मयूर विहार ‘ दुखियों ‘ से आबाद हो रहा था । परिंदो सी जिंदगी कट रही थी , दिन भर दाने का जुगाड़ , सांझे चहकते हुए अपने अपने घोसले की ओर रुख । अदब की एक खूबी होती है कि वह गप्प पर खड़ा होता है और परिकल्पना में पर बांधने और ऊंची उड़ान के लिए बे पनाह जुगाड़ करता है । जो अदब की इस खूबी बावस्ता नही हैं , वे इसका मतलब नही जानते हैं वे नफरत , उत्तेजना , अलगाव वगैरह की ओर आकर्षित होकर कोई जुलूस बन जाते हैं । पर जो अदब को अदब के साथ छूते हैं, वे अपनी भाषा मे कहते हैं – स्साला नमक मिर्च लगा कर किस्सा सुना गया । नमक मिर्च अदब का एक कारक तत्व है और इसकी खूबी है यह नमक मिर्च को खारिज नही करता , बल्कि नई चासनी बना कर उसे अगले को पारोस देता है । अदब के साथ कहूँ – तो शहर इस अदब से महरूम है लेकिन गांव अभी भी इस कला के साथ जीवन्त खड़ा है । मयूर बिहार में यही गांव आ गया । यह गांव अदब को सीचने लगा । भाभी चित्रा मुद्गल मयूर विहार बैठ कर गांव की आत्मा को अपने पात्रों में प्रतिष्ठित करती रहीं । यह खूबी उन्हें और लेखकों से अलग करती है । बहरहाल काव्यालोचना या समालोचन हमारा विषय नही है न ही हम उस पर अतिक्रमण करेंगे । हम तो चित्रा भाभी की जिंदादिली बता रहा था उसमें उनकी कलम आ गयी तो क्या करता ।
तो कल हमने बताया कि मयूर विहार केवल रिहाइश भर नही थी , अफड़ेबाजी का अड्डा था । दिन भर दाने की तलाश के साथ ‘ शाम को क्या है ‘ का पजल भी हल होता रहता और कहीं न कहीं हल हो जाता । चलिए शाम को क्या करना है ? का एक मोटा मोती वाकया सुनाता हूँ । गो की अनेक पजल रहते जो शाम को रंगीन बनाने के लिए बहुत होते । पजल की कोख से निकलता शाम किसके यहां बैठना है ?
लेकिन कोई वजह तो बताओ ?
वजह बना लेते हैं
जल्दी करो
शानी जी का ‘ काला जल ‘ आया है । ( कालाजल , गुलशेर खां शानी जी का कालजयी उपन्यास )
– तारीख ?
– तारीख क्या पूछते हो कब कटना ही है तो आज शाम ही आ जाओ । शाम को छत आबाद । हम चित्रा भाभी की टीम में होते । भाई अवधनारायण मुद्गल , चित्रा भाभी और यह खादिम । दस कदम के फासले पर शानी जी का घर । शाम के सितारे देखिये विष्णु खरे , भाई प्रयाग शुक्ल , गिरधर राठी , मंगलेश डबराल , तीन चित्रा भाभी , तीन शानी जी – सलमा भाभी दो बच्चे सोफिया और फिरोज और भी लोग रहते फिलहाल नाम नही याद आ रहा । यहां आयोजन से ‘काला जल’ गायब , सोडा हाजिर । आयोजन खत्म होने के पहले कल की शाम तय हो जाया करती थी ।
– चित्रा जी कल आपके यहाँ
– आ जावो ।
– कीमा
– बिल्कुल
इस तरह सांझ कटती रही , अदब उठता रहा । वो जो घरेलू माहौल बना उसमे चित्रा भाभी का बड़ा योगदान है । यह बयान इस लिए की अदब पर अदबी लोग बतिया लेंगे लेकिन उस माहैल का जिक्र नही होगा जिसमें अदब का बोध बनता है ।
चित्रा भाभी वाकयात को बहुत सलीके से सुनाती थी , खुद नही हंसती थी , दूसरे को हँसा हंसा कर पागल बना दें , हमारे जिम्मे रहता उसमे नमक मिर्च लगाना । अनगिनत किस्से हैं , एकाध सुन लीजिये शुद्ध शाकाहारी । लेकिन उसकी भूमिका में हम अपने को डाल रहे हैं उसे गौर करें । जिन दिनों की बात कर रहे हैं उन दिनों लेखक , रंगकर्मी , चित्रकार वगैरह के लिए उसके पास चार चक्का वाहन ख्वाब होता था । चलते फिरते , सोते जागते वह ख्वाब देखता यार एक गाड़ी होती तो ! कइयों को इस ख्वाब ने घायल तक कर दिया उदाहरण नही दूंगा । बन्दा अब नही है । अरसे तक बांह बांधे सफर करता रहा , किसी गाड़ी वाले ने जानबूझ कर गुस्से में धक्का दे दिया था ।
– तुमने सुना नही पीछे कोई गाड़ी आ रही है ?
– नही यार ! कुछ सोच रहा था
– क्या सोच रहे थे ?
– यही की एक गाड़ी रहती तो
और तब तक धक्का मिल गया ।
इस ख्वाहिस में हम तीन जन जुड़े । पहले हम । दो पर चित्रा भाभी और अवधनारायण मुद्गल जी और तीसरे पर शानी जी । इनके किस्से अलग अलग हैं । आप पहले किसका सुनना चाहेंगे ?
के सब इस लिए बता रहा हूँ कि अदब इसी खुशनुमा खुले कायनात में फलती फूलती है । चित्रा भाभी ने इस माहौल को जिया ही नही है इसे अपने हाथ से , हुनर से संवारा है ।
तो पहले किसकी गाड़ी पर बैठना चाहेंगे ?
जारी

Chanchal Bhu

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