अगर आप जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत किसी सरकारी महकमे से जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी मांगते हैं तो सावधान हो जाइए. संबंधित महकमा आपके ख़िला़फ साज़िश भी रच सकता है. यदि आप प्रशासन की कारगुज़ारियों को उजागर करने वाले पत्रकार अथवा सामाजिक कार्यकर्ता हैं तो आप पर जानलेवा हमला भी हो सकता है. संगीन अपराधों में आपके ख़िला़फ एफआईआर भी दर्ज हो सकती है. ऐसा ही इन दिनों उत्तर-प्रदेश के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित जनपद सोनभद्र में जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत सूचना मांगने वालों के साथ हो रहा है. ज़िला प्रशासन ऐसे लोगों को जेल की हवा खिलाने और प्रताड़ित करने के लिए संवैधानिक क़ानूनों को ताक पर रख दे रहा है. जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005. केंद्र सरकार के शब्दों में कहें तो सरकारी महकमों से सूचना हासिल करने का अचूक हथियार. सोनभद्र में हज़ारों लोगों ने इस अचूक हथियार का इस्तेमाल किया, लेकिन इन्हें सूचना हासिल नहीं हो पाई. कुछ लोगों को आधी-अधूरी सूचना मिली तो कुछ को ग़लत जानकारी देकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली गई. गरीबों को उनकी आर्थिक स्थिति से अधिक का बिल (बिना पृष्ठों की संख्या दिए) बनाकर पत्र भेज दिया गया. सैेकड़ों ऐसे भी हैं, जिन्होंने हज़ारों रुपए ख़र्च कर राज्य सूचना आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग तक की दौड़ लगाई लेकिन मामला ढाक के तीन पात वाला ही रहा. कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत सूचना मांगी थी और जिला प्रशासन के कोप का शिकार हुए.
किसी एक की कहानी नहीं है यह
चोपन थाना क्षेत्र के बिल्ली निवासी राधेश्याम भारती ने ज़िला खान अधिकारी पदेन जन सूचनाधिकारी, जिला खनिज अनुभाग सोनभद्र से दिनांक 10.12.2008, 27.12.2008, 27.01.2009 एवं 30.05.2009 को जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना मांगी. क़ानून के मुताबिक़ तय समयावधि में राधेश्याम भारती को सूचना नहीं दी गई. उन्होंने विभाग के बडे अधिकारियों से भी अपील की लेकिन सूचना नहीं दी गई. इसके बाद राधेश्याम भारती अपने कुछ साथियों के साथ इसी वर्ष 12 जून को ज़िला खान विभाग के सामने धरने पर बैठ गए. फिर, राधेश्याम भारती को खान अधिकारी ए.के. सेन द्वारा उनके पत्र का संज्ञान लेते हुए आधी-अधूरी जानकारी दी गई. पूरी जानकारी नहीं मिलने पर राधेश्याम भारती, हरिप्रसाद, रामनरेश आदि पिछले 13 अगस्त को एक बार फिर खनन अनुभाग के सामने धरने पर बैठे. इसी रात क़रीब 12 बजे कुछ लोगों ने राधेश्याम भारती और उनके साथियों पर हमला कर दिया. मामले की सूचना रॉबटर्सगंज कोतवाली पुलिस को दी गई. पुलिस एनसीआर (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) दर्ज़ कर मामले की विवेचना कर रही है. रॉबटर्सगंज के विकास नगर निवासी चौधरी यशवंत सिंह अपना दल के जिलाध्यक्ष हैं. उन्होंने जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 का इस्तेमाल करते हुए ज़िला प्रशासन के विभिन्न विभागों से सूचना मांगी, लेकिन क़ानून के तहत समय से सूचना नहीं प्राप्त हुई. यशवंत सिंह ने ज़िला खान अधिकारी कार्यालय के सामने सूचना हासिल करने के लिए धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. जवाबी कार्रवाई में ज़िला प्रशासन के नुमाइंदों ने चालू वर्ष की 16 जनवरी को यशवंत सिंह व उनके सहयोगियों को खदेड़ दिया. साथ ही प्रशासन ने रॉबटर्सगंज कोतवाली में यशवंत सिंह, नागेन्द्र पासवान व बबुंदर सिंह के ख़िला़फभारतीय दंड विधान की विभिन्न धाराओं में मुक़दमा दर्ज करा दिया. ब्रह्मनगर निवासी पवन कुमार सिंह ने 26 जून 2008 को ज़िला प्रशासन से जनपद के विभिन्न विभागों
में नियुक्त जन सूचना अधिकारियों की सूची मांगी. क़रीब 20 दिनों बाद ज़िला प्रशासन द्वारा पवन कुमार सिंह को जन सूचना अधिकारियों की सूची उपलब्ध कराई गई. सूची में दिए गए नामों में से क़रीब 75 फीसदी जन सूचना अधिकारियों का तबादला हो चुका है. इतना ही नहीं जिलाधिकारी का भी नाम सही नहीं था. जन सूचनाधिकार क़ानून पर काम करने वाले बभनी निवासी प्रमोद कुमार चौबे को भी कई विभागों से सालों बाद भी सूचना प्राप्त नहीं हुई है. प्रमोद कुमार चौबे सूचना हासिल करने के लिए राज्य सूचना आयोग तक गुहार लगा चुके हैं. बहुअरा निवासी इरफानुल हक़ रब्बानी इन दिनों सूचना नहीं हासिल करने के लिए संबंधित व्यक्तियों की धमकियों से दो चार हो रहे हैं.
पत्रकार भी नहीं अपवाद
बीते वर्ष इस संवाददाता ने 21 अप्रैल को जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना से संबंधित जानकारी जन सूचना अधिकारी, ज़िला समाज कल्याण विभाग, सोनभद्र से मांगी. नतीजा यह निकला कि ज़िला समाज कल्याण अधिकारी डॉ. रश्मि प्रभा शास्त्री व लिपिक चिंतामणि त्रिपाठी ने संवाददाता पर क़दम पीछे लेने का दबाव डाला. इसके बाद ज़िला समाज कल्याण विभाग का एक पत्र मिला जिसमें संवाददाता को स्टेशनरी, फोटो स्टेट तथा पोस्टेज के ख़र्च के लिए 4,950 रुपये जमा करने को कहा गया था, लेकिन पत्र में कहीं भी फोटो कॉपी होने वाले पृष्ठों की संख्या अंकित नहीं थी. संवाददाता ने 14 जुलाई 2008 को मुख्य विकास अधिकारी के डी राम के यहां प्रथम अपील दाखिल की, लेकिन एक साल गुज़र जाने के बाद भी संवाददाता को सूचना प्राप्त नहीं हुई है. इसी साल की एक जुलाई को संवाददाता हरियाली खुशहाली योजना से संबंधित जानकारी प्राप्त करने जिला ग्राम्य विकास अभिकरण, सोनभद्र के प्रभारी जन सूचनाधिकारी हाकिम सिंह के पास गया लेकिन इन्होंने सूचना देने से इंकार कर दिया. जब संवाददाता ने जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 का हवाला दिया तो परियोजना निदेशक, हाकिम सिंह ने संवाददाता से बदतमीजी की और उसे कार्यालय से बाहर कर दिया. संवाददाता ने मामले की सूचना मुख्य विकास अधिकारी के डी राम को दी लेकिन परियोजना निदेशक हाकिम सिंह के ख़िला़फ कोई कार्रवाई नहीं हुई. संवाददाता ने केंद्र सरकार की इंदिरा आवास योजना और राज्य सरकार की महामाया आवास योजना की हक़ीक़त जानने की कोशिश की. संवाददाता बीती 27 जुलाई को जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत इन योजनाओं से संबंधित सूचना प्राप्ति हेतु आवेदन पत्र की प्राप्ति लेने ज़िला ग्राम्य विकास अभिकरण कार्यालय में गया. संवाददाता ने आवेदन पत्र देकर प्राप्ति प्रतिलिपि मांगी. लिपिक रिज़वाना ख़ातून ने अस्पष्ट हस्ताक्षर कर प्राप्ति प्रतिलिपि संवाददाता को दे दी. संवाददाता ने कार्यालय की मुहर लगाने का अनुरोध किया. लिपिक ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. संवाददाता ने इस बात की शिकायत उच्चाधिकारियों से करने की बात कही. इस पर पास की कुर्सी पर बैठे मुख्य विकास अधिकारी के आशुलिपिक अवनीश कुमार और अन्य ने संवाददाता के साथ बदतमीजी की और कहा कि तुम बार-बार सूचना मांगने आते हो. इसका मज़ा हम तुम्हें चखा देंगे. संवाददाता ने घटना की सूचना मोबाइल के माध्यम से मुख्य विकास अधिकारी के.डी. राम को दी लेकिन इनके ख़िला़फ कोई कार्रवाई नहीं हुई. प्राप्ति प्रतिलिपि पर कार्यालय की मुहर नहीं लगाने और अस्पष्ट हस्ताक्षर करने के सवाल पर संवाददाता ने जिलाधिकारी पनधारी यादव से बात की. जिस पर जिलाधिकारी ने कहा कि यह उत्तर प्रदेश है, यहां हाथोंहाथ दिए जाने वाले आवेदन पत्रों की प्राप्ति प्रतिलिपि पर बिना कार्यालय की मुहर के और अस्पष्ट हस्ताक्षर के द्वारा ही प्राप्ति दी जाती है. जिलाधिकारी के इस बयान से संवाददाता हतप्रभ रह गया. संवाददाता को अगले दिन सूचना मिली कि मुख्य विकास अधिकारी कार्यालय ने रॉबटर्सगंज कोतवाली में उसके ख़िला़फ भारतीय दंड विधान की धारा 353/504 के तहत एफआईआर दर्ज कराई है. संवाददाता ने एफआईआर की नक़ल निकाली. ज़िला सूचना अधिकारी कार्यालय सोनभद्र में तैनात उर्दू अनुवादक निसार अहमद ने मुख्य विकास अधिकारी कार्यालय को सूचित किया था कि संवाददाता किसी भी मान्यता प्राप्त अख़बार का पत्रकार नहीं है, जबकि संवाददाता संपन्न भारत, अमर उजाला, साप्ताहिक स्पूतनिक, नई दुनिया, चौथी दुनिया, काल चिंतन, अमर भारती आदि समाचार पत्रों में वर्ष 2004 से समाचार, लेख, फीचर आदि लिखता रहा है. इतना ही नहीं संवाददाता पिछले पांच सालों से इंदौर और क़रीब 20 साल से लखनऊ से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र स्पूतनिक का मई
2008 से दिसंबर 2008 तक ज़िला सूचना कार्यालय सोनभद्र में बतौर ज़िला प्रतिनिधि पंजीकृत है. जिस व़क्त की यह बात है, उस समय संवाददाता एक सैटेलाइट न्यूज चैनल में नई दिल्ली में असिस्टेंट रन-डाउन प्रोड्यूसर पद पर कार्यरत था. वर्तमान में संवाददाता दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स का सदस्य भी है. इसके बावजूद ज़िला प्रशासन ने उर्दू अनुवादक निसार अहमद की भ्रामक जानकारी पर संवाददाता के ़िखला़फ एफआईआर दर्ज कराई.
सवाल यह है कि क्या आरएनआई की मान्यता प्राप्त अख़बार सरकारी नज़रों में मान्यता प्राप्त नहीं है और इन अख़बारों में लिखने वाले पत्रकार नहीं हैं? क्या पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की उपाधि धारक और क़रीब पांच साल तक पत्रकारिता क्षेत्र में लिख रहा व्यक्ति पत्रकार नहीं है? सूचना प्राप्त करने के अधिकार को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद भी सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित करना कहां तक उचित है? ज़िला प्रशासन सहित राज्य एवं केन्द्र सरकार को इन प्रश्नों के जवाब आम जनता को देने की ज़रूरत है.
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