20 जुलाई, 1932 – 11 अक्टूबर, 2018
मैं गंगा जी को मरते नहीं देखना चाहता हूं और गंगा को मरते देखने से पहले मैं अपने प्राणों को छोड़ देना चाहता हूं और अपने ही इस कथन को सच साबित कर गए स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद यानि प्रोफेसर जीडी अग्रवाल. गंगा सफाई, गंगा के किनारे खनन और गंगा पर बन रहे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर प्रोफेसर जीडी अग्रवाल 111 दिनों से अनशन पर थे. गुरुवार 11 अक्टूबर को हरिद्वार में उनका निधन हो गया. लेकिन इन 111 दिनों में सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.
प्रोफेसर अग्रवाल 86 साल के थे. 111 दिनों से वे लगातार हरिद्वार से आमरण अनशन पर थे. प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का अनशन खत्म कराने के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री उमा भारती उनसे मिलने गई थीं और केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी से उनकी फोन पर बात भी कराई थी. लेकिन प्रोफेसर अग्रवाल ने गंगा एक्ट लागू होने तक अनशन जारी रखने की बात कही. 10 तारीख को जब उनकी हालत बिगड़ी तब स्थानीय प्रशासन ने उन्हें जबरन ऋृषिकेश एम्स में भर्ती करवा दिया था. 11 तारीख को उनका निधन हो गया. उन्होंने अपना शरीर एम्स, ऋृषिकेश को दान कर दिया था.
प्रोफेसर अग्रवाल ने यूनिवर्सिटी ऑफ बर्कले से पीएचडी की थी. वे आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर थे और बाद में उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया था. उनका नया नाम स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद था. उन्होंने अपना पूरा जीवन गंगा की सफाई और संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया था. गंगा संरक्षण के लिए वह धर्म और विज्ञान के मेल के हिमायती थे. उनके इस आन्दोलन व कार्यों को देखते हुए उन्हें पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के लिए केन्द्र सरकार की सवोच्च संस्था सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का पहला सदस्य सचिव बनाया था.
वे इसके साथ ही नेशनल गंगा रीवर बेसिन ऑथरिटी के बोर्ड मेंबर भी रहे. लेकिन 2012 में उन्होंने इस पद से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि ऑथरिटी अपने मौलिक उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रही है. गंगा संरक्षण के लिए समर्पित प्रोफेसर अग्रवाल ने इससे पहले भी अपनी मांगों को लेकर अनशन किए थे. वे 2009-2012 के बीच चार बार अनशन पर रहे. उनकी मांग पर तब तत्कालीन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भागीरथी पर डैम बनाने के काम को रोकने का आदेश दिया था.
प्रोफेसर जी डी अग्रवाल ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से संत की दीक्षा ली थी. अविमुक्तेश्वरानंद ने सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि जैसा संत निगमानंद के साथ हुआ वैसा ही संत सानंद के साथ भी हुआ है. जो भी गंगा के बारे में बोलेगा मार दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि वे इसे प्रोफेसर अग्रवाल की हत्या मानते हैं. इसलिए एम्स प्रशासन से पत्र लिखकर मांग की है कि उनके शव का पोस्टमॉर्टम कर तथ्य जनता के सामने रखें.
गंगा की सफाई के लिए कानून बनाने को लेकर जी डी अग्रवाल ने केन्द्र सरकार को एक ड्राफ्ट भी भेजा था. उनका कहना था कि केन्द्र सरकार के कानून में गंगा की पूरी सफाई का जिम्मा सरकारी अधिकारियों को दिया गया है, लेकिन सिर्फ उनके बूते गंगा साफ नहीं हो पाएगी. वो चाहते थे कि गंगा को लेकर जो भी समिति बने उसमें जन सहभागिता हो. लेकिन कहीं न कहीं केन्द्र सरकार और उनके बीच उन मुद्दों पर सहमति नहीं बनी. अपने अनशन से पहले उन्होंने 2 बार प्रधानमंत्री को चिट्ठी भी लिखी लेकिन जवाब नहीं मिला.
गौरतलब है कि नमामी गंगे प्रोजेक्ट भाजपा सरकार ने तीन साल पहले शुरू किया था लेकिन सीवेज प्रोजेक्ट के लिए दिए गए बजट का अभी तक 3.32 फीसदी ही खर्च हो पाया है. ऐसे में जिन नेताओं ने गंगा को मां कहा था, वे गंगा को कितना स्वच्छ बना पाएंगे, कहना मुश्किल है. लेकिन मां गंगा के सच्चे पुत्र को अपनी मां की खातिर बलिदान हो जाना पड़ा. चौथी दुनिया परिवार की तरफ से प्रोफेसर जीडी अग्रवाल को विनम्र श्रद्धांजलि.