दुनिया भर में उपलब्ध थोरियम का एक चौथाई भंडार भारत के पास है. नार्वे के अलावा किसी भी यूरोपियन देश में थोरियम का भंडार नहीं है. ईयू देशों को इस बात का डर है कि इससे यूरेनियम पर आधारित परमाणु रिएक्टरों पर उनकी दादागीरी खत्म हो जाएगी. यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन के सहयोग से 1999 में थोरियम रिएक्टर पर काम शुरू हुआ था.
जैसे ही रिएक्टर शुरू होने की संभावना दिखी, ईयू ने इस परियोजना की फंडिंग पर रोक लगा दी. थोरियम पर आधारित रिएक्टर्स के लिए ईयू और अमेरिका जैसे देशों का वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग जरूरी है. लेकिन उन्हें डर है कि इससे यूरेनियम पर उनका एकाधिकार खत्म हो जाएगा और उनके धंधे में मंदी आ जाएगी. ईयू और विकसित देशों को इस बात का भी डर है कि ऐसा होने पर भारत प्रमुख थोरियम सप्लायर देश बन जाएगा.
यही कारण है कि ये देश भारत की मदद के लिए तैयार नहीं हैं. परमाणु वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर दुनिया को बचाना है तो हमें थोरियम आधारित रिएक्टर्स पर जोर देना होगा. इसमें प्रति इकाई यूरेनियम से 250 गुना ज्यादा ऊर्जा होती है और इससे निकला कचरा कहीं कम रेडियोधर्मी होता है.