पहले भी कमेटियां कर चुकी हैं काम

वक्फ एक्ट के मुताबिक ना सांसद मौजूद हैं और ना ही भाजपा का कोई मुस्लिम विधायक। तेजी से बढ़ते वक्फ विवादों को उचित राह देने अब बोर्ड की जरूरत भी महसूस हो रही है। इस हालात से उबरने के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार ने एक कमेटी गठन की तरफ कदम बढ़ा लिए हैं। पूर्व में काम कर चुकी ऐसी कमेटियों को आधार बनाकर इस कमेटी को आकार दिया जाएगा। तय योजना के मुताबिक काम हुआ तो इसी महीने के आखिर तक वक्फ की संपत्तियों की देखरेख वाली ये कमेटी वजूद में आ सकती है।

सूत्रों का कहना है कि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग वक्फ बोर्ड के संचालन के लिए एक कमेटी गठन का मन बना चुकी है। इसके लिए पूर्व में काम कर चुकीं आलमगीर गौरी और शौकत मोहम्मद खान की कमेटियों को आधार बनाया जा रहा है। सूत्रों का कहना है इस कमेटी में दाखिल होने के लिए मुस्लिम भाजपाइयों की लंबी कतार है। सबके अपने दावे और सबकी अपनी पहुंच के हालात देखते हुए मामला भाजपा संगठन की तरफ धकेल दिया गया है। हालांकि मामले में आखिरी फैसला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लिए जाने की बात कही जा रही है।

बोर्ड गठन की मुश्किलें

वक्फ अधिनियम 1995 और इसके संशोधन के मुताबिक मप्र में मौजूद वक्फ संपत्तियों की तादाद के लिहाज से यहां 13 सदस्यीय सम्पूर्ण बोर्ड बनाने का प्रावधान है। जिसमें एक वर्तमान या पूर्व सांसद और विधायक, एक मुतवल्ली श्रेणी का सदस्य, एक एक मुस्लिम और शिया समुदाय का आलिम, एक सामाजिक कार्यकर्ता, एक बार कौंसिल का मेंबर, एक सरकारी प्रतिनिधि आदि का शामिल होना अनिवार्य है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि सांसद और विधायक श्रेणी से शामिल किए जाने के लिए भाजपा के पास कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं है। मुस्लिम विधायक के रूप में प्रदेश में आरिफ अकील और आरिफ मसूद मौजूद हैं, लेकिन भाजपा इनमें से किसी को अध्यक्ष के तौर पर स्वीकार नहीं करेगी। ये जरूर हो सकता है कि नियम के पालन में इनको या इनमें से किसी एक को बतौर सदस्य शामिल कर सकती है। इधर फिलहाल मुतवल्ली श्रेणी के सदस्य के लिए भी फिलहाल चुनाव प्रक्रिया न हो पाने से पूर्ण गठन की राह रुक सकती है।

इसलिए है जल्दबाजी

पिछले दिनों राजधानी में कबाडख़ाना स्थित कब्रिस्तान को लेकर विकट स्थिति बनी थी। बोर्ड के वजूद में रहने से इस स्थिति से बचा जा सकता था। सूत्रों का कहना है प्रदेश सरकार बोर्ड में अपनी मनचाही कमेटी को नियुक्त कर भविष्य में बनने वाले ऐसे हालात से बचना चाह रही है। कारण यह है कि किसी कमेटी के वजूद में रहने से किसी भी तरह की मुश्किल को उक्त कमेटी या बोर्ड के फैसले को आधार बताया जा सकता है।

खान आशु

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