उमाभारती और प्रभात झा ने लगाई दिल्ली दौड़, दिखने लगी सक्रियता

लंबे समय से कामचलाऊ लॉट साहबों के कंधों पर चल रही राजभवन की व्यवस्था को स्थायी जिम्मेदार मिलने की उम्मीदें जागने लगी हैं। प्रदेश की तरफ उठी केन्द्र सरकार की नजरों को भांपते हुए इस राज-गद्दी पर हक जताने वालों ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। अपनी मंशा पूरी करने के लिए इनकी दौड़ दिल्ली दरबार के लिए भी लगने लगी है।

प्रदेश में भाजपा के सिपाहसालारों के रूप में पहचान रखने वाले प्रभात झा और उमाभारती लंबे समय से सियासत के हाशिये पर हैं। मप्र से विदा होने के बाद दिल्ली की भीड़ में खुद का वजूद खत्म होता देख दोनों नेताओं ने पुन: प्रदेश की तरफ रुख किया है। इस दौरान उमाभारती ने प्रदेश में नशाबंदी की आवाज बुलंद कर अपनी उपयोगी और वजूद को दोबारा तराशने की मेहनत शुरू कर दी है। वे लगातार चिट्ठी-पत्री, बयानों, सोशल मीडिया की एक्टिविटीज के माध्यम से चर्चाओं में हैं।

इन हालात ने प्रदेश के खत्म हो चुकी एक कहानी का नया अध्याय फिर से लोगों की नजर के सामने लहराने लगा है। ऐसे ही कुछ हालात प्रदेश में भाजपा की बागडोर संभाल चुके प्रभात झा के भी हैं। वे भी अचानक प्रदेश की सियासी हलचलों में दिखाई देने लगे हैं। ट्वीटर के जरिये आध्यात्मिक ज्ञान देते हुए झा अपनी मौजूदगी दर्शाने लगे हैं। बताया जा रहा है कि यह सक्रियता उस कवायद से जुड़ी है, जो केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश में राज्यपाल की नियुक्ति को लेकर शुरू की गई है। सूत्रों का कहना है कि देश के कई राजभवन कामचलाऊ राज्यपालों के भरोसे हैं। इनमें मप्र भी शामिल है। केन्द्र सरकार जल्द ही राज्यपालों की नियुक्ति करने जा रही है।

उमा-झा दोनों से शिव की तल्खियां

अपने बड़बोलेपन में प्रदेश की गद्दी छोड़कर गईं पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कभी मुधर संबंध नहीं रहे हैं। उनके प्रदेश से रुख्सत होने के बाद हालात इस तरह रच दिए गए कि दोबारा उनकी इस तरफ वापसी न हो सके। यही वजह है कि उमा को अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की बजाए दूसरे स्थान से चुनाव लडऩा पड़ा था। ऐसे ही हालात पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा के साथ भी रहे हैं। उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए कई मामले ऐसे सामने आए कि सरकार और संगठन के टकराव के हालात बनते दिखाई दिए। प्रदेश से विदा होने के बाद शिवराज ने ऐसा कोई मौका नहीं आने दिया कि झा दोबारा प्रदेश में आकर सक्रिय दिखाई दें।

राज-काज हो सकता है मुश्किल

उमाभारती और प्रभात झा के प्रयासों के नतीजे में किसी को प्रदेश का राजभवन मिल जाता है तो इस स्थिति का असर सीएम हाउस और राजभवन की दूरियां बढऩे के रूप में आ सकता है। गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से प्रभार के रूप में काम कर रहीं आनंदी बेन पटेल ने अपनी मौजूदगी को सरकार के पक्ष में रखा है। संभवत: पहली बार यह देखने में आया था कि कोई राज्यपाल सार्वजनिक कार्यक्रमों और सरकार के पक्ष में सक्रिय दिखाई दिया था। उमाभारती या प्रभात झा के प्रदेश में राज्यपाल के रूप में आने के बाद इस तरह के समन्वय की उम्मीद कम ही होगी, ऐसे अनुमान लगाए जाने लगे हैं।

 

 

 

 

Adv from Sponsors