8अगस्त 1942 को ग्वालिया टैंक मैदान बम्मई में दिया गया गांधी जी का वह ऐतिहासिक भाषण

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चंचल भू

8अगस्त 1942 को ग्वालिया टैंक मैदान बम्मई में दिया गया गांधी जी का वह ऐतिहासिक भाषण जिसने देश की तकदीर ही बदल दी । अंग्रेजो भारत छोड़ो का यह भाषण आज भाई Shesh Narain Singh ने अपने पन्ने पर दिया है । इसे पढा जाना चाहिएभारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत में महात्मा गांधी का भाषण

आज का दिन भारत के इतिहास का वह दिन है जब करोड़ों भारतीयों ने तय कर लिया था कि दुनिया के उस समय के सबसे ताकतवर देश के साम्राज्य को भारत से विदा कर देना है . बार बार मन में यह सवाल उठता रहता था कि वह क्या बात थी जिसके चलते अंग्रजों के कुछ पिट्ठुओं को नज़रंदाज़ करके सारा देश एक हो गया था .बाद में समझ में आ गया कि भारत छोड़ो आन्दोलन के शुरू होने के पहले मुबई के गोवालिया टैंक मैदान में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी ने जो भाषण दिया था उसी भाषण ने देश को एकजुट कर दिया था . वह पूरा भाषण मैंने पढ़ा या सुना नहीं था . 1990 में स्व मधु लिमये ने एक किताब दी जिसमें पूरा भाषण है .किताब का नाम है डी जी तेन्दुलकर लिखित गांधी जी की जीवनी . किताब के छठवें खंड में पूरा भाषण शब्दशः दर्ज है . महात्मा गांधी ने वह भाषण हिन्दुस्तानी भाषा में दिया था यानी उसमें हिंदी,उर्दू और गुजराती के कई शब्द भी हैं . किताब में भाषण अंग्रेज़ी में लिखा है लेकिन बाद में उसे सुना भी और उसका हिंदी मूल रूप भी देखा .
यह भाषण 7 अगस्त 1942 को दिया गया था . वह अधिवेशन का पहला दिन था . मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे . उन्होंने अधिवेशन की शुरुआत की . उसके तुरंत बाद गांधी जी ने अपनी बात कही . करीब एक हज़ार शब्दों का यह भाषण आज़ादी की निर्णायक लड़ाई का पाथेय बना . भारत छोड़ो वाला प्रस्ताव आठ अगस्त को पास हुआ .उसी रात में ही महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी सहित पूरी कांग्रेस कमेटी को गिरफ्तार कर लिया गया .ब्रिटेन की वार कैबिनेट ने जून में ही वायसरॉय को अधिकार दे दिया था कि वह जैसा भी चाहे , कांग्रेसी नेताओं के साथ वैसा व्यवहार कर सकते हैं .. वायसरॉय इस चक्कर में था कि वह भारत छोडो आन्दोलन के प्रस्ताव के पास होते ही महात्मा जी और पूरी कांग्रेस कार्यसमिति को गिरफ्तार कर ले. लेकिन तय यह हुआ कि जब आल इण्डिया कांग्रेस कमेटी इस प्रस्ताव को मंजूरी दे तब सभी नेताओं को पकड़ा जाए . उनकी मूल योजना थी कि गाँधी जी को देश से बाहर ले जाकर अदन में नज़रबंद किया जाए और बाकी नेताओं को न्यासालैंड में रखा जाए . लेकिन बाद में अँगरेज़ हुकूमत का मन बदल दिया गया और महात्मा गाँधी को पुणे के आगा खां पैलेस में और कांग्रेस के बाकी नेताओं को अहमदनगर जेल में रखा गया. ९ अगस्त की सुबह पांच बजे सभी नेताओं को एक विशेष ट्रेन से पूना ले जाया गया ,जहां महात्मा जी और उनके साथियों को उतार दिया गया. बाकी नेता अहमदनगर फोर्ट की जेल में ले जाए गए. सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद, पट्टाभि सीतारमैय्या और हरेकृष्ण महताब को अलग कमरे मिले थे. जवाहरलाल नेहरू के कमरे में डॉ सैय्यद महमूद थे. शंकर राव देव और प्रफुल्ल चन्द्र घोष एक कमरे में थे. आचार्य कृपलानी , गोविन्द बल्लभ पन्त, आचार्य नरेंद्र देव और आसफ अली को एक साथ रखा गया था. डॉ राजेन्द्र प्रसाद बीमार थे इसलिए आ नहीं सके थे . उन्हें गिरफ्तार करके बिहार में ही रखा गया था. भूलाभाई देसाई और चितरंजन दास को गिरफ्तार नहीं किया गया था क्योंकि इन लोगों ने अपने आपको भारत छोडो आन्दोलन से अलग कर लिया था. तो यह है फेहरिस्त उन महानायकों की जिन्होंने हमें आज़ादी दिलवाई. और अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया.
इन कांग्रेसी नेताओं के साथ साथ पूरा भारत महात्मा गांधी के आवाहन पर एकजुट था और अंग्रेजों को भारत से भागने के लिए मजबूर करने पर आमादा था . हम आज़ादी की उस निर्णायक लड़ाई में शामिल नहीं हुए थे क्योंकि उसके 9 साल बाद तो हम पैदा ही हुए थे . आज हम अपने बाद की पीढ़ियों के बुज़ुर्ग हैं . हम पे लाज़िम है कि हम उनको बताएं कि आज़ादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्योछावर करने वालों के लिए महात्मा गांधी के आवाहन का जादू क्या था.
इसलिए आज यहां गांधी जी का वह पूरा भाषण प्रस्तुत है .महात्मा गांधी ने कहा कि

” प्रस्ताव पर चर्चा शुरू करने से पहले मैं आप सभी के सामने एक या दो बात रखना चाहूँगा, मैं दो बातो को साफ़-साफ़ समझना चाहता हूँ और उन दो बातों को मैं हम सभी के लिये महत्वपूर्ण भी मानता हूँ। मैं चाहता हूँ की आप सब भी उन दो बातों को मेरे नजरिये से ही देखे, क्योंकि यदि आपने उन दो बातों को अपना लिया तो आप हमेशा आनंदित रहोंगे।
यह एक महान जवाबदारी है। कई लोग मुझसे यह पूछते है की क्या मैं वही इंसान हूँ जो मैं 1920 में हुआ करता था, और क्या मुझमे कोई बदलाव आया है। ऐसा प्रश्न पूछने के लिये आप बिल्कुल सही हो। मैं जल्द ही आपको इस बात का आश्वासन दिलाऊंगा की मैं वही मोहनदास गांधी हूँ जैसा मैं 1920 में था।
मैंने अपने आत्मसम्मान को नही बदला है।आज भी मैं हिंसा से उतनी ही नफरत करता हूँ जितनी उस समय करता था। बल्कि मेरा बल तेज़ी से विकसित भी हो रहा है। मेरे वर्तमान प्रस्ताव और पहले के लेख और स्वभाव में कोई विरोधाभास नही है। वर्तमान जैसे मौके हर किसी की जिंदगी में नहीं आते लेकिन कभी-कभी एक-आध की जिंदगी में जरुर आते है। मैं चाहता हूँ की आप सभी इस बात को जाने की अहिंसा से ज्यादा शुद्ध और कुछ नहीं है, इस बात को मैं आज कह भी रहा हूँ और अहिंसा के मार्ग पर चल भी रहा हूँ।
हमारी कार्यकारी समिति का बनाया हुआ प्रस्ताव भी अहिंसा पर ही आधारित है, और हमारे आन्दोलन के सभी तत्व भी अहिंसा पर ही आधारित होंगे। यदि आप में से किसी को भी अहिंसा पर भरोसा नहीं है तो कृपया करके इस प्रस्ताव के लिये वोट ना करें। मैं आज आपको अपनी बात साफ़-साफ़ बताना चाहता हूँ। भगवान ने मुझे अहिंसा के रूप में एक मूल्यवान हथियार दिया है। मैं और मेरी अहिंसा ही आज हमारा रास्ता है।
वर्तमान समय में जहाँ धरती हिंसा की आग में झुलस चुकी है और वही लोग मुक्ति के लिये रो रहे है, मैं भी भगवान द्वारा दिये गए ज्ञान का उपयोग करने में असफल रहा हूँ, भगवान मुझे कभी माफ़ नही करेगा और मैं उनके द्वारा दिये गए इस उपहार को जल्दी समझ नही पाया। लेकिन अब मुझे अहिंसा के मार्ग पर चलना ही होंगा।
अब मुझे डरने की बजाए आगे देखकर बढ़ना होगा।हमारी यात्रा ताकत पाने के लिये नहीं बल्कि भारत की आज़ादी के लिये अहिंसात्मक लड़ाई के लिए है। हिंसात्मक यात्रा में तानाशाही की संभावनाए ज्यादा होती है जबकि अहिंसा में तानाशाही के लिये कोई जगह ही नही है। एक अहिंसात्मक सैनिक खुद के लिये कोई लोभ नही करता, वह केवल देश की आज़ादी के लिये ही लढता है। कांग्रेस इस बात कोलेकर बेफिक्र है की आज़ादी के बाद कौन शासन करेंगा।
आज़ादी के बाद जो भी ताकत आएँगी उसका संबंध भारत की जनता से होगा और भारत की जनता ही ये निश्चित करेंगी की उन्हें ये देश किसे सौपना है। हो सकता है की भारत की जनता अपने देश को पेरिस के हाथो सौपे। कांग्रेस सभी समुदायों को एक करना चाहता है ना की उनमें फुट डालकर विभाजन करना चाहता है।
आज़ादी के बाद भारत की जनता अपनी इच्छानुसार किसी को भी अपने देश की कमान सँभालने के लिये चुन सकती है। और चुनने के बाद भारत की जनता को भी उसके अनुरूप ही चलना होंगा। मैं जानता हूँ की अहिंसा परिपूर्ण नहीं है और ये भी जानता हूँ की हम अपने अहिंसा के विचारो से फ़िलहाल कोसों दूर है लेकिन अहिंसा में ही अंतिम असफलता नहीं है। मुझे पूरा विश्वास है, छोटे-छोटे काम करने से ही बड़े-बड़े कामो को अंजाम दिया जा सकता है।
ये सब इसलिए होता है क्योंकि हमारे संघर्षो को देखकर अंततः भगवान भी हमारी सहायता करने को तैयार हो जाते है। मेरा इस बात पर भरोसा है की दुनिया के इतिहास में हमसे बढ़कर और किसी देश ने लोकतांत्रिक आज़ादी पाने के लिये संघर्ष किया होगा। जब मै पेरिस में था तब मैंने कार्लाइल फ्रेंच प्रस्ताव पढ़ा था और पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी मुझे रशियन प्रस्ताव के बारें में थोडा बहुत बताया था। लेकिन मेरा इस बात पर पूरा विश्वास है की जब हिंसा का उपयोग कर आज़ादी के लिये संघर्ष किया जायेगा तब लोग लोकतंत्र के महत्त्व को समझने में असफल होंगे।
जिस लोकतंत्र का मैंने विचार कर रखा है, उस लोकतंत्र का निर्माण अहिंसा से होगा, जहाँ हर किसी के पास समान आज़ादी और अधिकार होंगे। जहाँ हर कोई खुद का शिक्षक होंगा और इसी लोकतंत्र के निर्माण के लिये आज मै आपको आमंत्रित करने आया हूँ। एक बार यदि आपने इस बात को समझ लिया तब आप हिन्दू और मुस्लिम के भेदभाव को भूल जाओंगे। तब आप एक भारतीय बनकर खुद का विचार रखोगे और आज़ादी के संघर्ष में साथ दोगे।अब प्रश्न ब्रिटिशों के प्रति आपके रवैये का है। मैंने देखा है की कुछ लोगों में ब्रिटिशो के प्रति नफरत का रवैया है।
कुछ लोगो का कहना है की वे ब्रिटिशों के व्यवहार से चिढ चुके है। कुछ लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद और ब्रिटिश लोगों के बीच के अंतर को भूल चुके है। उन लोगों के लिये दोनों ही एक समान है।उनकी यह घृणा जापानियों की आमंत्रित कर रही है। यह काफी खतरनाक होगा। इसका मतलब वे एक गुलामी की दूसरी गुलामी से अदला बदली करेंगे।
हमें इस भावना को अपने दिलों दिमाग से निकाल देना चाहिये। हमारा झगडा ब्रिटिश लोगों के साथ नही हैं बल्कि हमें उनके साम्राज्यवाद से लड़ना है। ब्रिटिश शासन को खत्म करने का मेरा प्रस्ताव गुस्से से पूरा नही होने वाला।
यह किसी बड़े देश जैसे भारत के लिये कोई ख़ुशी वाली बात नही है की ब्रिटिश लोग जबरदस्ती हमसे धन वसूल रहे है।हम हमारे महापुरुषों के बलिदानों को नही भूल सकते। मैं जानता हूँ की ब्रिटिश सरकार हमसे हमारी आज़ादी नही छीन सकती, लेकिन इसके लिये हमें एकजुट होना होगा। इसके लिये हमें खुद को घृणा से दूर रखना चाहिए।
.खुद के लिये बोलते हुए, मैं कहना चाहूँगा की मैंने कभी घृणा का अनुभव नही किया। बल्कि मैं समझता हूँ की मैं ब्रिटिशों के सबसे गहरे मित्रो में से एक हूँ।आज उनके अविचलित होने का एक ही कारण है, मेरी गहरी दोस्ती। मेरे दृष्टिकोण से वे फ़िलहाल नरक की कगार पर बैठे हुए है। और यह मेरा कर्तव्य होगा कि मैं उन्हें आने वाले खतरे की चुनौती दूँ। इस समय जहाँ मैं अपने जीवन के सबसे बड़े संघर्ष की शुरुवात कर रहा हूँ, मैं नहीं चाहता की किसी के भी मन में किसी के प्रति घृणा का निर्माण हो।”

इसके बाद महात्मा गांधी ने 1945 तक कोई भाषण नहीं किया क्योकि वे जेल में बंद थे . उनकी बात में ऐसा जादू था कि लोग गिरफ्तार होते रहे और नए लोग काम सँभालते रहे . आखिर में अँगरेज़ को भारत छोड़ना पड़ा .

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