चम्पारण की राजनीति की चर्चा में यह बात भी कही जा रही है कि पश्चिम चम्पारण संसदीय क्षेत्र से 2019 में राजद-कांग्रेस महागठबंधन से राजन तिवारी प्रत्याशी हो सकते हैं. ऐसे में उनसे मुकाबले के लिए एनडीए प्रत्याशी केरूप में सतीश चन्द्र दुबे ही ज्यादा सटीक होंगे. इसलिए वाल्मीकिनगर सीट जदयू को एनडीए की ओर से मिला तो सतीश चन्द्र दुबे पश्चिम चम्पारण से भाजपा के प्रत्याशी होंगे. सतीश चन्द्र दुबे भी चम्पारण में दबंग छवि के नेता के रूप में जाने जाते हैं. पूरे चम्पारण में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी बहुत है. राजद -कांग्रेस महागठबंधन की बात की जाए तो यादव-मुस्लिम वोट बैंक एक मजबूत राजनीतिक समीकरण के रूप में है.
सत्याग्रह आन्दोलन के डेढ़ सौ वर्ष पूरे होने पर यहां की भूमि पर अनेक सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर कार्यक्रम किए गए. इन कार्यक्रमों की खूब चर्चा भी हुई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सत्याग्रह के डेढ़ सौवीं वर्षगांठ के समापन समारोह में मोतिहारी आए. खूब चर्चा हुई, लेकिन प्रधानमंत्री के चम्पारण से लौटते ही यहां के राजनीतिक गलियारों में यह बात चर्चा में है कि चम्पारण के तीनों भाजपा सांसद अपना -अपना क्षेत्र बदल सकते हैं.
2008 में हुए परिसीमन के बाद चम्पारण के तीनों लोकसभा क्षेत्रों का नाम भी बदल गया. मोतिहारी के स्थान पर पूर्वी चम्पारण, बेतिया के बदले पश्चिम चम्पारण तथा बगहा के बदले वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र हो गया. फिलहाल तीनों सीटों पर भाजपा का कब्जा है. पूर्वी चम्पारण से भाजपा के राधामोहन सिंह, पश्चिमी चम्पारण से डॉ. संजय जयसवाल तथा वाल्मीकिनगर से सतीश चन्द्र दुबे सांसद हैं. 2014 में मोदी लहर में चम्पारण के तमाम मुद्दे दरकिनार हो गए थे. तीन सांसद देने के बाद भी केंद्र सरकार की ओर से चम्पारण के गन्ना किसानों के लिए तो क्या, अन्य कोई भी बड़ा काम नहीं किया गया.
जबकि 2014 की चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी ने चम्पारण की समस्या, विशेषकर गन्ना किसानों व बंद पड़ी चीनी मिलों को चालू कराने का आश्वासन दिया था. चार साल बीत जाने के बाद भी चम्पारण के लोगों के लिए केन्द्र सरकार ने कोई विशेष काम नहीं किया है. पूर्वी चम्पारण के सांसद राधामोहन सिंह तो केन्द्र में कृषि मंत्री हैं, फिर भी बहुत कुछ नहीं हो पा रहा है. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इन सांसदों को जनता के सीधे सवालों का सामना करना पड़ेगा. अब स्थिति ऐसी हो गई है कि तीनों सांसद भी अपने-अपने क्षेत्र बदलने की फिराक में हैं. यदि 2019 के लोकसभा चुनाव में तीनों सांसदों को ही भाजपा प्रत्याशी बनाती है तो इससे कुछ परेशानी भाजपा को भी होगी.
चम्पारण के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि एनडीए में शामिल जदयू के लिए भाजपा चम्पारण के तीन में से कोई एक सीट छोड़ सकती है. इसमें पश्चिम चम्पारण तथा वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र में से कोई एक हो सकता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम चम्पारण से जदयू से प्रसिद्ध फिल्मकार प्रकाश झा प्रत्याशी थे. 260978 वोट लाकर वे दूसरे स्थान पर थे. भाजपा के डॉ. संजय जायसवाल 371232 वोट लाकर विजयी हुए थे. 2009 में भी इन्ही दोनों में पश्चिम चम्पारण सीट पर टक्कर हुई थी. तब प्रकाश झा लोजपा से प्रत्याशी थे. तब प्रकाश झा को 151438 मत मिले थे, जबकि भाजपा के डॉ. संजय जायसवाल को 198781 वोट मिला था.
जदयू की राजनीति में यदि प्रकाश झा की मजबूत पकड़ हुई तो पश्चिम चम्पारण की सीट को जदयू अपने लिए भाजपा से मांग सकता है. दूसरी ओर चर्चा है कि यदि पश्चिम चम्पारण सीट को भाजपा ने नहीं छोड़ा तो वाल्मीकिनगर संसदीय सीट जदयू को मिल सकती है. यहां से अभी भाजपा के सतीश चन्द्र दुबे सांसद हैं. तर्क है कि चम्पारण की राजनीति में जदयू के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद वैजनाथ महतो की अच्छी पकड़ है, विशेषकर पिछड़ी जाति की राजनीति में. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यदि बैजनाथ महतो प्रभावित कर सके तो यह सीट जदयू को मिल सकती है. फिर पश्चिम चम्पारण की सीट भाजपा के जिम्मे रह जाएगी. तब केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह को पूर्वी चम्पारण संसदीय क्षेत्र से ही चुनाव लड़ना होगा.
वाल्मीकिनगर के भाजपा सांसद सतीश चन्द्र दुबे को पश्चिम चम्पारण क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी बनाया जा सकता है. पश्चिम चम्पारण के सांसद डॉ. संजय जायसवाल का भाजपा से टिकट कट सकता है, क्योंकि इन पर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने के साथ-साथ पार्टी स्तर पर भी कई आरोप हैं. इन्हें विधान परिषद में भेजा जा सकता है. ऐसे पूर्वी चम्पारण के भाजपा सांसद केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं, इसकी चर्चा चम्पारण में खूब हो रही है. लोगों का मानना है कि वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र में आनेवाले विधानसभा क्षेत्रों वाल्मीकिनगर, रामनगर, बगहा, लौरिया में राजपूत मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है. इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव में वे अपने को सुरक्षित जीत के लिए वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र को पसंद कर रहे हैं.
हालांकि मोतिहारी-पश्चिमी चम्पारण संसदीय क्षेत्र से राधामोहन सिंह पांच बार जीत चुके हैं. 1989, 1996, 1999, 2009 तथा 2014 में भाजपा के टिकट पर राधामोहन सांसद बन चुके हैं. लेकिन आज की परिस्थिति में राधामोहन सिह वाल्मीकिनगर को अपना सुरक्षित ठिकाना मान रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सतीश चन्द्र दुबे ने वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र से 364,013 वोट लाकर जीत हासिल की थी. दूसरे स्थान पर कांग्रेस के पूर्णमासी राम थे. इन्हें 246218 वोट मिले थे, जबकि जदयू के बैजनाथ महतो को मात्र 81612 वोट मिले थे. 2009 में जब जदयू एनडीए का हिस्सा था, तब वाल्मीकिनगर से वैजनाथ महतो जदयू के टिकट पर 277696 मत लाकर विजयी हुए थे. दूसरे स्थान पर निर्दलीय प्रत्याशी फखरुद्दीन थे, जिन्हें 94021 मत मिले थे.
चम्पारण की राजनीति की चर्चा में यह बात भी कही जा रही है कि पश्चिम चम्पारण संसदीय क्षेत्र से 2019 में राजद-कांग्रेस महागठबंधन से राजन तिवारी प्रत्याशी हो सकते हैं. ऐसे में उनसे मुकाबले के लिए एनडीए प्रत्याशी केरूप में सतीश चन्द्र दुबे ही ज्यादा सटीक होंगे. इसलिए वाल्मीकिनगर सीट जदयू को एनडीए की ओर से मिला तो सतीश चन्द्र दुबे पश्चिम चम्पारण से भाजपा के प्रत्याशी होंगे. सतीश चन्द्र दुबे भी चम्पारण में दबंग छवि के नेता के रूप में जाने जाते हैं. पूरे चम्पारण में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी बहुत है. राजद -कांग्रेस महागठबंधन की बात की जाए तो यादव-मुस्लिम वोट बैंक एक मजबूत राजनीतिक समीकरण के रूप में है.
भाजपा-जदयू-रालोसपा के एनडीए के वोट बैंक में पिछड़ी व अत्यंत पिछड़ी जाति के अलावा दलित- महादलित वोट को भी अपने लिए जोड़ा जा रहा है. चम्पारण की राजनीति में कभी दस्युओं का भी बोलबाला था. लेकिन आज सभी दस्यु जेल में बंद हैं तथा उनका गिरोह भी छिन्न-भिन्न हो गया है. अब चम्पारण के मतदाताओं पर किसी तरह का दबाव नहीं है. ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में कौन दल और प्रत्याशी चम्पारण के वोटरों को अपनी ओर खींचता है, यह तो समय बताएगा. फिलहाल चम्पारण के तीनों संसदीय क्षेत्र से विजयी हुए भाजपा सांसदों का ठिकाना 2019 के चुनाव में बदल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.