मध्यप्रदेश में बीते कई सालों में शायद यह पहला मौका होगा, जब होली तो होगी, लेकिन होली के रंग और मस्ती नहीं होगी। क्योंकि कोरोना महामारी फिर दरवाजे ठकठका रही है। या यूं कहे कि कोरोना ने फाग की मस्ती को भी बंधक बना लिया है। नई गाइड लाइन के मुताबिक यूं कहने को होली जलेगी भी, लेकिन उसके साक्षी बहुत कम होंगे। रंग गुलाल, हंसी ठिठोली तो नहीं ही होगा। अलबत्ता जो किसी भी कारण से होली नहीं खेलते, वो सुकून महसूस करेंगे, लेकिन जो होली के रंग में रंग जाने की तमन्ना रखते हैं, वो उदास होंगे। मध्यप्रदेश में ठीक एक साल पहले भी होली मनी थी और दूर देश से आने वाली कोरोना की खबरों के बीच मनी थी।
बावजूद इसके लोगों में डर के बजाए हैरानी का भाव था। लोग बेफिक्र थे, यह मानकर कि ऐसी अजीब बीमारी उनके द्वार तक भला क्यों आने लगी। देश भर में कोरोना का जनक चीन को मानकर उसे गरियाने का दौर जारी था। इधर मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लठमार होली शुरू हो चुकी थी। जो हालात थे, उनसे तत्कालीन सत्ता पक्ष यानी कांग्रेस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था तो साल भर से विपक्ष में बैठी भाजपा का मुखड़ा सत्ता हासिल करने की खुशी से रंगबिरंगा हुआ जा रहा था। राज्य में सत्ता बदलती उसके दो दिन पहले यानी 21 मार्च को हवा के रास्ते खतरनाक कोरोना वायरस हवा के रास्ते मध्यप्रदेश में दबिश दे चुका था, अगली होली पर पानी फेरने के लिए।
सिर्फ साल भर पहले मनी वह होली, इस मायने में भी यादगार बन गई है कि वैसा उन्मुक्त रंग गुलाल खेलने की नौबत फिर कब आएगी, कोई नहीं जानता। अभी प्रदेश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर है। और कितनी लहरें आएंगी और कब-कब आएंगी, कोई नहीं कह सकता, क्योंकि अमेरिका व दूसरे कई देशों में कोरोना की चौथी लहर चल रही है। उस होली से इस होली तक मप्र में कोरोना से कुल संक्रमितों की संख्या 2 लाख 80 हजार से अधिक हो चुकी है। हालांकि इनमे से 2 लाख 66 हजार से ज्यादा कोरोना मरीज ठीक भी हो चुके हैं। लेकिन 3919 कोरोना पीडि़त ऐसे भी हैं, जिनके लिए पिछली होली जीवन की आखिरी होली साबित हुई।
कोरोना एक शातिर वायरस की तरह बार-बार तेवर और रंग-रूप बदल रहा है। राहत की बात इतनी है कि हमारे देश में कोरोना के कारण होने वाली मौतो की संख्या तुलनात्मक रूप से काफी कम है। इसका एक कारण शुरू में ही सख्त लाॅक डाउन और हमारी प्रतिरोधक क्षमता का तुलनात्मक रूप से बेहतर होना भी है। हालांकि इस फैसले ने अर्थव्यवस्था को वेंटीलेटर पर पहुंचा दिया, लेकिन इंसानी मौतें काफी कम हुईं। मध्यप्रदेश की ही बात करें तो पिछले साल होली जली 9 मार्च को थी और खेली गई थी।
10 मार्च को। यह महज संयोग नहीं था कि उसी दौरान राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस में अंतर्कलह की सार्वजनिक होली जलना भी शुरू हो गई थी। इस प्रदेश में लोग होलिका दहन में जुटे थे, उधर (तत्कालीन) कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी में अपनी उपेक्षा से रूठ कर 17 साथी विधायको के साथ बेंगलुरू के एक रिसाॅर्ट में जा बैठे थे। कांग्रेस में कोहराम मचा था और प्रतिपक्ष में बैठी भाजपा के चेहरे गुलाबी होने लगे थे। अंदरखाने जिस कुर्सी के खेल की कोशिशें काफी दिनो से चल रही थी, वह रंग दिखाने लगी थी। ऐसा खेल जिसमें नैतिकता- अनैतिकता का रंग एक ही था और जो किसी भी तरह सत्ता हासिल करने नीति-अनीति सबका रंग एक ही था और जिसकी वैधानिकता सत्ता पर काबिज होने से तय होनी थी।
पिछले बरस उस धुलेंडी पर राज्य के शहरो में हमेशा की तरह हुरियारों के जुलूस निकले। मौज मस्ती हुई। खूब रंग गुलाल उड़े। पुराने गिले शिकवे दूर हुए तो नए पैदा भी हुए। लेकिन तब भी मास्क, सोशल डिस्टेसिंग, क्वारेंटीन जैसे शब्द हिंदी के शब्दकोश से बहुत दूर थे। होली पर रंगे हुए चेहरों की निगाहें भी प्रदेश की राजधानी भोपाल और कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू पर लगी थीं, जहां सत्ता परिवर्तन का निष्ठुर राजनीतिक फाग खेला जा रहा था। सरकार गिराने की यह नौटंकी करीब 10 दिनो तक चली। तमाम कोशिशों के बाद भी रूठो हुअों को अपने रंग में रंगने में नाकाम रहे मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पद से इस्तीफा दे दिया।
इसी के बरक्स प्रदेश में भी कोरोना का रंग गहराने लगा था। पहले कहा गया कि यह बीमारी विदेश से आई है। मप्र वाले यह सोच कर काफी हद तक बेफिक्र थे कि अपने यहां विदेश आने-जाने वाले हैं ही िकतने? लेकिन यह भ्रम भी कमलनाथ द्वारा मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के दूसरे दिन टूट गया। मप्र में कोरोना का पहला केस जबलपुर में नमूदार हुआ, जहां 21 मार्च को विदेश से आए चार लोग कोरोना पाॅजिटिव पाए गए। उस काली छाया से हम अभी तक नहीं उबर सके हैं।
उधर कोरोना को रोकने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले देश में जनता कर्फ्यू और बाद में संपूर्ण लाॅक डाउन का ऐलान कर दिया। ऐसा लाॅड डाउन कि पत्ता खड़कने पर भी डर लगने लगे। बहुत से लोगों को यह श्मशान शांति भी अद्भुत, रोमांटिक और सुकूनदायी महसूस हुई। लेकिन गरीबों और पहले ही अभावों से जूझने वालों को इसमें सर्वनाश का का रंग दिखने लगा। उधर चौतरफा सन्नाटे और डरावनी शांति के बीच शिवराजसिंह चौहान ने आनन-फानन में 23 मार्च की रात नौ बजे राजभवन में चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
उनकी पहली तीन शपथों के बरखिलाफ इस बार हर्षोल्लास की बजाए चौतरफा आशंकाअोंऔर चुनौतियां का घेरा था। शिवराज एक अदृश्य शत्रु से महायुद्ध की कमान संभाल रहे थे। उन्होंने पहले दिन से ही कोरोना के खिलाफ प्रशासनिक शस्त्र भी हाथ में उठा लिया था। बतौर सीएम उनकी शपथ के तीसरे दिन हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ गुड़ी पड़वा का त्यौहार पड़ा, लेकिन लोगों की जुबान पर शुभकामनाअोंसे ज्यादा प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में कोरोना से हुई पहली मौत की चर्चा थी। होली के बाद रंगपंचमी भी पड़ी। लेकिन जीवन के रंग भय की चादर में सिमटने लगे थे। जल्द ही मप्र में कोरोना संक्रमितो की संख्या बढ़ने लगी और मौतो की भी। इस नई बीमारी का कोई इलाज नहीं था। केवल सावधानी और ईश्वर पर भरोसा ही सबसे बड़ा संबल था।
इस वैश्विक महामारी को धार्मिक रंग देने की कोशिश भी हुई। कुछ धर्मान्ध लोगों ने सेवा में जुटे डाॅक्टरों और स्टाफ पर पत्थर फेंके, जानलेवा हमले किए। हमे मानवीय मूर्खता का नया रंग देखने को मिला। उधर तमाम अस्पताल कोविड अस्पतालों में तब्दील कर दिए गए। आम बीमारियां जैसे गायब-सी हो गईं। लेकिन कोरोना मरीजो की संख्या बेतहाशा बढ़ने लगी। कई परिचितों के साथ खेली गई होली, उनके जीवन की आखिरी होली साबित हुई। इलाज न मिलने या देरी से मिलने के कारण कई जाने पहचाने चेहरे असमय ही दुनिया से विदा होने लगे। दुख, क्षोभ और आत्मग्लानि का यह ऐसा अनचाहा काॅकटेल था कि कोरोना के भय के चलते अंत्येष्टि तो दूर सगे सम्बन्धीभ कंधा देने तक को राजी न थे। यह ऐसा बदरंग यथार्थ था, जिसे कोई याद भी शायद ही करना चाहे।
अब साल भर बाद फिर वही अवांछित रंग फिर लौटने लगा है। सरकार ने सख्त लाॅक डाउन की गाइड लाइन जारी कर दी हैं। क्योंकि और कोई उपाय नहीं है। इस बार होली होगी, लेकिन हुरियारे नहीं होंगे। गुलाल होगा, लेकिन रंगने के लिए गाल नहीं होंगे। वाॅट्ऐपी शुभकामनाएं वायरल होंगी, लेकिन कोई किसी से गले नहीं मिल सकेगा। होली, जिसकी तासीर ही मौज-मस्ती, छेड़छाड़, दुश्मन को भी गले लगाने और हर अभिजात्य को ठेंगा दिखाने की है, नदारद होगी। क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर के कारण मेरे शहर सहित कई शहरों, कस्बों में लाॅक डाउन रहेगा। जो रंग-पिचकारी की दुकाने लगाए थे, उनके चेहरे का रंग पहले ही उड़ चुका है। होलिका की कितनी प्रतिमाएं दहन हो पाएंगी या वैसी ही वापस चली जाएंगी, कहना मुश्किल है। तसल्ली की बात इतनी है कि होली पर बुरा नहीं माना जाता..सो इस बार नहीं मानेंगे। है ना..!
वरिष्ठ संपादक
अजय बोकिल