महान साहित्यकार प्रेमचंद जी के दो कथन हमारे प्रेरक और मार्ग दर्शक हैं ।
पहला कथन,
साहित्य समाज और राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है ।
दूसरा कथन ,
लेखक का कद बहुत बड़ा है । इसकी गरिमा की रक्षा कीजिए ।
इन दोनों कथनों से साहित्य और साहित्यकार का महत्व तथा दायित्व अभिव्यक्त होते हैं ।
साहित्यकार का कद इतना बड़ा है की वह समाज और राजनीति के आगे साहित्य की मशाल लेकर चलने में सक्षम है ।लेकिन इस दायित्व का निर्वहन भी तर्क संगत विचार और विश्व दृष्टि अर्जित कर सकने पर ही संभव है ।
इसलिए यह स्पष्ट है कि संवेदनशील और मानवीय मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध साहित्यकार किसी भी संकीर्णता में बंध कर नहीं रह सकता ।साहित्यकार को जाति ,धर्म ,भाषा और देश की सीमाओं में बांधा नहीं जा सकता । एक सच्चा लेखक समूचे विश्व और मानवता का प्रतिनिधि होता है ।
यह लेखक का कद है ।इस कद की गरिमा की रक्षा और जन शिक्षण के लिए लेखक को जातिवाद ,धर्मांधता ,संकीर्ण राष्ट्रवाद ,नस्लवाद ,रंग भेद ,वर्ण व्यवस्था ,छुआछूत और किसी भी तरह के अन्याय तथा भेदभाव का प्रतिरोध करना ही होगा ।

शैलेन्द्र शैली

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