साहेब आज बड़े गुस्से में थे…! सिंघम बन बैठे। वह बोले, जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए, या यूं कहिए कि उनको शोभा नहीं देता…! अपन अब एक्शन मोड में है… अन्ने, बन्ने, फन्ने किसी की नई चलेगी, और सुन लो गुंडों या तो प्रदेश छोड़कर चले जाओ वर्ना दस फीट जमीन में गाड़ दूंगा…! सादगी, मर्म, अपनेपन और सबके लिए फिक्र रखने की मिसाल कहे जाने वाले किसी शख्स से इस तरह की भाषा की न कल्पना की जा सकती और न ही इसकी जरूरत ही है…! बुरा करने वालों के लिए पिछले कुछ महीनों से प्रदेश में जो कुछ हो रहा है, जो आगे तक जाने की तरफ बढ़ रहा है और जिससे लोगों में खौफ के हालात हैं, के बाद जुबानी जमा खर्च की जरूरत बाकी नहीं रहती…! कम से कम साहेब की शख्सियत पर तो ये मैच नहीं करता…!
बदजुबानियों के लिए मशहूर हो चुकीं मोहतरमा ने आज फिर अपना रंग दिखाया…! हर आमद पर एक विवाद पीछे छोड़कर जाने की उनकी आदत ने अपनी ही पार्टी के लिए कड़वे हालात बना दिए…! कुर्सी का मोह और कुर्सी का अगली कतार में होने की लालच ने बदतमीजी के हालात तक पहुंचाया और बिना प्रोग्राम में शामिल हुए ही चल पड़ीं…! हर अदालती पेशी के वक्त अस्पताल की शरण लेने के उनके नखरे और अपने लोगों के बीच आकर उनकी गुर्राहट उन्हें अपने ही लोगों से दूर, बहुत दूर करती जा रही है।
संस्कृति के नाम पर सभ्यता को भूल जाने वाला एक मंच राजधानी भोपाल में आकार ले चुका है…! इसके त्यौहार पर सजावट क्यों और उसके पर्व पर अंधेरे के हालात क्यों…! अपना वजूद दिखाने के लिए कहने से नहीं चूक रहे हैं कि अब वे तय करेंगे कि कौन, कब, क्या करे…! भलमनसाहत उनकी है, जो इतनी बदतमीजी सुनकर भी खामोश हैं और धमकाने वाले के खिलाफ कोई कार्यवाही के बजाए उन्होंने आइंदा में ध्यान रखने की बात कह डाली है…! हो सकता है, समस्या का अगला एपिसोड तब लिखा जाए, जब दूसरा बड़ा त्यौहार आए और संस्कृति रक्षकों की मंशानुसार काम होता दिखाई न दे…!
बड़ा दिन हुआ खोटा!
पुराना शहर। इससे लगा एक बड़ा बाजार। इस बाजार के कारोबारियों की छुट्टी के दिन से बड़ी उम्मीदें। इसी दिन किसी सियासी आयोजन का हो जाना। समारोह के लिए रास्तों की सीलबंदी और ग्राहकों का बाजार की परिधि से छिटककर निकल जाना। ये बड़ा दिन और कारोबार की तबाही दुकानदारों को कई दिनों तक याद रहने वाली है। वैसे मुश्किल हालात से नए शहर के वह बाशिंदे भी गुजरे हैं, जिन्हें सियासी आयोजनों ने घंटों जाम में कैद किए रखे है।
खान अशु