मेरे पचास वर्षों से भी अधिक समय के मित्रों में से एक ! श्री. दिवाकर मोहनी कल रात 11 बजे 92 के उम्र में हमसे विदा हो गए ! कल ही सुबह दिल्ली के 83 साल उम्र के प्रोफेसर इम्तियाज अहमद का चले जाने के धक्के से निकलने के पहले ही ! रात में ग्यारह बजे के बाद ! उनके दामाद और मराठी के लेखक मित्र श्री. रविंद्र रुक्मिणी पंढरीनाथ का व्हाट्सअप मेसेज पर श्री. दिवाकर मोहनी की जाने की खबर पढ़ने के बाद ! सोने के पहले याद कर रहा था ! कि हमारी और दिवाकर मोहनी की पहचान कैसे हुई ? तो याद आया आपातकाल ! जिसे पांच दिनों के बाद 48 साल होने वाले हैं !


आपातकाल की घोषणा, और सेंसरशिप के कारण मिडिया में (भले ही आज बगैर आपातकाल की घोषणा और सेंसरशिप के अघोषित आपातकाल और सेंसरशिप गत नौ सालों से जारी है ! लेकिन अब सोशल साइट्स पर हम अपनी भड़ास निकाल ले रहे हैं ! यह फर्क है ! ) लेकिन उस समय की मिडिया ! मतलब अखबार के कार्यालय में जाकर, हमारे कार्यक्रम की जानकारी, या हमारे देश- दुनिया या अगल – बगल की घटनाओं को लेकर हमारी प्रतिक्रिया, लिखकर खुद अखबारों के दफ्तरों में जाकर या डाक द्वारा भेजे देते थे ! लेकिन आपातकाल की घोषणा और सेंसरशिप के कारण हमारे लिए अखबार बंद होने से हम लोगों ने सायक्लोस्टाइल मशीनों पर टेंन्सिल पर जोरदेकर लिखकर, फिर उस मशीन पर चढाकर हैंडल से घुमाते हुए कुछ कॉपीया निकाल पाते थे ! और उन्हें अपने जान पहचान के लोगों को छुपछुपकर बाटते थे ! हालांकि आज पिछे मुडकर देखने से लगता है ! कि वह सिर्फ हमारे अपने समाधान के लिए पूरा कष्ट था ! क्योंकि उससे कुछ विशेष बदलाव नहीं आया था !
लेकिन नागपुर में दिवाकर मोहनी एक प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे ! यह जानकारी यदुनाथ थत्ते जी ने दी थी ! और शायद जेपी का अपिल या नानासाहेब गोरे के राज्यसभा के भाषण का मराठी संस्करण, कुछ ज्यादा संख्या में छापने की आवश्यकता थी ! तो पुणे से यदुनाथ थत्ते जी ने नागपुर में मोहनी जी का नाम और पता देने से ! मै अमरावती से नागपुर दिवाकर मोहनी से पहली बार उनके धरमपेठ स्थित ‘मोहनी निवास’ स्थान पर मिलने के लिए गया था ! और अत्यंत मृदु भाषी, विलक्षण विनयशील, और स्नेहशील ! दिवाकर मोहनी से प्रत्यक्ष मिलना हुआ था !


उसके बाद छुटपुट मुलाकात हुई होगी ! लेकिन 1982 से हम कलकत्ता मॅडम खैरनार की केंद्रीय विद्यालय की नौकरी की वजह से! ! पुलगाव वर्धा से तबादला होने की वजह से ! एकदम कलकत्तावासी बन गए थे ! तो उनके बेटी की शादी कलकत्ता में एक मराठी परिवार में होने के बाद, शायद वह और उनकी पत्नी सुनंदाताई उसे छोडने के लिए आए थे ! और काफी दिनों तक कलकत्ता में रहे ! तो उस मराठी घर और हमारे घर में सिर्फ दो – तीन किलोमीटर की दूरी होगी ! तो दिवाकरराव अक्सर ट्रॅम से हमारे घर आ जाते थे ! और उस समय हमारे दोनों बच्चे तीन साल के भीतर उम्र के होने की वजह से ! अगर दिवाकरराव और हमें कलकत्ता में कहीं और जगह किसी को मिलने, या किसी अन्य कारण से बाहर जाने की आवश्यकता होती थी ! तो हमारे दोनों बच्चों को साथ लेकर चलना पड़ता था ! (क्योंकि उस दौरान मैं शतप्रतिशत हाऊस हसबैंड की भूमिका का निर्वाह कर रहा था ) उस दौरान उनसे सही मायने में दोस्ती हुई !
1997 में मॅडम खैरनार का नौकरी का आखिरी तबादला, नागपुर के केंद्रीय विद्यालय में हुआ ! तो मजबूरन हमें नागपुर में ही बसना पड़ा ! और उस बात को आज 26 साल हो गए ! इन 26 सालों में नागपुर के अन्य मित्रो के साथ दिवाकरराव भी हमारे मित्र मंडली में शामिल थे ! और वह “आज का सुधारक” नाम से गोपाल गणेश आगरकर के उन्नीसवीं सदी के समाज-सुधारक के उद्देश्य से शुरू की गई पत्रिका का पुनःप्रकाशन और शायद संपादकीय बोझा ढो रहे थे ! और उसमे मुख्य रूप से स्त्रीयों के सवाल तथा आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर दिवाकरराव अपनी अभिव्यक्ति दिल खोलकर करते थे ! जिसमें काफी विवाद पैदा हुए हैं ! मुख्यतः वह परिवार और स्री – पुरुषों के लैंगिक संबंधों को लेकर बहुत ही खुलकर लिखते थे ! जो कि उनकी उम्र और अत्यंत सुंदर पारिवारिक जीवन जीने के बावजूद और सुनंदाताई जैसी जीवन संगीनी बिल्कुल एक-दूजेकेलिए जैसी जोडी रहने के बावजूद वह अपनी अभिव्यक्ति सुधारक के माध्यम से करते थे !
और मेरी और उनकी उन मुद्दों को लेकर धमासान बहस होती थी ! और वह मुझे उकसाते थे ! कि “आप यह सब सुधारक के लिए लिखो”! और उस समय मुझे लिखने का आलस होने की वजह से, शायद मैंने एक पंक्ति भी नहीं लिखि है ! लेकिन चर्चा घंटों तक करते थे ! कभी वह साईकिल से हमारे यहां चलें आते थे ! तो कभी-कभी मैं खुद ही मोहनीभवन चला जाता था ! यह सिलसिला अभी पांच- छह सालों तक चलता रहा ! लेकिन उनके परिवार के कुछ सदस्यों को लगा कि ! उनका स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें इस तरह की बौद्धिक घटापट से निजात दिलाने के लिए ! मुझे उनके परिवार के एक सदस्य ने कहा कि “आपके कारण उन्हें ढंग से आराम करने को नहीं मिलता है !” तो मैंने तबसे उनके घर जाना बंद कर दिया था ! हालांकि दिवाकरराव ने कई बार फोन पर बताया कि “उन लोगों की बात मानने की जरूरत नहीं है ! आप मुझसे मिलने आते हैं ! और मुझे अच्छा लगता है !” लेकिन मै नहीं गया !


हालांकि यह बात मेरे साथ आज जिस बुजुर्ग मित्र की शताब्दी का दिवस है ! ( 20 जून 1923 जन्मदिन है ! ) गौरकिशोर घोष की पत्नी ने भी ! उनकी नब्बे के दशक में चौथी बायपास सर्जरी होनेके बाद ! मुझे कहा कि “अब आपका हमारे यहां आना ठिक नहीं है ! क्योंकि उन्हें यह सर्जरी आपके साथ वह भागलपुर ( 24 अक्तुबर 1989 के दंगों के बाद ) बार – बार यात्रा करने की वजह से ही आज उन्हें चौथी बार बायपास सर्जरी करनी पड़ी !” और दुर्देवसे उस बायपास सर्जरी के बाद डॉक्टरों के ध्यान में नहीं आने की वजह से वह अपनी वाचा और शरीर के बाएं तरफ के हिस्से का पॅरॅलिसिस में चले गए थे ! इसलिए बोलना और लिखने की शक्ति चलीं गई थी ! तो श्रीमती घोष ने कहा कि “आपनाके अमार बाडी ते आस्ते होबे ना ”
तो मैंने सोचा कि एक पत्नी को अपने पति की तबीयत को लेकर यह भुमिका लेना कुछ भी गलत नहीं है ! और मै बगैर किसी विवाद, और नाराज हुए बगैर दोबारा उनके घर जाना बंद कर दिया था ! लेकिन एक दिन उनकी दोनों बेटियां हमारे घर आकर माफी मांगते हुए कहा कि “डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें जिन लोगों से मिल कर अच्छा लगता है ! उन्हें ट्रिटमेंट के तौर पर जितना संभव है ! मिलने देना चाहिए ! और इसलिए मां के तरफसे हम माफी मांग कर आपकों प्रार्थना करते हैं ! कि आप हमारे पिताजी को जब भी फुर्सत हो मिलने के लिए आते रहिए यही कहने के लिए विशेष रूप से हम दोनों आपके घर पर आए हैं ! ”


खैर मैं गया ! और उसके बाद 1997 में नागपुर आने के बाद जब भी कभी कलकत्ता गया था ! तो अशोक सक्सेरिया के घर पर ठहरने के बाद गौरकिशोर घोष से मिलने के लिए गया ! तो उन्होंने पूछा” तुम्हारा सामान कहा है ?” मैंने कहा कि अशोक सक्सेरिया के घर पर ! तो तुरंत उन्होंने कहा “कि उस बॅचलर को क्यों तकलीफ दे रहे हो ? जाओ और अभिकेअभि तुरंत सामान लेकर आओं!” शायद यह हमारी आखिरी मुलाकात हुई ! क्योंकि उसके बाद नई शताब्दी के दिसंबर में 87 के उम्र में उनका देहांत हो गया ! और आज सौवां जन्मदिन ‘शताब्दी’ !
दिवाकर मोहनी के परिवार के सभी सदस्य बहुत ही सुसंस्कृत और सभ्य तथा पढ़ने – लिखने वाले लोग हैं ! उन्होंने अंतिम समय तक उनकी बहुत ही अच्छी तरह से सेवा की है ! और मोहनी परिवार नागपुर के उन ब्राम्हण परिवारों में से एक है ! जिन्होंने 1925 में अन्य ब्राम्हणों ने मिलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की है ! लेकिन यह हिंदूत्ववादी राजनीतिके विरोधी लोगों में से एक परिवार है !


दिवाकरराव के एक भाईसाहब भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में से एक रहे हैं ! तो दुसरे चचेरे भाईसाहब भारतीय संरक्षण सेना के लेफ्टिनेंट जनरल रहे हैं ! और इनके चाचा आजसे सौ साल पहले मॅट्रिक बोर्ड के अध्यक्ष ! और सबसे महत्वपूर्ण बात दिवाकरराव के पितृतुल्य चाचा हरिभाऊ मोहनी महात्मा गाँधी जी के ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह के गांधी जी ने चुनें हुए सत्तर सत्याग्रहियों में से एक थे ! और बुआ कमलाताई होस्पेट नागपुर के पहले महिला प्रसुतीगृह मातृ सेवा संघ की संस्थापक रही है ! और शादी-ब्याह के मामले में ख्रिश्चन धर्म से लेकर विभिन्न जातियों तथा प्रदेश में विवाह करने के लिए इस परिवार की खासियत है ! इससे ज्यादा सुधारक और कौन हो सकता है ?


दिवाकरराव जिंदगी के अंत में खादी के अर्थशास्त्र को लेकर काफी आलोचना करते थे ! लेकिन मै गलत नहीं हूँ तो आखिर तक उनके देहपर खादी के ही कपडे देखें है ! मेरी मान्यता है कि दिवाकरराव ओरिजिनल थिंकर थे ! लेकिन उस हिसाब से उनकी कद्र नही की गई ! उन्हे सिर्फ मराठी भाषा और लिपितज्ञ कहना उनका अल्प परिचय है ! उनकी प्रतिभा को सिर्फ इतना सा अवकाश बताना समुद्र के अंदर के बर्फ के उपरी हिस्से का वर्णन करने जैसे लगता है ! वह अर्थशास्त्र से लेकर मानवीय संबंधों की बारिकियों से लेकर जाति-धर्म संप्रदाय और सबसे महत्वपूर्ण बात स्रि-मुक्ति यह उनके चिंता और चिंतन के विषय रहे हैं !
दिवाकरराव ने अपने आंखें और शरीर दान किया है ! और अन्य कोई भी विधि या संस्कार नहीं करने की उनकी इच्छा का सम्मान उनके परिवार के सदस्यों द्वारा हो रहा है ! सुनंदाताई तथा बेटे भरत और बेटी अनुराधा और यशोदा तथा दोनों दामाद और अन्य सभी नाते रिश्तेदारों के दुःख में हम सभी शामिल हैं ! दिवाकरराव की स्मृति में विनम्र अभिवादन !
डॉ. सुरेश खैरनार 20 जून 2023, नागपुर.

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