संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में कम अधिक प्रमाण मे सभी राजनीतिक दलों के पतनशीलता का दौर बहुत ही तेज गति लेकर जारी है और मुझे बहुत पिडा के साथ लिखना पड़ रहा है कि हमारे ह्रदय के सबसे नजदीक दल भले वह बना तब से संसदीय राजनीति में अपना स्थान नहीं बना सका वह दीगर बात है लेकिन वह अपने सिद्धांतों मे किसी भी तरह सिर्फ चुनाव के हिसाब से अपनी नीति नियमोका उल्लंघन न करने के लिए विख्यात थे ! हा मुझे भूतकाल की बात बोलनी पड रही है ! क्यों की वर्तमान समय में बिहार के चुनाव मे सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की और बिहार के माफिया कम राजनेता पप्पू यादव की पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की इस चुनाव में प्रथम बार दोस्ती हुई है ! और वे मिलजुलकर एकजुट होकर चुनाव लड रहे हैं ! पप्पू यादव पूर्णिया के सी पी एम के पूर्व विधायक अजित सरकार की ह्त्या करने वाले अपराधी रहे हैं ! और उनके जीवन के बारे में अन्य प्रकार के माफिया कम राजनेता वाली छवि बरकरार है ! और हमारे दिल के पास की सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की इस चुनाव में प्रथम बार ऐसे किसी दल के साथ गठबंधन हमारे गले नहीं उतर पा रहा है ! भले वह इस चुनाव में प्रथम बार कुछ सीटे अपनी झोली में डाल ले !
वही बात नितीश कुमार जिस जनता दल यूनाइटेड के वह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर है और उनके उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अनुप सिंह पटेल ने 12 अक्तूबर को मेजर (रिटायर) रमेश उपाध्याय को प्रदेश पूर्व सैनिकों के प्रकोष्ठ के संयोजक नियुक्त करने का खत देने की न्यूज़ देखकर मै हैरान हूँ क्योकी मालेगाँव विस्फोट के दोनों घटनाओं की जाँच करने वाले लोगों मे से एक मैं भी हूँ !
और इसीलिए जैसे ही बीजेपी ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल लोकसभा चुनाव में (2019) खडा करने का ऐलान किया था और मैंने भोपाल में एक सप्ताह से भी अधिक समय तक उसके खिलाफ और मुख्य रूप से उसे उम्मीदवार बनाने वाली पार्टी के खिलाफ प्रचार किया था और मैंने भोपाल की प्रेस कांफ्रेंस में बीजेपी की मान्यता रद्द करने के लिए चुनाव आयोग को विनती की थी क्योंकि मुंबई के एन आइ ए की विशेष अदालत में मालेगाँव विस्फोट के आरोपी मेजर रमेश उपाध्याय कर्नल प्रसाद पुरोहित ,प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य अपराधीयोके खिलाफ मामला चल रहा है !
बीजेपी तो संघ परिवार की राजनीतिक इकाई के रूप में पैदा की गर्ई पार्टी है जिसे दिल से भारत के संविधान प्रति रत्तीभर भी विश्वास नहीं है हाँ वर्तमान चुनाव के नियमों के कारण उन्हें मजबूर हो कर संविधान को मानने का नाटक करना पड रहा है लेकिन हमारे सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की क्या मजबूरी थी ?
और वैसे ही डाक्टर राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण जी और कर्पूरी ठाकुर के नाम लेकर ही सत्ता सम्हलने का कर्म-काण्ड करने वाले जिनके नाम मे ही नितीश शब्द है उन्होंने क्या कमर का छोडकर सर पर बांध लिया है ? सत्ता के मद में इतने पागल हो गये हैं कि आतंकवादीयो को अपने दल मे शामिल करा के उन्हें जिम्मेदार पदपर बैठने की करतूत करनी पड रही है ?
महात्मा गाँधी के हिंद स्वराज नामकी बहुत छोटी सी किताब में इंग्लैड की स्थिति नामके परिच्छेदमे संसद को बांझ औरत और वैश्या की उपमा देकर आगे कहा है कि यह दोनों शब्द महिला का अपमान करने वाले शब्द है लेकिन मुझे अफसोस है!आज कोई दुसरा शब्द नही सुझ रहा है !
अगले ही परिच्छे दमे वह उस वाचक के सवाल के जवाब में कह रहे हैं संसद के बारे में ( A Talking shop of the world) दूनियाका बडबडखाना ! 1952 के 43 साल पहले यह किताब 1909 को लीखि है और तबतक भारत के संसदीय लोकतंत्र की शुरूआत भी नहीं हुइ थी!और सिर्फ इंग्लैंड की संसद को देखकर लीखि हुई टिप्पणी क्या 111 साल बाद और भारतीय संसदीय के 68 साल पूरे हो रहे हैं ! क्या महात्मा गाँधी जी के यह विचार आज भारत की संसद के लिए हूबहू लागूं नहीं है ?
और मुझे बहुत पिडा के साथ लिखना पड़ रहा है कि आज हमाम मे सभी राजनीतिक दलों के पतनशीलता का दौर देखकर लगता है कि यह सबके सब नंगे हैं ? फिर वह सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया हो जनता दल यूनाइटेड और वर्तमान सत्ताधारी पार्टी की टोटल निव ही घोर सांप्रदायिक, पूंजीवादी,दलित हो या आदिवासी या महिला विरोधी, मनुस्मृति के अनुसार भारत आज 21 वीं सदी में विश्व गुरु बनेगा कहने वाली पार्टी और 135 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी की भी शुरू से ही मदनमोहन मालवीय से लेकर वर्तमान समय में अपने आप को हम भी कैसे हिंदू है यह बीजेपी की देखा देखी मे सिद्ध करने का प्रयास कर रहे कुछ काँग्रेस के नेताओं को देखकर लगता नहीं कि यह जवाहरलाल नेहरू के विचारों को लेकर चलने वाले लोग है और फिर इसी कारण लोगों को लगता है कि इस तरह अपने आप को हिंदू घोषितकर ने वाले से सिधा खुलकर हिंदू राष्ट्र घोषित करने वाले लोगों को क्यों न चुना जायँ ?
इस तरह तथा कथित सेकुलर और प्रगतिशील विचारों के दल अप्रासंगिक होते जा रहे हैं और साम्प्रदायिक आधार पर भारत के पोलराइज़ करने वाले लोगों को कामयाबी मिल रही है ! और दिन-प्रतिदिन अल्पसंख्यक समाज हाशिये पर डाला जा रहा है और असुरक्षा की भावना से ग्रसित हो रहा है जोकि राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बहुत बडा खतरा पैदा हो रहा है ! और इससे बडा देशद्रोहि काम और क्या हो सकता है ? और यही काम करने वाला संघ परिवार दिन दोगुना रात चौगुना राष्ट्र भक्ति का नाम लेकर विरोधीयो को राष्ट्र-द्रोही बोलनेवाले खुद सूडो नैशनलिस्ट है ! और यह बात कहने का साहस कितने लोग कर रहे हैं ? 1975 का आपात्काल का दौर भी हमने देखा है लेकिन लगता है कि उससे ज्यादा भयभीत हो कर लोग आज मुझे दिखाई देते हैं !
क्योंकि जिस संविधान में संघ परिवार के लोगों को रत्तीभर भी विश्वास नहीं होने के बावजूद उसके ही कुछ अंशोंको तोड़-मरोड़कर विरोधियों के खिलाफ तथा कथित देशद्रोहियों के मामलों में फसाने का काम कर रहे हैं उदाहरण के लिए भीमा कोरेगाव और आये दिन उत्तर प्रदेश के दलित उत्पीड़न का मामलों मे सज्ञान लेकर जो भी कोई जा रहा है उन्हे उस मामले की तहकीकात करने की जगह सीधा सम्बन्ध जोड़ रहे हैं आतंकवादी ! मुसलमान है तो आतंकवादी और हिंदू है तो नक्सली करार देने का काम जो चिदंबरम, शिंदे और शिवराज पाटिल ने शुरू किया था और आज बीजेपी मुख्य रूप से अमित शाह और आदित्यनाथ इस काम में सबसे आगे चल रहे हैं !
आदित्यनाथ को तो लगता है कि शायद प्रधानमंत्री का पद तक पहुंचने के लिए यही रास्ता बना हुआ है ! क्योंकी वर्तमान प्रधानमंत्री कैसे-कैसे कारना मे करके यहाँ तक पहुंच गये ? यही रोल मॉडल उनके सामने है!और आज की तारीख में शायद ही कोई इन सब के खिलाफ कोई सार्थक पहल दिख नहीं रही है ! और यह समय जितना लंबा होता जाएगा उतना दलित, आदिवासी, महिला और अल्पसंख्यकों के साथ-साथ अत्याचार बढते जायेंगे ! क्योंकी जिस तरह से अत्याचार के बाद अत्याचारीयो के समर्थन में जुलूसों का आलम देखकर लगता है कि हमारे देश के संवेदनशीलता को लकवा मार गया है और यही कारण है कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह और आदित्यनाथ इस काम जैसे लोग मुहजोर होकर बोले जा रहे हैं ! क्या सचमुच ही यह महात्मा गाँधी के और डाक्टर बाबा साहब आंम्बेडकर जी के सपने का भारत है ?
डाॅ सुरेश खैरनार 18 अक्तूबर 2020,नागपुर