पारदर्शिता की पुरजोर हिमायत करने वाली भारतीय जनता पार्टी चंदे का ब्यौरा देने में कोई पारदर्शिता नहीं बरत रही है, जबकि पूरा देश जानता है कि चंदे में काला धन ही खपता है. भाजपा काले धन को प्रमुख मसला बनाकर केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई है. चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को 30 नवंबर तक चंदे का ब्यौरा सौंपने का निर्देश दिया था, लेकिन अंतिम समय सीमा बीते हुए भी दस दिन हो गए, भाजपा ने अब तक (ख़बर लिखे जाने तक) विवरण प्रस्तुत नहीं किया था. इस तरह चुनाव आयोग के निर्देशों का समय पर पालन न करने वाले 29 राजनीतिक दलों में भाजपा भी शामिल हो गई है. इनमें भाजपा अकेली राष्ट्रीय पार्टी है. भाजपा के अलावा टीआरएस, जेडी-यू, जेडी-एस, बीजेडी, वाईएसआरसीपी, आईएनएलडी, एलजेपी, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने भी आयोग को अपने चंदे के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए 20 हज़ार रुपये से अधिक का चंदा मिलने पर उसका विवरण प्रस्तुत करने की अनिवार्यता तय कर रखी है. इस वर्ष का ब्यौरा देने की निर्धारित तारीख 30 नवंबर थी. पिछले साल (2012-13) भारतीय जनता पार्टी को आधिकारिक तौर पर 2941 स्रोतों के जरिये 83.19 करोड़ रुपये का चंदा मिला था. दूसरी तरफ़ भाजपा और कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर हुए खर्चे का ब्यौरा भी चुनाव आयोग को नहीं दिया है.
पिछले वित्तीय वर्ष में कांग्रेस को व्यक्तियों और कंपनियों से 66 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा मिला था, जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) को क़रीब 14 करोड़ रुपये का. जनप्रतिनिधित्व क़ानून 1951 की धारा 29-सी के तहत पार्टियों को अपनी आय की जानकारी देनी होती है और इस आधार पर उन्हें आयकर से छूट मिलती है. चुनाव आयोग इस ब्यौरे को आयकर विभाग के सुपुर्द कर देता है. अभी यह उजागर नहीं हुआ है कि जिन दलों ने निर्धारित तारीख तक चुनाव आयोग को ब्यौरा नहीं पेश किया, उन्होंने आयकर विभाग से इस अवधि की राहत प्राप्त की या नहीं. बहरहाल, वित्तीय वर्ष 2013-14 में कांग्रेस को कुल 66,47,22,228 रुपये का चंदा मिला. तृणमूल कांग्रेस को 1.40 करोड़ रुपये, अन्ना द्रमुक को 1.03 करोड़ रुपये और द्रमुक को 1.04 करोड़ रुपये चंदे के रूप में मिले.
आयोग के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले ब्यौरे भी कम रोचक-रोमांचक नहीं हैं. बहुजन समाज पार्टी अकेली ऐसी पार्टी है, जिसने कहा है कि उसे एक पैसा भी चंदा नहीं मिला. बसपा ने 13 सितंबर को ही अपना पक्ष पेश कर दिया और हाथ झाड़ लिया. शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने 15, भाकपा ने 44, माकपा ने 70 और कांग्रेस ने 712 स्रोतों से चंदा लेने की बात स्वीकार की. चंदे का ब्यौरा देने के बावजूद कांग्रेस ने चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित प्रपत्र पर ब्यौरा भरने के निर्देश का पालन नहीं किया. कांग्रेस ने चंदे के स्रोतों के पैन नंबर भी आयोग को नहीं दिए, जिससे चंदा देने वाले दाता का पता चल सके. कांग्रेस को 182 स्रोतों से मिला चंदा सीधे बैंक में जमा हुआ, लेकिन आयोग में दिए गए विवरण में बैंक, शाखा और चंदा देने वाले का ब्यौरा शामिल नहीं है. इसी तरह 64 स्रोतों से कांग्रेस को सीधे नकद चंदा मिला, लेकिन उन मामलों में भी चंदा देने वाले का ब्यौरा कांग्रेस ने छिपा लिया. उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत आयोग का यह अधिकार और कर्तव्य दोनों है कि वह देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए. चुनाव के दरम्यान काले धन के इस्तेमाल पर चुनाव आयोग गहरी चिंता जता चुका है, इसके बावजूद राजनीतिक दल इस तरफ़ ध्यान नहीं दे रहे हैं. मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य निर्वाचन आयुक्त मामले (एआईआर-1978, एससी 851) में सुप्रीम कोर्ट ने ़फैसला देकर क़ानूनी अड़चन भी समाप्त कर दी है. लिहाजा चंदे और चुनाव खर्च का ब्यौरा देना अब क़ानूनी बाध्यता है, लेकिन राजनीतिक दल क़ानून को ताख पर रखने में भी कोई हिचक नहीं रख रहे.
भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ कई अन्य राजनीतिक दलों ने लोकसभा और विभिन्न विधानसभा चुनावों में हुए खर्च का ब्यौरा भी चुनाव आयोग को नहीं दिया. चुनाव आयोग इन दलों को लगातार नोटिस दे रहा है, लेकिन उस पर कोई भी पार्टी कान नहीं दे रही है. इनमें भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के साथ-साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल, तेलंगाना राष्ट्र समिति, यूनाइटेड डेमोके्रटिक पार्टी-मेघालय, नेशनल पीपुल्स पार्टी- मणिपुर, झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, असम गण परिषद, ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस-पुडुचेरी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी-पश्चिम बंगाल और हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) वगैरह शामिल हैं. यानी तीन राष्ट्रीय और 46 क्षेत्रीय पार्टियों ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हुए खर्च का ब्यौरा नहीं दिया है. सुप्रीम कोर्ट का ़फैसला है कि विधानसभा चुनाव के 75 दिनों और लोकसभा चुनाव के 90 दिनों के भीतर चुनाव खर्च का विवरण चुनाव आयोग में दाखिल कर दिया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और चुनाव आयोग की तमाम नोटिसों पर भी राजनीतिक दल कोई ध्यान नहीं दे रहे. विडंबना यह है कि कई राजनीतिक दलों ने तो 2013 में हुए चुनावों के खर्च का भी ब्यौरा पेश नहीं किया. इसमें भी भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी शामिल है. भाजपा ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, कर्नाटक, राजस्थान और दिल्ली में 2013 में हुए विधानसभा चुनावों के खर्च का विवरण अब तक चुनाव आयोग को नहीं दिया. भाजपा के अलावा इस सूची में भाकपा, एआईएडीएमके, आईयूएमएल, जेडी (एस), एनपीपी, राजद, यूडीपी और जेएनपी जैसी पार्टियां भी शामिल हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़े खुद बताते हैं कि देश के व्यवसायिक प्रतिष्ठानों की ओर से केवल पांच सालों में छह बड़े राजनीतिक दलों यथा भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा, माकपा और राकांपा को 4,400 करोड़ रुपये से ज़्यादा का चंदा दिया गया. कोई भी पार्टी चंदा देने वाले प्रतिष्ठानों का विवरण देने के लिए तैयार नहीं है. अभी केंद्र की सत्ता में आई भाजपा के पहले दो दशकों तक केंद्र में सरकार चलाने वाली कांग्रेस को कारोबारियों ने 2008 करोड़ रुपये का चंदा दिया था. भाजपा को 852 करोड़ और किसानों-मज़दूरों की रहनुमा पार्टी माकपा को 335 करोड़ रुपये चंदे के रूप में मिले थे. माकपा को हर साल औसतन 67 करोड़ रुपये का चंदा मिला. उत्तर प्रदेश में जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, तो बसपा को 1226 करोड़ रुपये का चंदा मिला था. उस समय समाजवादी पार्टी को 200 करोड़ रुपये का चंदा मिला था. लेकिन, उत्तर प्रदेश में अब समाजवादी पार्टी की सरकार है, तो उसे मिलने वाले चंदे के बारे में सोचा जा सकता है. नियमानुसार साल में 20 हज़ार रुपये से अधिक चंदा देने वालों के नामों का ब्यौरा चुनाव आयोग को देना पार्टियों के लिए ज़रूरी है, लेकिन पार्टियों ने इस प्रावधान के तहत चंदे की जो सूची सार्वजनिक की है, वह उन्हें हुई कुल आमदनी का बहुत मामूली हिस्सा है. उदाहरण के लिए 2009-10 और 2010-11 में भाजपा ने घोषित दानदाताओं की जो रकम बताई, वह उसकी आमदनी का 22.76 फ़ीसद थी, जबकि कांग्रेस की ओर से बताई गई रकम स़िर्फ 11.89 फ़ीसद थी. राकांपा ने 4.64 और माकपा ने 1.29 फ़ीसद ऐसी रकम बताई थी. वर्ष 2004 से 2011 के दौरान देश के राजनीतिक दलों के खजाने में 4662 करोड़ रुपये जमा हुए. कांग्रेस 2008 करोड़ रुपये के साथ शीर्ष पर रही. इस दरम्यान भाजपा को 994 करोड़, बसपा को 484 करोड़ और माकपा को 417 करोड़ रुपये मिले. 2004 से 2014 तक केंद्र में सत्ता में रही कांग्रेस के खजाने में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई.
कांग्रेस को दान देने वालों में टाटा, जिंदल, एयरटेल का भारती ट्रस्ट और अडानी ग्रुप शामिल हैं. इसके विपरीत भाजपा की तिजोरी भरने में भी कॉरपोरेट घरानों से मिले चंदे की मुख्य भूमिका रही. भाजपा को चंदा देने वालों में विवादित वेदांता भी शामिल है. आदित्य बिड़ला ग्रुप से जुड़े जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने कांग्रेस को 36.4 करोड़ और भाजपा को 26 करोड़ रुपये का चंदा दिया. विडंबना यह है कि उक्त अवधि में पार्टियों को मिले कुल चंदे का 85 फ़ीसद हिस्सा बेनामी है. सबको याद होगा कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को पौने दो करोड़ रुपये का चंदा देने वाली अदिति सेन के पति सुदीप सेन को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना मंत्री बनाकर खूब सुर्खियां बटोरी थीं. राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले प्रतिष्ठानों में टाटा समूह, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (वेदांता समूह की कंपनी), भारती ग्रुप, टॉरेंट पॉवर लिमिटेड, एशिया नेट टीवी होल्डिंग लिमिटेड, आईटीसी लिमिटेड, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड, लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड, रसेल क्रेडिट लिमिटेड, मद्रास अल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड आदि नाम उल्लेखनीय हैं.
ठेंगे पर चुनाव आयोग
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