बजट सत्र का पहला हिस्सा सम्पन्न हो गया. इसके दो पहलू हैं. अच्छा पहलू यह है कि सदन की कार्यवाही में व्यवधान कम उत्पन्न हुआ. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बेहतर आपसी समझ के चलते सदन ठीक से चला. यह अच्छी बात है, क्योंकि लोकतंत्र में संसद आम आदमी की सोच को दर्शाती है. पिछले दो वर्षों से भारतीय जनता पार्टी द्वारा शुरू की गई परम्परा, जिसके तहत संसद नहीं चलने दी जाती थी, का बोलबाला था. कांग्रेस ने यह काम भाजपा की तुलना में बेहतर तरीके से किया, जिसके लिए उसकी आलोचना भी हुई. इससे बढ़कर यह कि सरकार की तऱफ से एक दुर्भाग्यपूर्ण बयान आया कि ग़ैर निर्वाचित लोग निर्वाचित लोगों की राह या काम में बाधा बन रहे हैं. यह बात सही नहीं है, क्योंकि संविधान में दो सदनों का प्रावधान किया गया है.
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जो पहले न हुआ हो. पहले भी ऐसा हुआ है कि सरकार लोकसभा में कई बिल पारित नहीं करा पाई. इसका उपाय यह है कि आप द्विपक्षीय बात कीजिए और आपसी सहमति से मामला सुलझा लीजिए. संंसद में हंगामा कम होना चााहिए, भले टीवी चैनलों में ज़्यादा हो. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि बजट सत्र के दूसरे हिस्से में भी रचनात्मक काम होगा. एक पुरानी कहावत है कि विपक्ष को अपनी बात कहने देना चाहिए और सरकार को अपना काम निकालने के लिए रास्ता तलाशते रहना चाहिए. आ़िखरकार आपके पास बहुमत है, आप विपक्ष को भी अपनी बात रखने का मा़ैका दीजिए.
लेकिन, इस पूरे पक्ष का नकारात्मक पहलू यह है कि जो बिल पारित हुए हैं, उनकी पूरी तरह जांच-परख नहीं हुई है. रीयल एस्टेट बिल क्यों पारित हुआ, यह समझ से बाहर है. यह राज्य का विषय है. दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेशों की बात तो ठीक है, लेकिन महाराष्ट्र एवं गुजरात जैसे राज्य रीयल एस्टेट से जुड़े अपने नियम खुद बना लेते हैं. लेकिन, अगर आप ऐसे क़ानून बनाते हैं, जिसका पालन करना या लागू करना बहुत मुश्किल हो, तो इससे और अधिक दिक्कतें पैदा होने लगती हैं. इसलिए बिना ठीक से समझे-बूझे कोई बिल पारित कर देना अच्छी बात नहीं है. इसी तरह आधार बिल है, जो बहुत विवादास्पद है.
बेशक, यह यूपीए द्वारा लाया गया था और अब एनडीए सरकार इसे पारित कराना चाहती थी. यह ऐसा है, जैसे आप किसी शख्स का पीछा कर रहे हैं. ऐसा तानाशाही वाली शासन व्यवस्था में होता है, किसी लोकतंत्र में नहीं होता. ग़रीबों की सहायता की आड़ में आप हर शख्स को एक नंबर दे रहे हैं. यह काम बीपीएल सूची के ज़रिये भी किया जा सकता था. भारत के हर नागरिक को अपने फिंगर प्रिंट, आंख की पुतली के निशान और फोटो देने पड़ रहे हैं, जो ठीक नहीं है. आप बहुत क़ीमती जानकारियां ऐसे लोगों के हाथों में दे रहे हैं, जो आसानी से उनका दुरुपयोग कर सकते हैं. देखते हैं, यह कैसे काम करता है.
दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा विजय माल्या का लंदन जाना है. लोग कह रहे हैं कि वह भाग गए. लेकिन, एटॉर्नी जनरल ने सच्चाई लोगों के सामने यह कहकर रख दी कि वह भगोड़े नहीं हैं, किसी भी अदालत से वांछित नहीं हैं. उनके खिला़फ गिरफ्तारी का कोई वारंट नहीं है. वह एक आज़ाद नागरिक हैं. सबसे बढ़कर यह कि वह एक सांसद हैं. यह सही है कि उनकी कंपनी पर बैंकों का बहुत बड़ा कर्ज है, जो एक आपराधिक मामला नहीं है. बैंक अपनी आंखें खोलकर कर्ज देते हैं. माल्या ने रात के अंधेरे में कर्ज नहीं लिया था. फिलहाल जो कर्ज दिखाया जा रहा है, वह नौ हज़ार करोड़ रुपये का है. कहा जा रहा है कि माल्या स्टेट बैंक के चेयरमैन के पास गए और यह पेशकश की कि दूसरे कॉरपोरेट हाउसेज के कर्ज के लिए जो मापदंड अपनाया गया है, वही उनके लिए भी अपनाया जाए.
इसके मुताबिक, उनका कर्ज चार हज़ार करोड़ रुपये बनता है, जो वह अभी चुकाने के लिए तैयार हैं. लेकिन, स्टेट बैंक के चेयरमैन ने उनकी पेशकश ठुकरा दी और कहा कि यह मापदंड आप पर लागू नहीं होता. सवाल है कि अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मापदंड क्यों? क्या वह भाजपा के लिए चंदा इकट्ठा करने वाले अमित शाह या दूसरे लोगों को संतुष्ट नहीं कर पाए? परेशानी क्या है? मैं किसी शख्स की तऱफदारी नहीं कर रहा हूं.
आप वातावरण खराब कर रहे हैं. आप विदेशियों को भारत में निवेश के लिए बुला रहे हैं. इससे विदेशी निवेशकों के मन में भारत को लेकर किस तरह की छवि बनेगी? कल तक एक बड़े उद्योगपति, जो अभी भी एक सांसद हैं, जिनके क्लाइंट्स में सांसद भी शामिल थे, जिनकी विमानन सेवा बेहतरीन मानी जाती थी, के साथ आप आज किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं? अगर आप वाकई चाहते हैं कि निवेश हो, उद्योग आए, तो पूरा वातावरण बदलने की ज़रूरत है.
सरकार मेक इन इंडिया और व्यवसाय में आसानी जैसी बातें कर रही है, लेकिन छोटे एवं मध्य वर्ग के व्यवसाय के लिए माहौल सही नहीं है. सरकार ने आभूषणों पर एक फीसद एक्साइज टैक्स लगा दिया, बिना यह विचार किए कि छोटे सर्राफा व्यापारियों के पास इस एक फीसद कर का हिसाब लगाने की कोई विधि तक नहीं है. इसे उन व्यापारियों पर लागू किया जा सकता है, जिनका टर्नओवर एक खास सीमा के ऊपर है. आंख बंद करके हर किसी को, जिसमें लाखों आभूषण कारीगर भी शामिल हैं, इसमें शामिल नहीं करना चाहिए. इसे बिना उचित जांच-पड़ताल के लागू कर दिया गया है. बेशक, वित्त मंत्री और संबंधित लोगों के पास इसके लिए समय नहीं है.
तीसरा दिलचस्प मुद्दा आनंद बाज़ार पत्रिका का उत्तर प्रदेश चुनाव पर आया सर्वे है. हालांकि, अभी उत्तर प्रदेश चुनाव में बहुत समय है और किसी तरह की भविष्यवाणी करना अभी बहुत जल्दबाजी होगी. लेकिन, इस सर्वे ने बहुजन समाज पार्टी को अच्छी-खासी बढ़त दे दी है. एक वर्ष का समय बहुत लंबा समय होता है, लेकिन आम लोगों की भी कुछ यही सोच है कि उत्तर प्रदेश में मायावती सबसे आगे रहेंगी. वह कितनी आगे रहेंगी, दूसरे नंबर पर कौन होगा, इसके लिए हमें इंतज़ार करना पड़ेगा. देखते हैं, क्या होता है?