26 नवम्बर 2020 हमारे देश के संविधान दिवस से लेकर शुरू हुआ राजधानी दिल्ली की चारों ओर की सीमाओं पर लाखों किसानों के चल रहे आंदोलन को सौ दिन पूरे हो रहे हैं ! सरकार के तरफसे ग्यारह बार तथाकथित वार्ता के दौर से एक कदम आगे या पीछे बात आगे नहीं बढी !
उल्टा सरकार और प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बार बार दोहरा रहे हैं कि हम एक कदम भी पीछे नहीं हटेंगे ! कह रहे हैं !

और उनके ही दलके हरियाणा के मुख्यमंत्री से लेकर गृहमंत्री जीस तरहके अनर्गल जहर उगल रहे खलिस्तानीयो से लेकर पाकिस्तानी ,नक्सली लोगों का आंदोलन कहने की गैरजिम्मेदार बाते करके आन्नदाताओ का अपमान करने का गुनाह संविधानिक पदोपर रहते हुए करने ज़ुर्रत कर रहे हैं ! और अपने मातहतों के अधिकारो का गलत इस्तेमाल कर के पुलिस-प्रशासन के तरफसे कडाके की ठण्ड में पानी की बौछारे से लेकर लाठी-गोली चलाना डॉ राम मनोहर लोहिया जी की भाषा में ऐसी सरकार को एक क्षण के लिए भी सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं है ! और स्वतंत्रता के बाद भारत की पहली गैरकांग्रसी सरकार केरल में उनके अपने ही दलके मुख्यमंत्री पट्टमथानू पिलै को इस्तीफा देने की मांग की है ! और इस कारण उनके ही दलके बटवारे की नौबत आ गई लेकिन डॉक्टर साहब टचसेमच नहीं हुए !
नरेंद्र मोदी जी गाहे बगाहे डॉ राम मनोहर लोहिया जी की बात करते रहते हैं तो उन्होंने कितना लोहिया पढा है यह वही जाने क्योंकी उनके अगाध ज्ञान के अब बहुत उदाहरण मौजूद होने के कारण उनकी विश्वसनीयता लगभग समाप्त हो चुकी है !

मुख्य बात सात साल से सत्ता में आकर विभिन्न आंदोलनकारियोंके बारेमे प्रधानमंत्रीने खुद संसद में जो जुम्लेबाजी का प्रदर्शन किया है वह उस पद की गरिमा खत्म करने के उदाहरणोंमें शामिल हो गया है और मैंने खुद हा मुझे अभिमान है कि मैं आंदोलनजीवी हूँ !

पिछले साल के तथाकथित नागरिकतासंशोधन बिल के खिलाफ आंदोलन को वेशभूषा से लेकर गोली मारो सालो को बोलने का मामला जगजाहीर है ! फिर पिछले ही साल इन्ही दिनोमे कोविद की बिमारी मे भी हिंदू-मुस्लिम की घटिया राजनीति करने का उदाहरण के लिए न्यायालयको सज्ञान लेना पडा ! लेकिन तबतक पंद्रह प्रतिशत आबादी को संशयों के घेरे में डाल दिया ! और उससे हमारे देश की एकता-अखंडता के साथ खिलवाड़ करने वाले दल को तो देश शब्द भी इस्तेमाल करने का नैतिक अधिकार नहीं है और चले दुसरो को देशद्रोही बोलने ! इतनी बेशर्मो की जमात मुझे फास्सिट जर्मनी में आजसे नब्बे साल पहले की याद आ रही है !

भारत के जनआंदोलन के इतिहास का यह सबसे बड़ा और सबसे लंबे समय का आंदोलन होने के बावजूद और भारत की आधेसेभी ज्यादा जनसंख्या जिस उद्दोग के उपर निर्भर करती है ऐसे उद्योग के बारे मे वर्तमान भारत सरकार का आडियल रवैया देख कर लगता है कि वर्तमान सत्ताधारी दल भले लोगों के मतानुसार चुनकर आई है लेकिन गत सात साल की वर्तमान सत्ताधारी दल के नियत और नीति शत-प्रतिशत लोकविरोधी रही है और सबसे ज्यादा लाभ पुंजीपती वर्ग के ही हित में लिए गए ! जैसे हिटलर की और तत्कालीन जर्मन पुंजीपती वर्ग के साथ साठगांठ करकेही पच्चीस साल का फासिस्ट राज करने का इतिहास भारत की भुमिपर आज दोहराया जा रहा है !

सबसे पहले योजना आयोग को बर्खास्त करने से लेकर नोटबंदी से लेकर हमारे शिक्षा संस्थानों में हस्तक्षेप करके बेतहाशा फिस बढानेका निर्णयों के कारण मध्यवित्त और गरीब परिवारों के बच्चे इतनी महंगी शिक्षा से मजबूर होकर बाहर हो जायेंगे और रोहित वेमुला की मृत्यु की घटना उसका सबसे बड़ा प्रमाण है !और देश की प्रमुख बैंको से लेकर रेल,रक्षा विभाग से लेकर,विमा कंपनीया पोर्ट,लगभग सभी सरकारी उद्योग और वह भी काफी उद्योग मुनाफे मे चलने के बावजूद बी एस एन एल इंडियन एयरलाइंस,तेल और खनिज संपदा प्रायवेट मास्टर्स को सौंपा गया है और अब खेती के पिछे पड गये है ! जोके देश की आधेसेभी ज्यादा जनसंख्या जिस उद्दोग के उपर निर्भर करती है उसमें तथाकथित कांटैक्ट फार्मिंग लाकर भारत के अस्सी नब्बे करोड़ जनसंख्या जिस उद्दोग के उपर निर्भर करती है उसे बेदखल करने के बाद और ज्यादा बेरोजगार बढानेका काम करने जा रहे है! वैसे तो 2014 के चुनाव प्रचार में हर साल दो करोड़ रोजगार देने की घोषणा करने वाले सरकार मे आने के बाद सात साल मे भी रोजगार देने वाले ने कितने बेरोजगार बना डाला?

उपर लिखे सभी उद्दोग और नोटबंदी जैसा आर्थिक अपराध करके सिर्फ लाइनों में खड़े होकर शेकडो लोगोकी जाने चली गई है!और अब सौ दिन पूरे हो रहे किसानों के आंदोलन मे तीन सौ के आकड़े के पास पहुंचे है !लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक रेंगनो को तैयार नहीं है ! यह सरकार है या जल्लादों की फौज ?

भारत की आजादी के बाद चौहत्तर साल के भीतर इतनी बेरहम बेशर्म और बद से बदतर सरकार मैंने अपने उनहत्तर साल के सफर में नहीं देखी ! हमने जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री के तानाशाह रवैये के खिलाफ आंदोलन किया है और जेल भी गये थे ! वह दौर एक व्यक्ति की तानाशाही का था लेकिन अभी तो 96 साल के भारतीय एडमिशन ऑफ फासिस्ट संघ परिवार की राजनीतिक ईकाई बीजेपी की कैडरों की तानाशाही सरकार के गलत नीतियों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन के लिए तैयार है ! और यह किसानों के आंदोलन उसीकी एक झलक है और मजदूरों,विद्यार्थी,दलितों के तथा आदिवासी समाज भी जल,जंगल और जमीन के सवालों पर छटपटाहट चल रही है और आये दिन महिला अत्यचार के कारण हमारे देश की आधी आबादी 8 मार्च को महिला दिवस के उपलक्ष्य में गोलबंद होकर मुनादी करने के लिए तैयार है ! असली मुद्दे छोड़ मंदिर-मस्जिद और भावनाओं को भडकानेके हथकंडो से लोग तंग आकर सडकों पर आ रही है !

इसलिए ऐसी सरकार के सामने गिडगिडानेसे कुछ नहीं होगा ! इसे जनतंत्र के माध्यम से सत्ता में आकर रहने का अधिकार नहीं है और इसे उसी जनतंत्र के माध्यम से वापस बेदखल करना ही सर्वोत्तम उपाय है ! और अब पांच राज्यों में जो चुनाव होने जा रहे वह सबसे अच्छा मौका है और भावनाओं को भडकानेके इनके हथकंडो को और धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति का ओरिजिनल फंदेबाज लोगों को उजागर करने से लेकर लोगों को उनके असली सवालों के बारे में बताकर इनके झूठ का पर्दाफाश करने केलिए सभी लोगों को एकजुट होकर इनके खिलाफ प्रचार करने के लिए गोलबंद होना चाहिए और चुनाव के माध्यम से इन्हें सबक सिखाने के लिए लग जाना चाहिए !

डॉ सुरेश खैरनार 6,मार्च,2021,नागपुर

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