अं:धकार से प्रकाश की ओर ले जानेवाले संस्कार निरंतर चलनेवाली दीपशिखा है, यह विचार विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज के उपाध्यक्ष श्री ओमप्रकाश त्रिपाठी ने व्यक्त किए। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज द्वारा “संस्कार का आधार:परिवार” विषय पर आयोजित आभासी गोष्ठी में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन शेख, पुणे महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। श्री त्रिपाठी ने आगे कहा कि संस्कार का आधार परिवार ही है क्योंकि परिवार के अभाव में नैतिक मूल्यों का र्हास होता है। सभी अहंकार में डूब जाते हैं और परिश्रम से सभी भागने लगते हैं। विशिष्ट अतिथि अजय कुमार पांडे, बालाघाट ने कहा कि परिवार में बच्चों के सम्मुख अच्छे व्यवहारों से पेश आना जरूरी है। बच्चे संस्कार हम से सीखते हैं। डाॅ. किरण बाला पटेल, रायपूर ने कहा कि संस्कार व्यक्ति की पहचान है। व्यक्ति का परिचय संस्कारों से ही होता है जो व्यक्ति को महान बना देता है। डाॅ. राजश्री तावरे, भूम, महाराष्ट्र ने उद्बोधन में कहा कि, परिवार का आधार माँ होती है। उच्चतम संस्कार के लिए परिवार को सर्वोत्तम माना जाता है। संस्कार आधारित परिवारों से समाज व देश का विकास होता है। श्रीमती भारती यादव ने कहा कि, जीवन की प्रथम पाठशाला परिवार होती है, जहाँ संस्कारों का बीजारोपण होता है। संस्कारों से बडी कोई भी विरासत नहीं है। व्यक्ति निर्माण में संस्कारों की अहम भूमिका होती है। डाॅ. रूपाली चौधरी, जलगाॅव, महाराष्ट्र ने कहा कि, संस्कार ही अमूल्य संपदा है, जो सुखी परिवार व सुखी जीवन का आधार है। श्रीमती मनिषा राय, रांची, झारखंड ने कहा कि
परिवार का विघटन तेजी से हो रहा है। माता-पिता आधुनिक व भौतिकवाद में लिप्त हैं। ऐसी स्थिति में बालकों पर हम कैसे संस्कार करें?
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उ. प्र. के सचिव डाॅ. गोकुलेश्वरकुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में कहा कि, संस्कार का अर्थ होता है शुद्धिकरण। भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कार बताए गए हैं। संस्कार का आरंभ माँ से होता है। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उ. प्र. के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि परिवार संस्था भारतीय संस्कृति का प्राण है। हमारे देश में परिवार जैसी पवित्र संस्था का अस्तित्व गरिमामय है। परिवार हमारे जीवन का आवश्यक व उपयोगी अनुष्ठान है। सेवा, सहयोग, समर्पण, समन्वय, संयम, सहनशीलता, संतोष आदि को अपनाकर ही परिवार संस्था उच्च कोटी का रूप धारण करती है। गोष्ठी का आरंभ डाॅ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, की सरस्वती वंदना से हुआ। डाॅ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, पटना, बिहार ने स्वागत भाषण दिया। संस्थान की छत्तीसगढ इकाई प्रभारी डाॅ. मुक्ता कौशिक, रायपुर ने गोष्ठी का सुंदर एवं सफल संचालन और संयोजन किया। तथा डाॅ. सुधा सिन्हा, पटना, बिहार ने आभार ज्ञापन किया।
संस्कार निरंतर चलनेवाली दीपशिखा है
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