लंबे समय से जारी मप्र वक्फ बोर्ड सीइओ की तलाश राजधानी में पदस्थ एसडीएम जमील खान पर आकर खत्म हो गई है। अतिरिक्त प्रभार के रूप में सेवाएं देने को राजी हुए एसडीएम ने बुधवार को पदभार ग्रहण कर लिया है। लेकिन पहले दिन ही उनके सामने एक अजीब समस्या आ खड़ी हुई है। बोर्ड से उन्हें मिलने वाले वाहन को चलाने के लिए मौजूद चालकों में से अधिकांश आनाकानी करते नजर आ रहे हैं। वजह जमील खान की देर तक सरकारी ड्यूटी और देर रात तक पटिये आबाद करने की आदत बताई जा रही है।

सूत्रों का कहना है कि बुधवार को बोर्ड में आमद देने के बाद एसडीएम जमील खान ने अपनी सेवाएं शुरू कर दी हैं। लेकिन इस बीच इस बात को लेकर गर्म अफवाहें शुरू हो गई हैं कि जमील देर रात पीर गेट के पटियों पर मौजूद रहते हैं। इस दौरान चलने वाली चर्चाओं का विस्तार कभी-कभी रात दो-तीन बजे तक भी हो जाता है।

हालात को भांपते हुए बोर्ड में मौजूद अधिकांश वाहन चालकों ने नए सीइओ को सेवाएं देने में आनाकानी करना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि बोर्ड में मौजूद दो वाहनों के लिहाज से एक ड्रायवर बोर्ड में प्रशासक के रूप में सेवाएं दे रहे एडीएम के साथ अटैच हैं। जबकि दूसरे ड्रायवर को बोर्ड सीइओ की सेवा के लिए तैनात रखा गया है।

लेकिन नए सीइओ के देर रात तक भ्रमण और आधी रात तक ड्यूटी बजाने के हालात से ड्रायवरों को अपनी रात खराब होती नजर आ रही है। सूत्रों का कहना है कि अब तक सीइओ की ड्यूटी में तैनात रहने वाले ड्रायवर का स्वास्थ्य पिछले कई दिनों से खराब है और उन्हें आंखों से भी दिक्कत है। जिसके चलते वे रात की ड्यूटी करने से हमेशा कतराते रहे हैं। बोर्ड में बन रहे नए हालात और आमद देने वाले नए साहब की देर रात की तफरीह ने इस बीमार चालक को पसोपेश में डाल दिया है।

प्रभारियों के हवाले अरबों की जायदाद

मप्र वक्फ बोर्ड के तत्कालीन बोर्ड को भंग हुए करीब दो साल से ज्यादा समय गुजर गया है। लेकिन इस अवधि में बोर्ड के चुनाव की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। नतीजा यह है कि यहां की व्यवस्था प्रशासक और प्रभार के सीइओ से चल रही है। बोर्ड में पिछले कुछ सालों में मौजूद रहे अधिकारियों के साथ हुए प्रशासनिक अत्याचार के कारण हालात यह बने हुए हैं कि कोई भी अधिकारी यहां अपनी सेवाएं देने को राजी नहीं हो रहा है।

ऐसी स्थिति में पिछले कई महीनों से प्रशासक की व्यवस्था प्रभारी अधिकारी के भरोसे चल रही है। अब तक सेवाएं दे रहे एडीएम सतीश कुमार एस के तबादले के बाद लंबी जद्दोजहद का नतीजा यह निकला कि यह व्यवस्था मौजूदा एडीएम के हवाले ही करना पड़ीं। इसके बाद लंबे समय से चल रहीं सीइओ को पदस्थ किए जाने की कहानी भी अधूरी ही रह गई, जिसके बाद यह व्यवस्था भी प्रभारी अधिकारी को ही सौंपना पड़ी है।

नियमों से बंधे अधिकारी, कैसे होंगे काम

जानकारों का कहना है कि बोर्ड के जरूरी कामों में शामिल कमेटियों के गठन, नवीनीकरण, आवंटन या किरायादारी के काम के लिए यहां स्थायी बोर्ड या स्थायी सीइओ की जरूरत होती है। लेकिन मौजूदा प्रभारियों के भरोसे चलने वाले बोर्ड में इन सभी जरूरी कामों में रुकावट आ सकती है।

हवाओं में तैर रहे कई नाम

उपचुनाव के बाद भाजपा सरकार के स्थायी कदम जम जाने के बाद अब इस बात की कवायदें चल पड़ी हैं कि जल्दी ही निगम-मंडलों में नियुक्तियों के रास्ते खुलने वाले हैं। इस बीच इस बात की उम्मीद भी की जा रही है कि खाली पड़े मुस्लिम इदारों में भी नियुक्तियां होकर इनके कामों को व्यवस्थित किया जा सकता है।

इन खबरों और उम्मीदों के साथ प्रदेशभर के मुस्लिम भाजपा नेताओं ने राजधानी में डेरा डालना शुरू कर दिया है। इस बीच वे अपने राजनीतिक आकाओं के दरवाजों पर सलाम पेश कर अपने लिए जगह बनाने की जुगत लगा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस बीच सबसे ज्यादा मशक्कत मप्र वक्फ बोर्ड, प्रदेश हज कमेटी और अल्पसंख्यक आयोग के खाली पदों कि लिए ही की जा रही है।

खान अशु

भोपाल

 

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