एक सैन्य अभियान के मुकाबले पाकिस्तानी क्षेत्र में हुआ सर्जिकल स्ट्राइक औसत दर्जे का था. ये मान भी लिया जाए कि यह ऑपरेशन उस तरीके से न हुआ हो, जैसा इसे बताया जा रहा है. फिर भी, इस सर्जिकल स्ट्राइक ने भारत-पाकिस्तान के कम तीव्रता वाले युद्ध के प्रारूप को बदल दिया है. जहां तक शक्ति संतुलन का सवाल है, इसका असर मिला-जुला होगा. लेकिन, शक्ति संतुलन से अधिक इसका असर भू-राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक है.
सबसे पहले, इस बात को लेकर भ्रम है कि वहां वास्तव में हुआ क्या? कई अनसुलझे सवाल भारत के पक्ष में नहीं हैं. इस कहानी को एक सटीक गोलाबारी के रूप में पेश किया गया. फिर, इसने हेलीकॉप्टर सवार कमांडो द्वारा की गई छापेमारी और आखिर में जमीनी हमले का रूप ले लिया.
इनमें से, पहला और आखिरी काम (ङ्क्षयानी गोलाबारी और जमीनी छापेमारी) भारत की ओर से पहले भी कई बार हुए हैं, लेकिन इन्हें सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं किया गया है. विकल्प नंबर दो (यानी हेलीकॉप्टर द्वारा कमांडो हमला) एक प्रमुख विकल्प हो सकता है, लेकिन कई कारणों से ऐसा करना संभव नहीं है.
कारगिल से सबक मिलने के बाद भी, जहां भारतीय वायु सेना को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था, भारत ने अपने सैन्य विमानन के लिए इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा उपायों में निवेश नहीं किया. इस कार्रवाई में हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल अत्यधिक अविवेकपूर्ण और उकसाने वाला हो सकता था, यदि पाकिस्तान ने एक या दो हेलीकॉप्टर मार गिराया होता. इस क्षेत्र में पाकिस्तान की वायु सुरक्षा की तैयारियों को देखते हुए इसकी संभावना अधिक थी.
इसी तरह, दो पाकिस्तानी सैनिकों का मारा जाना भी एक सामान्य गोलीबारी का नतीजा है या एक सुनिश्चित क्षेत्र पर की गई एक आम छापेमारी है. यदि कोई यह मान ले कि यह कार्रवाई एक सफल हेलीकॉप्टर छापेमारी थी, तो इसके विजुअल्स (फोटो) सारे शक और शुबहे को खत्म करने में बहुत हद तक सहायक होंगे. आखिरकार जब 1999 के पाकिस्तानी नेवी अटलांटिक (नवल एयर आर्म) को भारतीय वायु सेना ने मार गिराया था, तब उसके मलबे के फोटो और मलबे के कुछ अंश को जमा किया गया था.
शक्ति संतुलन के पहलू से देखें तो यह छापा औसत रूप से ही सफल माना जाएगा. लेकिन इसने दिखाया कि पाकिस्तान द्वारा भारतीय आक्रामकता के खिलाफ परमाणु हथियारों के प्रयोग का दाव बुरी तरह से नाकाम हो गया है. जाहिर है, जैसा कि भारत की यह सोच रही है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी के बाद भी पारंपरिक युद्ध की संभावना बाकी है, सही साबित हुआ है. इसने पाकिस्तान के आत्मविश्वास को बुरी तरह से डिगा दिया है, जिसके भरोसे पाकिस्तान सोचता था कि वह भारतीय आक्रामकता को नियंत्रित कर सकता है. यह भारत की कमजोरी को दर्शाता था और यह भी जाहिर करता था कि पाकिस्तान ही हमेशा सैन्य पहल कर सकता है. इस मामले में सबसे नकारात्मक पहलू है, भारत द्वारा चुना गया लक्ष्य. पाकिस्तानी सेना ब्रिगेडियर रैंक से नीचे के किसी भी सैनिक और भाड़े के आतंकी को भ़ेड-बकरी से ज्यादा नहीं समझती है. इनके मारे जाने से पाकिस्तान को कोई फर्क नहीं पड़ता है. इसके विपरीत, भारत द्वारा इस लक्ष्य का चुनाव पाकिस्तान को भारत में कुछ और आतंकी हमले करने के लिए प्रेरित कर सकता है ताकि जिहादियों के आत्मविश्वास को बढ़ावा मिल सके.
पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत पर आतंकवादी हमले से रोकने का एकमात्र तरीका ये है कि उसके ब्रिगेडियर या उसके ऊपर के रैंक के अधिकारियों को लक्ष्य बनाया जाए. लिहाजा, भारत का यह सर्जिकल स्ट्राइक परमाणु प्रतिरोध के मोर्चे पर तो सफल रहा लेकिन आतंकवादी ताकतों को भयभीत नहीं कर सका.
इस छापे की वास्तविक सफलता मनोवैज्ञानिक है. 1980 के दशक के बाद से पाकिस्तान की अभेद्य रणनीति को इस स्ट्राइक ने तोड़ दिया है. पाकिस्तान यह मान रहा था कि भारत परमाणु युद्ध के डर से सार्वजनिक तौर पर सीमा पार छापे नहीं मारेगा या इस तरह का स्ट्राइक नहीं करेगा. पिछले 35 वर्षों से दोनों तरफ सेना के लोग इस तरह के काम करते रहे हैं और उसी तरह से जवाबी गोलाबारी भी होती रही है.
लेकिन भारत ने अतीत में कभी खुले तौर पर इन कार्यों की घोषणा नहीं की. सीमा पार छापे की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति से कहानी बदल जाती है. यदि पाकिस्तान इस ऑपरेशन से इनकार करता है और भारत इसके वीडियो जारी कर देता है तो पाकिस्तानी सेना अपनी वैधता और विश्वसनीयता खो देगी. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान की चुप्पी भारत को इस तरह के और भी हमले करने के लिए प्रेरित करेगी.
दूसरी ओर, यदि पाकिस्तान इसे स्वीकार कर लेता है तो फिर इसके वायु और रक्षा नेटवर्क पर असुविधाजनक सवाल खड़े हो जाएंगे, जैसा ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिए एबटाबाद पर अमेरिकी छापे के बाद सवाल उठे थे. इसी तरह, यदि पाकिस्तान इस सर्जिकल स्ट्राइक को स्वीकार करता है तो उसे अपने परमाणु शक्ति संतुलन की विफलता पर जवाब देना होगा. इसके अलावा, पाकिस्तानी सेना के मनोबल को पहुंचा नुकसान तो बेहिसाब है.
इससे बढ़कर ये कि इस पहल की वजह से भारत बाहरी मध्यस्थता का लाभ उठा सकता है, एक ऐसा खेल जिसे अब तक सिर्फ पाकिस्तान खेलता रहा है. पाकिस्तान का काम अब तक आतंकी हमले के जरिए तनाव पैदा करना, परमाणु हथियारों के उपयोग की बात करना और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का हस्तक्षेप हासिल करना था.
कुछ दिनों पहले पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने परमाणु बम की धमकी दी और कहा कि भारत एक नियमित ऑपरेशन को राई का पहाड़ बना रहा है. ऐसे में पाकिस्तान अपने जाल में ही फंस गया है. अब न पाकिस्तान अपनी धमकी को अमलीजामा पहना सकता है और न ही सिरफिरे ढंग से कार्रवाई कर सकता है और न ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप के लिए बोल सकता है.
महत्वपूर्ण रूप से अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुसान राइस निर्णायक रूप से भारत के समर्थन में आ गए हैं. भले ही, सैन्य कार्रवाई को काफी बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है, लेकिन भारत को इससे एक बड़ी सफलता हाथ लगी है और इसने भारत-पाकिस्तान के बीच के समीकरण को बदल दिया है.