तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा प्रहार किया. उन्होंने कहा कि महागठबंधन से नाता तोड़ने के बाद जदयू ने यह तीसरा उपचुनाव हारा है. नीतीश कुमार को अपनी अंतरात्मा जगानी चाहिए. वे तुरंत राजभवन जाकर अपना इस्तीफा सौपें. तेजस्वी यादव ने कहा कि अररिया लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को जोकीहाट में 39,515 वोट मिले थे. इस बार जोकीहाट में जदयू प्रत्याशी को 40,016 वोट मिले. जाहिर है, नीतीश कुमार के चेहरे की बदौलत जद (यू) प्रत्याशी को मात्र 499 वोट मिले.
अरसे बाद बिहार में एक ऐसा चुनाव हुआ जिसके परिणाम को लेकर जद (यू) के अलावा और किसी को भी कोई भ्रम नहीं था. यहां तक कि एनडीए की सहयोगी पार्टियों को भी अहसास नहीं, बल्कि यकीन था कि यहां तस्लीमुद्दीन के पुत्र को हराना संभव नहीं है. जब नतीजे आए, तो हुआ भी यही. राजद प्रत्याशी और सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले तस्लीमुद्दीन के छोटे पुत्र शाहनवाज आलम ने जद (यू) के मुर्शीद आलम को 41225 वोटों से पराजित कर दिया.
शाहनवाज को कुल 81240 मत मिले. अररिया लोकसभा के बाद जहानाबाद और अब जोकीहाट विधानसभा के उपचुनाव में राजद ने जीत का परचम लहराकर अपने समर्थकों को यह संदेश दे दिया कि आने वाले दिनों में बिहार में राजद की ही सरकार बनेगी. राजद में अगर-मगर में फंसे विधायकों भी अब साफ समझ गए हैं कि पार्टी में ही रहने में भलाई है. तेजस्वी यादव नीतीश कुमार पर तीर पर तीर चला रहे हैं और जद (यू) के नेता बस अपना फेस बचाने में लगे हैं. विजयी जुलूस और बयानबाजी का दौर थमने के बाद अब दोनों ही खेमों महागठबंधन और एनडीए में गंभीर मंथन का दौर जारी है. इन मंथनों का लब्बोलुबाब यह है कि किसी को भी बहुत ज्यादा खुश होने और किसी को भी बहुत ज्यादा निराश होने की जरूरत नहीं है.
जोकीहाट के जो नतीजे आए, वो कुछ हद तक वोटरों को भरमा तो सकते हैं, पर जमीनी विश्लेषण यह है कि जोकीहाट में जीत दरअसल पूर्व सांसद तस्लीमुद्दीन की ही हुई है. लेकीन बस इतना ही काफी नहीं है. तस्लीमुद्दीन फैक्टर यहां बहुत बड़ा था इससे इनकार नहीं, पर जद (यू) ने यहां जो बड़ी गलतियां की उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. शाहनवाज अगर 40 हजार के ज्यादा अंतर से जीतें हैं, तो इसमें जद (यू) की चुनावी रणनीतिक भूलों का भी बड़ा योगदान है. जोकीहाट के परिणाम के निहितार्थ को समझने के लिए हमें सबसे पहले जोकीहाट के भूगोल और वहां के सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने को समझना होगा.
जोकीहाट में अब तक 14 बार विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं और इनमें से छह बार तस्लीमुद्दीन के परिवार के लोगों ने जीत हासिल की है. तीन बार तो यहां से तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज ने ही जीत दर्ज की. 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद अररिया लोकसभा से तस्लीमुद्दीन विजयी रहे. इनकी मौत के बाद जो उपचुनाव हुआ, उसमें सरफराज को भारी जीत मिली. इस चुनाव में जोकीहाट से इनको 80 हजार से ज्यादा वोटों की लीड मिली थी. कहने का अर्थ यह है कि अररिया की लोकसभा सीट और इसके अंदर आने वाली जोकीहाट सीट पर तस्लीमुद्दीन का इतना ज्यादा प्रभाव है कि सामान्य हालत में इनके परिवार के लोगों को यहां से हराने की बात सोचना ही बेेमानी है. इससे जुड़ा एक सत्य यह भी है कि यहां पार्टी से ज्यादा तस्लीमुद्दीन का नाम चलता है. यहां वोटरों में 78 फीसदी मुस्लिम आबादी है.
जद (यू) की ग़लतियां
एक बार तो खुद तस्लीमुद्दीन सपा के टिकट पर यहां से जीते थे. 2015 के चुनाव में सरफराज जद (यू) के टिकट से जोकीहाट से विधायक बने थे. उनके यहां से सीट खाली करने की वजह से ही यहां उपचुनाव हुआ और इनके छोटे भाई शाहनवाज ने 40 हजार से ज्यादा वोटों की जीत दर्ज की. अब इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वास्तव में जोकीहाट में कौन जीता. इसलिए राजद की ओर से बयानबाजी जो भी हो रही हो, पर पार्टी के नेता भी समझ रहे हैं कि जोकीहाट की जीत का महत्व बस अपने समर्थकों और नेताओं में भरोसा जगाना भर है. इसे राजनीतिक तौर पर बहुत बड़ी चुनावी जीत मानना बड़ी चूक होगी, जो चूक जद (यू) के नेता जोकीहाट में कर चुके हैं. जोकीहाट में प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाने तक में जद (यू) गलती पर गलती करता चला गया.
अपने आजमाए हुए नेता मंजर आलम को दरकिनार कर मुर्शिद आलम को टिकट थमा कर पार्टी ने राजद को एक तरह से वाकओवर दे दिया. दागी छवि के मुर्शिद नीतीश कुमार की पार्टी के उम्मीदवार हो सकते हैं, इसे बहुत लोग पचा नहीं पाए. प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव कैंपेन तक का जिम्मा यहां आरसीपी सिंह और विजेंद्र यादव की जोड़ी ने संभाल रखा था. इन्हें लग रहा था कि मुस्लिम वोटों में सेंधमारी कर वे यहां तस्लीमुद्दीन के तिलस्म को तोड़ देंगे. पूरे प्रचार के दौरान एनडीए के सहयोगी दलों में कोई तालमेल नजर नहीं आए. जदयू के नेता यह तय ही नहीं कर पाए कि जोकीहाट में भाजपा के नेताओं का प्रयोग किस तरह किया जाए. वे भ्रम में रहे और इस कारण एनडीए के समर्थकों में भी भ्रम की स्थिति बन गई. किसे क्या करना है, किसी को पता ही नहीं था.
आरसीपी और विजेंद्र यादव की जोड़ी फर्जी फीडबैक पर काम करती रही और नतीजा सबके सामने आ गया. कागज पर ही सही, जद (यू) की यह सीट अब राजद के खाते में आ गई है. मुस्लिम वोटों में सेंधमारी का जद (यू) का सपना धरा का धरा ही रह गया. खासकर जब बिहार में भाजपा के साथ इसका गठबंधन है, तो ऐसे में मुस्लिमों को लेकर जद (यू) का ज्यादा आशावान होना एक रणनीतिक चूक ही मानी जाएगी. जद (यू) नेता जोकीहाट में जानबूझकर इस सच्चाई से दूर भागते रहे.
जद (यू) के लोग अब कह रहे हैं कि राजद का मार्जिन घटा है. लोकसभा चुनाव में राजद के उम्मीदवार को जोकीहाट से 80 हजार वोटों की बढ़त मिली थी. यह बात कहते हुए जद (यू) के नेता यह भूल जाते हैं कि वह लोकसभा का चुनाव था और इसमें राजद और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला था. अभी चुनाव विधानसभा का हुआ, जिसमें बहुत सारे निर्दलीय प्र्र्रत्याशियों ने भी भाग्य आजमाया. किसी को पांच तो किसी को दो हजार वोट मिले. इस तरह से जोड़ा जाए, तो लगभग 28 हजार वोट निर्दलीय उम्मीदवारों को मिले. अब इसे जद (यू) अपनी उपलब्धि माने तो फिर भगवान ही मालिक हैं. लेकिन चूंकि समर्थकों को संदेश देना है, तो इस तरह की बयानबाजी भी जरूरी है.
तेजस्वी का प्रहार
जोकीहाट में राजद उम्मीदवार की जीत के लिए जनता को धन्यवाद देते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा प्रहार किया. उन्होंने कहा कि महागठबंधन से नाता तोड़ने के बाद जदयू ने यह तीसरा उपचुनाव हारा है. नीतीश कुमार को अपनी अंतरात्मा जगानी चाहिए. वे तुरंत राजभवन जाकर अपना इस्तीफा सौपें. तेजस्वी यादव ने कहा कि अररिया लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को जोकीहाट में 39,515 वोट मिले थे. इस बार जोकीहाट में जदयू प्रत्याशी को 40,016 वोट मिले. जाहिर है, नीतीश कुमार के चेहरे की बदौलत जद (यू) प्रत्याशी को मात्र 499 वोट मिले. जोकीहाट में जनता ने हमारे इस दावे पर मुहर लगा दी कि लालू परिवार के खिलाफ राजनीति से प्रेरित होकर केंद्रीय एजेंसियां मुकदमा चला रही हैं.
नीतीश कुमार की स्थिति अब वैसे कप्तान की हो गई है, जिसे ‘प्लेइंग एलेवन’ में जगह नहीं मिलेगी. 2019 के लोकसभा चुनाव में जद (यू) के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त होगी. जोकीहाट में नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी आरसीपी सिंह कैंप कर रहे थे. जद (यू) ने वहां सरकारी मशीनरी, धन और हर प्रकार की शक्ति का उपयोग किया, मगर जनशक्ति के सामने धनशक्ति हार गई. तेजस्वी यादव ने कहा कि लालू प्रसाद एक विचारधारा हैं, एक विज्ञान हैं, जिसे समझने में नीतीश कुमार को कई जन्म लगेंगे. हम लगातार चुनाव जीत रहे हैं, फिर भी हमारी यह मांग है कि ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाएं.
पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने जोकीहाट की जीत को सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की जीत करार दिया. उन्होंने कहा कि देश की 14 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि भाजपा की नफरत और आतंक की राजनीति को लोग पसंद नहीं कर रहे हैं. आम लोग सामाजिक सद्भाव एवं मेलजोल के माहौल के मुरीद हैं. राबड़ी ने कहा कि मतदाताओं ने संकेत कर दिया है कि 2019 में अब भाजपा के लिए कोई जगह नहीं है. दूसरी ओर जदयू के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि जोकीहाट मे न जदयू की हार हुई है और न ही राजद की जीत. वहां की जनता ने स्वर्गीय तस्लीमुद्दीन को श्रद्धांजलि दी है. इनके पुत्र सरफराज जब हमारी पार्टी में थे, तब वहां से 55 हजार वोटों से जीते थे, अब इनके भाई राजद से खड़े हुए तो वे करीब 41 हजार वोटों से जीते.
लोकसभा चुनाव से पहले अब बिहार में कोई चुनाव नहीं होना है. इसलिए जोकीहाट के परिणाम से यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि 2019 में क्या नतीजे होंगे. हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि दोनों ही खेमों को अब पहले से ज्यादा सर्तक रहने की जरूरत है. इस हार से एनडीए के सहयोगी दलों में निराशा तो है पर वे हताश नहीं हैं. जदयू के बड़बोले नेताओं की बोलती बंद है. अब यह भाजपा पर निर्भर करता है कि वह अपने सहयोगियों का मनोबल और भरोसा कैसे बरकरार रखती है, क्योंकि अगर एनडीए जमीन पर एकजुट नहीं रहा, तो फिर जोकीहाट जैसे नतीजे आते ही रहेंगे.