भारतीय किसान आंदोलन के प्रणेता ! स्वामी सहजानंदजी सरस्वतीजी की 71 वी पुण्यतिथि पर विनम्र अभिवादन !
आज स्वामी सहजानंदजीकी 71 वी पुण्यतिथि है इस बहाने और गत सात महीने से भी ज्यादा समय हो रहा है भारत के सभी किसानों के आंदोलन के परिपेक्ष्य मे स्वामीजी की स्मृतियों को याद करना ! क्योंकि आज उनकी 71 वी पुण्यतिथि है ! वर्तमान किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में आजसे सौ साल पहले अंग्रेजी राज में स्वामी सहजानंदजीकी किसानो के आंदोलन मे की गई जद्दो-जहद से रू-ब-रू होने का इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता है ?
स्वामी सहजानंदजी का जन्म महात्माजी गाँधी जी के जन्म के बीस साल बाद हुआ था ! और वह उत्तर प्रदेश के गाजीपूर जिलेके देवा नामके गाँव में बेनी रायके घर फरवरी महीने की 22 तारीख को महाशिवरात्रि के दिन सन् 1889 के दिन इस बालक का जन्म हुआ था ! अपने पांच भाईयों मे यह सबसे छोटे थे और इनका नाम नवरंग रखा गया था ! और नवरंग चार साल होने के पहले ही मा का देहांत हो गया था ! तो उनके लालन पालन मौसी जोकि चाचीभी थी ! ने किया है !
बेनी राय का एकमात्र काम किसानी का था ! लेकिन बालक नवरंग जन्म से ही प्रतिभाशाली होने के कारण देवा नाम के गाँव में स्कूल नहीं होने के कारण उसे दो मील दूर जलालाबाद गाँव में एक अपर प्रायमरी स्कूल मे दाखिला कीया था सन् 1899 मे!अपर प्रायमरी स्कूल की परीक्षाओं को नवरंग ने छ साल कि पढाई तीन साल मेही कर ली ! और 20 मार्क मे से एक कम उन्नीस मार्क से पास होकर 1902 मे तेरहवें साल कि उम्र में गाजीपूर के तहसीली स्कूल से 1904 मे मिडल क्लास में संपूर्ण संयुक्त प्रांत मे सातवें नंबर पर पास हुए !
और बचपन से ही नवरंग की ब्राह्मणवादी धर्म मे और ब्राह्मणत्व मे पूरी आस्था थी ! और इस कारण सनातन धर्म के और आर्य समाज के प्रभाव में आते हुए देखकर घर के लोगों ने नवरंग की शादी कर दी ! पर 1906 मे उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई ! इधर नवरंग का मन सन्यासी बनने के लिए बेताब हो रहा था ! उधर घर वालों को उनके सन्यासी होने के डर के कारण दुसरे विवाह की पूर्व पत्नी के बहन के साथ करने की तैयारी देखकर नवरंग फरवरी 1907 के महाशिवरात्रि के दिन सन्यास ग्रहण करने हेतु काशी के अपारनाथ मठ में नवरंग ने सन्यासी का विधिवत व्रत धारण करने के बाद नवरंग राय अपने सर के ऊपर के बालों को मुंडवाकर गेरूआ वस्र धारण कर अब वह सहजानंद नाम से पहचाने जाने लगे!
1909 साल मे स्वामीजी बीस साल के हो गये थे ! जब भूमिहार समाज को पता चला कि अपने ही समाज के एक स्वामी सहजानंदजी सरस्वती नाम के साधु हो गये हैं ! तो 1914 मे भूमिहार ब्राम्हण समाज ने बलिया मे उन्हे बोलने के लिए प्रथम बार कहा ! और वह प्रथम विश्व युद्ध के शुरू होने वाले समय की बात है ! कि और स्वामी सहजानंदजीने भूमिहार ब्राम्हण समाज की पहचान के लिए भूमिहार ब्राम्हण परिचय जो बाद में ब्रह्मर्षि वंश विस्तार के नाम से विशाल ग्रंथ बन गया !
बलिया की भूमिहार ब्राम्हण महासभा 1914 की स्वामी सहजानंदजीकी जीवन की पहली महत्वपूर्ण घटना थी ! और पहली बार उनके अन्तस्थल पर राजनीतिक चेतना को जाग्रत करने के लिए निमित्त मात्र सिद्ध हुई ! और 1915 साल आते-आते ही उन्हें सही अर्थों में धार्मिक,सामाजिक और राजनीतिक चेतना की जाग्रत होने के कारण समस्तीपुर मे फिरोजशाह मेहता जी की मौत की खबर सुनकर वह संसार में देशभक्ति नाम की भी कोई चीज है ! और 1916 के लखनऊ कांग्रेस के हिंदू-मुस्लिम समझौता को पढने के बाद फिर लोकमान्य तिलक की मृत्यु 1अगस्त 1920 और जालियांवाला बाग के हत्याकांड से उन्हें जबरदस्त धक्का लगा और हंटर कमिशन की रिपोर्ट यानी 1920 तक संपूर्ण रूप से अपने आप को सामाजिक और राजनीतिक काम करने के लिए तैयार हो गए थे !
स्वामी सहजानंदजी प्रथम बार 1920 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन मे शामिल हुए ! और लौट कर बक्सर चले गए और वही से अपने राजनीतिक काम की शुरुआत की ! 1921 मे वह जेल गए 1923 को जेल से बाहर आने के बाद 1924 मे कर्मकलाप नाम से 1200 पृष्ठ की किताब पूरी करनेके पस्चात 1926 को कौंसिल चुनाव में भूमिहार,सामन्तों और जमिनदारोकी तथा मुठ्ठी भर राजाओं-महाराजाओं के सिवाय भुमिहिन किसान-मजदूरों की वास्तविकता को समझने में कामयाब हुए!और अपने आप को सही मायनों में भारत के किसानों के आंदोलन को समर्पित कर दिया था ! और 1927 को पस्चिमी पटना किसान सभा की स्थापना चार मार्च 1928 को विधिवत घोषणा कर के एक पैसा मेंबर फीस रखकर संगठन के काम की शुरुआत की है ! और 17 नवम्बर 1929 को प्रदेश स्तर का सम्मेलन करके काश्तकारी बिल के षडयंत्र की पोल खोलने का काम सम्मेलन के सभापति के हैसियत से किया !
जिसमें प्रदेश कांग्रेस के बडे से बडे नेता मौजूद थे और उस सम्मेलन में काश्तकारी बिल के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया था और बिहार प्रदेश किसान सभा का पहला चुनाव हुआ और सभापति स्वामी सहजानंदजी को चुना गया था ! और मंत्री श्री कृष्ण सिंह तथा सदस्योमे बाबु राजेन्द्र प्रसाद,बाबु ब्रज किशोर प्रसाद,बाबु राम दयाल सिंह तथा बाबु अनुग्रह नारायण सिंह जैसे बडे नेता शामिल थे !
लाहौर कांग्रेस ने 1929 मे पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित करने के बाद 26 जनवरी 1930 के दिन पहले-पहल पूर्ण स्वतंत्रता-दिवस मनाना तय हुआ ! इस तरह किसान सभा ने मिटिंग करके दो फैसले लिए एक कौंसिल मे पेश काश्तकारी बिल के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया और उसे वापस लेने कि मांग की ! और दुसरा प्रस्ताव देश के वर्तमान हालात को देखते हुए किसान सभा का कार्य स्थगित कर दिया ! ताकि देश की आजादी की लड़ाई में किसान भाग ले सके ! इन प्रस्तावों के बाद सरकार ने भी कहा कि अगर किसान सभा का और कांग्रेस पार्टी का इस बिल को विरोध को देखते हुए हमने काश्तकारी बिल के वापस लेने का फैसला किया है !
देखिये कितनी बडी विडंबना है कि विदेशी अंग्रेजी सरकार को भी आंदोलन या उसके खिलाफ कांग्रेस पार्टी की मांगों को लेकर लचीलापन दिखता है ! जो चंपारण के किसानों के आंदोलन से लेकर काश्तकारी बिल के वापस लेने का फैसला किया है ! और आज स्वतंत्रता के बाद भारत की जनता द्वारा चुने हुए वर्तमान सरकार की किसानों के आंदोलन को गरियाने से लेकर हजारों किसानों की मृत्यु,और हजारों लोगों को विभिन्न आरोप लगाकर जेलो मे बंद कर के, अब पागलपन की हद पार करते हुए अगर किसी ने कुछ लिखा या बोलने वाले बीस-बाईस साल के लडके-लडकी को तथाकथित देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर रहे हैं ! गनीमत है कि भारत के न्याय व्यवस्था मे और काफी कुछ बचा है और देर से ही सही लेकिन अभी हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने तीन विद्यार्थियों को जिनमे दो लडकियों का भी समावेश था उन्हें तथाकथित देशद्रोह के कानून के अंतर्गत जेल मे ठुसना गलत है इसलिए जमानत पर रिहा कर दिया है !
और यह दिल्ली पुलिस और भारत सरकार के मुहपर उनके गलत निर्णयों के खिलाफ झन्नाटेदार तमाचा है ! जेएनयू से लेकर जामिया, अलिगढ तथा कमधीक प्रमाण मे देश के सभी शिक्षा संस्थानोंमें आंदोलन कारी विद्यार्थी योके साथ गत सात साल से जबसे केंद्र में बीजेपी की सरकार सत्ता में आई है तब से लगातार विद्यार्थीयो के साथ अन्याय-अत्याचार जारी है और रोहित वेमुला और नजीब जैसे प्रतिभाशाली विद्यार्थी योंकि जाने गई है और हजारों युवक प्रतिदिन इन फर्जी आरोप में गिरफ्तार करने का सिलसिला जारी है !
और प्रधानमंत्री और उनके मंत्री बेशर्मी की हद पार करते हुए बार-बार बोल रहे हैं कि हम बिल वापस नहीं लेंगे ! अंग्रेजी सत्ता तो जोर-जबर्दस्ती से लादी हुई विदेशी सरकार थी ! उसे तक जनता के आंदोलन की परवाह थी ! और यह हमारे अपने ही तथाकथित स्वदेशी ! और आत्मनिर्भर भारत की रट लगाने वाली लोगों द्वारा चुनी हुए वर्तमान सरकार की किसानों के आंदोलन के साथ गत तीन महीनों से भी ज्यादा समय से चल रहे आंदोलन की मांगों को मानने से इनकार करने वाले लोगों को क्या देशभक्त बोला जा सकता है क्या ?
आज स्वामीजी की 71 वी पुण्यतिथि का दिन है ! और वह 26 जून 1950 मुजफ्फरपुर के पास रक्तचाप से चल बसे ! कुल मिलाकर इकसठ साल की जीवन यात्रा में शुरू के, सन्यासी और शिक्षा का समय निकालकर लगभग आधा जीवन सिर्फ और सिर्फ देश के कृषि संकट से जूझने वाले स्वामी सहजानंदजी सरस्वती नाम के साधु की आज 71 वी पुण्यतिथि पर वर्तमान किसान आंदोलन की मांगों को पूरा करना ही सही अभिवादन हो सकता है ! मुझे माफ करेंगे की मै उनके पुण्यतिथि के दो दिन पस्चात आपातकाल की छियालिस साल पहले घोषित आपातकाल के और वर्तमान सात साल से भी ज्यादा समय हो रहा है ! वर्तमान भारत के अघोषित आपातकाल के उपलक्ष्य में एक साक्षात्कार में उलझा होने के कारण यह पोस्ट दो दिन देरी से दे रहा हूँ !