साथियों नमस्कार, अभि – अभी फेसबुक पर हमारे युवा मित्र रणधीर गौतम की तिब्बत युथ कांग्रेस की मोटरसाइकिल रैली के कार्यक्रम की रिपोर्ट देखने के बाद, मुझे याद आयी की इस यूथ कांग्रेस का उद्घाटन मेरे द्वारा हुआ है. ( शायद 1994 ! ) तिब्बत मुक्ति का मुख्य कार्यक्रम के लिए मै कलकत्ता से एक सर्वसाधारण डेलिगेट की हैसियत से शामिल होने हेतु गया था. और उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सतपाल मलिक थे. लेकिन वह किसी कारण वश नहीं आए, तो मुझे बगैर पुछे कार्यक्रम के मुख्य आयोजक डॉ. आनंद कुमार ने माइक पर से घोषित कर दिया कि ” इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. सुरेश खैरनारजीको अध्यक्ष के आसन पर विराजमान होने की विनती कर रहा हूँ. और यह सुनते ही मै बहुत ही संकोच और कुछ भयभीत हो कर मंच पर अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठते हुए, बार- बार मन में डॉक्टर आनंद कुमार के इस व्यवहार से खिज हो रही थी, कि कहां फसा दिया ? क्यों कि वह मेरे जीवन का तिब्बत की आजादी को लेकर पहला कार्यक्रम था. और उसमें शामिल होने का मेरा उद्देश्य था, कि तिब्बत की समस्या क्या है ? इसे समझने का मौका मिलेगा. लेकिन सिधा उस कार्यक्रम का अध्यक्ष यह मेरे लिए आश्चर्यमिश्रित धक्का था ! और मन में चिंता सताने लगी कि कार्यक्रम समाप्ति के बाद मैं क्या बोलुंगा ?


लेकिन दिनभर चले कार्यक्रम में आदरणीय दलाई लामाजी मंच पर मेरे दाहिनी तरफवाली कुर्सी पर बैठने के बाद कुछ ही समय में, सामने वाले टेबल पर झुककर अपने दोनो हाथों पर सिर रखकर बैठे रहे. और तिब्बत मुक्ति के विभिन्न प्रतिनिधि बार – बार एक ही बात दोहरा रहे थे कि “हमारा चिन के साथ कोई बैर नहीं है ! हम तो प्रार्थना करते हुए हमारे मातृभूमि की आजादी चाहते हैं ! ” यह सुनते हुए मेरे अध्यक्षीय भाषण की तैयारी होने की शुरुआत हो गई. “मुझे बहुत हैरानी हो रही थी कि यह कैसे लोग हैं ? कि अपने देश की आज़ादी सिर्फ बौद्धमंदिर की घंटा बजाते हुए, प्रार्थना करते हुए, तिब्बत की मुक्ति की बात कर रहे हैं ? हजार वर्ष हो जाएंगे लेकिन चीन जैसा कम्युनिस्ट तानाशाही वाले देश से अपनी मातृभूमि को सिर्फ प्रर्थना करते हुए आजाद नही करवा सकते. पूरे विश्व में एक भी उदाहरण नहीं हैं कि किसी देश को कब्जे में किए हुए लोगों ने लोगों की प्रार्थना की वजह से देश का कब्जा छोड दिया हो . यह बोलने वाले लोगों में मुझे भय नजर आ रहा था . इस वजह से हर वक्ता सिर्फ इसी बात को घुमा-फिराकर बोले जा रहा था ! और इसी वजह से मेरा अध्यक्षीय भाषण भी तैयार हो रहा था . जो मैंने इस तरह से दिया था.


” मुझे यमुना पार के तिब्बत शरणार्थियों के कैंप में ( शायद अशोक विहार ) ठहराया गया था. और उस कैंप में रात के भोजन के बाद टहलते हुए मैंने देखा कि तिब्बती शरणार्थी मार्केट के एरिया में तिब्बती युवा और युवतियों को कमरपर जिंस की पैंट चढाए हुए, और हथो में बडे-बडे बिअर के मग्ज लेकर मस्ती में वेस्टर्न पॉप म्युजिक के साथ डांस किए जा रहे थे ! और दुसरे दिन तिब्बत की मुक्ति के संमेलन में उनके माता-पिता जो शायद तिब्बत से दलाई लामा के साथ भारत में आ गए, और यहां आने के बाद जो भी बच्चों का जन्म हुआ है, उन्हें तो सिर्फ अपने माता-पिता से तिब्बत के बारे में जानकारी मिलने के अलावा, और कोई अनुभव नहीं होने की वजह से वह अपने उम्र के हिसाब से भारत में मौजमस्ती करते हुए रह रहे हैं ! शायद यह संख्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी. और उनके माता-पिता उम्र के बढ़ने की वजह से इस दुनिया से विदा हो जाएंगे. जो तिब्बत का नॉस्टालजिया माता – पिता को होने की वजह से वह तिब्बत के बारे में इतना तो भी बोल रहे हैं. लेकिन भारत में आने के बाद जन्मे हुए बच्चों को उतना तिब्बत का आकर्षण नहीं रहने की संभावना है. इसलिए मुझे तिब्बत की स्वाधीनता का मामला ठंडा पडने की संभावना अधिक लग रही है. और सबसे महत्वपूर्ण बात घंटा बजाकर प्रार्थना व्यक्तिगत जीवन की अध्यात्मिक साधना अवश्य कर सकते हो. लेकिन देश को आजाद करने के लिए विश्व भर में आजाद हुए देशों में किसी भी देश की आजादी घंटों को बजाने और प्रर्थना करने से नहीं मिली है .


मुझे नहीं मालूम कि सचमुच मेरे पोडियम के लाइन में बैठे हुए दलाई लामाजी क्या कर रहे थे ? मै तो अध्यक्षीय भाषण दे रहा था. जो खत्म होने के बाद डॉ. आनंद कुमार ने कहा कि “दलाई लामाजी अभी- अभीयूरोप अमेरिका की यात्रा से लौटे हैं, और काफी निराश होने की वजह से वह इस कार्यक्रम में अपना सिर टेबल पर दोनों हाथों पर रखकर झुककर बैठे थे. लेकिन जैसे ही आपका अध्यक्षीय संबोधन शुरू हुआ और आपने भारत में रह रहे तिब्बती शरणार्थियों की मानसिकता पर कटाक्ष करना शुरू किया तो वह सिधे होकर, खुषी से तालियां बजा रहे थे ! और इसिलिये उन्होंने मुझे कहा कि इन्हें कल होटल अशोका में लेकर आईए ( होटल अशोका के प्रेसिडेंट सूट में ठहरें हुए थे ) तो दुसरे दिन मुझे डॉक्टर आनंद कुमार और सुधिंद्र भदौरिया अशोका होटल लेकर गए, और दलाई लामाजी ने बहुत ही गर्मजोशी के साथ मेरा स्वागत किया. और कहा कि कल आपको सुनने के बाद मुझे तिब्बत की मुक्ति की आशा की किरण नजर आ रही है ! और मुझे एक रेशमी अंगवस्त्र देकर मेरे दोनो गालों को थप – थपाते हुए मुस्करा रहे थे. और धर्मशाला में आने का निमंत्रण दिया. वह अंगवस्त्र आज भी मेरे कपडों की अलमारी में मैंने सम्हाल रखा हुआ है !
उसी दिन दोपहर से यूथ कांग्रेस के उद्घाटन समारोह का मुख्य अतिथि के रूप में मुझे उस कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला. यह सब कुछ मेरी मेमोरी बैंक से गायब हुआ मजमून आज के फेसबुक पर तिब्बत युवाकांग्रेस के मोटरसाइकल रैली की फोटो देख कर याद आया ! लगभग तीस वर्षों के बाद तिब्बत यूथ कांग्रेस की इस खबर को देखने के बाद मुझे यह सब याद आया

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