हीरेंद्र झा
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत से देश सदमे में है और इस सदमे की झलक कम से कम सोशल मीडिया पर काफी मात्रा में दिख रही है। प्रथम साक्ष्य की माने तो सुशांत ने आत्महत्या कर ली है। रविवार सुबह उनका पार्थिव शरीर उनके बांद्रा वाले घर के बेडरूम में झूलता हुआ मिला। ख़बर आते ही इस पर अलग अलग तरह की प्रतिक्रिया आने लगी। लेकिन, सोशल मीडिया इस मुद्दे पर शोकाकुल तो दिखा लेकिन वो प्रवचन मोड में नज़र आया। किसी ने कहा कि उसे किसी दोस्त से फोन पर बात करनी चाहिए थी। किसी ने लिखा जीवन में कुछ रिश्ते ऐसे होने चाहिए जिससे आप जब चाहो अपना दर्द साझा कर सको। किसी ने यहाँ तक कह दिया कि आप परेशान हैं तो सीधे मुझे कॉल कीजिये, हम सुनेंगे आपको। कोई सुशांत को कायर कह रहा, कोई भगोड़ा। ज़ाहिर है काम तो सुशांत ने गलत ही किया है पर इसे बहुत गहराई से समझने की ज़रूरत है। मनोवैज्ञानिकों की माने तो इंसान कई बार इस कदर अवसाद में डूब जाता है कि किसी भी नाज़ुक मौके पर वो आत्महत्या कर सकता है। जानकार कहते हैं कि इस भावावेश भरे लम्हें में अगर कोई कांधा आपको मिल जाये तो आप इससे बच सकते हैं। जो बिना आपको जज किये, आपके साथ मजबूती से खड़ा हो। यह इतना भी आसान नहीं। ज्ञान देना आसान है, पर जिस पर बीतती है वही जानता है। आज परिवार तक में जिस तरह से रिश्ते टूटने लगे हैं ऐसे में बाहरी दुनिया में कोई हमराज़ मिले यह आसान नहीं। हर इंसान का परिवेश, उसकी सोच और ज़रूरतें अलग होती हैं। उसके इमोशन नितांत ही निजी होते हैं। कई बार झिझक में भी वो किसी से अपना दर्द शेयर नहीं कर पाता। करता भी है तो कई बार उसका मज़ाक बनाकर, कमजोर साबित कर दर्द पर मिट्टी डाल दी जाती है। ऐसा हमेशा से होता आया है। कहते हैं न कि एक विजेता के सौ बाप होते हैं, पर एक हारा हुआ व्यक्ति अनाथ होता है। हमें अपने आस पास की दुनिया के लिए कहीं ज़्यादा संवेदनशील होने की ज़रूरत है। कितने ही दर्द और भावनाओं की नियति है कि वो अनसुनी ही रह जाती हैं। इन्हें सुनने के लिए आत्मिक रूप से आपका जगा हुआ होना पहली शर्त है। फिर दिखावे की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। लोग खुल कर आपसे अपनी बात शेयर कर पायेंगे। जो लोग आत्महत्या की सोच रहे हैं उनसे बस यही कहना चाहूँगा कि जीवन अनमोल है। बकौल ज़ौक : “अब तो वे घबरा के कहते हैं कि मर जायेंगे, मर कर भी चैन न मिला तो किधर जायेंगे!”