नई दिल्ली: देश की अदालतों ने समय-समय पर मैला प्रथा के गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए सरकारों से कार्रवाई करने का आदेश दिया है. इस सिलसिले में सबसे महत्वपूर्ण फैसला सुप्रीम कोर्ट का था, जो उसने 27 मार्च 2014 को एक सफाईकर्मी द्वारा दायर याचिका पर सुनाया था. इस फैसले में कोर्ट ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को 2013 का क़ानून पूरी तरह से लागू करने, सीवरों एवं सेप्टिक टैंकों में होने वाली मौत रोकने, 1993 के बाद सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान सभी मरने वालों के आश्रितों को 10 लाख रुपए मुआवज़ा देने का आदेश दिया था. फैसले के तीन साल बाद सरकार की तरफ से जो आंकड़े दिए जा रहे हैं, उसमें कानूनी लीपापोती अधिक है और ज़मीनी स्तर पर काम कम. हाल में सरकार ने यह दावा किया है कि 91 प्रतिशत सफाई कर्मचारियागें को एक बार दी जाने वाली 40,000 रुपए की मुआवजा राशि दी जा चुकी है.
बहरहाल सरकार यह दावा तो कर रही है कि उसने 91 प्रतिशत सफाई कर्मचारियों को सहायता राशि प्रदान कर दी है, लेकिन 2011 की जनगणना में जितने लोगों ने अपना व्यवसाय मैनुअल स्केवेंजिंग बताया था, उनमें से 93 प्रतिशत की पहचान सरकार अभी तक नहीं कर पाई है. एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचन्द गहलोत ने लोकसभा को बताया कि इस व्यवसाय से जुड़े 12,742 लोगों की पहचान कर 11,598 लोगों को 40,000 रुपए का मुआवजा दे दिया गया है और उनके कौशल विकास के लिए भी क़दम उठाए गए हैं.
यह बड़ी हास्यास्पद बात है,क्योंकि 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना में देश के 1,82,505 परिवारों में से कम से कम एक सदस्य इस काम से ज़ुडा था. ज़ाहिर है यह संख्या आज इससे कहीं अधिक होगी. बहरहाल आंकड़ों के खेल में माहिर सरकार ने 91 प्रतिशत का आंकड़ा पेश कर अपनी पीठ थपथपा ली.
जहां तक सेप्टिक टैंकों और सीवर की सफाई के दौरान मरने वाले सफाई कर्मियों की बात है, तो इस सम्बन्ध में सरकार ने सर्वे का काम भी पूरा नहीं किया है. मैनुअल स्केवेंजर्स के पुनर्वास के लिए स्वयं रोजगार योजना (एसआरएमएस) का बजट भी कम कर दिया गया है. इस योजना के तहत कम ब्याज पर 5 लाख रुपए तक के ऋृण का प्रावधान है.
पिछले तीन सालों में केवल 658 प्रोजेक्ट्स को स्वीकृत मिली है, जो चिन्हित सफाई कर्मियों का केवल 5 प्रतिशत है. अभी तक वर्ष 2017-18 के लिए एक भी प्रोजेक्ट स्वीकृत नहीं हुआ है. स्वरोजगार के मद में पिछले तीन सालों में 98 प्रतिशत की कमी आई है. इसके लिए सफाई कर्मियों में साक्षरता की कमी और अपना रोज़गार शुरू करने के लिए इच्छा शक्ति के अभाव को प्रमुख कारण बताया जा रहा है. गौरतलब है कि सफाई कर्मचारी आन्दोलन ने 2014 में सीवर और सेप्टिक टैंकों में मरने वाले 1327 सफाई कर्मियों की एक सूची तैयार की थी, जिनमें से केवल 3 प्रतिशत को ही मुआवजा मिल पाया था, शेष को मृत्यु की सरकारी परिभाषा में उलझा कर रख दिया गया था.