ये फ़िक्र बनेगी बदलाव की बयार….!

बरकत से आज़ादी आंदोलन तक पर खामोश रहनुमा

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ख़ान आशू

धैर्य, संयम, सहनशीलता, लक्ष्य साधने की क्षमता का ही नतीजा कहा जाएगा, देर से ही सही आज जायज़ मुकाम की जाजम उनके पैरों के नीचे बिछी हुई है….!

विरोध, विपक्ष सुर, बात बेबात से संगत की रंगत बिगाड़ने की कोशिशें भी हुई….! तालाबंदी के दिन में जुटने, समूह न बनाने की पाबन्दी के दौर में जमा होने पर ऐतराज उठे, ठंडे भी हो गए… वजह साफ है, धीमे से किया गया विरोध अक्सर बे असर ही हुआ है…!

मंथन से बेहतरी निकलने की कामना ने फिर नई तहरीर खड़ी करने के द्वार खोले हैं, उम्मीद की जाना चाहिए, परिणाम भी सोच के मुताबिक ही आयेंगे….! मोहल्ला और ग्रामीण शिक्षा का नया मिशन बेशक लॉक डॉउन के बोझिल दौर को हल्कापन देने वाला साबित होगा…! पढ़ाई से पिछड़ चुके उन बच्चों के लिए एक नया अवतार साबित होगा, जिनके गरीब अभिभावक महंगी ऑनलाइन तालीम देने में समर्थ और अक्षम हैं….! घुमंतू जातियों के यायवरों के लिए की जाने वाली चिंता से भी समाज की एक नई तस्वीर उभरने की उम्मीद की जाना चाहिए….! बैठक से निकले एक सुर ने उन बेसुरों के मुख पर भी तालाबंदी करने की दलील खड़ी कर दी है….! नफरतों की आगोश अपनी सियासत को गर्म करते आए लोगों के मुंह पर तमाचे की तरह गिरे वह शब्द इस बैठक की जान के रूप याद रखे जाना चाहिए, जिनमें नफरत की बजाए मुहब्बत, विकास, विस्तार, समन्वय, सामंजस्य, मिलनसरिता को ऊपर रखते हुए सबकी फ़िक्र, सबकी कद्र की बात कही गई….!

पुछल्ला
बरकत से आज़ादी आंदोलन तक पर खामोश रहनुमा….!
शहर ए भोपाल का उन्हें याद करना लाज़मी था, क्योंकि उस बरकत उल्लाह भोपाली ने शहर के तालीमी आंदोलन के लिए बड़ी कोशिशें की थीं। कई तंजीमें और बरकत उल्लाह के नाम की रोटी खाने वालों ने उन्हें भुला दिया। भूलचुक करने वालों में वह भी पीछे नहीं रहे, जो अशफ़ाक उल्ला, हमीद खां जैसे आजादी के मतवालों को याद रखने का दम भरा करते थे। Corona कहर का डर कहें, या आलाली का नमूना, लेकिन दूसरों के लिए लड़ते हुए जान देने वालों की रूह खुद के हश्र पर आज जरूर आसमां में बैठे आंसू बहा रहे होंगे।

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