किसी कथित राष्ट्र भक्त का मुंह खुल नहीं रहा है ।
वो बड़ी बड़ी मूंछ वाले फौजी जनरल भी अब तक चुप हैं जिनकी चीखों से इस्लामाबाद और लाहौर हिलने लगते हैं ।
कांग्रेस के नेता श्री राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई।
इसी बीच भाजपा के अध्यक्ष श्री जे पी नड्डा के श्री राहुल गांधी से कुछ सवाल, पर संवेदनशील चैट पर पूरी चुप्पी ।
फिर सूचना प्रसारण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर की भी प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई । उनके भी श्री राहुल गांधी से सवाल, लेकिन चैट पर चुप्पी ।
मतलब सरकार विपक्ष से ही सवाल करेगी ।जवाब नहीं देगी।
मतलब अब इस देश में सवाल वही रह गए हैं जो अर्नब गोस्वामी पूछना चाहें ।
अपने आपको सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त चैनल कहने वाले अर्नब गोस्वामी पुलवामा और बालाकोट पर टीआरपी के एक सौदागर से हुई बातचीत पर सवालों के जवाब नहीं देंगे क्योंकि कोई उनसे पूछ नहीं रहा है कि नेशन वांट्स टू नो अर्नब ???
हमको आपको राजनीति और विचारधारा के बड़े-बड़े सवालों में उलझाया जा सकता है। हमको हमारी धरती पर चीन की घुसपैठ पर उलझाया जा सकता है। चीन पर हममें से कुछ केन्द्र सरकार के लोगों की दी सूचनाओं के साथ हो सकते हैं ,कुछ विपक्ष के आरोपों से सहमत हो सकते हैं, क्योंकि सीमा हमसे बहुत दूर है और अब तो हम तब भी चुप रहते हैं जब पेट्रोल सौ रुपए की लाइन को छूने जा रहा हो !
हमारी पूरी राष्ट्रभक्ति पाकिस्तान विरोध पर आ कर खत्म हो जाती है लेकिन विडंबना देखिए एक कथित राष्ट्रभक्त पुलवामा के बाद एक पार्टी की जीत के प्रति आश्वस्त होता है और आज हमें न उन चालीस बहादुर जवानों की शहादत याद है और न हम यह पूछ रहे हैं कि आखिर वो देविंदर है कहां ?उससे क्या अब तक पूछताछ में कुछ भी पता नहीं चला ???
हम पूछ नहीं रहे हैं कि चुनाव जीतने के लिए इस देश में ऐसी कैसी गिरोहबंदी हो चुकी है ???
हम इस बात से भी विचलित नहीं हैं कि जिस पाकिस्तान के मामले में हमारी देशभक्ति जाग जाती है उस पर हमले की खबर कैसे एक पत्रकार को लीक हो गई और कैसे उस जानकारी को वो टीआरपी के एक व्यापारी से साझा भी करता है !!!
ये तो न जटिल राजनीति का मसला है न विचारधारा का सवाल ! ये तो सहज समझ आने वाली बात है कि बात देश की सुरक्षा से जुड़ी है।
आखिर इस पर हमारी चुप्पी क्यों ?
क्योंकि अब आमतौर पर हम स्वतंत्र चेतना वाले नागरिक रह नहीं गए हैं ! आमतौर पर इसलिए कि सीएए, एनआरसी के विरोध से लेकर किसानों के हक की लड़ाई लड़ने वाले नागरिकों ने तो ये बता दिया है कि उनकी चेतना गिरवी नहीं है पर हम मुंह इसलिए नहीं खोल पा रहे हैं क्योंकि हम तो वो जमात हैं जिसने थोड़े दिनों पहले ही ताली-थाली पीट कर कहा था – गो कोरोना गो !!!
यूं ही नहीं है कि हम प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में दुनिया के निचले पायदान वाले देशों में से एक है!
यूं ही नहीं है कि आज हमारी आंखों के सामने हमारे लोकतान्त्रिक देश के वो सारे संस्थान अपनी स्वायत्तता खोते जा रहे हैं जिनकी ज़िम्मेदारी हमारी स्वतंत्रता और इस देश के लोकतंत्र की हिफाज़त थी!
पर क्या कभी हमें यह सोचने का अवकाश मिला कि हमने अपनी चेतना की हिफाज़त का जिम्मा किस पर छोड़ रखा है ?
हमको , आपको कभी पता ही नहीं चला कि कब किसी आईटी सेल ने हमारी व्यक्तिगत भी और सामूहिक चेतना का भी हरण कर लिया!
हमको पता ही नहीं चला कि कब हमें मुद्दे वही लगने लगे जो खामोशी से किसी तमाशाई टीवी चैनल या वॉट्सएप के जरिए हमारे दिमाग में इंस्टॉल कर दिए जाते हैं।
इस काम में अरबों खरबों खर्च हो रहे हैं । ये काम सिर्फ हमारी चेतना का हरण कर लेने भर के लिए नहीं किया जा रहा है बल्कि इसका लक्ष्य इस देश की स्वतंत्रता का हरण कर लेना है और ऐसा हमारी आपकी चेतना को बंधक बना लेने से आसानी से किया जा सकता है! ये चंद उद्योगपति और आज के अंग्रेज़ शासकों की चाल है।
ये साधारण मंगलवार नहीं था ।
ये हमारी चेतना की परीक्षा ले चुका मंगलवार था!
हम चुप थे और वो अगले प्लान की तरफ आगे बढ़ चुका मंगलवार था!!!
( रुचिर गर्ग )
Awesh Tiwari की टाइमलाइन से।