बसन्त के आगमन की सूचना का प्रारंभिक संकेत हैं, पलाश के फूल का आगमन
लाल सुर्ख पलाश जब एक साथ खिलता हैं, तब दूर से देखने मे लगता हैं, जैसे जंगल दहक रहा हो।1
*विश्वगुरु रवींद्र नाथ टैगोर* ,जब बसन्त के आगमन की बात करते है, तो पलाश को जरूर याद करते है।
रांगा हांशी राशि राशि अशोके पलाशे।
रांगा नेशा मेघे मेशा प्रभात आकाशे।
कैसे राशि राशि , अशोक और पलाश के पेड़ ,रंगों में बिहँस रहे है।
पलाश का फूल ,आगे से तोते की चोंच की तरह मुड़ा हुआ होता हैं।उसे देखकर संदेह होता हैं कि कही यह तोता हैं या शुक।
तो आप इसे पलाश कहिये या किशुक, सँस्कृत कवियों ने इसे बसन्त के आगमन का प्रतीक माना हैं।
*कुमारसम्भव* में जब शिव की समाधि भंग करने के लिये देवराज इंद्र कामदेव को भेजते है और वह अपने परम मित्र बसन्त को साथ लेकर हिमालय पहुचता हैं, तब उनके आते ही पूरा वन प्रदेश नई नई कोपलों और फूलों से गमक उठता हैं।
बालेंदु , वक्त्राणिन्यविकास भावाबद्दभु
पलशान्य तिलोहितानि
सद्यो बासन्तेन समा गतानाम
नकखक्षतानिव वनस्थली नाम
*कालिदास*
पलाश या छेवला ,मानव के बहुत ही उपयोगी वृक्ष में से एक है, यू तो प्रकृति में पाए जाने वाली हर वनस्पति पेड़ पौधे,सभी उपयोगी हैं।
पलाश कुछ विशिष्ट गुणों के कारण जाना जाता हैं।
पलाश के फूल से प्राकृतिक उपचार
पलाश के फूल को रंग बनाने के काम मे तो लिया ही जाता हैं, थोड़ा सा केसर मिलाकर ,जो प्राकृतिक रंग तैयार होता हैं वह औषधीय गुणों से भी भरपूर होता हैं।पलाश के फूल के रंग को उबालकर (केसर युक्त) इस पानी से एक दो बार स्नान करने से वर्ष भर चर्म रोग नही होते है।
पलाश के फूल का रस मधुमेह जैसी बीमारी की रोकथाम में कारगर हैं।
पलाश या छेवला की लकड़ी भी स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है।यही कारण है कि विवाह के समय , इसी लकड़ी के खाम को मड़वा में गाड़ कर पूजन होती हैं ,इस खाम में हल्दी का लेप किया जाता हैं, वैज्ञानिक भी कहते है कि हल्दी एंटीऑक्सीडेंट होती हैं,
ताजी छेवला की लकड़ी ,हल्दी का लेप। इसी ताजी लकड़ी की सुगंध के साथ और हल्दी के लेप साथ ही 2, चार बार हल्दी के उबटन के साथ विवाह के समय वर या वधु को एंटीऑक्सीडेंट बनाया जाता था।
: विशेष गुण :- पत्तों से दोने पत्तल बनते हैं, फूलों से प्राकृतिक केसरिया रंग, तथा कई आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने के काम आता है । यज्ञ में से समिधा के लिए लकड़ी काम आतीं हैं । इसकी गोंद मोचरस कहलाती है, इसकी जडों से कूँची और बक्कल बनाते हैं, बक्कल की रस्सी भी बनती है।
और विशेष गुण है कि शुगर वाले व्यक्ति को यदि ( कच्चे घड़े में पानी भर कर इन फूलों को डाल दें ) सुबह खाली पेट उस पानी का सेवन करें , तो शुगर ठीक हो जाती है ।
पलाश के जड़ का रस रतौंधी और नेत्र के सूजन को कम करता है। यह नेत्रों की ज्योति को भी बढ़ाता है। पलाश का तना काम शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। पलाश की जड़ की छाल दर्दनिवारक, अर्श या बवासीर तथा व्रण या अल्सर में फायदेमंद होती है।इसके फूल द्वारा मधुमक्खी रस चूस कर शहद बनाती हैं।
बस्तर के कवि
*समकालीन कविता के सशक्त* हस्ताक्षर *श्री अनुज लुगुन* कहते है।
यह पलाश के फूलने का समय हैं
रेत पर बने बच्चों के घरौंदों से
उठ रहा है धुंआ
हवाओ में घुल रहा है बारूद
चट्टानों से रिसते पानी पर
सूरज की चमक लाल हैं और
जंगल की पगडंडियों में दिखाई पड़ता हैं दन्तेवाड़ा
यह पलाश के फूलने का समय हैं।
पलाश के फूल की लालिमा हैं ही ऐसी कि, कवि कह रहा है कि ,जंगल जल रहा हैं।
वृक्षारोपण के इस नए दौर में भी पलाश जैसे बहुउपयोगी वृक्ष का वृक्षारोपण बड़ी संख्या में नही किया गया,यह अफसोस कि बात है।
यह ठीक है कि पलाश के व्रक्ष अन्य पेड़ो की तुलना में देर से बड़ा होता हैं, परन्तु यूकेलिप्टस जैसे निर्रथक वृक्षों से तो लाख गुना अच्छा है।
गोविंद देवलिया
विदिशा
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