rssआज की तारीख में कोई भी चाहे छोटा हो, बड़ा हो, लोकप्रिय हो, अलोकप्रिय हो, मेनस्ट्रीम राजनीतिज्ञ जितने भी हैं, वे सब अप्रासंगिक हो गए हैं और अनफॉरच्यूनेट पार्ट इसमें ये है कि पहले भी ऐसी स्थितियां यहां पर उभरी हैं, चाहे 2008 हो, 2010 या 2013 हो, उस समय भी थोड़े समय के लिए मेनस्ट्रीम का स्पेस कम हो जाता था, लेकिन समय के साथ वो रिवाइव भी होती थी. अलबत्ता एक फर्क होता था, इन स्थितियों में भी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस हमेशा रिलीवेंट रहती थी. ऐसी स्थिति में वो एक पॉजीटिव रोल अदा कर पाते थे. अनफॉरच्यूनेटली इस बार हुर्रियत कॉन्फ्रेंस भी इररेलीवेंट हो गई, जो एक बेहतर संकेत नहीं है. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को इस आंदोलन में एक बफर की भूमिका निभानी चाहिए. अब उसी का नतीजा है कि इस वक्त ये कहा जा रहा है कि आज के दौर में ये एक नेताविहीन आंदोलन है. कश्मीर मसले को हल करना हमारे हाथ में नहीं है. अलबत्ता, हम इसमें सहायता जरूर करेंगे. हम हिंदुस्तान और पाकिस्तान की हुकूमतों पर एक दबाव बनाएंगे कि वे जंग की जगह इस मसले का हल बातचीत के जरिए निकालें.

श्राइन बोर्ड का जो मसला हुआ, जो इकोनॉमिक सेंक्शन्स कहिए या इकोनॉमिक ब्लॉकेड, इससे कश्मीर की साइकी को एक बार फिर धक्का लगा. हमारी लाइफलाइन बस यही एक टनल है, यही एक रास्ता है. ब्लॉकेड लगा दिया, बच्चों का दूध यहां बंद हो गया, जीवन रक्षक दवाएं यहां बंद कर दीं, हमारा राशन वगैरह जो भी कुछ है, बंद हो गया. पहले जब मिलिटेंसी शुरू हुई थी, तब अनजाने में लोग कहते थे कि रावलपिंडी चलो, ट्रेनिंग लेने के लिए. अब राजनीतिक रूप से जागरूक लोग कहते हैं मुजफ्फराबाद चलो. अगर जम्मू और दिल्ली के लोग इकोनॉमिक ब्लॉकेड करेंगे तो हमारे पास दूसरा रास्ता है, जो मुजफ्फराबाद जाता है.

भाजपा की विचारधारा के खिलाफ होने के बाद भी मुफ्ती साहब ने अलायंस कर लिया. आज का ये अनरेस्ट जो आप देख रहे हैं, उसकी बुनियाद अगर पड़ी है तो इस अलायंस की वजह से. लोगों ने इस अलायंस को कबूल नहीं किया. रिलीजियस एफिनिटी की वजह से लोगों ने इसे कबूल नहीं किया. कश्मीरियत का जो एसेंस है, वो सेक्युलर है. कश्मीरी कभी फैनेटिक नहीं रहा है. कश्मीरी कभी कम्युनल नहीं रहा है. यह वह कश्मीर है, जिसके बारे में महात्मा गांधी ने कहा था कि एक रे ऑफ होप है, क्योंकि जम्मू में 1947 में ढाई लाख मुसलमान मारे गए और कश्मीर में एक भी नॉन मुस्लिम नहीं मरा. उसके बाद 1952 में, जब श्यामाप्रसाद मुखर्जी आए, पांच लाख मुसलमानों को पुुश आउट किया गया, जिसमें करीब डेढ़-दो लाख लोग उस दिन मारे गए. अब हम आर्टिकल 370 को प्रोटेक्ट करने की बात करते हैं, वे उसको एरोगेट करने की बात करते हैं. यहां पर लोग कहते हैं बीजेपी का एजेंडा हिंदुत्व का है. अगर मुझसे पूछा जाए, हिंदुत्व आपके जीने का एक तरीका है. जो बीजेपी और आरएसएस ने यहां पर शुरू किया है, वह हिंदुत्व नहीं है. उनका ये कहना कि ईसाइयों के इतने मुल्क हो गए, मुस्लिमों के इतने मुल्क हैं, बौद्ध के इतने मुल्क हैं, हिंदुओं का सिर्फ एक मुल्क है और उसमें भी मुसलमान रह रहे हैं और मुसलमानों की आबादी इतनी बढ़ रही है. यह खतरनाक है.

आप कश्मीरी से क्या उम्मीद करते हैं? एक तरफ से आप उसको इतना पीट रहे हैं, इतना मार रहे हैं.  हर मुसलमान से आप आतंकवादी की तरह व्यवहार कर रहे हैं. पिछले दो-तीन साल में जहां-जहां कश्मीरी छात्र पढ़ते थे, उनका क्या हाल किया गया? आपका ऐसा ही व्यवहार रहा तो कश्मीर को बचाए रखना बहुत मुश्किल है. वाजपेयी जी कश्मीर के लिए बहुत सम्माननीय नेता थे. याद रखिए, तीन हमला करने के बाद भी अकबर नहीं जीत पाया कश्मीरी से. कितना दबाएंगे आप. अगर मोदी जी को ये ख्याल है कि वो क्रश कर रहे हैं कश्मीरियों को, इकोनॉमिकली सप्रेस कर रहे हैं कश्मीरियों को, तो ये उनकी गलतफहमी है. अब कश्मीरी भी सीख गया है कि इस स्थिति में कैसे जिंदा रहना है? आपके मोहल्ले में एक हफ्ता क्या, तीन दिन कर्फ्यू लग जाए, आप लोगों के फाके लगेंगे. अब कश्मीरी फाके से नहीं मरता. आपको ये मानना होगा कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है. जम्मू-कश्मीर के लोगों के पास दोहरी नागरिकता है. पहले कश्मीरी और तब इंडियन. हमारा एक संविधान है. कितने अन्य राज्यों के पास दो झंडे हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर के पास है.

श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कहा था एक निशान, एक प्रधान, एक विधान. क्यों उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया. अगर जम्मू-कश्मीर विवादित नहीं है तो फिर क्यों दो संविधान, दो झंडे हैं. आप यहां जमीन नहीं खरीद सकते, क्योंकि आप यहां के स्थायी निवासी नहीं हैं. दिल्ली के लॉ मेकर्स से पूछिए कि क्यों 69 साल बाद भी ये सब जारी है? अगर बीजेपी में इतनी ताकत है तो इसे खत्म करे. संवैधानिक और कानूनी दोनों तरीकों से भारत सरकार के साथ जो संबंध है, जो लिंक है, वह आर्टिकल 370 है. जिस दिन आर्टिकल 370 समाप्त हुआ, कश्मीर उस दिन खुद ब खुद आजाद हो जाएगा. क्यों नहीं किसी एक ने भी ऐसा रास्ता निकाला कि आर्टिकल 370 आप पार्लियामेंट से समाप्त करा सके. पाकिस्तान को आप इतनी बड़ी-बड़ी धमकियां देते हैं, चीन को क्यों नहीं देते. क्योंकि चीन से डरते हैं आप? चीन के पास आपका इतना हिस्सा है, आपने आज तक कभी चीन को चैलेंज किया? हर चीज को आप पाकिस्तान के साथ जोड़ रहे हैं. ठीक है, पाकिस्तान ही कर रहा है, मान लेते हैं. तो फिर पाकिस्तान कंट्रोल कर रहा है या आप कंट्रोल कर रहे हैं.

आप हमेशा कश्मीर की बात करते हैं, कभी तो कश्मीरियों के बारे में भी बात करिए. कश्मीरी के बारे में बात नहीं करेंगे. फिर भी हम कहते हैं कि हम लोग बेशर्म हैं या तो बेगैरत हैं. इसके बावजूद हम इस राष्ट्रीय झंडे को उठाए हुए हैं. भारतीय लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं. अभी तक हिंदुस्तान में कितने प्रदर्शन हुए. अभी की सरकार के दौरान जाट आंदोलन हुआ. कितनी पैलेट गन चली वहां. सारी अर्थव्यवस्था को तोड़कर उन्होंने रख दिया. आपके यहां पटेल आंदोलन हुआ कितने पैलेट गन और लाशें गिरा दीं आपने वहां. अभी बेंगलुरू में  देख लीजिए कोई बुलेट चला, कोई एक आदमी मारा गया. हिंदुस्तान की बाउंड्रीज पर देख लीजिए. उत्तर पूर्व, नागा, बोडो, झारखंड, मणिपुर और  छत्तीसगढ़ कहां नहीं अलगाववादी हैं? जब आप उनके साथ बिना किसी शर्त के बात करते हैं, गैर मुल्कों में जाकर बात करते हैं, तो आप कश्मीरी से क्यों नहीं बात कर सकते? उनको कहते हैं कि संवैधानिक ढांचे के तहत, वो संवैधानिक ढांचे को ही चुनौती दे रहे हैं. आपके कहने का मतलब है कि तुम संवैधानिक ढांचे के तहत बात नहीं करता चाहते.

आप कहते हैं हम तो उनको कहते हैं भारतीय संवैधानिक ढांचे के तहत करिए, वो तो बात ही नहीं कर रहे हैं. हम गिलानी साहब के घर जाकर चार घंटे इंतजार किए, लेकिन उन्होंने दरवाजे नहीं खोले. हम क्यों दरवाजा खोलें. आप अपने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का भी पिछला कार्य देख लीजिए. गिलानी साहब को आपके लिए दरवाजा क्यों खोलना चाहिए? वह आपसे साधारण सा सवाल पूछ रहे हैं. आप पिछले तीन सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का कार्य देख लीजिए. क्या नतीजा निकला? एक ने भारत सरकार से पांच सिफारिश की, तो वो कूड़ेदान में डाल दी गई. हिंदुस्तान के लोगों को यह नहीं पता है कि कभी कोई सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर गया और उसने कुछ सिफारिश की थी. दूसरे ने यह सुझाव दिया कि इंटर लोकेटर भेज दीजिए. उसके बाद दिलीप पडगांवकर, राधा कुमार और बाकी सभी लोग यहां एड़ियां रगड़-रगड़कर लोगों के पास पहुंचे और बात की. एक तो वापस चला गया, जिससे किसी ने बात नहीं की.

राजीव गांधी ने कहा था कि लेस दैन आजादी, एनिथिंग. उसके बाद वाजपेयी जी ने इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की बात की. इन दो महीनों में तो आपने कोई इंसानियत नाम की चीज दिखाई नहीं. कश्मीरियत को आपने अपनी हैवानियत से पैरों तले रौंद दिया. जम्हूरियत आप कहते हैं तो फिर आप लोगों से पूछिए कि किस जम्हूरियत की बात आप कर रहे हैं जो आपको सूट करे या जम्हूरियत का कोई सही मतलब भी है. आप पहले इंसानियत दिखाओ. इंसानियत का आपने दिवाला निकाल दिया कश्मीर में. मैं अपने आप को कहता हूं कि मैं मेनस्ट्रीम राजनीतिज्ञ हूं, लेकिन ऐसा ही रहा तो मुझे नहीं पता कि कितनी देर मैं मेनस्ट्रीम का रहूंगा. ये है स्थिति.

मैंने मुफ्ती साहब से कहा था कि आप धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बनाइए, तो उन्होंने कहा कि नंबर कहां है. मैंने कहा कि ग्रैंड अलाइंस, नेशनल कांफे्रंस, पीडीपी, कांग्रेस के साथ मिल कर बनाइए. उन्होंने कहा कि हमारा जो एजेंडा है, इंडो-पाक के रिलेशन को आगे चलाने का है. अगर हम कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं, तो सरकार भाजपा की है हमें इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा. इंडो-पाक रिलेशन्स जहां है, वहीं रुका रहेगा और हालात खराब होंगे. लेकिन हमें कुछ हासिल हुआ, बल्कि हालत और खराब हो गई.

कश्मीर में सैलाब के 14 महीने बाद भी क्या हाल रहा? उत्तराखंड में 24 घंटे में सब कुछ हो सकता है. नेपाल में भूकंप आया तो आपके सभी लोग और आपकी पूरी सरकार वहां पहुंच गई और वो कह रहे थे कि हमें नहीं चाहिए आपकी मदद. तो कश्मीर के साथ सौतेला व्यवहार क्यों? आपकी इंश्योरेंस कंपनियों ने यहां अपनी दुकानदारी शुरू कर दी. भारत सरकार ने कभी ये, तो कभी वो बहाना बनाया. मुफ्ती साहब ने जब मोदी जी से निवेदन किया कि साहब, भारत को बड़े भाई की तरह पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाकर अपने संबंध ठीक करने चाहिए. उसके बाद मोदी ने मुफ्ती साहब से सार्वजनिक रूप से कह दिया कि मुझे कश्मीर पर किसी की सलाह की जरूरत नहीं है. मुफ्ती साहब ने इस बात से अपमानित महसूस किया और सात नवंबर को यह कहा और 7 जनवरी को दो महीने बाद उनकी मौत हो गई. इसके बाद उसी मोदी ने, जब गुजरात की घटना हुई और वाजपेयी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मैंने मुख्यमंत्री से कहा कि उनको अपना राजधर्म निभाना चाहिए, ऐसा अपमानित किया मुफ्ती साहब को. मोदी को याद रखना चाहिए था कि सार्वजनिक रूप से जो प्रेस के सामने अपमानित होता है, तो वो अंदर ही अंदर मर जाता है. मुफ्ती साहब अपमानित हुए थे.

सेल्फ स्टाइल, हाइपर नेशलिस्ट चैनल जो चल रहे हैं, वे सब पाकिस्तान की ही मदद कर रहे हैं. अर्णव गोस्वामी इज डूइंग वेरी गुड सर्विस टू द पाकिस्तान. पता नहीं वह पाकिस्तानी एजेंट है या हाइपर नेशनलिस्ट है. न्यूज एक्स, जी, आज तक, टाइम्स नाऊ सब. हिंदुस्तान के बाहर एक इंडिया की ये क्रेडिबिलटी थी कि यह एक सेक्युलर स्टेट है. आप उस क्रेडिबिलटी के साथ खेल रहे हैं. मेरी नजर में ये सारा जिम्नास्टिक खेल आरएसएस का ही सेट किया हुआ है. उनका डिजाइन है राज्य को तीन हिस्सों में बांटना. इसके लिए वे खेल खेल रहे हैं. हर जगह आरएसएस ने अपनी शाखाएं खोलनी शुरू कर दी है. सीधे-साधे लोगों को पकड़ा है, उनको पैसे दे रहे हैं और शाखाएं खोल रहे हैं. आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि बड़गाम जिले में किसी गांव में वहां केवल एक अकेला घर है और भाजपा के साथ जुड़ गया है, उसको जाने कितना पैसा दिया गया है. उसको कहा गया, तुम भाजपा का नहीं, भारत का झंडा लगाओ अपने छत पर. दिल्ली बेस्ड न्यूज चैनल भेजे गए और कोई कश्मीरी चैनल नहीं. उसने कहा कि हम हिन्दुस्तानी हैं, हम अकेले हैं, हमारा सामाजिक बहिष्कार किया गया, हमारे घर कोई आता नहीं, लेकिन हम हिंदुस्तानी थे, हम हिंदुस्तानी हैं, हम हिंदुस्तानी रहेंगे और हिंदुस्तानी मरेंगे. अभी उसके घर के चारों तरफ सीआरपीएफ के लोग उसको प्रोटेक्शन दे रहे हैं. इतनी छोटी-छोटी चीजें कर भारतीय दर्शकों को बेवकूफ बना रहे हैं. इतना झूठ बोल रहे हैं. इसीलिए हम जैसे लोगों के लिए सियासत इबादत है. मेनस्ट्रीम के साथ रहकर, गद्दार का नाम अपने माथे पर लेकर, इंडियन एजेंट का नाम लेकर, फिर भी ये सुलूक हो तो फिर या तो हम बहुत ही बेशर्म हैं या बहुत ही बेगैरत.

(लेखक श्रीनगर से पीडीपी के सांसद थे, जिन्होंने मौजूदा कश्मीर समस्या के मद्देनजर लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. दिल्ली से आए तीन सदस्यीय पत्रकारों के दल से श्री कर्रा ने कश्मीर समस्या के सिलसिले में बातचीत की, जिसे उन्हीं के शब्दों में यहां प्रकाशित किया जा रहा है.)

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