मैने आपात्काल 25 जून 1975 के दिन तत्कालीन प्रधान-मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी द्वारा लगाई हूई इमरजेन्सी का विरोध किया था और जेल भी गया हूँ ! क्या कश्मीरी के प्रशासन ने आपात्काल और सेंसरशिप लागू कर दि ?
कश्मीर टाईम्स के साथ 2016 के 8 जुलाई को बुरहान वानी कि हत्या के बाद 9 जुलाई को भी कश्मीर टाईम्स के छपे हुए अखबार की सभी कापियों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले कर नहर के पानी में डालकर लुगदी बना डाली थी और छपाई के काम करने वाला स्टाफ को हिरासत में ले लिया था और इसी तरह कश्मीर टाईम्स के दफ्तरों को ताले लगा दिए थे !
वेद भसीन नाम के भारत के संपादकीय इतिहास में प्रथम श्रेणी के शक्सियत ने इस अखबार की नींव रखी है और वर्तमान में उनकी सुपुत्री अनुराधा भसीन जमवाल और उनके जीवन साथी प्रबोध जमवाल और उनके साथियों ने जींस शिद्दत के साथ इस अखबार को आज भी वेद भसीन जी की भावना और उनके तत्वोंपर चलाए जा रहे हैं ! इसका मै खुद एक साक्षीदार हूँ भले मै नागपुर में रहता हूँ लेकिन मेरा रेग्युलर संपर्क कश्मीर टाइल्स के साथ बना हुआ है और आज की सुबह की निंद मेरे जेपी आंदोलन के मुंबई के मित्र जयंत दिवान ने मुझे फोन करकेे तोडी है !
Anuradha was one of the few local newspaper editors in J&K who stood upto GOIs illegal & disruptive actions in the state. Shutting down her office in Srinagar is straight out of BJPs vendetta playbook to settle scores with those who dare to disagree https://t.co/yyZYlw4Me8
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) October 19, 2020
नमन करते वह कश्मीर टाईम्स अखबार की स्थापना करने वाले हिन्दू वेद भसीन अभिके प्रबोध जमवाल हिंदू डोगरा जो कश्मीर के राजा की बिरादरी से आये हैं और कश्मीर के सवाल पर जयप्रकाश नारायण जी या महात्मा गाँधी जी के विचार से चलाए जा रहे हैं और मानवाधिकार का उल्लंघन हो या सुरक्षा के नाम पर भेजे गए विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा की गई ज्यादती योके खिलाफ आवाज उठाने वाले कश्मीर टाईम्स अखबार की खासियत है और यही कारण है कि सतत प्रशासनिक कारवाई का सामना करना पड़ रहा है !
This explains why some of our “esteemed” publications have decided to become Government mouthpieces, printing only government press handouts. The price of independent reportage is to be evicted without due process. https://t.co/Vs7nfWWd4h
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) October 19, 2020
कल तो भारत सरकार ने बेशर्मी की हद पार कर दी एक दिन पहले कश्मीर के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने सव्वा दो साल के बाद पहली बार एकसाथ रूबरू होने के कारण पुलिस और प्रशासन हरकतों मे आकर फारूख अब्दुल्ला जी के घरपर ईडी ने की पूछताछ के नामपर जो कारवाई की है क्या बात है हमारे देश के सभी एजेंसियों को वर्तमान समय की भारत सरकार अपने दल की ईकाई समझकर विरोधी दलों के लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया है यह भविष्य के लिए बहुत ही खतरनाक है क्योंकि इन सब के बारे मे आम भारतीयों के मन में रत्तीभर भी विश्वास नहीं रहेगा और इस तरह गत छ साल से भी अधिक समय से लगातार अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए इन सब के इस्तेमाल करना भारत की सुरक्षा और एकता के लिए भी खिलवाड़ करने का गुनाहगारों में सरकार का शुमार हो गया है !
एक तो आनन-फानन में कश्मीर के 370 को खत्म करने की कार्यवाही और कश्मीर की विधानसभा के इजाजत के बगैर यह हमारे देश के संविधान के भी खिलाफ है
और सभी नेताओं को जेल में डालने का काम करने के बाद कश्मीर को भारत से कितना समय हर तरह से अलग थलग किया है ? नाही कोई कम्युनिकेशंस के साधनों को चलने दिया नाही हमारे जैसे लोगों को जाने दिया ऊलटे जिन्होने जाने की कोशिश की उन्हे भी वापस कर दिया! और दावा कर रहे हैं कि हमनें कश्मीर को भारत से जोड़ दिया ! इसे जोड़ना बोलते हो यह तो बचा खुचा भी संबंध तोडनेकी कृतियों में गिना जाएगा ! इस तरह जोर जबरदस्ती करने से कौनसा प्रदेश के लोग खुश रहेंगे ? महात्मा गाँधी के अनुसार कश्मीर को सिर्फ और सिर्फ प्रेम द्वारा ही अपने साथ जोड़ा जा सकता है नाही जोर जबरदस्ती से !
अरे भाई 1947 को जब देश का बटवारे के मुख्य शर्तोके अनुसार कश्मीर को 80% आबादी मुसलमान और भौगोलिक स्थिति तो सर्वस्वी पाकिस्तान से लगी हुई होने के बावजूद और बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना साहब छ सप्ताह श्रीनगर में जमकर बैठे थे कि कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए उन्होंने क्या क्या नहीं किया तब भी कश्मीरी नहीं मानते हैं इसका कोई मायना नहीं है ?
मुझे कश्मीरी दोस्त आँखो में पानी लाकर पूछते हैं कि डाॅक्टर साहब क्या बात है आजादी के 73 सालों बाद भी भारत ने हमारे दिल क्यो नही जिते ? मै निरूत्तर गर्दन झुकाकर चुप रह जाता हूँ ! जेपी के बाद शायद मै उस धारा का आदमी हूँ जो पिछले चालीस साल से भी अधिक समय से लगातार कश्मीर की खाक छानने के बाद यह सब लीख रहा हूँ !
आये दिन मुझे कश्मीरी दोस्त रेग्युलर संपर्क में है और यही कारण है कि आज कश्मीर टाईम्स अखबार के उपर की गई कार्रवाई का मै सक्त विरोध करने के लिए विशेष रूप से यह पोस्ट लिख रहा हूँ और फारूक़ अब्दुल्ला जी के घरपर ईडी ने की पूछताछ के लिए क्या यही समय मिला है ? सत्ता के मद में इतने पागल हो गये हैं कि भारत और कश्मीर के बीच मे और बडी खाईं खोदने का काम कर रहे हो! और यह बात भारत के किसी भी संवेदनशील नागरिक को फिर वह संघ परिवार के लोगों को भी मेरा अनुरोध है कि यह सब देशभक्त का काम कर रहे हैं या देशद्रोहियों का? क्योंकी आजकल ये दोनों शब्दों का अघोषित रूप से पेंटट आपने जो कर लिया है !!!!
डाॅ सुरेश खैरनार 20 अक्तूबर 2020,नागपुर