जब स्थानीय प्रशासन स्वामी सानंद को जबरदस्ती उठा कर ले जा रहा था तब भी स्वामी सानंद में इतनी ऊर्जा थी कि वे अपना पैर चला रहे थे और खुद को अस्पताल ले जाने से रोक रहे थे. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अस्पताल जाते ही उनकी मौत हो गई. आखिर दो दिनों में ही स्वामी जी इतने निशक्त कैसे हो गए.
गंगा पुत्र स्वामी सानंद यानि प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की 112 दिनों के अनशन के बाद हुई मौत पर अब उनके शिष्य, समर्थक और गंगा रक्षा से जुड़े कार्यकर्ता संदेह जाहिर कर रहे हैं. उनकी मांग है कि स्वामी सानंद की ऋृषिकेश एम्स से अलग स्वतंत्र रूप से पोस्टमाटर्म करवाई जाए. किसान मंच से जुड़े किसान नेता और गंगा रक्षा अभियान के सदस्य भोपाल सिंह चौधरी सीधे प्रशासन और सरकार पर स्वामी सानंद की मौत का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि जो आदमी 112 दिनों के अनशन के बाद भी ऊर्जावान बना रहा, वो अचानक अस्पताल में जाते ही दो दिनों के भीतर कैसे मर गया?
चौथी दुनिया से बात करते हुए भोपाल सिंह बताते हैं कि जब स्थानीय प्रशासन स्वामी सानंद को जबरदस्ती उठा कर ले जा रहा था तब भी स्वामी सानंद में इतनी ऊर्जा थी कि वे अपना पैर चला रहे थे और खुद को अस्पताल ले जाने से रोक रहे थे. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अस्पताल जाते ही उनकी मौत हो गई.
आखिर दो दिनों में ही स्वामी जी इतने निशक्त कैसे हो गए. वे स्वामी सानंद की मौत को रहस्यमयी मानते हैं. ये लोग पिछले कई दिनों से स्वामी सानंद का मृत शरीर पाने के लिए ऋृषिकेश कोतवाली के पास अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे हुए थे, लेकिन पुलिस ने इनलोगों को गिरफ्तार कर लिया. भोपाल सिंह का कहना है कि पुलिस हमें उनका दर्शन करने की भी अनुमति नहीं दे रही है. वे कहते हैं कि हमारी मांग है कि स्वामी सानंद का दोबारा पोस्टमार्टम कराया जाए.
हत्या का मुक़दमा दर्ज हो!
दूसरी तरफ, मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती ने स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की मौत को सुनियोजित हत्या बताया है. उन्होंने केन्द्र सरकार के एक मंत्री, हरिद्वार के जिलाधिकारी दीपक रावत, एसडीएम सदर मनीष कुमार सिंह, सीओ कनखल एसके सिंह और जगजीतपुर चौकी इंचार्ज पर साजिश रचने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी की मांग की है. उन्होंने इस मौत की जांच एसआइटी से कराने की भी मांग की है.
स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कहा है कि सरकार यदि ऐसा नहीं करती है तो वे इन लोगों के खिलाफ अदालत के जरिए हत्या का मुकदमा दर्ज कराएंगे. उनका मानना है कि जब 8 अक्टूबर को चिकित्सकीय जांच में स्वामी सानंद की शारीरिक एवं मानसिक हालत ठीक थी, एम्स ले जाते वक्त भी वे होश-ओ-हवास में थे, फिर अचानक उनकी मौत कैसे हो गई? उनका कहना है कि स्वामी सानंद के शरीर में पोटेशियम भी इतना कम नहीं था कि उन्हें हाईडोज देना जरूरी हो गया.
इस बीच, स्वामी सानंद के गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि सानंद की देह किसी भी हालत में ऋृषिकेश एम्स को न दी जाए. उनका कहना है कि स्वामी सानंद की देह ऋृषिकेश एम्स को देने से उनकी मौत के असल कारणों की जानकारी नहीं हो पाएगी. स्वामी सानंद की देह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल मेडिकल कॉलेज को दान की जा सकती है. कांग्रेस पार्टी ने भी इस मुद्दे पर हमला बोला है. उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने स्वामी सानंद की मौत को लेकर एम्स ऋृषिकेश के निदेशक के बयान की उच्चस्तरीय जांच की भी मांग की है.
दरअसल, ऋृषिकेश एम्स के निदेशक डॉ. रामाकांत ने बयान दिया था कि स्वामी सानंद अनशन तोड़ना चाहते थे, पर किसी दबाव के चलते वे ऐसा नहीं कर पा रहे थे. जाहिर है, यह एक गंभीर बात है, जिसकी जांच कराई जानी चाहिए. उन्होंने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि एक तरफ तो सीएम कह रहे हैैं कि वे सानंद के संपर्क में थे और दूसरी तरफ स्वामी सानंद के 112 दिन के अनशन के दौरान सीएम दर्जनों बार हरिद्वार आए, लेकिन उन्होंने कभी स्वामी सानंद से मुलाकात नहीं की. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का उनकी मांगों को पूरा करने का दावा भी झूठा निकला.
अब स्वामी गोपालदास अनशन पर
अविरल और स्वच्छ गंगा की मांग को आगे बढ़ाते हुए और स्वामी सानंद की मौत के बाद अब मातृसदन के ही संत स्वामी गोपालदास ने अनशन शुरू कर दिया है. स्वामी गोपालदास ने 11 अक्टूबर को स्वामी सानंद की मौत के बाद से ही जल का त्याग कर दिया था. मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती ने स्वामी गोपालदास के अनशन का समर्थन करते हुए कहा कि स्वामी सानंद की तपस्या को भंग नहीं होने दिया जाएगा. स्वामी गोपालदास ने मातृसदन के उसी कमरे में अनशन शुरू किया है, जहां स्वामी सानंद अनशन पर थे.
संत गोपालदास ने कहा कि वे अनशन के साथ ही मौन तप भी शुरू करेंगे. उन्होंने एम्स प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि एम्स प्रशासन उपचार करने के बजाए राजनीति कर रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि एम्स में उन्हें गलत बयानबाजी के लिए उकसाने का प्रयास किया गया. उनसे कहा गया कि वे बयान दें कि मातृसदन की ओर से उनसे अनशन कराया जा रहा है. लेकिन वे किसी भी कीमत पर अनशन समाप्त नहीं करेंगे.
ऐसे तो गंगा कभी स्वच्छ नहीं होगी
सिर्फ नदी में फैले प्रदूषण को साफ करने से गंगा साफ हो जाएगी, यदि सरकार ऐसा सोचती है, तो फिर गंगा कभी साफ नहीं होगी. न सिर्फ गंगा, बल्कि गंगा की सहायक नदियों की सफाई भी करने की जरूरत होगी. सीवेज ट्रीटमेंट पर भी ध्यान देना होगा. औद्योगिक कचरों को या तो गंगा में जाने से रोकना होगा या फिर उनका संपूर्ण ट्रीटमेंट करना होगा. नमामी गंगे के तहत 200 से अधिक प्रोजेक्ट पर काम किए जाने हैं, जिनमें से अब तक केवल 63 ही पूरी हो पाई हैं. सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करें, तो मई 2015 में केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा नमामि गंगे को मंजूरी मिलने के बाद 68 परियोजनाएं मंजूर की गई थीं, लेकिन केवल छह परियोजनाएं 31 अगस्त 2018 तक पूरी हुई हैं. नमामि गंगे के गठन से पहले स्वीकृत 46 लंबित परियोजनाओं में से केवल 21 पूरी हो पाई हैं.
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कहां है
नमामि गंगे के लक्ष्यों के मुताबिक, 2,000 मिलियन लीटर/दिन (एमएलडी) क्षमता के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का पुनर्वास किया जाना है, जिसमें से केवल 328 एमएलडी क्षमता के एसटीपी का पुनर्वास किया जा सका है. एसटीपी के साथ एक और समस्या है, उनका कम उपयोग. नतीजतन, वे उतने प्रदूषकों का उपचार नहीं कर पाते, जितने की जरूरत है. ऐसा शहर में सीवरेज नेटवर्क की कमी के कारण हैं. अगर नए एसटीपी बनते भी हैं, तो सीवरेज नेटवर्क के बिना इस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकेंगे.
संयोग से, नमामि गंगे के बाद 2,071 किलोमीटर नई सीवर लाइन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है. अभी सिर्फ 66.85 किमी ही बन सके हैं. बिहार के गंगा बेसिन शहरों में 1,723 किमी सीवर लाइन बिछाई जानी थी. अगस्त 2018 तक केवल 206 किमी की दूरी तक ही सीवल लाइन बिछाई जा सकी है. घरेलू सीवरेज से इतर, उद्योग से जुड़े सीवरेज भी गंगा के लिए बड़ा खतरा हैं. जैसे, कानपुर के जाजमऊ क्षेत्र के टैनरीज (चर्म उद्योग) को लेकर सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कई बार गुस्सा प्रदर्शित किया है.
अप्रैल-मई 2018 की कानपुर जल निगम की रिपोर्ट बताती है कि टैनरी प्रदूषण में क्रोमियम सान्द्रता प्रति लीटर 110.2 मिलीग्राम है. जाहिर है यह एक खतरनाक स्तर है. उन्नाव में दूसरा टैनरी क्लस्टर है, जहां 15 टैनरी इकाइयां हैं. तीसरा टैनरी क्लस्टर बंथर में है, जहां 42 टैनरी उद्योग हैं. उन्नाव में 15 इकाइयों का परिचालन हो रहा है. सभी 15 टैनरी के पास अपना क्रोमियम रिकवरी प्लांट होता है और उनका आउटलेट सीईटीपी से जुड़ा होता है. ऐसी अपेक्षा की जाती है कि ये उद्योगों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण का ट्रीटमेंट करेंगे. लेकिन असलियत में कहीं भी ऐसा नहीं हो रहा है.
गंगा के दुश्मन
गंगा बेसिन में 795 छोटे और बड़े बांध हैं, जो इसके प्रवाह को अवरूद्ध करते हैं. विशेष रूप से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में स्थित जलविद्युत परियोजनाओं, बैराज और नहरों ने गंगा को बर्बाद कर दिया है. गंगा में जल का स्तर भी घटता जा रहा है, जो चिंता की एक बड़ी वजह है. अप्रैल-मई महीने में पानी और भी कम हो जाता है. यह नदी के अस्तित्व के लिए एक खतरा है.
यदि गंगा का प्रवाह बना रहता, तो नदी अपने-आप 60-80 प्रतिशत कार्बनिक प्रदूषकों को दूर कर सकती है. गंगा नदी के पानी में कमी घनी आबादी वाले उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में घरेलू जल आपूर्ति, सिंचाई जल आवश्यकताओं, नदी परिवहन, पारिस्थितिकी आदि को खतरे में डाल सकती है. आने वाले सालों में गंगा में पानी के स्तर में और गिरावट की उम्मीद है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा की गई गणना के मुताबिक, गंगा बेसिन के पांच राज्य उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल यदि पूर्ण ओडीएफ बन जाते हैं, तो प्रतिदिन लगभग 180 मिलियन लीटर मल कचरा उत्पन्न होगा. यदि उचित मल कचरा प्रबंधन नहीं होता है, तो यह सब गंगा में जाएगा. आगे चिंता का कारण यह होना चाहिए कि मल कीचड़, सीवरेज से भी अधिक प्रदूषित होगा. जहां सीवरेज का बीओडी 150-300 मिलीग्राम/ली. है, वहीं मल कचरे में यह प्रति लीटर 15,000-30000 मिलीग्राम होगा.
दूसरी तरफ, शहरों का प्रदूषण छोटे और खुली नालियों के नेटवर्क से बहता है, जो अंत में गंगा में मिलती हैं. किसी भी शहर में ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए योजना नहीं है, इनमें से अधिकांश सड़कों पर फेंक दिया जाता है. इस कचरे का केवल एक अंश ही नगर पालिका पारिषद द्वारा एकत्र किया जाता है और बिना ट्रीटमेंट या रीसाइक्लिगं के शहर की सीमाओं पर डंप किया जाता है, जो आखिरकार नदी में जा कर मिल जाता है.