‘योग दिवस’ पर भारत सरकार द्वारा छेड़े गए कोविड 19 टीकाकरण महाभियान के तहत भारत भर में रिकाॅर्ड 84 लाख से ज्यादा टीके एक दिन में लगाए जाने की खबर इस दृष्टि से भी उत्साहजनक है क्योंकि वैक्सीन को लेकर जो भ्रम और गुमराह करने वाली सूचनाएं फैलाई गईं, उसकी धुंध धीरे-धीरे ही सही छंटने लगी है। मध्यप्रदेश में तो लक्ष्य से डेढ़ गुनाज्यादा यानी 16 लाख से अधिक टीके एक दिन में लगाने के लिए शिवराज सरकार के संकल्प, प्रशासन की मेहनत और जनता की जागरूकता की सराहना की जानी चाहिए। यह मानते हुए भी कि टीकाकरण के जो आंकड़े दिए गए हैं, वो प्रामाणिक हैं, लेकिन मंजिल अभी दूर है। क्योंकि देश की एक बड़ी आबादी ( खासकर ग्रामीण इलाकों में) आज भी वैक्सीन को लेकर तमाम आंशकाएं पाले हुए है और कोरोना से बचने का कोई दूसरा रामबाण उपाय न होने की जानकारी होते हुए भी अपनी अंधी दुनिया में ही जीना चाहती है।
टीकाकरण की दृष्टि से योग दिवस का यह ‘सुयोग’, उत्साह और सरकारी प्रतिबद्धता कितनी निरंतर रहती है, यह देखना होगा। क्योंकि देश में टीकाकरण की रफ्तार अभी भी जरूरत के मुकाबले बहुत कम है। अधिकृत जानकारी के मुताबिक अब तक पूरे देश में करीब 28 करोड़ से ज्यादा लोगों का टीकाकरण बीते 5 माह में हो चुका है। जबकि देश में 18 साल से ज्यादा की आबादी लगभग 98 करोड़ है ( जनसंख्या घड़ी के मुताबिक भारत की कल तक की आबादी लगभग 1 अरब 40 करोड़ थी।) यानी 70 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन अभी होना है। इसमें कितना वक्त लगेगा, समझा जा सकता है।
बावजूद तमाम दावों के हकीकत यह है कि भारत में कोविड टीकाकरण अभियान हिचकोले खाते आगे बढ़ रहा है। इसका एक बड़ा कारण खुद सरकार की अस्पष्ट नीति भी रही है। लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन कोविड टीका खरीदने, बांटने और लगाने के मामले में वह शुरू से असमंजस में दिखाई पड़ी। वरना देश में टीकाकरण की रफ्ता र पहले ही तेज हो सकती थी। लेकिन देर आयद, दुरूस्त आयद। लक्ष्यप्राप्ति की दृष्टि से अभी भी सबसे बड़ी चुनौती समय पर सभी राज्यों को जरूरत के मुताबिक टीके उपलब्ध कराना है। उम्मीद की जाए कि जब मोदी सरकार ने सभी को टीका फ्री लगवाने का संकल्प ले लिया है तो टीका प्रबंधन बेहतर ढंग से होगा।
मप्र जैसे राज्य में ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीके लगाने के लिए सरकार ने अधिकाधिक वैक्सीन सेंटर खोले, यह अच्छी और व्यावहारिक पहल है। इससे ज्यादातर सेंटरों पर भीड़ भाड़ की स्थिति नहीं बनी। सबसे बड़ी राहत लोगों को आॅन लाइन रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता से मुक्ति के कारण मिली है। ऑन द स्पाॅट रजिस्ट्रेशन व्यवस्था में लोग तनाव मुक्त होकर टीकाकरण केन्द्र पर पहुंचे हैं और मात्र आधार कार्ड दिखाकर टीका लगवा रहे हैं। दरअसल यह व्यवस्था शुरू में ही की जाती तो टीकाकरण को लेकर इतनी अव्यवस्था नहीं होती। हर चीज को आॅन लाइन करने की डिजीटल ज़िद भारत जैसे देश को नहीं पोसा सकती। यह बात हमारे नीति नियंताअों को समझनी चाहिए।
योग दिवस पर टीकाकरण टारगेट पूरा करने कई जगह प्रलोभन भी दिए गए। लेकिन यह स्थायी व्यवस्था नहीं हो सकती। स्थायी जरूरत लोगों में कोविड टीके के प्रति विश्वास जगाने की है, वरना इस टीके के खिलाफ न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में एक वर्ग अभियान छेड़े हुए है। यह जानते हुए भी फिलहाल वैक्सीन के अलावा ऐसा कोई ऐसा वैकल्पिक उपाय हमारे पास नहीं है, जो कोरोना संक्रमण को नियंत्रित कर सके। यह सही है कि हमारे देश में भी कुछ लोगों को वैक्सीन के दोनो डोज लगने के बाद भी कोरोना हुआ। कतिपय मामलों में मौत भी हुई। लेकिन उनकी संख्या तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। यह नहीं भूलना चाहिए कि कोविड वैक्सीन भी सिर्फ एक टीका है, अमृत की खुराक नहीं है। वह कोविड से काफी हद तक बचाव का उपाय है, अमरता की गारंटी नहीं है। और यह गारंटी तो यमराज भी नहीं दे सकते।
हालांकि ‘हर आपदा में अवसर’ ढूंढने वालों ने कोविड टीकाकरण में भी अपने हाथ धोने से गुरेज नहीं किया। मुबंई की एक सोसाइटी में तो बड़ी तादाद में फर्जी टीके ही ठोक दिए गए। ‘फ्री वैक्सीनेशन’ के नाम पर ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन में भी बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी शुरू हो गई थी, जिस पर अब कुछ लगाम लगी है। सबसे बड़ी अफवाह टीकाविरोधी वर्ग ने फ्रांस के उस नोबेल पुरस्कार विजेता और वायरोलाजिस्ट वैज्ञानिक ल्यूक मोंटेनियर के वीडियो क्लिप को चलाकर फैलाई, जिसमें ल्यूक को यह कहते दिखाया गया कि वैक्सीन लगाने वाले सभी लोग दो साल में भगवान को प्यारे हो जाएंगे। सोशल मीडिया में इसका अर्थ यह निकाला गया कि कोविड वैक्सीन तारणहार नहीं बल्कि जगह मारणहार है। इससे भारत सहित पूरी दुनिया में सनसनी फैली और नकारात्मक सोच वालों को अपने ‘अच्छे दिन’ आने का अहसास होने लगा।
हैरानी की बात यह रही कि खुद अवैज्ञानिकता में जीने वाले लोग उस वैज्ञानिक के दावे का हवाला बार-बार दे रहे थे। इस वीडियो क्लिप के फैक्ट चैक में खुलासा हुआ कि ल्यूक ने चेतावनी के बतौर सिर्फ इतना कहा था कि वैक्सीनेशन से मानव शरीर में एंटीबाॅडीज तेजी बनेंगी, जिससे कोविड के नए वेरिएंट्स तेजी से बन सकते हैं (यानी जो ज्यादा घातक हो सकते हैं)। लेकिन इसमे वैक्सीन लगाने वाले सभी लोग दो साल में परलोक सिधार जाएंगे, यह बात मनमाने ढंग से जोड़ी गई, जो पूरी दुनिया में चली। जबकि दूसरे अन्य वैज्ञानिकों ने बताया कि यूं तो एंटीबाॅडीज वायरस को रोकने के लिए होती हैं, लेकिन अपवादस्वरूप ये एंटीबाॅडीज कभी कभी वायरस के फैलाव में भी मदद करने लगती हैं। लेकिन यह कोई आम बात नहीं है।
कुछेक लोगों ने तो यहां तक कहा कि वायरोलाॅजिस्ट ल्यूक पर अब उमर हावी होने लगी है। ल्यूक 88 साल के हैं।
अगर भारत की बात करें तो वैक्सीन को लेकर हमारे यहां धार्मिक अफवाहें भी फैलाई गईं। यह भी कहा गया कि वैक्सीन पुरूषो को नपुंसक बना देगी। वैक्सीन लगाना रोजा या उपवास तोड़ना है, जो कि धार्मिक दृष्टि से पाप है। अभी केरल में नया मामला सामने आया है। वहां तिरूचि में व्हाट्स एप पर मैसेज चले कि वैक्सीन के दोनो डोज लगवाए बगैर आप मांसाहार नहीं कर सकते। इसलिए बहुत से नाॅन वेज प्रेमियों ने कैम्पों में जाकर वैक्सीन लगाने से परहेज किया। जबकि हकीकत में वैक्सीन लगवाने से पहले भरा पेट होना जरूरी है, क्योंकि खाली पेट रिएक्शन हो सकता है। आप क्या खाते हैं, यह बात गौण है। सोशल मीडिया की बलिहारी कि वो लोगो तक जल्दी पहुंचता है और लोग भी गंडे-ताबीज की तरह उस पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं। ऐसे गुमराह करने वाले मैसेज चलाने का मकसद लोगो के मन में शक पैदा करना होता है। जिसमें वो कामयाब रहे। लेकिन विडंबना यह है कि ऐसे भ्रामक संदेशों को सच मानने वाले शक्की लोगों के दिमाग में उन्हें फारवर्ड किए गए संदेश की सत्यता और प्रामाणिकता पर कोई संदेह पैदा नहीं होता।
अब टीकाकरण ही बार-बार रूप और तेवर बदलते कोविड 19 वायरस का रामबाण उपाय है या नहीं, इस पर बहस हो सकती है, लेकिन अभी तो वही सुरक्षा कवच है, यह बात पूरी दुनिया में कही जा रही है। क्योंकि अपनी घातकता की दृष्टि से कोरोना वायरस सबसे बड़ा धर्म, नस्ल और जाति निरपेक्ष जीव है। वो किसी को नहीं बख्शनता। लिहाजा पूरी दुनिया को उससे बचना है तो टीकाकरण की रफ्ताार कई गुना बढ़ाना होगी। अधिकृत आंकड़ो के मुताबिक विश्व की आबादी अभी 7 अरब 86 करोड़ है ( 2050 में यह 9 अरब 70 करोड़ होने का अनुमान है, तब क्या होगा, इसकी कल्पना भर की जा सकती है)। लेकिन दुनिया के 180 देशो में अभी तक 2 अरब 62 करोड़ यानी लगभग एक चौथाई आबादी को ही टीका लग पाया है। इसमें भी ज्यादातर अमीर और कुछ विकासशील देश हैं, जिन्होंने पैसे के दम पर अधिकांश डोज पहले ही खरीद लिए थे। बाकी सत्तर फीसदी गरीब देशों की तो टीका खरीदने की भी औकात नहीं है। कुछ अमीर देश उन्हें दान के रूप में कुछ डोज मुहैया करा रहे हैं। लेकिन ये देश कुल मिलाकर भगवान भरोसे ही कोविड से लड़ रहे हैं। जब तक सभी देशो के 80 फीसदी से ज्यादा लोगों को टीका नहीं लग जाता, कोरोना की लहरें बारम्बार लौटती रहेंगी।