मोदी सरकार और माइक्रोब्लागिंग सोशल नेटवर्किंग सेवा ट्विटर के बीच ताजा टकराव क्या सोशल मीडिया में भी स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा या फिर यह भी एंटी पब्लिसिटी की नई रणनीति है? यह सवाल इसलिए कि महाकाय सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म ट्विटर ने भारत सरकार द्वारा आदेशित कई अकाउंट्स को बंद करने से इंकार कर दिया है। ट्विटर के मुताबिक उसने हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी किए गए आदेशों के अनुरूप कुछ कार्रवाई की है, लेकिन वह मीडिया संस्थाओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और नेताओं से जुड़े ट्विटर एकाउंट को ब्लॉक नहीं करेगा।
ट्विटर इंडिया ने अपने एक ब्लाॅगपोस्ट में कहा कि ऐसा करना भारतीय कानून के तहत उनके अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। ट्विटर ने यह भी कहा कि वह ट्विटर और प्रभावित हुए ट्विटर एकाउंट दोनों के लिए भारतीय कानून के तहत विकल्पों को तलाश कर रहा है। अगर ट्विटर नहीं मानी तो भारत सरकार उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करती हैल यह देखने की बात है।
उधर मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने एक भारतीय सोशल नेटवर्किंग साइट ‘कू’ पर अपने अकाउंट शुरू कर दिए हैं। केन्द्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने सोशल मीडिया पर बाकायदा इसकी जानकारी दी। ‘कू’ नामक इस नए एप को दो भारतीयों ने ही तैयार और लांच किया है। इसे पिछले साल आत्मनिर्भर भारत अवाॅर्ड भी मिल चुका है। भारत में ‘कू’ के यूजर कितने हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसके प्रमोटरों का दावा है कि हाल तक 30 लाख लोगों ने इसे डाउनलोड किया है।
अगर बड़ी तादाद में भारतीय यूजर ट्विटर से कू पर शिफ्टे होते हैं तो यह ट्विटर के लिए भी बड़ा झटका होगा।
बहरहाल मीडिया की लड़ाई अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है, जहां एक तरफ माइक्रोब्लाॅगिंग में भी आत्मनिर्भरता की बात हो रही है तो दूसरी तरफ मीडियाकर्मियों पर चलते रस्ते राजद्रोह के मुकदमे भी कायम हो रहे हैं। ऐसे लोगों को सुप्रीम कोर्ट से जमानतें लेनी पड़ रही हैं। जहां तक सोशल मीडिया की बात है तो उस पर लोग अपनी बात मनमाने ढंग से रखते रहे हैं। और यह केवल एक तरफा व्यापार नहीं है।
सोशल मीडिया की वर्चुअल लड़ाइयां ‘महायुद्ध’ में बड़ी तेजी से तब्दील हो जाती हैं। चूंकि 21 वीं सदी में सोशल मीडिया ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का सबसे बड़ा झंडाबरदार गया है, इसलिए सरकारें अब इस प्लेटफार्म को लेकर चिंतित होने लगी हैं, डरने भी लगी हैं। गौरतलब है कि देश की राजधानी नई दिल्ली में ढाई माह से जारी किसान आंदोलन के संदर्भ में ‘गलत सूचनाएं’ फैलाने वाले और पाकिस्तान और खालिस्तान से जुड़े खातों पर भड़काऊ सामग्री डालने पर भारत सरकार ने गत 4 फरवरी को ऐसे 257 खातों को हर हाल में ब्लाॅक करने का आदेश दिया था।
इसके पहले भी सरकार ने ट्विटर को किसानों के नरसंहार’ जैसे गुमराह करने वाले हैशटैग व हैंडल्स पर अंकुश लगाने के लिए कहा था। सरकार का मानना है कि इन ट्वीट्स के पीछे असली मंशा कुछ और है। सरकार ने ट्विटर को चेतावनी दी थी कि अगर उसने ये विवादित अकाउंट ब्लाॅक नहीं किए तो उसके खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
उधर ट्विटर ने अपने ब्लाॅग पोस्ट में कहा कि आज हमने भारत में ‘विदहेल्ड कंटेंट पॉलिसी’ के तहत कुछ एकाउंट के पॉर्शन पर रोक लगाई है। ये ट्विटर एकाउंट भारत से बाहर उपलब्ध हैं। क्योंकि हमें नहीं लगता कि जो आदेश हमें दिए जा रहे हैं, वे भारतीय कानून के अनुरूप हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हमारे सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए हमने उन एकाउंट के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है, जो मीडिया संस्थाओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और नेताओं से जुड़े हुए हैं।
हमारा विश्वास है कि ऐसा करने से उनके भारतीय कानून के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।’ यह बयान दर्शाता है कि ट्विटर सभी ‘आपत्तिजनक’ खाते बंद करने के भारत सरकार के आदेश से सहमत नहीं है और उसे सरकार के साथ टकराव बढ़ने की ज्यादा चिंता नहीं है। जिसे सरकार ‘आपत्तिजनक’ मान रही है, वह ट्विटर की नजर में ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ है।
इस विवाद के बीच भारत सरकार के कई मंत्रियों तथा कुछ नामी हस्तियों ने भी अपने खाते नवोदित भारतीय सोशल नेटवर्किंग नेटवर्क ‘कू’ पर खोलना शुरू कर दिया है। फेसबुक पर इसका विज्ञापन पिछले कई दिनो से देखा जा रहा था। भारतीयों और खासकर मीडियाकर्मियों से ‘कू’ से जुड़ने का आह्वान किया जा रहा था। सवाल यह है कि यह ‘कू’ है क्या? इसकी स्थापना स्टार्टअप मास्टर अप्रमेय राधाकृष्ण और मयंक बिदावाटक ने मार्च 2020 में की थी। यह एंड्रायड और अन्य प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध है। खास बात यह है कि कू लगभग सभी भारतीय भाषाओँ में माइक्रोब्लागिंग की सुविधा देती है। इसीलिए कू एप को ‘वाॅयस ऑफ इंडिया’ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। कुछ वैसे ही कि जैसे ‘अमूल’ ‘टेस्ट ऑफ इंडिया’ है।
निश्चय ही एक स्वदेशी माइक्रोब्लाॅगिंग नेटवर्किंग साइट के रूप में ‘कू’ का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन ‘कू’ की नीति क्या होगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है। कू के सीईअो अप्रमेय राधाकृष्ण का कहना है कि विशेषज्ञों की एक टीम जल्द ही कू की नीति तय करेगी। लेकिन यह ट्विटर की ‘हेडमास्टर जैसी नीति’ अपनाने से परहेज करेगी। लेकिन कू भारत के नियम-कायदों को मानेगी। एक भारतीय एप को बढ़ावा देने और परोक्षत: अमेरिकी माइक्रोब्लागिंग साइट ट्विटर को झटका देने के मकसद से कई मंत्री ‘कू’ पर जा रहे हैं।
लेकिन इसमें खतरा यह है कि कू कहीं सरकारी तंत्र की प्रतिनिधि नेटवर्किंग साइट बनकर न रह जाए। अगर ऐसा हुआ तो सोशल नेटवर्किंग साइट का मूल उद्देश्य ‘हरेक को अपनी बात कहने की आजादी’ ही पराजित हो जाएगा। यह सही है कि कुछ लोग इन नेटवर्किंग सुविधाओं का दुरूपयोग अपने निहित स्वार्थों और एजेंडों के लिए कर रहे हैं, उन पर अंकुश लगना चाहिए। लेकिन हर अभिव्यक्ति, स्वतंत्रता का दुरूपयोग ही है और वह राजद्रोह है, यह सोच भी बोलने की स्वतंत्रता को ही अस्वीकार करने जैसी है।
सवाल यह भी उठ रहा है कि ‘कू’ का वैचारिक रूझान क्या होगा? वामपंथी या दक्षिणपंथी? इसके जवाब में राधाकृष्ण का इतना ही कहना है कि यह प्लेटफार्म हर मुददे पर ‘स्वस्थ बहस’ को प्रोत्साहित करेगा। विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के लोग हमारे प्लेटफार्म से जुड़ रहे हैं। सवाल पूछा जा सकता है कि क्या ‘कू’ ट्विटर की ‘ट्वीट’ का सही स्वदेशी माइक्रोब्लागिंग जवाब साबित होगा? क्या ट्विटर भारत सरकार की चेतावनियो के बाद बैक फुट पर जाएगी या फिर यहां उसके कारोबार पर विपरीत असर होगा? कहा जा रहा है कि ‘कू’ में बहुत से फीचर वही हैं, जो ‘ट्विटर’ में हैं।
लेकिन कुछ असमानताएं भी हैं। अगर दोनो माइक्रोब्लाॅगिंग साइट्स के ‘लोगो’ की ही बात करें तो ट्विटर की चिडि़या का स्वरूप गौरेया से लिया लगता है, जबकि ‘कू’ का लोगो कोयल से प्रेरित है। ‘ट्विटर’ की चिडि़या का रंग नीला है तो ‘कू’ की चिडि़या पीला रंग लिए हुए है। ट्विटर की चिडि़या उड़ती हुई सी है तो कू की चिडि़या जमीन पर कूकती लगती है। उसकी आंखें भी साफ दिखती है, जबकि ट्विटर की चिडि़या की आंखे उसके बाह्यरूपाकार में ही समाहित हैं।
यानी मुकाबला कोयल की कूक और चिडि़या की चहक के बीच है। कोयल की कूक में एक मंगल भाव निहित रहता है, ट्वीट में ऐसा ही हो, यह जरूरी नहीं है। ट्वीट तल्खी और कटु आलोचना भरे भी हो सकते हैं, ‘कू’ को अभी साबित करना है कि वह सावन की फुहारों के साथ बादलों की गड़गड़ाहट को भी उसी शिद्दत से व्यक्त करने देगी, जो लोकतंत्र के जिंदा होने का सूचक भी है। माइक्रोब्लाॅगिंग में भी भारत आत्मनिर्भर बने, यह स्वागत योग्य है, लेकिन उस बुनियादी प्रतिबद्धता के साथ, जिसके बूते पर सोशल मीडिया की प्रासंगिकता बनी हुई है।
वरिष्ठ संपादक
अजय बोकिल