मोदी सरकार हिन्दू-हिन्दुत्व की बात करती है. सरकार बताए कि उसका दर्शन क्या है? हिन्दुओं के लिए इस सरकार ने क्या किया? 93 साल में आरएसएस ने हिन्दुओं के लिए क्या किया? हिन्दू दर्शन धर्मनिरपेक्ष है. मैं जानता हूं, भाजपा घृणा की राजनीति पर ही चलेगी. उम्मीद है, जनता ही भाजपा को सबक सिखाएगी…
कर्नाटक में जो हुआ, ठीक ही हुआ. जनता के मत की गरिमा बच गई. मान लीजिए, जो एमएलए जिस टिकट पर निर्वाचित हुआ था, वो उस दल के खिलाफ वोट देता तो जनता के मत की क्या महत्ता रह जाती? मैंने तो पहले भी कहा था कि अगर कोई विधायक ऐसा करता है, तो जब वह अपने क्षेत्र में जाए, उसके क्षेत्र के लोग उसका मुंह काला कर उसे गदहे की सवारी कराएं. युवाओं को अपने नेताओं से कहना चाहिए और इसे लेकर उनपर दबाव डालना चाहिए कि आप हमारा वोट मांग कर जाते हैं.
इसलिए जो वादे करते हैं, उसे पूरा कीजिए. यह क्या कि चुनाव जीतते ही पैसा लेकर आप दूसरी पार्टी में चले जाएं. ऐसे तो आप पिटाई के अधिकारी हैं. यह अलग किस्म का लोकतंत्र है. लेकिन इसका मतलब क्या है? यह तो मखौल हो गया लोकतंत्र का. अगर ऐसा ही हो, फिर चुनाव की क्या जरूरत? लोकतंत्र भारत के लिए एक बहुत महंगा तंत्र है. हम गरीब देश हैं, लेकिन यहां एक आदमी का वोट भी मायने रखता है. अंबानी का वोट भी वही मायने रखता है, जो एक आम आदमी के वोट का महत्व है. हर इंसान का वोट बराबर है. यही वोट की गरिमा है. इस गरिमा को बिकाऊ विधायक और राजनीतिक दल खत्म कर रहे हैं, क्योंकि वे चुनाव जीतते ही बिकाऊ हो जाते हैं.
सुुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र की गरिमा बचाई
मुझे खुशी है कि कर्नाटक में येदियुरप्पा के भाषण के बाद वोट की नौबत ही नहीं आई. उन्होंने इस्तीफा दे दिया. सुप्रीम कोर्ट की बुद्धिमत्ता से वोटिंग टल गई. सुप्रीम कोर्ट ने समझ लिया कि देश में लोकतंत्र और राज्यपाल की गरिमा गिर रही है. राज्यपाल ने तो और अधिक गरिमा गिरा दी. अगर सुप्रीम कोर्ट भी कुछ नहीं करती, तो सुप्रीम कोर्ट की भी गरिमा गिर जाती. सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अक्लमंदी का काम किया. कोर्ट ने कहा कि हम शपथ नहीं रोक सकते. लेकिन मेरे हिसाब से तो शपथ भी रोकना चाहिए था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बुद्धिमत्ता दिखाई. बिना राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र को छुए, उन्होंने काम बना लिया. उन्होंने कहा कि पन्द्रह दिन में नहीं, 24 घंटे में शक्ति परीक्षण कर लो. भाजपा का जो मंसूबा था, वो सब धरा का धरा रह गया.
उन्हें विश्वास था कि वे खरीद-फरोख्त कर लेंगे, डरा धमका देंगे, येदियुरप्पा सीएम की कुर्सी पर हैं, तो पुलिस भी इनके हाथ में है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट का रिकॉर्ड पिछले छह महीने में अच्छा नहीं रहा. दीपक मिश्रा ने काफी गरिमा गिराई है सुप्रीम कोर्ट की. जस्टिस लोया का केस इसका उदाहरण है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वो जस्टिस लोया के केस में कोर्ट की निगरानी में स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम बनाकर जांच कराए. इसके बाद लोगों को भरोसा होगा कि जस्टिस लोया का देहांत स्वाभाविक था या वो हत्या थी. देश को सच जानने का हक है. सिर्फ इसलिए जांच नहीं हो कि आज की सरकार सच को छुपाना चाहती है, इससे सुप्रीम कोर्ट की भी गरिमा जुड़ी हुई है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट को कुछ काम करना बाकी रह गया है. लेकिन कर्नाटक केस में जो कदम सुप्रीम कोर्ट ने उठाया, उसके लिए बधाई. मैं एक आम नागरिक हूं और उसी हैसियत से बधाई दे रहा हूं, क्योंकि इससे एक लोकतंत्र का बचाव हुआ.
विडंबना देखिए, अमित शाह कहते हैं कि एमएलए को बाहर निकलने दीजिए (रिसॉर्ट से), मैं सरकार गिरा दूंगा. यानि खुलेआम कह रहे हैं कि पैसे का नंगा नाच करेंगे. क्या ये लोकतंत्र का मखौल नहीं उड़ा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट को इस पर भी टिप्पणी करनी चाहिए. राजनीतिक नेता इस तरह के बयान नहीं दे सकते. कम से कम इन्हें तो कुछ मर्यादा रखनी चाहिए. यह सरकार कैसे चलेगी, पता नहीं. एक बात सही है कि कांग्रेस और जेडीएस भी एक दूसरे के खिलाफ लड़े थे, लेकिन सवाल वो नहीं है. सवाल यह है कि हमलोग सभ्य और शालीन लोकतंत्र चाहते हैं या गुंडागिरी. हम देश को कितना नीचे ले जाना चाहते हैं. मोदी जी कांग्रेस की आलोचना करते हैं.
जवाहरलाल नेहरू जैसे सभ्य व्यक्ति की आलोचना करते हैं. आप क्या हैं उनके सामने? जो लोग नेहरू की आलोचना करते हैं, वे नेहरू के समक्ष तुच्छ हैं. भाजपा वाले कहते हैं कि कांग्रेस ने 52 बार राष्ट्रपति शासन लगाया. उन्होंने 52 बार किया 60 साल में. लेकिन यह भी तो बताइए कि भाजपा ने चार साल में कितनी बार यह काम किया. आप बताइए कि अरुणाचल, कर्नाटक हर जगह आपने सत्ता का दुरुपयोग किया या नहीं किया. एक पूर्व मुख्यमंत्री ने तो खुदकुशी कर ली. भाजपा ने चार साल में जैसा आतंक फैला दिया, वो इस देश में कभी नहीं था, डेढ़ साल की इमरजेंसी के अलावा. इंदिरा गांधी ने बहुत गलत किया था. लेकिन उन्होंने इमरजेंसी हटाने के बाद चुनाव करवाकर उसे सुधार लिया था. चुनाव हुआ, वो हार गईं और उन्हें सत्ता छाोड़नी पड़ी. थी वो. कम से कम उन्होंने अपनी गलती का प्रायश्चित कर लिया. आप (भाजपा) क्या करेंगे बताइए?
50 फीसदी से अधिक मत की अनिवार्यता
लोकसभा के बहुत कम सांसद है, जिन्हें उनके क्षेत्र में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलते हैं. पहले ही दिन उन्हें समझ लेना चाहिए कि वे 30 प्रतिशत के प्रतिनिधि हैं, 70 प्रतिशत लोग उनके खिलाफ थे. लेकिन फिर भी उन्हें इस जिम्मेदारी को समझना चाहिए कि वे अपने क्षेत्र के 100 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. अब किसी क्षेत्र के प्रतिनिधि को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले, इसके लिए चुनाव सुधार करना होगा. चुनाव में सर्वाधिक वोट पाए पहले दो उम्मीदवारों का फिर से चुनाव करा लिया जाए, ताकि जीता हुआ उम्मीदवार 50 प्रतिशत से अधिक मतदाता का वोट हासिल कर सके. मुझे माफ करें लेकिन कहना पड़ेगा कि अब मोदी और शाह जिस ढंग से बयान दे रहे हैं, वो दुखद है. किस तरह की टपोरी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं ये लोग. इससे तो देश बर्बाद हो जाएगा. ये समझ रहे हैं कि हिन्दुस्तान बहुत तरक्की कर रहा है, ये गलत समझ रहे हैं.
आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, ये वही सिस्टम है, जो ब्रिटिश छोड़कर गए थे. सरकारें बदलती रहती हैैं, लेकिन सिस्टम चलता रहता है. इन चार सालों में इस सिस्टम के साथ छेड़खानी हुई है. मैंने पढ़ा कि अब सिविल सर्विसेज में कैडर आवंटन प्रक्रिया के साथ भी ये सरकार छेड़खानी करना चाहती है. पता नहीं ये सरकार क्या समझती हैं? क्या ये लोग जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और नेताजी से ज्यादा इंटेलीजेंट हैं? बहुत लोग इस गलतफहमी के शिकार हैं. हर लड़का जो क्लास में फेल होता है, वह भी समझता है कि वो अक्लमंद है, लेकिन होता नहीं है. मैं मानता हूं कि मोदीराज गुजर गया. आप भले ही आज भी प्रधानमंत्री हैं, लेकिन वो प्रधानमंत्री थोड़े हैं जो 2014 में चुने गए थे. उस वक्त तो जनता आपके साथ थी. सभी को आपसे उम्मीद थी कि आप कुछ करेंगे. नए उद्योग खुलवाएंगे, नए रोजगार के अवसर पैदा करेंगे, दाम कम होंगे.
अब तो समझ में आ गया है कि आप तो पहली वाली सरकारों से भी बदतर होंगे. कोई आपसे यह नहीं कह रहा है कि हिन्दुस्तान जन्नत क्यों नहीं बन गया. यह उम्मीद भी आपसे नहीं है. आपने उम्मीद दी थी लोगों को कि रामराज्य आ जाएगा, यदि आप सत्ता में आए. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इस देश में सवा सौ करोड़ लोग हैं. संसाधन सीमित है. उसी में काम करना पड़ेगा. लेकिन सामाजिक सौहार्द्र तो बरकरार रखिए. मैं दावे के साथ कहता हूं कि हिन्दुस्तान अकेला मुल्क है दुनिया का, जहां इतनी विषमताओं के बावजूद, इतनी गरीबी के बावजूद, क्रांति नहीं है, गोलीबारी, मारकाट, लूटमार नहीं है. क्यों? क्योंकि हमारी चार हजार साल की संस्कृति है. 70 साल का कंस्टीट्यूशन नहीं है हमारा, चार हजार साल की संस्कृति है हमारी. जो है, उससे खुश रहिए और उसी को बढ़ाने की कोशिश करिए. दूसरे की तरफ मत देखिए.
छीना-झपटी हमारी संस्कृति में नहीं है. यह देश अपने चार हजार साल के संस्कार से चल रही है. इसकी इज्जत कांग्रेस करती थी. कांग्रेस ने कभी लक्ष्मण रेखा क्रॉस नहीं की, इमरजेंसी के अलावा. एक बार की, लेकिन उसको सही कर लिया. अतिक्रमण नहीं किया. भाजपा तो रोज अतिक्रमण करती हैं. किसको छोड़ा भाजपा ने?
चौखम्भा राज पर हमला
चौखम्भा राज की बात लोहिया जी करते थे. न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और प्रेस चौथ खम्भा. भाजपा ने तो चौथे खम्भा पर पहले ही प्रहार कर दिया. इतना पैसा उसके मूंह में ठूंस दिया कि वो चुप है. पत्रकारिता एक पेशा है. पब्लिशिंग बिजनेस है. अब वो पब्लिशिंग कर रहे हैं, जर्नलिज्म नहीं कर रहे हैं. अखबार मालिक खुद कहते हैं कि हम विज्ञापन के धंधे में हैं. विज्ञापन जमा करते हैं. हमारा मुख्य आय का जरिया विज्ञापन है. इस सरकार ने सीधे उन्हें पैसा देना शुरू किया. जो विज्ञापन के लिए मेहनत करते थे, उसे सीधा ही पैसा दे दिया. शर्त यह है कि चुप रहिए आप. हम जो जुर्म करें उसके खिलाफ लिखिए मत. हम एक राई भर अच्छा काम करें, तो उसे पहाड़ बना दीजिए. यह काम आज मीडिया कर भी रहा है. एनडीटीवी ने कुछ कोशिश की, तो उसके खिलाफ इनकम टैक्स दौड़ा दिया. सरकारी तंत्र का पूरा उपयोग अब तो पार्टी के हित में भी नहीं हैं. सरकार आज बस एक व्यक्ति के हित में है, जिसका नाम नरेंद्र मोदी है और उनका सहयोगी अमित शाह. आज इनके पास सबकी फाइल है. ये सबको डरा देते हैं. जज भी कोई भगवान के अवतार तो हैं नहीं. सबकी कमजोरी है. सबका परिवार है. किसी को भी डराना आसान है.
रॉ या आईबी या सीबीआई का क्या काम है? असली चोरों को तो सीबीआई पकड़ती नहीं. राजनीतिक विरोधियों को पकड़ती है. फिर भी भाजपा वाले जनतंत्र की बात करते हैं. आप लालू पर प्रहार कर रहे हैं, उन्हें जेल में डाल दिया. वे एम्स में इलाज कराने आए, तो दिल्ली से वापस भेज दिया. क्या सरकार इसी को अपना मापदंड बनाना चाहती है. अगर मोदी जी सही हैं, तो फिर चुनाव में सब जगह लालू की जमानत जब्त हो जानी चाहिए थी. बिहार में ऐसा रुख नहीं है. हर जगह आरएसएस और भाजपा के लोग हैं और सरकार को हर जगह की सब खबर मिल रही है. सरकार जानती है कि जो बातें वो करती है, उसका कोई उपयोग नहीं. जब तक आप (नरेंद्र मोदी) सत्ता में हैं, पैसा इकट् ठा कर लीजिए और बड़े-बड़े भाषण दे दीजिए.
अरुण जेटली बीमार हैं, आपने पोर्टफोलियो दे दिया पीयूष गोयल को. पीयूष गोयल दो दिन से बोल रहे हैं कि भूषण स्टील कंपनी को टाटा ने ले लिया. एक नई प्रक्रिया शुरू हुई है और यह पहली सफलता है, इस प्रक्रिया की. 34 हजार करोड़ रुपए बैंकों के पास आ गए, जिससे दूसरों को ऋृण देने में मदद मिलेगी. अब दुर्भाग्यवश, मैं भी व्यवसाय की दुनिया से हूं. मैं कई दिनों से बोल रहा हूं कि यह बात सही नहीं है. स्टेट बैंक के चेयरमैन का भी बयान आ गया. प्रेस वालों ने पूछ लिया कि 34 हजार करोड़ रुपए जो दे रहे हैं, आपको कितना मिल रहा है? क्या जवाब दिया उन्होंने? उन्होंने जवाब दिया कि एक हजार पांच सौ करोड़ रुपए मिल रहे हैं. इस प्रक्रिया में एनपीए रिकवर नहीं किया गया है. कंपनी हस्तातंरण कर दिया गया है, भूषण स्टील से टाटा को.
इन बैंकों को और सरकार को टाटा पर ज्यादा विश्वास है. वो एनपीए होगा कि नहीं, यह सात साल बाद मालूम पड़ेगा. मैं भूषण को जानता नहीं, व्यक्तिगत भी नहीं जानता हूं और मिला भी नहीं हूं. फिर भी एक आदमी ने मेहनत से कंपनी बनाई. आपने (सरकार ने) उसे दूसरे को दे दिया. कितने लोगों की नौकरियां गईं. एक का गला काट कर दूसरे को दे दिया. यह उचित नहीं है. यह कौन सा तरीका है बैंक चलाने का. यह कौन सा ऋृण देने का तरीका है? सरकार उस कंपनी को लेती तो दूसरी बात थी, लेकिन आप मेरी कंपनी लेकर दूसरे उद्योगपति को दे दें, यह तो तर्कसंगत बात है ही नहीं. फिर हम तो बनाना रिपब्लिक बन जाएंगे. टाटा देश का सबसे बड़ा समूह है. सही बात है. बैंकों को आसानी होगी. फिर आम आदमी को, टैक्सी वाले को लोन कौन देगा?
सरकार भ्रमित है
एक बात मुझे बोलनी पड़ेगी सरकार के पक्ष में. मैं नहीं समझता हूं कि ये सरकार जानबूझकर कोई काम कर रही है. असल में इस सरकार को पता ही नहीं है कि क्या हो रहा है. पीयूष गोयल चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, उनका बयान सुनिए. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार आई है, हमलोग टैक्स टेरेरिज्म खत्म कर देंगे. यानि इनकम टैक्स वाले तंग करते हैं, सेल्स टैक्स वाले आकर तंग करते हैं, ये टैक्स टेरेरिज्म है. टेरेरिज्म शब्द उनका है, मेरा नहीं. आज ज्यादा टेरेरिज्म है. चार साल में टेरेरिज्म आपने बढ़ा दिया है और ये बैंक टेरेरिज्म है कि मेरी इतनी साल की मेहनत, मेरी कंपनी छीन कर आप किसी दूसरे को दे देंगे और मुझे आप रास्ता दिखा देंगे. अगर पूरा रुपया, जितना बकाया था, वो टाटा देती तो अलग बात थी, उनको भी आपने कम में दे दिया है. इंडस्ट्री आज ठीक चल रही है.
इंडस्ट्री का नफा नुकसान मार्केट से संबंध रखता है. आज के मार्केट में तो कोई भी धंधा चला लेगा. ऐसे ही विजय माल्या का केस है. भाजपा ने विजय माल्या को दो बार राज्यसभा में जाने में मदद की. माल्या ने एक एयरलाइन चलाई, जब पेट्रोल का मूल्य अधिक था. वो पांच हजार करोड़ के करीब रुपए नहीं दे पाया, लेकिन बाद में वो देने को तैयार था, लेकिन प्रधानमंत्री का आदेश हुआ कि सबक सिखाओ. क्या हुआ? विजय माल्या विदेश भाग गया. माल्या से व्यक्तिगत दुश्मनी और नफरत की राजनीति का नमूना है यह. ये लोग किसी को भी धोखा दे सकते हैं. हिन्दू-मुसलमान तो छोटी सी चीज है. जब ये हिन्दू बिजनेसमैन, जिनसे रुपए भी लिए हैं पार्टी के लिए, उनसे भी घृणा कर सकते हैं, उन्हें भी धोखा दे सकते हैं, तो मुसलमानों की हैसियत क्या है मोदी राज में. लेकिन अब ये राज खत्म हो रहा है. जनता ने देख लिया. ये कर्नाटक में कुछ नहीं कर पाए.
व्यापारी डरे हुए हैं
मैं खुद व्यापार जगत से आता हूं. बहुत छोटा व्यवसायी हूं, लेकिन जो बड़े व्यवसायी हैं, उनपर प्रहार हो रहा है, हजारों करोड़ का मामला दांव पर है, कोई बोल नहीं रहा है. क्यों? डर गए हैं सब. आज भूषण के फेवर में कोई बोलेगा, तो ये उसपर प्रहार करेंगे. अंग्रेजों के समय एसोचैम थी, जिसमें अधिकतर कंपनियां ब्रिटिश थीं. इंडियन टे्रड एसोसिएशन ने सोचा कि इसमें हमारा हक मारा जाएगा, तो उस समय फिक्की बना. ये आजादी के पहले की बात है. वे ब्रिटिश से डरे नहीं. बाद में आजादी आई. तब फिक्की, एसोचैम और चैम्बर ऑफ कॉमर्स सब सरकार के पास जाते थे हर साल और ये सुझाव देते थे कि हमारी ये दिक्कते हैं. आज तो वो प्रक्रिया ही बंद है.
किसी के पास यह बोलने की ताकत नहीं है कि उनकी क्या दिक्कतें हैं. एक बड़े उद्योगपति गए थे नरेंद्र मोदी से मिलने अडानी के जरिए. मिल लिए. अप्वाइंटमेंट देने वाले को मोदी साहब ने उस उद्योगपति के सामने ही फोन कर कहा कि ये जब अप्वाइंटमेंट मांगें, तुरंत दे दिया करो. खुश हो गए वे. उनसे गलती यह हो गई कि जाते-जाते उन्होंने बोल दिया कि इंडस्ट्री को बहुत दिक्कत है आपके ही कानूनों से. मोदी साहब ने उन्हीं के सामने फिर फोन करके कहा कि ये समय मांगेगा, तो मत दीजिएगा. यह ऐरोगेंस की सीमा है. मुगल बादशाह भी नहीं करते थे ऐसा. आप हैं कौन? आप जैसे कई आएं और मिट्टी में मिल गए. ऐसा मत करिए. सिर्फ नेहरू को गाली देना और इंदिरा गांधी का कसूर निकालना ठीक नहीं है. वैकल्पिक राजनीति क्या है?
आपका दर्शन क्या है?
चलिए आप हिन्दू हैं, आप बताइए कि आपका क्या दर्शन है. हिन्दुओं के लिए क्या कर रहे हैं आप? 93 साल में आरएसएस ने हिन्दुओं के लिए क्या किया? मुसलमानों से घृणा पैदा की, उससे कोई मतलब नहीं. हिन्दुओं का भला हुआ? हिन्दुओं का कोई भला नहीं कर पाए और कर पाएंगे भी नहीं, क्योंकि हिन्दू आप पर डिपेंडेंट नहीं हैं. 18 प्रतिशत के अलावा, हिन्दू आपको अपना प्रतिनिधि मानते भी नहीं हैं. आपका तो नैरेटिव ही यह है कि या तो मोदी की तारीफ करिए या पाकिस्तान जाइए. समय आ रहा है, जब हमारे जैसे हिन्दू यह कहेंगे कि आपको हमारे संविधान पर भरोसा नहीं है, तो नेपाल हिन्दू देश है, आप वहां चले जाइए.
आपको हिन्दू देश चाहिए. यह धर्मनिरपेक्ष देश है. हिन्दू दर्शन धर्मनिरपेक्ष है, मत निरपेक्ष है, मजजब निरपेक्ष है. हिन्दू एक ऐसा धर्म है, जो सबको लेकर चलता है. आप तो हिन्दू ही नहीं हैं. आप तो घृणा, नफरत, दुराव, गलत बयानी और धमकी में यकीन करते हैं. इससे बड़ी गंदी बात क्या होगी कि सत्ताधारी पार्टी का अध्यक्ष बोलता है कि विधायकों को खुला छोड़िए, मैं काम करवाता हूं. यानि व्यापारी हैं आप. व्यापार करिए ना फिर. आपके बेटे की कंपनी में बहुत कमाई होती है, उसी को ज्वाइन करिए आप. पब्लिक की तो जान छोड़िए. संविधान की पटरी पर वापस ले आईए राजनीति को. मुझे भरोसा हो गया है कि आप उसी राजनीति पर चलेंगे अगले चुनाव तक. अब राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का चुनाव आ रहा है. वहां की जनता आपको कुछ सबक सिखाएगी, ऐसी मुझे उम्मीद है. देखिए क्या होता है.
ईवीएम का सवाल ज़िंदा है
मैं हिन्दू हूं, हिन्दुत्व नहीं हूं. यदा-यदा हि धर्मस्य…कृष्ण ने कहा है कि जब-जब धर्म का पतन होगा मैं आऊंगा. कभी किसी रूप में, तो कभी किसी रूप में. अभी सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों के रूप में आ गए और कर्नाटक में लोकतंत्र बचा लिया. राज्यपाल महोदय को थोड़ी भी शर्म हो, तो उन्हें इस्तीफा देकर चले जाना चाहिए था. नहीं तो कम से कम घर बैठ जाना चाहिए. इस देश में इस्तीफा देने की परंपरा तो है ही नहीं. जिसको जो सुख भोगने का मौका मिलता है, वह तो छोड़ता ही नहीं है. मुझे उम्मीद नहीं है वजुभाई वाला से, जो नौ साल वित्त मंत्री थे मोदी जी के. वे मोदी जी के खास आदमी हैं. वे इस्तीफा नहीं देंगे. कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं. वह यूपी और बिहार नहीं है. इसलिए उसको मैं राजनीतिक दृष्टि से ज्यादा महत्व नहीं देता हूं. लेकिन जो घटनाक्रम हुआ है, उससे उम्मीद जगी है कि चुनाव आयोग है और सुप्रीम कोर्ट भी है. अब अगला मसला आएगा ईवीएम मशीनों का.
चुनाव आयोग तो अड़ा बैठा है कि मशीनों में कोई खराबी नहीं है. लेकिन अचंभे की बात यह है कि जब भी मशीन में गड़बड़ी की कोई शिकायत आती है और पूछताछ होती है, तो पता चलता है कि उस तकनीकी खराबी की वजह से भाजपा को फायदा हुआ. अगर मशीनों में गड़बड़ी हो सकती है और मान लीजिए कि कोई जानबूझकर यह गड़बड़ी नहीं करता है, फिर तो इससे कभी किसी को फायदा होना चाहिए और कभी किसी को. लेकिन फायदा हर बार भाजपा को मिल रहा है, फिर तो उंगली उठेगी ही. कहीं तो कुछ गड़बड़ है. सभी देशों ने इसे ट्राई करके छोड़ दिया और हम चिपक कर बैठे हैं, क्यों? रिजल्ट एक दिन में आ जाए या चार दिन बाद आए, इससे क्या फर्क पड़ता है? अगला चुनाव बैलेट पेपर कर कराइए. ईवीएम मशीन और आधार कार्ड टेक्नोलॉजी का फायदा मत उठाइए. किसी को आपने एक कॉन्ट्रैक्ट दे दिया ईवीएम मशीन बनाने का, फिर तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.