स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद दिल्ली में आंदोलन करने वाले लोग संसद के पास तक पहुंच जाते थे. वे वहां मंच बनाकर धरना-प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र थे. ये सिलसिला खत्म हुआ 1966 में हुए गोरक्षा आंदोलन से. गायों की रक्षा के लिए हो रहे आंदोलन ने 6 नवंबर 1966 को उग्र रूप ले लिया. प्रदर्शनकारी संसद भवन में घुसने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें पीछे ढकेलने के लिए पुलिस ने गोली भी चलाई, जिसके कारण सैकड़ों लोग मारे गए. इस घटना के बाद संसद भवन के पास होने वाले आंदोलनों पर रोक लगा दी गई. अब प्रदर्शनकारी कनॉट प्लेस के रीगल तक जा सकते थे. उन दिनों कनॉट प्लेस के खाली मैदानों में कई आंदोलन हुए, लेकिन इससे वहां ट्रैफिक की समस्या उत्पन्न होने लगी. लिहाजा प्रदर्शनों के लिए वोट कल्ब की जगह निर्धारित कर दी गई. यहां 1988 तक आंदोलन होते रहे. 1988 में भारतीय किसान संघ के महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में एक बड़ा किसान आंदोलन हुआ. कई सप्ताह तक चले इस आंदोलन में लाखों किसान वोट कल्ब और इंडिया गेट पर डट गए. लटियन की दिल्ली के केंद्र में इनके द्वारा फैलाई जा रही गंदगी और लोगों के आवागमन में हो रही परेशानी पर हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया और आंदोलनरत किसानों को यहां से हटाया गया. इसके बाद वोट कल्ब भी आंदोलनकारियों के लिए प्रतिबंधित हो गया. कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया कि दिल्ली में धरना-प्रदर्शन के लिए जगह अधिग्रहित की जाय. दिल्ली सरकार ने बुराड़ी और रोहिणी के जापानी पार्क में आंदोलन करने की अनुमति दी. लेकिन ये जगह मुख्य दिल्ली से दूर थे और यहां मीडिया की भी उतनी पहुंच नहीं थी. लोगों को संसद के पास की कोई जगह चाहिए थी, जहां से उठी आवाज संसद तक पहुंच सके. अंतत: 1993 में सरकार ने जंतर-मंतर पर आंदोलन और धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति देनी शुरू की. तब से अब तक देश के अलग-अलग भागों से लोग यहां आते रहे और अपनी आवाज उठाते रहे. लेकिन एनजीटी के हालिया आदेश के बाद जंतर-मंतर भी आंदोलनों के अतित का एक अध्याय बनता दिख रहा है. अलबत्ता बड़ा सवाल यही है कि लोकतंत्र की आजाद आवाज के लिए एक दिन में 50,000 वसूलने पाला सुविधा विहीन रामलीला मैदान क्या जंतर-मंतर बन पाएगा?
कई सफल आंदोलनों की जन्मस्थली है जंतर-मंतर
बात चाहे भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाले अन्ना आंदोलन की हो, स्त्री अस्मिता के सवाल पर दामिनी को न्याय दिलाने के लिए उमड़ी भीड़ की या वन रैंक-वन पेंशन के लिए आवाज़ उठाने वाले सेवानिवृत सैनिकों की. जंतर-मंतर पर हुए ऐसे कई आंदोलनों की सुखद परिणति हुई. ये दूसरी बात है कि देश अब भी लोकपाल का इंतजार कर रहा है, बलात्कार की घटनाएं अब भी सुर्खियां बनती हैं और सरकार के फैसले से नाखुश सेवानिवृत सैनिक अब भी जंतर-मंतर पर डटे हुए हैं. लेकिन इन सबसे इतर जंतर-मंतर वो जगह तो है ही, जहां से उठी आवाजों ने कई बार सरकार की चूले हिला दी है और कई बार सरकार को बोरिया-बिस्तर बांधने पर भी मजबूर कर दिया है. इसके अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन, रामसेतु बचाने के लिए हुआ आंदोलन, बंधुआ मजदूर मुक्ति आंदोलन, एफटीआईआई के चेयरमैन के रूप में गजेंद्र चौहान की नियुक्ति के खिलाफ वहां के छात्रों का आंदोलन जैसे कई आंदोलन हुए, जिन्होंने सुर्खियां बटोरीं. कई ऐसे भी आंदोलन हैं, जो लम्बे समय से जंतर-मंतर पर जारी हैं. जैसे, हरियाणा के भगाणा पीड़ितों का आंदोलन, तमिलनाडु के किसानों का आंदोलन, जेल में बंद बाबा रामपाल और बाबा आशाराम के समर्थकों का अनिश्चितकालिन धरना आदि.