ट्रांसजेंडर हमारे समाज का हिस्सा होकर भी समाज का हिस्सा नहीं हैं. भारत में 92 फीसदी ट्रांसजेंडर से देश की आर्थिक गतिविधियों में सहयोग करने के अधिकारों को छीन लिया जाता है.
केरल की डेवलपमेंट सोसाइटी के अध्ययन में पता चला है कि ट्रांसजेंडर लोगों को अलगाव की स्थिति में अपना जीवन बिताना पड़ता है. और अब तमिलनाडु ही एक ऐसा राज्य है जहां ट्रांसजेंडर के विकास के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. वहां इन्हें शिक्षा, पहचान पत्र, सब्सिडी वाला खाना और फ्री हाउसिंग जैसी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं.
देश में चाहे बात शौचालय की हो या फिर पैन कार्ड, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस हर जगह ही केवल दो लिंग के विकल्प होते हैं- महिला और पुरुष. कहीं पर भी इस तीसरे लिंग के बारे में नहीं लिखा होता है. हालांकि अब हालात सुधर रहे हैं और कई फार्म और अन्य स्थानों पर तीसरे लिंग का विकल्प भी लिखा जाने लगा है.
बचपन से ही उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उनके जीवन में माता पिता भी सक्रिय भूमिका नहीं निभाते है. इन्हे इनसे माता-पिता के साथ रहने तक का हक छीन लिया जाता हैं. इन लोगों में केवल 2 फीसदी ही होते है जो अपने माता पिता के साथ रह पाते हैं.
सारी योग्यता होने के बावजूद भी इन्हें नौकरी नहीं दी जाती ट्रांसजेंडर लोगों को केवल भीख मांगने या फिर सेक्स का काम करने के लिए विवश किया जाता है. इनके साथ रेप होते है तो पुलिस इनकी शिकायत दर्ज करती बल्कि उनके साथ भेदभाव करती है.
इनके लिए एक आम तरह कि जिंदगी जीना बेहद मुशकिल हैं. सरकार की ओर से भी इनके लिए ऐसा कोई कानून नहीं है कि यह शादी करके अपना घर बसा सकें. केवल तमिलनाडु ही ऐसा राज्य है अब तक जहां इनके विकास के लिए कदम उठा जा रहे है.