सूबे में एक अप्रैल से लागू शराबबंदी का असर अब साफ तौर पर देखा जाने लगा है. शाम ढलते ही शराबियों के आतंक से परेशान होने वाले लोगों ने राहत की सांस ली है. चौक व चौराहों पर शांति का साम्राज्य स्थापित होने लगा है. आपराधिक वारदातों व वाहन दुर्घटनाओं में बहुत हद तक कमी आई है. सामाजिक स्तर पर जहां बुजुर्गों को सम्मान मिलने लगा है, तो वहीं महिलाओं ने राहत की सांस ली है. अब जरूरत है सरकार द्वारा लागू पूर्ण शराबबंदी कानून को कायम रखने की. चर्चा है कि उत्तर बिहार का भारत-नेपाल सीमांचल क्षेत्र अब भी चोरी छिपे घूंट मार रहा है. कानूनी घेराबंदी की वजह से फिलहाल कोई नशा करने के बाद बाहर निकल नहीं रहा है. मगर इस दिशा में मामूली प्रशासनिक ढिलाई सरकारी घोषणा की हवा निकालने में कामयाब भी हो सकती है. इसे शराबबंदी की उपलब्धि कहिए या फिर सोच बदलने का दबाव. इस बार बारात के मौसम में प्रचलित नागिन डांस भी देखने को नहीं मिला. आखिर चार मई की लग्न भी बीत गई, लेकिन नागिन डांस देखने को लोगों की आंखें तरस गईं.
दरअसल बिहार मेें ही नहीं बल्कि सभी हिंदी भाषी प्रदेशों में बाराती शराब के नशे में नागिन डांस करके बाराती और घराती दोनों के आकर्षण का केंद्र बनते हैं. लेकिन बिहार में शराबबंदी की वजह नागिन डांस अब बंद हो गया है. कभी-कभी यह डांस मारपीट का भी कारण बन जाया करता था. लेकिन सूबे में पूर्ण शराबबंदी के कारण इस बार लोगों ने राहत की सांस ली. गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह घोषणा की थी कि अगर शासन की कमान मिली तो राज्य में शराबबंदी को लागू किया जाएगा. चुनाव बाद किए गए अपने वादे पर अमल करते हुए मुख्यमंत्री ने एक अप्रैल 2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी. प्रशासनिक तंत्र के अलावा सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर भी सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया गया और सभी ने शराबबंदी कानून को लागू करने में अपने स्तर से कोई कमी नहीं छोड़ी. सरकार ने नशा का आदि हो चुके लोगों को होने वाले संभावित परेशानियों को लेकर पहले ही आवश्यक कदम उठाया. सभी जिलों के अस्पतालों में नशामुक्ति केंद्र की स्थापना कर दी. जहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में शराबी पहुंच रहे हैं और डॉक्टर से संपर्क कर आवश्यक दवाएं भी ले रहे हैं. आवश्यकतानुसार कुछ मरीजों को अस्पताल के उक्त वार्ड में भर्ती कर इलाज भी किया जा रहा है.
अब एक अहम सवाल यह है कि क्या बिहार सरकार इस कानून को लागू रख पाने में सफल होगी? कारण यह है कि कई ऐसे रास्ते अब भी बचे हैं, जिसके जरिए सरकार के इस कानून को तोड़ा जा सकता है. यह अलग बात है कि कानून तोड़ना आसान नहीं है. लेकिन कानून तोड़ने की आशंका से इंकार भी नहीं किया जा सकता है. दूसरा यह कि उत्तर बिहार के कई जिले नेपाल की सीमा से जुड़े हैं. जहां शराब के कारोबारी किसी न किसी तरह से अपना कारोबार चला रहे हैं और वे इससे बाज भी आने वाले नहीं हैं. उत्तर बिहार के पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी एवं दरभंगा समेत कई जिले ऐसे हैं जो नेपाल सीमा से लगे हैं. भारत और नेपाल की खुली सीमा होने की वजह से इन क्षेत्रों में अवैध कारोबारी हमेशा सक्रिय रहे हैं. वर्तमान में सीमा पर तैनात एसएसबी की सक्रियता भी देखी जा रही है. मगर यह कितने दिनों तक कायम रह पाएगी, इसको लेकर अंदेशा बना हुआ है. जानकारों की माने तो एसएसबी बहुत अधिक दिनों तक भारत-नेपाल सीमा पर शराबबंदी को लेकर जारी फरमान पर अमल नहीं कर सकती.
वजह यह है कि सीमा क्षेत्र में सक्रिय कुछ ऐसे लोग हैं जो अपना वर्चस्व कायम करने के लिए एसएसबी के खिलाफ साजिश करते हैं और साजिश के तहत ग्रामीणों को भड़काकर अपना काम आसानी से निकाल लेते हैं. एसएसबी की कहीं न कहीं कुछ ऐसी मजबूरियां हैं, जिसकी वजह से उसे ऐसे लोगों के साथ समझौता कर काम करना पड़ता है. अगर एसएसबी की समझौतावादी विचार धारा कारगर हुई तो उत्तर बिहार के अधिकांश जिलों में नेपाली शराब आसानी से उपलब्ध होने लगेगी. जिसका असर बिहार सरकार द्वारा लागू किए गए शराबबंदी कानून पर प़ड़ेगा. वैसे वर्तमान में एसएसबी की सख्ती सीमा पर देखी जा रही है. हांलाकि सीमावर्ती जिला सीतामढ़ी के जिला पदाधिकारी राजीव रौशन, एसपी हरि प्रसाथ एस एवं शिवहर जिला पदाधिकारी राजकुमार और एसपी प्रकाशनाथ मिश्र ने शराबबंदी को पूर्णत: लागू कराने को लेकर कई आवश्यक कदम उठाये हैं. इन जिलों में तो गांव की गलियों तक प्रशासन की पैनी नजर घुम रही है. वहीं दूसरी तरफ बिहार में मौजूद आर्मी कैंटीनों पर भी सख्त पहरे की दरकार है. वजह यह है कि शराबबंदी के बाद शराबियों की नजरें रिटायर्ड सैनिकों के शराब कोटे को तलाशने लगी हैं. बिहार में दानापुर सैनिक छावनी के अलावा मुजफ्फरपुर में मौजूद सेना के कैंटीन समेत एसएसबी कैंटीन पर भी उक्त लोगों की नजरे हैं. सैनिकों को मिलने वाले प्रतिमाह शराब के कोटे को लेकर जाल फैलाया जाने लगा है. संभव है अगर इस दिशा में शराबियों को कुछ भी सफलता मिली तो सरकारी कानून लागू करने का मतलब नहीं रह जाएगा. इसके अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से आने वाले वाहनों की जांच नियमित कराने की आवश्यकता है. खासकर व्यवसायिक वाहनों पर पैनी नजर रखना जरूरी है.
वर्तमान में बिहार में पूर्ण शराबबंदी का असर है कि सामाजिक स्तर पर लोगों में एकजुटता बढ़ने लगी है. समाज के बुजुर्गों ने जो दशकों की सामाजिक परंपरा से खुद को अलग- थलग कर लिया था. अब उनकी सक्रियता भी समाज में नजर आने लगी है. शराबबंदी का आलम यह है कि युवा वर्ग भी अब नशा सेवन से दूर होने लगा है. शादी समेत अन्य मांगलिक अवसरों पर शराबियों का हंगामा थम गया है. बारातों में फिल्मी गीतों की धून पर थिरकने वाले युवाओं के पैरों में शराबबंदी की बेड़िया लग गई हैं. वहीं महिलाओं में उत्साह के साथ सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है. अब जरूरत है इस कानून को कायम रखने की. बिहार में लागू शराबबंदी कानून की सफलता सूबे के सामाजिक परिवेश को नई दिशा देने वाली साबित हो सकती है. नशे की लत की वजह से अपराध के दल-दल में फंस रहे युवाओं को नई दिशा मिलेगी और अपराध की घटनाओं पर भी रोक लगेगी. गरीबों की बस्ती में खुशहाली और बच्चों की किलकारियां भी गूंजेगी.