भारतीय राजनीती मे की अपराधी पृष्ठ भूमि के लोक प्रतिनिधि योको लेकर कल के दिन सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि,अपराधीक छवि वाले नेताओं को कानून बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ! 9 जुलाई 1993 को तत्कालीन गृह सचिव एन एन वोरा के नेतृत्व में भारत सरकार ने भारतीय राजनीती मे की अपराधी पृष्ठ भूमि के लोक प्रतिनिधि योकी छान बीन करके सरकार को रिपोर्ट देने के लिए एक कमिटी का गठन किया था ! जिसकी वजह मुंबई बम धमाके, मार्च 1993 के बाद यह कमिटी का गठन किया गया था ! और तीन महीनों के भीतर रिपोर्ट देने के लिए कहा था और अक्तूबर 1993 को भारत की आजादी की अर्ध शताब्दी के मौके पर जनता की जानकारी के लिए प्रकाशित करने का तय हुआ था ! हालाँकि यह रिपोर्ट अक्तूबर 1993 मे ही तैयार होकर लोकसभा में पेश किया था !
लेकिन नैना साहनी हत्याकांड का मामला उसी दर्मियान हुआ था ! और उससे उठे तुफान में वोरा कमिटी रिपोर्ट पूर्ण रूप से जनता के लिए प्रकाशित करने का काम नहीं हुआ ! अमल तो बहुत दूर की बात है ! कि अब आजादी के पचहत्तर साल का समय आया है ! और कल के दिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए ,मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण्णा, न्यायमुर्ति सूर्या कांत और न्यायमूर्ति विनीत सरण की खंडपीठ ने नाराजगी जाहिर करते हुए 2020 के चुनाव में बिहार के विधानसभा चुनावों के दौरान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है और भाजपा, कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल, लोक जन शक्ति पार्टी को एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है !
आगे जाकर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि समय-समय पर क्रिमिनल पृष्ठभूमि वाले लोगों को राजनीति मे प्रवेश करने की पाबंदी लगाने के लिए कहने के बावजूद उल्टा भारत की राजनीति मे क्रिमिनल पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट देने मे लगभग भारत के सभी दलों ने कमधीक प्रमाणमे सभी दल शामिल है ! और राजनीति का क्रिमिनलायझेशन बदस्तूर जारी है !उल्टा पहले से ज्यादा बढ रहा है !
इतने सारे प्रावधानों के बावजूद संसद और विधानसभा में चुनकर आये प्रतिनिधियोके उपर के अपराधी होने के प्रमाण कम होने की जगह बढते ही जा रहे है ! दिसम्बर 2018 मे 4,122 थी वह बढकर सितंबर 2020 में 4,859 तक पहुँच चुकी है और इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया की इसी मामलों के लिए न्यायालय मित्र की नियुक्ति की है और लोक प्रतिनिधि योके उपर चल रहे अपराधिक मामलों की केसेस को त्वरित निपटारा करने के लिए कहा है और हंसारिया ने इस मामले में 13 वा रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण्णा को सादर किया है !
जिस देश मे महात्मा गाँधी के हत्यारे को महिमामंडित करने मे वर्तमान संसद में बैठे सदस्य करते हो ! और उनकी खुद की अपराधीक पृष्ठभूमि पता होने के बावजूद वर्तमान सत्ताधारी पार्टी उस उम्मीदवार को लोकसभा चुनाव में खडा करता हो तो आज हमारे सर्वोच्च न्यायालय के हताशा भरी टिप्पणी की हमारे हाथ बंधे हैं ! हम केवल कानून बनाने वालों की अंतरात्मा से अपील कर सकते हैं कि वे कुछ करे ! उम्मीद है, वे एक दिन जागेंगे और राजनीति मे अपराधीकरण को खत्म करने के लिए बडी सर्जरी करेंगे !
इसे अंग्रेजी में विशफुल थिंकिग बोला जाता है ! 1952 के मध्यावधि चुनाव के बाद भारत की सभी विधानसभा और लोकसभा के सदस्यों की कुंडली देखने के बाद ही आजादी को पचास साल के उपलक्ष्य में एक कमिटी का गठन किया गया था और उसके रिपोर्ट को लागू करने की बात तो बहुत दूर वह रिपोर्ट क्लासिफाइड डाक्यूमेंट के नाम पर सार्वजनिक करने की मनाही करने वाले लोगों से कैसी उम्मीद कर सकते ?
नागरिकता के बिलों से लेकर किसान-मजदूर, बैंक, आर्थिक नीतियों से, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा देश की सुरक्षा और लगभग आजादी के बाद भारत की सभी प्रमुख संविधानिक संस्थाओं के अधिकार मर्यादित करने से लेकर पेगाॅसस जैसे जासूसी करने की बात की भारत की संसद मे चर्चा तक नहीं होने देना क्या इनसे भारत की राजनीति मे क्रिमिनल पृष्ठभूमि वाले लोगों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के जजों द्वारा अंतरात्मा से अपील करने मे ही हताशा नजर आती है ! वैसे भारत की राजनीति मे क्रिमिनल पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट देने मे लगभग भारत के सभी दलों ने कमधीक प्रमाणमे भुमिका निभाई है और इसका प्रमुख कारण उस उम्मीदवार के चुनकर आने का मैरिट !
तो इसमे हमारे समाज के नैतिक मूल्यों का वर्तमान भारत के आइना दिखा दिया है कि उनके उम्मीदवार के पृष्ठभूमि को जानने के बावजूद लोग उसे ही वोट देने के कारण क्या हो सकते हैं ? मेरे लिए यह विषय गत तीस साल से भी ज्यादा समय से चिंता और चिंतन का विषय है और यह मैंने हवाला के देशद्रोही किताब के विमोचन से लेकर सेवाग्राम की एन ए पी एम की स्थापना के समय भी कहा कि भारत की वर्तमान राजनीति के लिए आपने लोगों के रोजमर्रा के जीवन के सवालों को लेकर कितने आंदोलन किये इससे ज्यादा आपका हीरो की तरह कितना अपराधी पृष्ठ भूमि है यह देखकर मतदाता मत करना जारी रहते हुए आप जैसे लोगों को वर्तमान संसदीय राजनीति में कोई जगह है ऐसा मुझे नहीं लगता और स्वामी अग्निवेश, मेधा पाटकर और जीवन के अंतिम पड़ाव में मृणाल गोरे, मधु दंडवते जैसे लोगों को जो चुनाव में अनुभव आये वह पर्याप्त मात्रा में उदाहरण है ! महात्मा गाँधी ने 1909 में ही अपनी हिंदस्वराज्य नाम की किताब में (भारत की संसद के जन्म से भी पहले !) ब्रिटिश संसद को देखकर संसद को गणिका की उपमा दी है और यह बहुत ही सटीक उपमा है क्योंकि 75 साल के भारत के संसदीय सफर का जायजा एन एन वोरा से लेकर वर्तमान भारत के सर्वोच्च न्यायालय के जजों द्वारा की गई टिप्पणियों का क्या मायने हैं ?
हम्माममे सभी नंगे हैं !
भारतीय राजनीति में अपराधीकरण के जांच करने के लिए एन एन वोरा तत्कालीन गृह सचिव के नेतृत्व में 1993 में एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत के राजनीतिक जमात में 50% अपराधी तत्व है ! यह रिपोर्ट भारत की आजादी के पचास साल पहले के अर्ध शताब्दी पार करने के पहले ! मैंने खुद उस रिपोर्ट को देखकर 1999 के सितंबर में दिल्ली में हवाला के देशद्रोही नाम से विनीत नारायण की किताब के विमोचन के समय कहीं थी ! उस समारोह की अध्यक्षता में पूर्व गृहमंत्री इंद्रजित गुप्ता जी कर रहे थे ! और इंद्रजित गुप्ता जी काफी ब्रेक में मुझे कह रहे थे कि क्या करें वोरा साहब ने कोई नाम नहीं दिया है ! तो मैंने तपाकसे बोला कि आप गृहमंत्री थे और वोरा आपके मातहत गृह सचिव थे और आपका काम था वोराजीसे लिस्ट मांगने का अधिकार आपने क्यो नही इस्तेमाल किया?
यह सब 20 साल पहले की बात है और वोरा कमीशन के रिपोर्ट अक्टूबर 1993 को सौपा गया है ! इन 27 सालों में कितनी बार अलग अलग दलों की सरकारों को मौका मिला है भारत में राज करने का ? आज मैंने यह पोस्ट लिखने से पहले गूगल और विकिपीडिया मे वोरा कमीशन के रिपोर्ट के सर्च करने की कोशिश की लेकिन वह गाँधी नाम के कोई सूचना के अधिकार पर काम करने वाले ने 2017 मे वोरा कमीशन के रिपोर्ट की मांग की है तो जवाब में कहा गया है कि यह क्लासिफाइड जानकारी होने के कारण आप को नहीं दिया जा सकता है !
अभि की सरकार के मुखिया ने 2014 की चुनाव सभाओं में मै भारत की सरजमीं पर से अपराधीयोका नामो-निशान मिटाकर रहूँगा ! यह बात दहाड़ दहाड़ कर शेकडो सभाओमे कहीं थी ! उनके खुद के 2002 के गुजरात दंगों के दर्जनो रिपोर्ट के हवाले से और उनके खांसं-खास अभित शाह, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री के पूर्व रेकार्ड को देखकर लगता नहीं कि वर्तमान प्रधानमंत्री के चुनाव के भाषण में चिल्ला-चिल्लाकर की हुई अपराध मुक्त भारत, भ्रष्टाचार मुक्त भारत और भूकमुक्त भारत सिर्फ चुनावी जुमले-बाजी के अलावा और कुछ नहीं था !
अस्सी के दशक में मुम्बई में महाराष्ट्र कांग्रेस के चुनाव के टिकट बटवारे की मीटिंग में पप्पू कलानी और भाई ठाकुर को टिकट नहीं देना चाहिए यह शंकरराव चह्वाण की सूचना का विरोध वर्तमान महाराष्ट्र सरकार के गार्जियन ने यह कहकर किया था कि ये दोनोंका चुनाव में जितने का मैरिट है ! और वे दोनों जितने में कामयाब रहे थे !
कर्नाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री के पूर्व रेकार्ड को देखकर लगता नहीं कि ये आदमी को ग्राम पंचायत का सरपंच भी नहीं बना सकते हैं लेकिन वह आज सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं उसने अपने मंत्रियों में खनन माफिया रेड्डी बंधुओं को पर्यावरण संरक्षण के लिए जिम्मेदारी दी है ! कौन रेड्डी बंधु ? जिन्हें सीबीआई ने अवैध खनन के अपराध में जेल भेजा है ! और ऐडूरप्पा भी भ्रष्टाचार के मामले में जेल में रह कर आये हैं !
वर्तमान भारत के गृहमंत्री का रेकार्ड क्या है ? गुजरात के गृहमंत्री रहते हुए उन्हें एक साल से ज्यादा जेल में बंद कर दिया था वह भी हत्या के अपराध में ! आज भी सोहराबुद्दीन के भाई न्याय की भीख मांगते हुए कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं ! और निरंजन टकले जस्टिस लोया के मौत को लेकर कारवान नाम की पत्रिका में बहुत विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार लोया के मौत को लेकर संशय की सुई कीधर दिखाई दे रही है ?
20-22 साल पहले दिल्ली के सी एस डी एस में एक छोटी गोष्ठि हुई थी और मै उस समय दिल्ली में एन ए पी एम की रामलीला मैदान में होने वाली रैली की तैयारी हेतु कुछ समय के लिए दिल्ली में डेरा डाले हुए था! जिसमे आशीष नंदी के आग्रह पर मै भी शामिल था और वक्ता के रूप में चंद्रशेखर पूर्व प्रधानमंत्री और विषय था साधनसुचिता ! चंद्रशेखर बहुत ही अच्छा बोलें थे पूरे वेद-उपनिषद से लेकर बुद्ध, महावीर, जिजस, पैगम्बर से लेकर गाँधी, तक कोट करके बोले थे !
धिरू भाई सेठ अध्यक्षता कर रहे थे और चंद्रशेखर जी के भाषण के बाद उन्होंने कहा कि अब यह चर्चा के लिए खुला है जिन्हें भी बोलना हो अपना हाथ उठाएं तो अनायास मेरा ही हाथ सबसे पहले उठा तो धिरू भाई ने मुझे बोलने के लिए कहा ! सबसे पहले मैंने चंद्रशेखर जी के भाषण पर उन्हें बधाई दी की बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर आपने बहुत अच्छा बोला है !
लेकिन आपका राजनीति का ग्राफ देखकर लगता नहीं कि आपने कभी कोई साधन सुचिता के लिए कसर नहीं छोड़ी है ! कयोंकि आपके चुनाव के प्रभारी मरने के पहले तक धनबाद के कोल माफिया सुरजदेव सिंह, भागलपुर दंगों में शामिल महादेव सिंह और उत्तर भारत के डाॅन छोटन शुक्ल के साथ आपका संबंध में कहाँ साधनसुचिता का पालन किया गया है?
तो जवाब में वे बोले कि हमारी संस्कृति में मरे हुए लोगों के बारे में बुरा बोलने की परंपरा नहीं है और सभा और बाद में का लंच छोड़ कर वे चल दिए ! और उसके बाद कट्टी कर ली कयोंकि उसके बाद पुणे में किशोर पवार जी के घर पर भाई वैद्य जी के आग्रह पर मै भी शामिल था और डॉ नरेंद्र दाभोलकर मेरा परिचय देने लगें तो बिचमेही टोकते हुए उन्होंने कहा कि इन्हे कौन नहीं जानता है ? बहुत बडे क्रांतिकारी जो ठहरे !! और पूरे आयोजन में हवाए उठने लगी !
बंगाल में 1982 से 1997 यानी उम्र के 30 वे साल में पदार्पण करते हुए रहना शूरू किया तो 45 को छूने के आसपास महाराष्ट्र में वापस आया तो मेरे जीवनकाल के सबसे महत्वपूर्ण समय मैंने बंगाल में बिताए हैं और लेफ्ट फ्रंट के सरकार के दो मुख्यमंत्रीयो का कार्यकाल देखने का मौका मिला है ! लेफ्ट की भाषा में जितने भी लुम्पेन थे सबके सबने पार्टी में शामिल हो कर जो कुछ किया उसके नतीजे में वन वुमन पार्टी की सरकार ममता बनर्जी ने दोनों बार बनानेमें कामयाबी हासिल की है ! और यह बात कुमार केतकर और शारदा साठे की उपस्थिति में मैंने पूर्व लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को उनके शांतिनिकेतन के आवास पर पांच साल पहले बोला हूँ और सोमनाथ चटर्जी ने उसमें और भी बातें जोडी है जो मैं नहीं लिखना चाहता हूँ !
आज की तारीख में भारत की कौन-सी राजनीतिक दल के साथी दावे के साथ कह सकते हैं कि उनके दल में शामिल सबके सब सज्जन है ? उल्टा मेरी तो बहुत शूरू से राय रही है कि आप की असीमित क्षमता होनी चाहिये निचसे निच होने की तभी आप वर्तमान चुनाव के दंगल में शामिल हो कर कुछ बन सकते हैं !
धन, और वोरा कमीशन के रिपोर्ट के अनुसार 27 साल पहले के 50% अपराधी तत्व भारत की राजनीति पर हावी है तो आज का अनुपात क्या होगा ? वर्तमान भारत की संसद में बैठे हुए सदस्यों की कुंडली देखकर लगता है कि हमारी राजनीति बहुत गंभीर दौर से गुजर रही है ? विकास दुबे एक ताजा मिसाल के तौर पर लेना चाहिए और संपूर्ण भारतीय राजनीति पर कौनसे तत्व हावी है ? दंगों की राजनीति करके जो सरकार बनाने में कामयाब हो सकता है !
तो यह सिर्फ उसके अकेले या उसके दल की बात नहीं हमारे समाज के सामुदायिक स्वास्थ्य की भी जांच करने की जरूरत है ! वर्तमान सरकार के उपर थोडी भी टिप्पणी करने पर अंध भक्त किस तरह ट्रोलिंग करते हैं और तथकथित मुख्यधारा वाले मीडिया में गत छ साल से क्या आ रहा है और अर्णव गोस्वामी जैसे भाँट बनने की होड़ लगी हुई है ! दुनिया के किसी भी कोने में इस तरह के मीडिया देखने में नहीं आ रहा है !
क्या सौ साल पहले के जर्मनी और इटली में इसी तरह के माहौल में आज भारत चला गया है ऐसा नहीं लगता ? डाॅ बाबा साहब आंम्बेडकर के मुंबई स्थित आवास पर हमला करने की घटना को देखकर लगता नहीं कि हमारी राजनीतिक संस्कृति गंभीर दौर से गुजर रही है ?
जिस देश मे नैतिकता के मापदंड ही बदल जाय और अपराधी पृष्ठ भूमि के लोक प्रतिनिधि योकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हो ऐसी स्थिति मे हताशा भरी टिप्पणी या मेरे जैसे लोगों की मन की भडास निकालने के अलावा कोई और विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है !
राष्ट्र सेवा दल ,सर्वोदय, तथा महात्मा गाँधी के, आचार्य विनोबा भावे के तथा जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया, रवींद्रनाथ टैगोर और डॉ बाबा साहब अंबेडकर के नाम पर सार्वजनिक जीवन में मूल्यों की प्रतिस्थापना करने की कोशिश करने वाले संगठनों और व्यक्तियों के लिए बहुत बड़ा चैलेंज है ! बनिस्बत आपसी लडाई करना यह समय और हमारे सीमित संसाधनों की बर्बादी करने की जगह सभीको मिलजुलकर एकजुट होकर ही काम कर ने के संकल्प करने की जरूरत है ! नहीं आपसी कलह करना !
यह बहुत बडा एतिहासिक अपराध के तौर पर राष्ट्र सेवा दल के अस्सी वे साल को पूरा होने पर आगे की शताब्दी के तरफ के सफर का सही संकल्प लिया जाना चाहिए ! कि हमारे छोटे-छोटे मुद्दों पर आपसी विवाद करने की जगह देश और दुनिया के सवालों को लेकर चिंता और चिंतन करने का छोडकर आपसी कलह करना मतलब आप अपने अहम की पुष्टि कर रहे और सच्चा धर्म वही है जो प्रेम विश्व को प्रेम करने जैसा संपूर्ण विश्व के प्रेम की बात करने वाले साने गुरूजी के शिष्यों को शोभा नहीं देता !
या फिर इस तरह के गीत गाने का कर्मकांड बंद करके और रवींद्रनाथ, गाँधी, जयप्रकाश, विनोबा, बाबा साहब अंबेडकर के नाम लेना बंद करके जो कुछ करना है करो कमसेकम इन महान विभूतियों के नाम पर गलाकाट प्रतिस्पर्धा करने की बात भी भारतीय राजनीती के अपराधी होने के प्रमाण मे आती है ! तो हमें भारत की राजनीति मे क्रिमिनल पृष्ठभूमि वाले लोगों को लेकर कुछ भी टिप्पणी करने का नैतिक अधिकार नहीं है ! क्योंकि किसी भी बात की शुरुआत अपने खुद से ही शुरू करनी चाहिए अन्यथा प्रसिध्द संत वचन दूसरों को बोले तत्वज्ञान और खुद सुखा पाषाण ! जैसा मामला हो जायेगा ! हम हमारे आपसी विवाद नहीं सुलझा सकते और बात कर रहे देश-दुनिया को बदलने की ! पहले खुद बदलोगे तो ही देश दुनिया को बेहतर बनाने के लिए कुछ कर सकोगे ! महात्मा गाँधी के जीवन का सबसे बड़ा रहस्य उन्होंने ऐसे कोई बात या काम नहीं बोला जबतक कि अपने व्यक्तिगत जीवन में उसे नहीं उतारा हो और इसिलिए उन्होंने खुद कहा है कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है !