अब इसे अचम्भा नहीं मानना चाहिए कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, खासकर लोकसभा चुनाव, वैसे-वैसे पूरा चुनाव राम के आस-पास समेटने की कोशिश की जा रही है. विपक्ष चुनाव जीतेगा या नहीं, एक होगा या नहीं और जनता उसे कितना समर्थन देगी, ये एक अलग प्रश्न है. इसका उत्तर अनिवार्य रूप से तलाशा जाना चाहिए. लेकिन कई सवाल हैं. जैसे, क्या देश में नए सिरे से राम लहर पैदा होगी? लोग मंदिर बनाने के लिए फिर से भारतीय जनता पार्टी को वोट देंगे? क्या जनता उन वादों को याद नहीं करेगी, जिन्हें 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में भारतीय जनता पार्टी ने लोगों के सामने रखा था या फिर खुद प्रधानमंत्री मोदी ने देश के विकास के लिए पचास से ज्यादा घोषणाएं की थीं? उनमें से कितनों में हमने पूर्णता प्राप्त की, कितनों में अपूर्णता प्राप्त की, कितनों की शुरुआत नहीं हुई और कितने फ्लॉप हो गए?
हमने कुछ महीनों पहले चौथी दुनिया के जरिए देश के लोगों को एक जानकारी दी थी. वो जानकारी ये थी कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश संभवतः अपने रिटायरमेंट से पहले राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर कोई फैसला देंगे. वो फैसले दो हो सकते हैं. लेकिन, उससे पहले यह धर्म का विवाद नहीं है, जमीन का विवाद है, जैसा कि अब सुप्रीम कोर्ट कह रहा है. तो ये जमीन किसकी है? यह जमीन राम जन्मभूमि की है या बाबरी मस्जिद के पक्ष में मुकदमा लड़ने वाले पक्षकारों की है? जब इस पर फैसला आए और अगर ये फैसला बाबरी मस्जिद के पक्ष में आए, तो उस स्थान पर मंदिर बनाने के लिए फौरन एक अध्यादेश जारी कर दी जाए. लोकसभा भंग कर देश के लोगों का विश्वास प्राप्त करने की बात की जाए और दिसंबर से पहले आम चुनाव हो जाएं. ये सब कयास हैं. लेकिन इन कयासों के पीछे एक ही सच्चाई है कि ये सारी खबरें हमें सत्तारूढ़ तबके के अंदरूनी सूत्रों से मिल रही हैं. हम ये कह सकते हैं कि हमारे ये सूत्र गपोड़ी नहीं हैं, जुमलेबाज नहीं हैं.
अदालत का फैसला कैसा आएगा? इसके बारे में दो राय हैं. एक राय ये है कि न्यायालय संभवतः यह कहेगा कि ये जमीन उन लोगों की है जो राम मंदिर बनाना चाहते हैं. इसके विपरीत जो फैसला आएगा वो मुझे काफी खतरनाक लगता है. वो फैसला हो सकता है कि ये जमीन उनकी है, जो यहां बाबरी मस्जिद बनाना चाहते हैं. हमने अपने सूत्रों के जरिए जितनी जांच-पड़ताल की, उनसे यही लग रहा है कि राम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला आता है तो इससे भारतीय जनता पार्टी को कोई बहुत फायदा नहीं होगा, लेकिन अगर ये फैसला बाबरी मस्जिद के पक्ष में आता है, तब भारतीय जनता पार्टी को देश में अभूतपूर्व फायदा हो सकता है. वह फायदा यह हो सकता है कि देश एक बार फिर हिन्दू और मुस्लिम विचारधारा में बंट जाए. जनता उन सारे सवालों को दरकिनार कर दे, जो रोजी-रोटी, शिक्षा, महंगाई, बेरोजगारी, नौकरी, मल्टीनेशनल कंपनियों का आधिपत्य, किसानों की आत्महत्या से संबंधित है. और देश में राम मंदिर बनना चाहिए, सिर्फ इसी नारे को लेकर चुनाव हो जाए.
केन्द्र सरकार न्यायालय के इस फैसले के विरोध में उस जमीन को अधिग्रहित कर राम मंदिर बनाने की बात कर सकती है और बाबरी मस्जिद के लिए वहां से थोड़ी दूर जमीन दे सकती है, जिसके लिए शिया वक्फ बोर्ड पहले ही सरकार के पास प्रस्ताव भेजता रहा है. शिया वक्फ बोर्ड भी इस मामले में एक पक्षकार है. यदि बाबरी मस्जिद के पक्ष में फैसला आता है, तो देश को दो ध्रुवों में बांटना बहुत आसान हो जाएगा. इससे 2019 का चुनाव 100 प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में जा सकता है. भारतीय जनता पार्टी के मुख्य रणनीतिकारों में से एक, आपसी बातचीत में इस बात को स्वीकार करते हैं.
इसके बावजूद, भारतीय जनता पार्टी यह मानती है कि उसे 2019 के चुनाव में अपने दम पर संसद में दो तिहाई सीटें लानी हैं. अब भाजपा को अपने सहयोगी दलों पर कोई भरोसा नहीं है, भले ही सहयोगी दल शिव सेना हो या रामविलास पासवान जैसे दलित नेता हों. भाजपा ने देख लिया है कि ये सभी लोग थोड़े संकट के आते ही अपना अलग रास्ता तलाश सकते हैं. भारतीय जनता पार्टी को इस बात का भी अहसास है कि उत्तर प्रदेश में उसे सीटों का नुकसान हो सकता है.
नए मिले संकेतों के हिसाब से अगर सपा-बसपा मिलकर चुनाव लड़ते हैं और कांग्रेस अलग चुनाव लड़ती है तो भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हो जाएगा. ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी को मिलने वाले वोटों का एक हिस्सा कांग्रेस की तरफ चला जाएगा. उस विकट परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी दक्षिण में अपना पूरा जोर लगा रही है. दक्षिण में चाहे केरल, कर्नाटक या आंध्रप्रदेश हो या ओड़ीशा, भाजपा हर जगह स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रही है. कर्नाटक में चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने येदुरप्पा को नेता बनाया, ताकि लिंगायत वोट उनके साथ आए. इसे भाजपा लोकसभा के चुनाव में भी इस्तेमाल कर सकती है.
पहली बार कांग्रेस ने वहां एक अकाट्य चाल चली. कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय के लोगों को अलग पहचान देने की बात उठाकर हिन्दुओं के बीच में ही बंटवारा करा दिया. वैसे यह अद्भुत तथ्य है कि लिंगायत कोई जाति नहीं थी. इस तथ्य से उत्तर भारत के लोग भी अनजान हैं. लिंगायत एक जीवनशैली थी, जिसमें बहुत सारे दलित और ब्राह्मण शामिल हुए थे. कालान्तर में लिंगायत समूह जाति में परिवर्तित हो गया. लिंगायतों में जो दलित और बैकवर्ड शामिल हुए थे, उन्हें तो आरक्षण का लाभ मिला, लेकिन जो अगड़े शामिल हुए थे, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला. अब उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिले, इसकी घोषणा कांग्रेस ने की है. इससे भारतीय जनता पार्टी सकते में है.
भाजपा उसका विरोध नहीं कर पा रही है, बल्कि येदुरप्पा ने तो उसका समर्थन किया है. नीचे गिरने की भी अब कोई सीमा नहीं रह गई है. न कहीं देश है, न समाज है, न मूल मुद्दे हैं. महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, नौकरी, सड़क, अस्पताल, स्कूल और किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य, अब ये मुद्दे नहीं रह गए हैं. अब मुद्दे बुनियादी तौर पर भावनात्मक हो गए हैं और इन मुद्दों को चुनाव में किस तरह से अपने पक्ष में इस्तेमाल किया जाए, यही रणनीति अब सभी दल बनाते हैं. कांग्रेस ने पहली बार ऐसी रणनीति बनाकर भारतीय जनता पार्टी के हिन्दू-मुस्लिम कार्ड को असफल करने की कोशिश की है.
कर्नाटक के एक बड़े हिस्से में लिंगायत और मुसलमानों के बीच में काफी तनाव रहता था. वहां बड़े दंगे होने के अनुमान थे, क्योंकि वहां पहले भी दंगे हो चुके हैं. लेकिन सिद्धारमैया के फैसले ने हिन्दू-मुस्लिम दंगों को एक किनारे कर दिया. अब वहां हिन्दुओं के बीच में ही दंगे होने की स्थिति आ गई है. हिन्दू बनाम हिन्दू का सवाल खड़ा हो गया है. आंध्र प्रदेश, ओड़ीशा, केरल, इन सब में पार्टी ने यात्राएं निकाली हैं और रामराज्य यात्रा शुरू की है. 2019 की आहट में या चुनावी साल शुरू होने के दौरान भारतीय जनता पार्टी या संघ को दक्षिण में रामराज्य यात्रा की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये प्रश्न है और यही मुख्य प्रश्न भी है. हमने पहले भी कहा था कि पूरे देश को राममय करने की एक कोशिश नए सिरे से शुरू हुई है. अंदाजा है कि ये सभी कोशिशें मिलकर देश को एक साम्प्रदायिक धरातल पर ले जाएंगी और बुनियादी मुद्दों को कूड़े के ढेर में फेंक देगी.
दुर्भाग्य की बात यह है कि न तो भारतीय जनता पार्टी में अब अटल बिहारी वाजपेयी जैसा कोई नेता बचा है और न ही विपक्ष में डॉ. लोहिया जैसा कोई नेता है. डॉ. लोहिया को छोड़ भी दें तो वीपी सिंह, चंद्रशेखर, मुलायम सिंह या कांशी राम जैसे स्तर का कोई नेता हो. इसलिए सभी दल आसानी से भारतीय जनता पार्टी की रणनीति में उलझते दिख रहे हैं. इसमें मुझे कोई संदेह नहीं कि जब अखाड़ा भारतीय जनता पार्टी का होगा, तो जीत भी भारतीय जनता पार्टी की ही होगी. विपक्ष में अपना अखाड़ा बनाने की क्षमता नहीं है, अपने मुद्दे उठाने की क्षमता नहीं है और सबसे बात कर सबको एक जगह इकट्ठा करने की इच्छाशक्ति नहीं है.
2019 का चुनाव एक दिलचस्प मोड़ पर खड़ा है और शायद अपने मुद्दे तय कर रहा है, जिन पर इस देश की जनता को राय देनी है. यहीं पर जनता के सामने एक रास्ता भावनात्मक मुद्दों की तरफ जाता है और दूसरा रास्ता देश के मुख्य बिन्दुओं की तरफ जाता है. दुर्भाग्य की बात है कि देश की कोई राजनीतिक पार्टी मुख्य बिन्दुओं पर चुनाव लड़ने का साहस नहीं दिखा रही है. ऐसी स्थिति में यह चुनाव विदेशी ताकतों के हाथों का खिलौना बन जाएगा. भारतीय जनता पार्टी ने सभी राजनीतिक दलों के लिए विदेशी चंदों का रास्ता खोल दिया है, ताकि चुनाव प्रचार करने वाली पीआर कंपनियों को भी अकूत धन मिले.
इस पर अब कोई रोक-टोक नहीं है और कोई सवाल भी नहीं उठाया जा सकता है. यानी भारतीय जनता पार्टी ने ये फैसला लिया है कि अब भारतीय शब्द को कूड़ेदान में डालो, केवल जनता पार्टी रहने दो. इसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भी सहमति होगी, क्योंकि उसके बिना भाजपा फैसला कर नहीं सकती है. अगर भारतीय जनता पार्टी नहीं चाहती तो ये फैसला हो ही नहीं सकता था कि राजनीतिक दलों को विदेशी पैसे से चंदा मिलने की कोई सीमा नहीं हो और उस पर कोई सवाल भी नहीं उठाए जा सकें.
मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हम बाजार में बिकने की वस्तु हो चुके हैं. विदेशी कंपनियों या विदेशी ताकतों में जो भी हमारी अच्छी बोली लगाएगा, हम उसके यहां बिकने के लिए तैयार हैं. पिछले चार सालों में हमारे सामने एक नई परिस्थिति आकर खड़ी हो गई है. शायद इससे भारत की जनता को और भ्रष्ट करने में और दिग्भ्रमित करने में सारे राजनीतिक दलों को बहुत ज्यादा मदद मिलेगी. आखिर में भारत माता की जय बोलते हुए हम बात पूरी नहीं कर रहे हैं, बल्कि अल्पविराम लगा रहे हैं. भारत माता की जय बहुत दर्द और तकलीफ से बोला जा रहा है. जो हमने लिखा, अगर वो सब सच होता है, तो कहां का भारत, कहां की माता और कहां की जय, फिर भी भारत माता की जय.