखंडता की बात तो कोसों दूर है !
और नागरिकता सुधारने के कानून के नाम पर ! की जाने वाली बात ! समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को असुरक्षित मानसिकता में डाल कर ! किस देश की एकता-अखंडता कायम रह सकती हैं ? और उपरसे सरकार के खिलाफ किसी भी आंदोलन या बयान,लेख या वक्तव्य को देशद्रोह का मुकदमा दायर करने की यह कृति संपूर्ण भारत में दहशत का माहौल पैदा करने से ! कौन-सी एकता और अखंडता को कायम रखा जा सकता है ? और हजारों लोगों को तथाकथित राष्ट्र-द्रोही के आरोपों मे जेल मे डालना कौनसे राष्ट्रीय एकता के लिए वर्तमान सत्ता में बैठे हुए संघ परिवार के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक काम कर रहे हैं ?
इसी तरह आये दिन भावनीक मुद्दों को तूल देकर सतत ध्रुवीकरण की राजनीति का दौर जबतक रोका नहीं जायेगा ! तबतक समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लिए असुरक्षा की भावना बनी रहेगी ! और जबतक इस देश की एक चौथाई से भी ज्यादा जनसंख्या, जोकि अल्पसंख्यकोंकी है ! यानी तीस से चालीस करोड ! क्या इस तरह के माहौल में किसी भी देश का सामाजिक स्वास्थ्य बरकरार रह सकता है ?
दलितों के अत्याचार के बाद उन्नाव से लेकर हाथरस,बलरामपुर यह सिर्फ हाल के उदाहरण बता दिया ! बाकी सहारनपुर का दलित विरोधी दंगा ! और भी अन्य घटनाओं को लेकर पुलिस-प्रशासन का रवैया, अभी किसानों के आंदोलन लेकर सत्ताधारी दल के जिम्मेदार पदोपर बैठे हुए लोग ! कोई खलिस्तानी तो कोई नक्सलैट ! तो कोई विदेशी मदद से चल रहे आंदोलन बोल रहे हैं ! और उपरसे प्रधानमंन्त्री पदपर बैठे सत्तर साल पार कर चुके महाशय हम बिल को वापस लेने की बात करके अब यू टर्न मारकर चुनाव जितने कि कवायद तो कर लिया लेकिन किसानों के आंदोलनों से निकलने वाली किसी भी बात को लेकर कुछ भी नहीं कर रहे हैं !
हमारे देश की सभी संविधानिक संस्थाओं को और मिडिया के लोगों को सरकारी दहशत में रहने के लिए मजबूर कर दिया है ! यह बात चार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोगों ने प्रेसवार्ता करके बोला है ! और इडी,सीबीआई,एन आइ ए सिर्फ और सिर्फ विरोधी दलों की सरकारों को गिराने का काम ! और विरोधी पार्टियां के लोगों को इन एजेंसियों का डर दिखाकर अपने पार्टी मे श्यामील करने के लिए विशेष रूप से इस्तेमाल करने का नतीजा ! इन सभी एजेंसियों की प्रतिष्ठा मट्टी पलित करने का गुनाह वर्तमान सत्ता धारी पार्टी कर चुकी है ! और अब सोशल मीडिया के पीछे पड गये ! न्यूज क्लिक की उपर की जा रही कार्रवाई सिर्फ एक उदाहरण और वह भी ताजा है ! लेकिन पिछले साढेनौ सालों से संपूर्ण मिडिया को सरकारी भाट बनाकर रख दिया है ! आज डॉ राममनोहर लोहिया की याद बरबस आ रही है ! उन्होंने ही “जिंद कौमे पांच साल इंतजार नहीं करती है “जैसा क्रांतिकारी बदलाव के लिए जबरदस्त नारा दिया था !


रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावडेकर के मुहसे तीन दिन पहले तथाकथीत सोशल मीडिया सेन्सॉर के जो नियमों की घोषणा की है ! वह आजसे नब्बे साल पहले के जर्मनी मे डॉ. गोबेल्स को भी मात देने वाली हरकत लग रही है ! और जिस तरह से हजारों लोगों के फोन टेप करने का मामला सामने आया है वह वर्तमान सत्ता में बैठे लोगों की कौन-सी मानसिकता का परिचय देता है ?
साढेनौ साल की सत्तामे , सिर्फ और सिर्फ, गौतम अदानी जैसे धन्नासेठ की मदद लेकर सत्ता में आने के बाद भारत के संविधान को बदलने का काम करने के लिए ! विशेष रूप से वर्तमान सत्ता धारी पार्टी कर रही है ! आज तीन महीने से भी अधिक समय हो रहा है ! ‘हिंडेनबर्ग रिपोर्ट’ आकर ! लेकिन बात-बात में विरोधी दलों के नेताओं के घरों पर, ईडी सीबीआई के छापामारी करने वाली सरकार ! गौतम अदानी का नाम तक लेना नही चाहती है ! और कोई विरोधी दल के सदस्य इस मुद्दे पर चर्चा करते हैं ! तो उनकी पूरी चर्चा को ही संसदीय रेकॉर्ड से निकाला जाना !


मतलब यह इस देश की जनता के द्वारा चुने गए, सभागार को किसी एक व्यक्ति ने, 2013 के लोकसभा चुनाव में, अपने प्रायवेट जेट विमान को किसी एक व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने के लिए, देने की किमत पर ! और शायद बेतहाशा धन खर्च करके हमारी संसद को ही गिरवी रख लिया जैसा मामला लगता है ! यह भारत की संसदीय इतिहास में अबतक का पहला ही उदाहरण हैं ! जो एक धन्नासेठ के हितों की रक्षा के लिए, विशेष रूप से काम कर रही है ! 2013 के चुनाव में नरेंद्र मोदी चारसौ से अधिक जनसभा को संबोधित करते हुए संपूर्ण विश्व ने देखा है ! नरेंद्र मोदीजी ने गौतम अदानी का यह विमान के लिए किराया चुकाने ऐवज में विशेष रूप से हमारे देश की नैसर्गिक संपदा जिसमें जल – जंगल और जमीन आती है !
इन साढनौ सालों के भीतर अदानी उद्योग समूह के कब्जे में देने का काम किया है ! और शेयर बाजार में की गई चालाकियां को चेक करने के लिए विशेष रूप से सेबी जिसका काम है ! शेअर बाजार की गड़बड़ियों के उपर निगरानी रखने की ! उसने अपनी ड्यूटी में कोताही बरतने के लिए विशेष रूप से कौन जिम्मेदार हैं ? चुनाव प्रचार में “मै नही खाऊँगा और न ही खाने दुंगा” के जुमले बोलना कहा है ? या सिर्फ “मै ही अकेला खाऊँगा ! और न ही किसी को खाने दुंगा !” वाली बात है ? हिंडेनबर्ग रिपोर्ट विश्व के औद्योगिक इतिहास में के सब से बड़ा आर्थिक घोटालों में से एक है ! जिसकी स्वतंत्र रूप से जांच होनी चाहिए !
जबकि संवधानिक प्रावधान, हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के अंदर से जो मूल्य विकसित हुए हैं ! उन्हें ध्यान में रखते हुए, संविधान निर्माताओं ने बनाए है ! वह सब कुछ संघ के दीर्घकालीन प्रमुख रहे श्री. माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के दर्शन के (एकचालकानूवर्त) अनुसार ! संविधान को बदलने की कवायद लगातार जारी है ! यहां तक कि संविधान की घोषणा में से सेक्युलरिज्म और सोशलिस्ट शब्दों को हटाने की हिमाकत नये संसद भवन के पहले ही अधिवेशन में बाटें गऐ संविधान की कापी में किया गया है !
और आज भारत की अखंडता और एकता के लिए जितना खतरा पैदा हो गया है ! उतना कभी भी नहीं रहा है ! और आज डॉ. राम मनोहर लोहिया होते तो उन्होंने कभी भी इस तरह की फासिस्ट सरकार को बरदास्त नहीं किया होता ! गोवा मुक्ति के पचहत्तर साल के उपलक्ष में गोवा से ही वर्तमान सत्ता धारी दल के खिलाफ सिविल नाफरनामीके तर्ज पर आंदोलन शुरू किया होता !
क्योंकि डॉ. राम मनोहर लोहिया के सामने का जनसंघ और संघ का असली चेहरा पूरा पता नहीं होने से ! क्योंकि डॉ. साहबकी 1967 मे असामयिक मौत होने कारण ! गफलत में गैर कांग्रेस वाद के लोहिया जी के सिद्धांत मे ! जनसंघ और संघ को शामिल करने की ऐतिहासिक भूल की है ! और वही भूल दोबारा जेपी आंदोलन के दौरान होने का खामियाजा आज संपूर्ण देश को भुगतना पड़ रहा है !
और यह आकलन करने वाले लोगों में सिर्फ मै अकेला नही हूँ ! मधू लिमये जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में मराठी में मधू लिमये के अंग्रेजी लेख का ‘धर्मांधता’ शिर्षक से एक किताब अभि – अभि छपी है ! जिसमें मधूजीने 70 नंबर के पन्ने पर साफ – साफ लिखा है कि “संघ फॅसिझम और केंद्रीयकरण के इन दो मुद्दों के उपर आधारित संघठन है ! और बीजेपी संघ की राजनीतिक ईकाई होने के कारण! बीजेपीके मध्यममार्गी दल बनने की संभावना असंभव है ! यह बात सरदार पटेल, डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आयोजन तत्व को समझने में चुक गए ! और जनसंघ या अब का भाजपा का अस्वायत्त तत्व ! (‘नॉन अॉटोनॉमस कॅरेक्टर’ मतलब कठपुतली के के जैसा ! पूरी तरह, संघ के निर्देशन पर, अपनी नितियो की संरचना, करने वाले दल की बात ! ) लोहिया और जयप्रकाश नारायण की ध्यान में नहीं आई है !” 1977 के सितम्बर माह में ! संघ के प्रमुख देवरस को संघ को विसर्जित करने की बात उन्होंने कही थी ! तो संघ की प्रतिक्रिया जैसे अपेक्षित थी वैसे ही ! विषादयुक्त चेहरा बनाते हुए, उन्होंने तुरंत ही ठुकरा दी है ! ” यह संपूर्ण मजमून मधूजी की धर्मांधता नाम के मराठी किताब के 70 वे पन्ने पर से मैंने हिंदी अनुवाद करके दिया है !


क्योंकि जीस पाँच हजार साल से चली आ रही कट्टरपंथी और उदारपंथी लडाई ‘हिंदू बनाम हिंदू’ नामके निबंध मे डाक्टर साहब ने की है ! उसके अनुसार कट्टरपंथी तत्वों का प्रतिनिधित्व वर्तमान समय में संघ परिवार और उसकी राजनीतिक ईकाई बीजेपी कर रही है ! और भारत की एकता और अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा वर्तमान समय में सत्तर के दशक के शुरुआती दौर में, खुद डॉ. राम मनोहर लोहिया जी की गैर कांग्रेसवाद के निति के कारण संघ परिवार का समावेश करने के कारण ! गाँधी जी के हत्या के बाद मुँह छुपाते हुए संघ को खुलकर सामने आने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है !
और उसके बाद, जाॅर्जफर्नांडीस ने राजनीतिक पतनशीलता की हदे पार करने वाले, आपके अपने अनुयायियों ने बची खुची कसर नहीं छोड़ी ! जिसका सबसे बडा प्रमाण जिस तरह से भारत की संसद में जाॅर्ज फर्नांडीज गुजरात दंगों के समर्थन और ओरिसा के कंधमाल जिले के मनोहरपुकुर मे कोढीयोकी सेवा करने वाले फादर स्टेन्स और उनके दो किशोर उम्र के बच्चों को जिंदा जलाया जाने की घटना की ! उसके तथाकथीत जाँच जाॅर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपने आप को क्लीन चिट दिलवाई ! यह भारत के समाजवादी आंदोलन के इतिहास का सबसे पतनशीलता का दौर था ! जिसे खुद डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कदापि माफ नहीं किया होता !


और यह बात मैंने, आपातकाल में एस एम जोशीजी को जनता पार्टी के गठन के पहले कही थी ! “कि आप चुनावी गठबंधन कर सकते ! लेकिन जनसंघ जैसे सांप्रदायिक दल के साथ एक पार्टी करने का प्रयास, हर मायनों में भारत के लिए गलत साबित होगा ! और जनसंघ आर एस एस की राजनीतिक ईकाई होने के कारण सबसे ज्यादा सत्ता में आने के बाद लाभान्वित होगा ! और सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादीयोका होगा” ! यह धोका मैंने कहा था ! और नहीं मैंने जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है ! और नाही किसी भी पद की ऑफर को स्वीकार किया ! जिसमें अमरावती लोकसभा चुनाव में टिकट से लेकर, प्रदेश जनता पार्टी के महासचिव पद ऑफर थे ! सवाल मेरे व्यक्तिगत नकारा जाने का नही है ! आज सब कुछ सामने ही है ! और जो धोखे के इशारे मैंने बताया थे उनमें से एक भी गलत साबित हुआ ?


डॉ. राम मनोहर लोहिया जी की ‘हिंदू बनाम हिंदू’ नामकी पुस्तिका में वह लिखे हैं, “कि भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लडाई हिंदू धर्म मे उदारवादी और कट्टरता की लडाई, पिछले पाँच हजार सालों से भी ज्यादासमय से जारी है !” और आज की बात है ! कि वर्तमान में भारत मे हिंदू कट्टरता की लडाई लोहिया जी की मृत्यु के बाद 56 सालों के पस्चात, जिस तरह से भारत की अखंडता और एकता के लिए जितना खतरा पैदा हो गया है ! उतना कभी नहीं था ! और इतिहास में की बात है कि ! वर्तमान में भारत मे हिंदू कट्टरता मतदाता को भ्रमित कर के हिंदू धर्म के नाम पर खुलकर खूनी खेल खेल रहे है ! भागलपुर,गुजरात,कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में ध्रुवीकरण की राजनीति के द्वारा दिल्ली से लेकर गली तक जो राजनीतिक काम कर रहे हैं, वह भारत की अखंडता और एकता के लिए जितना खतरा पैदा हो गया है ! और इसे नहीं रोका गया तो बहुत संभावना है कि भारत के कितने टुकडे होंगे यह कहना मुश्किल है !

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