मणिपुर फर्जी मुठभेड़ मामले को लेकर जुलाई 2018 के अंत में सीबीआई द्वारा पकड़े गए कर्नल विजय सिंह बलहर के नेतृत्व वाले एक यूनिट के 107 सैनिकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हस्ताक्षर से एक याचिका दायर किया है, जो आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफसपा) को कथित तौर पर कमजोर करने को चुनौती देता है. इन याचिकाकर्ताओं में चार अधिकारी, 24 जूनियर कमिशंड अधिकारी और 79 अन्य रैंक के जवान शामिल हैं, जो 26 मैकानाइज्ड इंफेंट्री बटालियन का हिस्सा है. कर्नल विजय सिंह बलहर इसी बटालियन के कमांडिंग अधिकारी हैं.
बलहर और सात अन्य सैनिकों के खिलाफ 4 मार्च 2009 को इंफाल में हुए कथित फर्जी मुठभेड़ में 12 वर्षीय मोहम्मद आजाद खान की हत्या के लिए एफआईआर दर्ज किया गया था. उस वक्त बलहर मेजर थे. न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े आयोग के दिशानिर्देश के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 14 जुलाई को कर्नल बलहर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई थी. मामले की जांच कर अदालत में रिपोर्ट जमा करा दी गई थी.
याचिका दाखिल करने वालों ने 58 राष्ट्रीय रक्षा रायफल के उन जवानों का भी हवाला दिया है, जो पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर के रामवन में हुई घटना में शामिल थे. उस घटना में एक पशु व्यापारी की हत्या हुई थी और एक अन्य घायल हुआ था. इसी तरह का एक मामला जनवरी 2018 में सामने आया था, जब शोपियां में तीन नागरिकों की मौत हो गई थी. उसके बाद राज्य सरकार ने 10 गढ़वाल रायफल्स के जवान मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था. इससे पहले 13 अगस्त 2018 को 356 सैन्यकर्मी सर्वोच्च न्यायालय में लिखित याचिका दायर कर चुके थे. इसमें कहा गया था कि आतंकवादी कृत्य में शामिल व्यक्तियों की रक्षा के लिए मानवाधिकार को ढाल नहीं बनाना चाहिए.
गौरतलब है कि एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल एक्जीक्यूशन विक्टिम फैमिलीज एसोसिएशन और ह्यूमन राइट्स अलर्ट ने मणिपुर में हुई फर्जी मुठभेड़ के 1528 मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पीटिशन फाइल की थी. इस पीटिशन में लिखा था कि 1979 से 2012 तक मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ की 1528 घटनाएं हुईं, जिन पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई. उन संस्थाओं की मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में इन मुठभेड़ों की जांच पड़ताल हो. पीटिशन के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन जज का एक कमीशन बनाया था, जिसके चेयरमैन बने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस संतोष हेगड़े. इस कमिशन में पूर्व चीफ इलेक्शन कमिश्नर जीएम लिंगदोह और कर्नाटक के पूर्व डीजीपी अजय कुमार सिन्हा भी शामिल थे. कमीशन ने इंफाल जाकर पहले छह केस की जांच की थी. इसके बाद इस कमीशन ने 12 सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इसके साथ 15 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के छह मुठभेड़ की घटनाओं के मामले में एक फैसला सुनाया. ये सभी मुठभेड़ फर्जी बताए गए थे.
फिलहाल 100 के आसपास केसों की जांच सीबीआई की एसआईटी कर रही है. कुल मामले में अभी तक 41 एफआईआर दर्ज हो चुके हैं. छह मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई है. बहरहाल, इस कानून को साल 1958 में सबसे पहले नगालैंड में लागू किया था और अब ये पूर्वोत्तर के कई राज्यों असम, नगालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है. इसे अदालत में चुनौती भी दिया जा चुका है. सरकार का मानना है कि सशस्त्र विद्रोह और पृथकतावादी आंदोलनों जैसी स्थिति से निपटने के लिए सेना को इन विशेषाधिकारों की जरूरत है. लेकिन मानवाधिकार समूहों का दावा है कि अक्सर इन विशेषाधिकारों का नाजायज इस्तेमाल होता है. सबको मालूम है कि इरोम शर्मिला इस कानून के खिलाफ 16 सालों से आमरण अनशन पर थी, जो नौ अगस्त 2016 को अनशन समाप्त कर चुकी है. शर्मिला के 16 सालों के विरोध के बावजूद सरकार नहीं पिघल पाई.
सुुप्रीम कोर्ट में शिकायत करने की ज़रूरत है : आर्मी चीफ
आतंकवाद ग्रस्त राज्यों में कार्यरत सेना के जवानों के ऊपर क्रिमिनल केस चलाए जाने का आर्मी चीफ विपिन रावत ने विरोध किया है. उन्होंने कहा है कि इसके खिलाफ सेना के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट में जाना चाहिए. आर्मी ऑफिसर्स के खिलाफ क्रिमिनल केस चलाए जाने के संबंध में दिल्ली में हुई एक बैठक में आर्मी चीफ ने कहा कि इस मामले में हम लोगों को सुप्रीम कोर्ट में शिकायत करने की आवश्यकता है. मणिपुर और जम्मू कश्मीर में कार्यरत सेना कर्मियों के खिलाफ क्रिमिनल केस फाइल करने की वजह से आर्मी के ऑफिसर समेत 356 जवानों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. आर्मी चीफ ने बैठक में यह सवाल भी किया था कि उनके ऊपर चल रहे क्रिमिनल केसेज में अगर वे हार जाते हैं तो वे इसके लिए क्या करेंगे? अफसपा आर्मी जवानों को छानबीन करने और गिरफ्तार करने की शक्ति देता है. जरूरत पड़ने पर गोली भी चलाने की इजाजत है. यह कानून सैनिकों को अभियोग से बचाने के लिए है. लेकिन इस कानून के तहत आर्मी के जवान मनमानी तो नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि अफसोस की बात है कि इन अशांत क्षेत्रों में कार्य कर रहे सैनिकों के ऊपर क्रिमिनल केस के आरोप लगाए जा रहे हैं. इससे सेना के कामकाज और मनःस्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. आर्मी चीफ ने कहा कि आर्मी ऑफिसर्स सिविल ऑफिसर्स की तरह नहीं है. यह कार्य औरों से अलग और जिम्मेदारपूर्ण है.
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मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ के मामलों को मानवाधिकार समूह ने 1990 के दशक के अंत में रिकार्ड करना शुरू किया, जब सुप्रीम कोर्ट ने अफसपा की वैधता को सही ठहराया था. अफसपा के तहत, अशांत क्षेत्रों में सेना को बहुत व्यापक अधिकार हासिल होते हैं और सेना बिना वारंट के गिरफ्तारी, तलाशी और गोली मारने जैसे कदम उठा सकती है और उसके खिलाफ किसी तरह का कोई केस नहीं किया जा सकता है. –बबलू लोइतोंगबम, ह्यूमन राइट्स अलर्ट
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एमडी आज़ाद खान मामला क्या था
2009 में मणिपुर में हुए फर्जी मुठभेड़ की घटना में छह लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें एमडी आजाद खान नाम का एक स्कूली बच्चा भी शामिल था. 12 वर्षीय आजाद को उसके मां-बाप के सामने घसीट कर गोली मारी गई. बच्चे की लाश के पास से पिस्टल भी बरामद हुई थी. पुलिस कमांडो और असम रायफल्स की तरफ से यह कहा गया था कि वह आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त था. यह ताज्जुब करने वाली बात है कि जिस दिन इस बच्चे को मारा गया था, उस दिन उसके स्कूल रजिस्टर में उसकी उपस्थिति दर्ज दिखाई गई है, जो एक बड़ा सवाल था. जब बच्चे का पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आया तो पता चला कि उसे छह गोलियां मारी गई थीं. चूंकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि यह फर्जी मुठभेड़ थी.