सुभाष वारे सर जी की पोस्ट देखकर हमारे कलकत्ता के दिन याद आ रहे है ! हमारे सरकारी आवास के बगिचेमे, आदत के अनुसार मै सुबह एक चक्कर लगाने गया ! तो एक बहुत ही अंन्जान चुजा पडा हुआ मिला ! देखा तो ताडके पेडसे एक घोसले से कल रात के आंन्धी और तुफान के कारण गिरा होगा ! मै उसे उठाकर घर मे ले आया ! और थोडी देर मे मेडम खैरनार का स्कूल का शिपाई उन्हे लेने के लिए आया, तो उसे पुछा की यह क्या है ? तो वह तपाक से बोला सर यह इगल है ! हमे विश्वास नही हो रहा था ! उसिने उसे अपनी गोद मे लेकर कपास के फाये को दुध मे भिगोकर दुध पिलाया, और कुछ दिनो बाद उबले अंडे भी खिलाने की सलाह उसीने दी थी तो रोज एक अंडा उबाल कर उसे खिलाने लगे ! और हप्ता भर भी नही हुआ होगा हमे विश्वास हो गया की यह इगल ही है ! दो चार महिने के बाद हमारे बेटे ने उसे उडना आता है क्या ? यह देखने हेतू उसे हमारे घर के कंपौंड वॉल पर बैठाया ! और वह हमारे आंगन के निमके पेड पर, और उसके बाद बगल के पुराने पीपल के पेड पर, और फिर क्या विशाल आकाश मे ! मजेदार बात बच्चो ने उसका नाम भी विशाल ही रखा था !


लेकिन जितना भी समय वह हमारे साथ रहा उसने हमारे घर में रौनक ला दी थी ! वह बहुत ही जल्द से अपनी शक्ल सुरत ले रहा था ! और पूरे घर मे उधम मचाने लगा ! मुख्यतः उसका बच्चोके बेडमे उनके पैरोके पास चोच घुसाकर सो जाना ! और टट्टी की स्टाईल चोच को निचे झुककर अपनी पुछ उपर उठाकर दिवारो पर स्प्रे पंप जैसा फव्वारा उडाता था ! और ड्रॉईंग रुम मे कोई मेहमान सोफे पर बैठा देखकर, उनकेही हाथ या कंधे पर बैठतेही सामनेवाले की घबराट देखते बनती थी ! फिर उनके अचानक घबराट को देखकर वह हमारे हाथ या कंधे पर आकर बैठता था ! और बडेही प्यारसे अपनी चोच मे हमारे कान पकडता था ! लेकीन कभी भी काटा नही ! वह जितने भी दिन घर मे रहा रौनक थी ! क्योकि घर मे पहले से ही शेरु नामका एक जर्मन शेफर्ड कुत्ता भी था ! लेकीन उनकी केमेस्ट्री गजब की थी ! दोनो भी हन्टर जमात के होने के बावजूद, उन्हे आपसमे कभी भी लढाई करते हुये नही देखा ! विशाल कभी कभी शेरु पर सवार हो जाता था ! काश उस समय आधुनिक मोबाईल होते तो कितने रेअर फोटो निकाले होते ! यह जो फोटो देख रहे है, वह अग्फा का प्रथम मॉडल से है !


एक दिन श्याम को एक एअरफोर्स अफसर मिलने के लिए आए थे और बैठक के हॉल में वह बैठे थे और मै उनसे बातचीत कर रहा था तो अचानक विशाल आकर मेरे कंधे पर चढकर बैठ गया तो वह व्यक्ति उठकर खड़े होकर कहने लगे कि यह डोमेस्टिक बर्ड नही है ! और उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह जी की बात बताई की कैसे उन्होंने अपने हाथों पर मोटे चमड़े के कवर बना कर उसके ऊपर इसी प्रकार के पक्षी को बैठाने के उदाहरण है ! लेकिन हम तो अपने घर में घरेलू कपडों में ही बैठे हुए थे ! और ईगल हमारे कंधे पर बैठ कर मेरे कान को अपनी चोच में लेकर बड़े ही प्यार से पकडता था ! लेकिन एक बार भी मुझे नहीं दर्द हुआ ! और न ही उसने कभी कोई जख्म किया ! हम भरत को बाघ के मुंह को दोनों हाथों से पकडकर मुंह खोलने के फोटो देखें है ! शायद वह बाघ भी भरत के साथ बचपन से रहते हुए इस तरह का हुआ होगा ! और वैसे ही कुछ पौराणिक चित्रों में किसी साधु या भगवान के अगल बगल में इस तरह के जिन्हें हिंस्र प्राणी कहा जाता है वह आराम से उनके इर्द-गिर्द बैठे हुए या खड़े हुए फोटो दिखाई देते हैं ! कुछ किंवदंतियों को छोड़ दें, तो भी हम अपने अनुभव से इस पक्षी का जितना भी समय हमें सहवास का लाभ हुआ है !

उसमे हमारे दिवारें उसके टट्टी के वजह से पेंटिंग को छोड़कर अन्य कोई भी वारदात याद नहीं है कि उसने कोई जख्म हमारे बच्चों से लेकर शेरु कुत्ते तथा हमे किसी को भी नहीं किया था ! उल्टा बहुत ही प्यार से हमारे कंधे पर बैठ कर अपनी चोच से कान को मुंह में लेने और बच्चों के सोने के समय उनके पैरों के पास चादर के भीतर चोंच घुसाए सो जाने का नजारा देखने को बनता था !
और जिस पक्षी को मैंने चुजे के रूप में घर में उठाकर लाया था ! वह चंद दिनों के भीतर अपने मुल रुप में आने के बाद, जबभी कभी वह अपने पंखों को दोनो तरफ से फैलाता था ! तब कमरों की दोनों ओर की दिवारों को उसके पंख लग जाते थे ! हालांकि हमारे घर के कमरे इस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के समय का फोर्ट विल्यम किले के सेंट जॉर्ज गेट के उपर वाले हिस्से पर बने हुए घर जो पांच हजार स्क्वेअर फिट का लगभग तेरह कमरे और एक- एक कमरा साढेतिनसौ फिट और तीस फिट उंची छत वाला था ! शायद 1756 में सिराजउद्दोला को हराने के बाद बनाया हुआ है ! वर्तमान में हमारे सेना का इस्टर्न कमांड का मुख्यालय है !
ह मेडम खैरनार उसके लिए बनाया गया केंद्रीय विद्यालय की प्राचार्या थी इसलिए इतना बड़ा मकान वह भी देश के सबसे बड़े शहर कलकत्ता में !

इसिलिये शेरु नाम का जर्मनशेफर्ड डॉगी भी था और उस मकान का अगल-बगल के कुल क्षेत्रफल जिसमें हमने गार्डन बनाया था वह भी कम-से-कम दस हजार स्केअर फीट का था ! इतना बड़ा मकान नही उसके पहले और न ही उसके बाद हमें नसीब हुआ ! वह पहला और आखिरी घर था जिसमें विशाल जैसे ईगल से लेकर शेरु जैसे डॉगी के साथ हम लोग रहे हैं और बीच – बीच में मेहमानों में मेधा पाटकर से लेकर सुंदरलाल बहुगुणा तथा प्रोफेसर मधु दंडवते से लेकर भाई वैद्य,अशोक सक्सेरिया, किशन पटनायक, अनिल प्रकाश, घनश्याम, उदय, मुन्ना सिंह, वसंत पळशिकर, आचार्य केळकर डॉ. कुमार सप्तर्षी, प्रोफेसर ग. प्र. प्रधान, यदुनाथ थत्ते, अशोक शहाणे, नारायण सुर्वे, सतिश काळसेकर, श्री. बा. जोशी, विणा आलासे, वसंत पंडित, बाणी सिंह, श्यामली खस्तगिर, मनिषा बॅनर्जी, मणिंद्र नारायण बोस सिताराम राऊत, माधुरी नानल, सारंग पांडे, जुगलकिशोर रायबीर और कलकत्ता फिल्म, नाटक के क्षेत्र के लोगों के अलावा साहित्यिक गौरकिशोर घोष, प्रोफेसर अम्लान दत्त, प्रोफेसर दिलिप चक्रवर्ती, बादल सरकार, शंभू मित्र, सावली मित्र, चिदानंद दासगुप्ता से लेकर उनकी बेटी अपर्ना सेन, समर बागची, अजितदा तथा मशहूर कम्युनिस्ट नेता और पूर्व गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता भी उस मकान में आकर गए हैं ! एक तरह से वह मकान विकास की अवधारणा को लेकर चिंतित सभी लोगों का अड्डा बन गया था ! और इन सभी महानुभावों के साथ हमारे विराट तथा शेरु जैसे सदस्यों से हमारे घर में सतत चहल-पहल रहती थी !

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