सियासत जो करे कम है… सारी दुनिया में डंका बजा चुकी महामारी अपने देश_प्रदेश में मुंह छिपाए पालतू कुत्ते की तरह पड़ी दिखाई दे रही है…! सियासी पट्टा लपेटे बीमारी उसी शहर, सूबे या इलाके की तरह भमोड़ाने लपकती है, जिसकी तरफ इसके आका छू कह दें…! कई महीनों तक नियंत्रण में रहे Corona को डर से मारने के सारे हथकंडे अपनाए गए… दवा भी आ गई, इलाज के इंतजाम भी पुख्ता हो चुके, लोगों को भरोसे का काढ़ा भी पिला दिया गया…!
फिर एक चलती हुई महा_सरकार को गिराने की तैयारी शुरू हुई… देश के दिल पर मूंग दलते लोगों से दिक्कत हुई… हठधर्मिता के साथ अपनी बात पर अड़े किसानों से दुनियाभर में किरकिरी के नज़ारे बनने लगे…! पिंजरा खुला और महामारी का मोती छू कर दिया गया….!
फिर इलाज के मुकाबले सियासी पैंतरों की बाजीगिरी…! जेब में रखे मीडिया की मुट्ठियां गर्म, आंकड़ों का जादू फिर शबाब पर…! लोग बढ़ते आंकड़ों और अंधाधुंध होती मौत से घबराने भी लगे हैं…! लेकिन डरे हुए इन लोगों के कमजोर हो चुके मानस पटल पर एक सवाल हथौड़े चलाने से नहीं चूक रहा…! जो जिम्मेदार यहां कहते फिर रहे हैं, घरों में रहना ही जीवन है… वह वहां क्यों कहते पाए जा रहे हैं कि अब घर से नहीं निकले तो कभी विकास गंगोत्री में डुबकी लगाने लायक नहीं बचोगे…!
देश के कई हिस्सों में हो रही चुनावी बरसात के छींटे मप्र की धरती पर बिखरे हैं…. यहां से लेकर वहां तक Corona Curfue, साठ घंटों की नाकाबंदी, बाजारों की तालाबंदी, गरीबों के चूल्हे जलने पर पाबंदी… लेकिन The मोह का ऐसा मोह, लोग आंखें फाड़े इस बेइंसाफी को निहार रहे हैं, अपने कर्णधारों की करतूत पर निहाल रहे हैं…!
पुछल्ला
मौका है इस बार….!
दुनिया के लिए मुश्किल भरा साल जीवनदाता कहलाने वाली जमात के लिए वरदान बनकर आया। पिछले सीजन में जमकर चांदी काटने वाले फिर से उस्तरा तेज कर ऑक्सीजन से लेकर इंजेक्शन तक, बेड से लेकर चादर तक, स्टाफ से लेकर स्वीपर तक के नाम पर लोगों की चमड़ी उतारने पर आमादा हैं। सरकारी अफसर अपना हिस्सा तय कर हाथ बांधे खड़े हो गए। सरकारें सिर्फ कागजों पर इलाज के रेट तय कर खुद की पीठ थपथपा रहे हैं। गुंडई करने वालों, हक दबाने वालों, समाज के माथे पर कलंक हो चुके लोगों को जमीन में धंसा देने के नाम प्रदेश को धमकाने वाले बीमारी और चुनाव की दो नावों पर सवार घूम रहे हैं।