सूरत से शुरू हुआ कपड़ा व्यापारियों का आंदोलन जब तक दिल्ली पहुंचता, उनका तेवर ढीला पड़ चुका था. जीएसटी पर विरोध के सुर बदलते ही आंदोलन भी दोफाड़ हो गया. इस हालात में कपड़ा व्यापारियों के लिए हड़ताल जारी रखना एक आत्मघाती कदम होता.
सरकार से वार्ता के लिए सूरत से दिल्ली पहुंचे कपड़ा व्यापारियों में मतैक्य नहीं था. आठ व्यापारी नेताओं में से 4 तो अरुण जेटली से बिना मिले ही वापस लौट आए, जो बचे उनमें भी इतना साहस नहीं बचा था कि वे सरकार से जीएसटी रेट (वस्तु एवं सेवा कर) पर दृढ़ता से अपनी बात रख सकें. इसी बीच जब पुलिस व्यापारियों को उठा-उठाकर जेल भेजने लगी, तब व्यापारियों ने सरेंडर करना ही उचित समझा. खबर है कि पुलिस ने करीब 1000 लोगों को दंगा भड़काने के आरोप में जेल भेज दिया है.
सरकार के कड़े रुख से व्यापारियों ने यह भांप लिया था कि जीएसटी रेट में कोई बदलाव नहीं होने वाला है, इसलिए जीएसटी के सरलीकरण के आश्वासन पर ही उन्होंने 21 दिनों से जारी हड़ताल खत्म कर दी. कह सकते हैं कि व्यापारियों की आपसी फूट, विपक्षी दलों का सहयोग नहीं मिलना और पुलिस द्वारा दंगों का मामला दर्ज किए जाने के दबाव से कपड़ा व्यापारियों की रही-सही एकता बिखर गई.
हालांकि, कपड़ा व्यापारियों को अब भी सरकार से उम्मीद है. उन्हें 5 अगस्त को होनेवाली जीएसटी की मीटिंग का इंतजार है, जिसमें उनकी मांगों पर विचार किया जा सकता है. वहीं व्यापारियों के एक घड़े का कहना है कि हमारे नेता सबको साथ लेकर नहीं चल सके. अगर सरकार से बातचीत के मुद्दे पहले से ही तय होते, तब परिणाम कुछ और होता. अब तो मीटिंग छोड़कर चले गए नेताओं पर भी सवाल उठने लगे हैं.
कुछ व्यापारियों का कहना है कि अगर दुकान खोलनी ही थी, तो एक बार दुकानदारों से वोटिंग करवाकर उनका पक्ष भी जान लिया गया होता. इसके साथ ही व्यापारियों ने संघर्ष समिति भंग करने का फैसला किया है. अब नई कमिटी आगे की रणनीति तय करेगी. आइए जानते हैं कि आखिर सूरत में ऐसे हालात क्यों बने और सरकार कपड़ा व्यापारियों की मांगों को क्यों अनसुना कर रही है?
त्योहारों के सीजन में गुलजार रहने वाले सूरत बाजार में आज सन्नाटा पसरा है. रोजगार छिन जाने से हर रोज करीब 16 हजार कारीगर शहर छोड़कर जा रहे हैं. अनुमान के मुताबिक जीएसटी लागू होने के बाद से दो लाख मजदूर शहर से पलायन कर चुके हैं. सूरत के कपड़ा उद्योग का शटर 21 दिनों तक गिरा रहा, जिसके कारण 27 हजार करोड़ से अधिक का कारोबार प्रभावित हुआ है. वहीं अनुमान है कि इस दौरान देश भर में सिर्फ कपड़ा उद्योग को 40 हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है. कारोबारियों का कहना है कि अब अगर मार्केट खुल भी गया, तो त्योहार का सीजन हाथ से निकल जाएगा. दशहरा और दिवाली के लिए महीनों पहले से तैयारी करनी पड़ती है.
सूरत से कारीगरों के पलायन से भी स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गई. अगर कुछ दिनों में सूती मिलों के थमे पहिए चलने भी लगें, तो कारीगरों के नहीं होने से कारोबार ठप हो जाएगा. सूरत में वस्त्र उद्योग से जुड़े विभिन्न कार्यों जैसे एम्ब्रॉयडरी, हैण्डलूम, डाइंग और पैकेजिंग से करीब 9 लाख कारीगर जुड़े हैं. हालत यह है कि पावरलूम मशीनें सूत नहीं मिलने के कारण बंद पड़ी हैं. पावरलूम मालिकों का कहना है कि जीएसटी नंबर नहीं होने से वे न तो कच्चा माल खरीद पा रहे हैं और न ही तैयार माल बेच पा रहे हैं.
जीएसटी की अनिश्चितताओं के कारण जून से ही कपड़ों की बिक्री में भारी गिरावट दर्ज की गई थी, जो अब बिल्कुल थम गई है. वहीं कुछ व्यापारियों का कहना है कि बड़े कारोबारियों पर जीएसटी और हड़ताल का खास फर्क नहीं पड़ा है, लेकिन उद्योग से जुड़े छोटे व्यापारी और मजदूर सड़क पर आ गए हैं.
प्रधानमंत्री के गृहप्रदेश गुजरात में हजारों कपड़ा व्यापारी व कारीगर सड़क पर विरोध-प्रदर्शन करते रहे, लेकिन सरकार इस आंदोलन से बेखबर होने का स्वांग करती रही. 17 जुलाई को वित्त मंत्री अरुण जेटली के आश्वासन के बाद कपड़ा व्यापारियों ने हड़ताल खत्म करने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन वे बारीकी से स्थितियों पर नजर रखे हैं. जेटली ने कहा था कि जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में टेक्सटाइल्स पर लगे जीएसटी रेट पर विचार किया जाएगा.
लेकिन इसके बाद राज्य सभा में दिए एक बयान में उन्होंने स्पष्ट कहा कि कपड़े पर टैक्स नहीं घटाया जाएगा. फैब्रिक पर जीएसटी रेट जीरो प्रतिशत करने से घरेलू उद्योगों को इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा. इससे यहां बने कपड़ों की अपेक्षा आयातित कपड़े सस्ते हो जाएंगे. केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड(सीबीईसी) की अध्यक्ष बनाजा सरना ने भी कहा कि किसी भी वस्तु या सेवा पर लगे जीएसटी रेट में तब तक कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा, जब तक सरकार को ऐसा नहीं लगे कि वह अनुचित है.
उन्होंने यह भी कहा कि टेक्सटाइल क्षेत्र पहली बार टैक्स के दायरे में आया है, इसलिए ज्यादा विरोध हो रहा है. हालांकि सरकार का तर्क है कि 2003-04 में भी कपड़ा सेक्टर पर एक्साइज ड्यूटी लगा था. वहीं इंडस्ट्री का दावा है कि टैक्स से फैब्रिक 10-12 प्रतिशत तक महंगे हो जाएंगे, जिसका असर कपड़ों के निर्यात पर पड़ेगा. सरकार के रुख से कपड़ा व्यापारी भी कशमकश में हैं. वे वित्त मंत्री अरुण जेटली का विरोध तो कर रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक शब्द भी बोलने को तैयार नहीं हैं. कपड़ा व्यापारियों को प्रधानमंत्री से उम्मीद है कि वे उनकी मांगों को जरूर सुनेंगे और उन्हें डूबने से बचा लेंगे.
सूरत की टेक्सटाइल संघर्ष समिति के संयोजक ताराचंद कासट कहते हैं कि हम जीएसटी के खिलाफ नहीं हैं, पर इसके लागू करने के तौर तरीकों से असंतुष्ट हैं. कपड़ा व्यापारी अभी तक सिर्फ धागे या कपड़े पर जीएसटी को 1 अप्रैल तक टालने की मांग कर रहे थे. इसके अलावा साल में 37 रिटर्न भरने के नियम को भी वे पेचीदा बता रहे हैं. वहीं टेक्सटाइल संघर्ष समिति के एक धड़े का कहना है कि अगर सरकार ने कपड़े पर लगा जीएसटी वापस नहीं लिया, तब हम आंदोलन और तेज करेंगे. नाराज व्यापारियों का कहना है कि सरकार जीएसटी के सरलीकरण का मात्र आश्वासन दे रही है, जिसे हम किसी कीमत पर मंजूर नहीं करेंगे.
नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने यूपीए सरकार की जीएसटी नीति का विरोध किया था. प्रधानमंत्री बनते ही अब वे जीएसटी के मुखर प्रवक्ता बन गए हैं. जीएसटी लागू करने की केंद्र सरकार की बेचैनी विपक्षियों की समझ से परे है. तमाम विपक्ष अब यह जानना चाहता है कि तब उन्होंने जीएसटी के विरोध में क्या तर्क दिए थे? इसके साथ ही, लोग यह भी जानना चाहते हैं कि अब गुजरात सरकार की जीएसटी पर क्या राय है?
जीएसटी पर अधूरा होमवर्क
सरकार आज भी व्यापारी वर्ग को राहत देने के लिए कई वस्तुओं और सेवाओं पर लगे जीएसटी रेट की समीक्षा कर रही है. जीएसटी के बाद सिगरेट सस्ती होने पर जब सवाल उठने लगे, तो सरकार ने उस पर अलग से 5 प्रतिशत सेस लगा दिया. व्यापारी संगठन जीएसटी लागू करने से पहले सलाह-मशविरा नहीं किए जाने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं ई-कॉमर्स कंपनियां भी कह रही हैं कि इससे उनका काम मुश्किल हो जाएगा. यही मांग कई अन्य क्षेत्रों से भी उठ रही है, ऐसे में क्या ये बेहतर नहीं होता कि जीएसटी की दरें तय किए जाने से पूर्व सरकार अपना होमवर्क कर लेती.
कपड़ा पर जीएसटी की दरें
- कृत्रिम धागा (पॉलिस्टर)-18 प्रतिशत
- प्राकृतिक धागा (कॉटन, सिल्क, वूल)-5 प्रतिशत
- रेडीमेड कपड़ा (1000 रुपए तक)-5 प्रतिशत
- रेडीमेड कपड़ा (1000 रुपए से ज्यादा)-12 प्रतिशत